Thursday 31 December 2020

असीम शुभकामनाएँ

 नूतन वर्ष की हार्दिक बधाई ..

दायित्व में पस्त अधिकारों की होती बेक़रारी।

हाय तौबा मचा लेते हैं खड़ा होकर किनारी।

विगत क्या आगत क्या रंगों की उलझन बड़ी,

जान-ए ली चिलम जिनका पर चढ़े अंगारी।

शून्य कोई होना नहीं चाहता

शून्य कोई पाना नहीं चाहता।

जिन्दगी कल थी उन्नीस–बीस,

कल हो जाएगी इक्कीस-बाइस।

लगे हुए हैं सब कोई बेचने में

एस्किमो को आइस।

गाँठ में जोड़ कर रखें पाई-पाई

नव वर्ष की हार्दिक बधाई।

मैं क्या हूँ

सारे फ़साद की सोर उम्मीद है।

नमी में आग का कोर उम्मीद है।

सोणी के घड़े सा हैं सहारे सारे,

ग़म की शाम में भोर उम्मीद है।

Wednesday 30 December 2020

क्या कहें

 बहुत अकुलाता है मन

हम बस एक कदम की दूरी पर है
नूतन वर्ष की प्रतीक्षा में
हम बदल पाए बेटियों की दुर्दशा
शिक्षित बहू की हत्या
मात्र पन्द्रह दिनों में...
हम मिटा पाए समाज से भ्रष्टाचार
हम मिटा लिए अशिक्षा
हम अपने राज्य से पलायन रोक लिए
हम हर घर के लिए 
चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कर लिए
तारीख और दिन बदल जाएंगे
जंग तो जारी है
तैयारी अभी अधूरी है
बहुत सी कमियों के बाद भी मुस्कुराते हुए
नूतन दिवस की शुभकामनाओं के संग
प्रतीक्षा
नए सूरज की
इन्द्रधनुष सभी के लिए

Tuesday 29 December 2020

"खुले पँख"


"मैं आज शाम से ही देख रहा हूँ.. आप बहुत गुमसुम हो अम्मी! कहिए ना क्या मामला है?"

"हाँ! बेटे मैं भी ऐसा ही महसूस कर रहा हूँ.. बेगम! बेटा सच कह रहा है। तुम्हारी उदासी पूरे घर को उदास कर रही है.. अब बताओ न।" शौकत मलिक ने अपनी बीवी से पूछा।

"कल रविवार है.. हमारे विद्यालय में बाहरी परीक्षा है। आन्तरिक(इन्टर्नल) में जिसकी नियुक्ति थी उसकी तबीयत अचानक नासाज हो गई है। उनका और प्रधानाध्यापिका दोनों का फोन था कि मैं जिम्मेदारी लेकर अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करूँ।"

"यह जिम्मेदारी आपको ही क्यों .. और शिक्षिका तो आपके विद्यालय में होंगी?" बेटे ने तर्क देते हुए पूछा।

"ज्यातर बिहारी शिक्षिका हैं। आंध्रा में बिहार निवासी दीवाली से पूर्णिमा तक पर्व में रहते कहाँ हैं।" मिसेज मलिक की उदासी और गहरी हो रही थी।

"चिंता नहीं करो, सब ठीक हो जाएगा।"बेटे ने कहा।

"हाँ! चिंता किस बात की। अपने आने में असमर्थता बता दो कि माँ का देखभाल करने वाली सहायिका रविवार की सुबह चर्च चली जाती है तुम्हारा घर में होना जरूरी है।" पति मलिक महोदय का फरमान जारी हुआ। सहमी सहायिका भी लम्बी सांस छोड़ी।

"कैसी बात कर रहे हैं पापा आप भी? अगर आपके ऑफिस में ऐसे कुछ हालात होते तो आप क्या करते?"

"मैं पुरुष हूँ पुरुषों का काम बाहर का ही होता है।"

"समय बहुत बदल चुका है। बदले समय के साथ हम भी बदल जाएं। कल माँ अपने विद्यालय जाकर जिम्मेदारी निभायेंगी। सहायिका के चर्च से लौटने तक घर और दादी को हम सम्भाल लेंगे।"

"बेटा! तुम ठीक कहते हो... घर चलाना है तो आपस में एक दूसरे की मुश्किलों को देख समझकर ही चलाना होगा.. तभी जिंदगी मज़े में बीतेगी...।"

इतने में उनकी नज़र पिंजरे में बंद पक्षी पर जा पड़ी जो शायद बाहर निकलने को छटपटा रहा था.. पिंजड़ा को खोलकर पक्षी को नभ में उड़ाता बेटे ने कहा,-"सबको आज़ादी मिलनी ही चाहिए।"

Monday 28 December 2020

सेतु

शीत की भोर–

पुस्तक में दबाये

गुलदाऊदी।

उलझा ऊन–

नन्हें गालों उकेरे

लाल निशान।

चारों तरफ मैरी किसमस सैंटा सांता क्लॉज का शोर मचा हुआ था..। इस अवसर पर मिलने वाले उपहारों का  शैली को भी बेसब्री से प्रतीक्षा थी। कॉल बेल बजा और एक उपहार उसे घर के दरवाजे पर मिल गया। चार-पाँच साल की नन्हीं शैली खुशियों से उछलने लगी,-"मम्मा! मम्मा मैं अभी इसे खोल कर देखूँगी। सैंटा ने मेरे लिए क्या उपहार भेजा है?"

"अपने डैडी को घर आ जाने दो .. ! सैंटा का उपहार कल यानी 25 दिसम्बर को खोल कर देखना। " शैली की माँ ने समझाने की कोशिश किया।

शैली ज़िद करने लगी कि अभी उपहार मिल गया तो अभी क्यों नहीं खोल कर देख ले। माँ बेटी की बातें हो ही रही थी कि शैली के डैडी भी आ गए। वे भी अपनी बिटिया हेतु सैंटा सिद्ध होने के लिए दो-तीन पैकेट उपहारों का लेकर आये थे।

जब तक छिपाकर रखते शैली की नजर पड़ गयी। कुछ ही देर में शैली सारे उपहारों का पैकेट खोलकर बिखरा दी।

"जब तुम जानती थी कि हम उपहार रात में इसके बिस्तर पर रखेंगे, जिसे एमेजॉन पर ऑर्डर किया और कुछ लाने मैं स्वयं बाजार गया था। मेरे वापसी पर शैली को किसी अन्य कमरे में खेलने में व्यस्त रख सकती थी न तुम?" शैली के पिता शैली की माँ पर बरस पड़े।

"इसे आप बाहर नहीं ले गए। कुछ देर तक रोती रही। बहुत फुसलाने पर बाहर से अन्दर आयी। डोर बेल बजने पर यह दौड़ कर दरवाजे तक पहुँच गयी।"शैली की माँ ने कहा।

"ना काम की ना काज.., बहाने जितने बनवा लो..!" शैली के पिता बुदबुदाने लगे । शैली की माँ सुनते भड़क गयी। दोनों में गृह युद्ध हो गया और अबोला स्थिति हो गयी।

शैली के समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ तो हुआ क्या...?

रात्रि भोजन के समय भी अपने माता-पिता की चुप्पी उसे कुछ ज्यादा परेशान कर दी। शैली अपने पिता के पास जाकर बोली, -"डैडी! मुझे आपसे बात करनी है।"

परन्तु उसके पिता चुप ही रहे।

"क्या मैं आपसे घर की शान्ति की भीख मांग सकती हूँ?" शैली ने कहा।

Friday 25 December 2020

बुद्ध

जब तक
तलाश रही सांता की
 उम्मीद की उलझन
मकड़ी जाल में
कैद रही जिन्दगी।
कोहराम हवाएँ
दुःख के बवंडर
सदमा के सैलाब
छलके आँसू
छूटी परिंदगी।
खुद को जो चाहिए
उसे पहले बाँट ली
दोगुनी मात्रा में वापिस
मिल गयी बन्दगी।

बुद्ध होना ना
तो कठिन है और
 ना नामुमकिन
बस छोटी लकीर के आगे
बड़ी लकीर खींचने के
जद्दोजहद से बच निकलो।
लकीर के फ़कीर होना
कहाँ तक सामयिक
यह तो तौल कर नाप लो।

Tuesday 22 December 2020

"बड़प्पन"



गुज़रते लम्हों ने सीखला ही दिया...
मोहब्बत जग में जाहिर की जा सकती है
गम आँसू निजी दामन में छिपाने योग्य होते हैं
समय पर ही वक़्त आता है 🤙🏼 !

 "सोच भी नहीं सकती थी कि आप! आप मेरे पीठ पीछे मेरा! मेरा शिकायत पापा से करेंगी।"

"मैं पूछ रहा हूँ न तुम चुप रहोगी कुछ देर।"

"नहीं मुझे पूछना है.. इनसे ही सीखने को मिला है मुँह पर पूछो। इतने वर्षों से महान होने का जो दिखावा कर रही थीं। मेरा शिकायत कीं तो हर्ट मैं हुई हूँ..,"

"बोलो माँ कुछ बोलो अगर तुम्हें इससे कोई शिकायत थी तो तुम इससे कह देती। इसके पीठ पीछे क्यों... ? आख़िर क्यों... ?कुछ तो बोलो...,"

"तुम सुने मैं जो कह रही थी.. तुम अब सज़ा सुना दो मुझे तुम से कुछ नहीं कहना।"

"मैंने कुछ नहीं सुना.. यह सुनी और रोते हुए मेरे पास आयी। मैंने कहा मैं माँ से बात करूँगा।"

"अगर उसने सुना तो उसी समय वह सामने आकर पूछ लेती क्या बातें हो रही हैं... इतने वर्षों से मैं महान होने का दिखावा कर रही थी। वर्षों तक दिखावा किया जा सकता है.. आख़िर क्या चाहिए था मुझे उससे?"

"इतने वर्षों में आपको पोता-पोती नहीं दे सकी।"

"तुमसे चुप रहने के लिए कहा और तुम अनर्गल बकवास किये जा रही हो। माँ तुम बताओ न क्या बात हो रही थी।"

"सुबह में रात का सारा बर्तन..,"

"माँ डिस वाश मशीन किसलिए है? सारी सुख-सुविधाओं का सामान जुटा सकते हैं... अब कोई प्रयोग ही ना करे..,"

"डिश वाश मशीन है ... जला कुकर कढाड़ी तवा बिना रगड़े और डिश भी खंगाल कर डालो तो साफ करता है.. रात का सूखा जूठा नहीं छोड़वा देता है।"

"तो तुम्हें क्या जरूरत है करने की?"

"यही तो तुम्हारे पापा भी कह रहे थे छोड़ दो बहू कर लेगी.. लेकिन मैंने ही कहा जला कुकर है बहू से साफ नहीं होगा.. और उसको समय कहाँ मिलता है.. वर्क एट होम में तो पानी नहीं पी पाती है... अभी बाहर से लौटेगी तो आराम रहेगा उसे। सुबह से शाम तक के बर्तन रगड़ने से आटा गूँथने में पीठ हाथ दर्द करने लगा था। चिन्ता करना और शिकायत करना एक ही है तो क्या बोलूँ.. बोलने के लिए क्या रह गया है.."

"वो आधी-अधूरी बात सुनी और रिश्तों में सूनापन ला दी, और मैं कान के विष के वशीभूत अशान्ति फैलाने में सफल रहा...,"

"कोई बात नहीं ! हो जाता है कभी-कभी, समय रहते दरार पाट लेनी चाहिए..।"

Sunday 20 December 2020

आज की चर्चा


क्या अब रिश्ते अकेलेपन की राह पर चल पड़े हैं!

हाँ! अब रिश्ते अकेलेपन की राह पर चल पड़े हैं।

अकेले चलना मजबूरी हो गया है या जरूरी ,

यह सबके सहनशीलता पर तय हो चला है..

चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात होती देखी है रिश्तों ने

और सीख लिया चाँद सा अकेले चलने में नहीं डरना!

सूरज से कोई आँख नहीं मिला सकता, ग्रहण के समय लोग उससे आँखें चुराते हैं। अपनी लड़ाई खुद अकेले ही तो लड़ना है, लेकिन बिंदास रहना उससे ही सीखना! आवश्यक हो गया अकेलेपन के लिए नहीं मरना।

अनेकानेक बार लगा कि अपनी मनोस्थिति व परिस्थितियों को समझने के लिए मुझे बस जागना ही होगा। अलग-अलग आध्यात्मिक कार्य जैसे कि समाज के लिए नि:स्वार्थ सेवा, ॐ का जाप या साहित्य व शास्त्रों का अध्ययन मुझे मेरी नींद से जगाने में मदद करते रहे। यही मेरे ध्यान के माध्यम थे और जागने के आधार। इस बाहरी जागरूकता के आधार से ही मैं अपनी आन्तरिक जागरूकता प्राप्त की।

Saturday 19 December 2020

जुगनू ज्योत

जुगनू की लौ/देवदीवाली–
बंसवारी मकड़ी
मेले में आयी।

"थैंक यू! थैंक यू ,सो मच सर!" होल्ली ने अपने बॉस रेड्डी को कहा।
"इट'स ओके! गॉड ब्लेस्स यू! एन्जॉय।" बॉस रेड्डी ने अपने टीम मेम्बर होल्ली से पूछा।
     होल्ली व रेड्डी जिस कम्पनी में काम कर रहे थे, उस कम्पनी से कहा गया कि सभी अपनी-अपनी दो-तीन इच्छाएँ गुप्तरूप से सूचित करेंगे। आप सभी को एक दूसरे के लिए सांता क्लॉज बनाया जाएगा। आप जिनके लिए सांता बने हैं उन्हें सूचित नहीं करेंगे लेकिन उन्हें उपहार भेज देंगे। उपहार मिलने पर पैकेट खोल कर नहीं देखेंगे। निर्धारित तिथि को सभी एक साथ वर्चुअल गोष्ठी में उपस्थित होंगे और अनुमान लगायेंगे कि आपका सांता क्लॉज कौन हैं।
और आपको एक सूची दी जाएगी जिसमें आप सभी को अपनी-अपनी पसन्द की पाँच वस्तुओं को बतानी है जिसे रेफ़ल ड्रा से निष्कर्ष निकाला जाएगा।
 होल्ली ने हैरी पॉटर के लिए अपनी इच्छा जतायी और निर्धारित तिथि पर पैकेट खोलने पर उसे हैरी पॉटर की 5 डीवीडी मिला। वह खुशी से उछल पड़ी,-"मेरे बॉस! सर आप ! सर आप।"
उससे पूछा गया कि आपने कैसे अनुमान लगाया?
"सर मुझसे फोन पर बात किये थे।"
"मैं तो सिर्फ पूछा था कि तुमने हैरी पॉटर को क्यों चुना? इसने नन्हें शिशु सा खुश होते हुए बताया कि अगर इसके सांता के द्वारा हैरी पॉटर की स्टिक-जादुई छड़ी भी दी जाती है तो इसे बेहद खुशी होगी।"
"तुम इस डीवीडी को कैसे देख पाओगी?" होल्ली की सहेली ने पूछा।
"क्यों?" रेड्डी ने पूछा।
"इसके पास मोबाइल के सिवा कोई अन्य उपकरण नहीं है। कम्पनी से मिला लैपटॉप है जिसमें डीवीडी लगाने की सुविधा नहीं है।" होल्ली की सहेली ने कहा।
"अरे! इस ज़माने में कोई टीवी नहीं रखता हो , वो भी खास कर युवा?" रेड्डी आश्चर्यचकित थे।
"आप चिन्ता नहीं करें सर! रेफ़ल ड्रा से मुझे डीवीडी प्लेयर मिल जाएगा। बच्चा बने युवा को फिर से युवा हो जाने का एहसास कराने के लिए हार्दिक आभार आपका।"


DVD-डिजिटल वीडियो डिस्क
Raffle Draw=भाग्य आज़माने वाली क्रीड़ा


 

Friday 11 December 2020

'पितृ-ऋण'

लॉकडाउन–
मौत सभा में गूँजे
प्रेम के धुन।

"बाबूजी!"

"आइये बाबूजी!"

"आ जाइए न बाबा.." मंच से बच्चों के बार-बार आवाज लगाने पर बेहद झिझके व सकुचाये नारायण गोस्वामी मंच पर पहुँच गए।

   मंच पर नारायण गोस्वामी के पाँच बच्चें जिनमें चार बेटियाँ ,  स्वीकृति, संप्रीति स्मृति, स्वाति और एक बेटा साकेत उपस्थित थे। 

"मैं बड़ी बिटिया स्वीकृति महिला महाविद्यालय में प्रख्याता हूँ।"

"मैं संप्रीति चार्टर्ड एकाउंटेंड हूँ।"

"मैं स्मृति नौसेना में हूँ।"

"मैं स्वाति बायोटेक इंजीनियर हूँ।

"मैं अपने घर में सबसे छोटा तथा सबका लाड़ला साकेत आपके शहर का सेवक हूँ जिला कलेक्टर।

  आप सबके सामने और हमारे बीच हमारे बाबूजी हैं 'श्री नारायण गोस्वामी'।"

"आपलोगों के बाबूजी क्या कार्य करते थे ? यह जानने के लिए हम सभी उत्सुक हैं।" दर्शक दीर्घा के उपस्थिति में से किसी ने कहा।

"हमारे बाबूजी कब उठते थे यह हम भाई बहनों में से किसी को नहीं पता चला। पौ फटते घर-घर जाकर दूध-अखबार बाँटते थे। दिन भर राजमिस्त्री साहब के साथ, लोहा मोड़ना, गिट्टी फोड़ना, सीमेंट बालू का सही-सही मात्रा मिलाना और शाम में पार्क के सामने ठेला पर साफ-सुथरे ढ़ंग से झाल-मुढ़ी, कचरी-पकौड़े बेचते थे।"

   दर्शक दीर्घा में सात पँक्तियों में कुर्सियाँ लगी थीं.. पाँच पँक्तियों में पाँचों बच्चों के सहकर्मी, छठवीं में इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया -प्रिंट मीडिया केे पत्रकार व रिश्तेदारों के लिए स्थान सुरक्षित था तो सातवीं पँक्ति में नारायण गोस्वामी बाबूजी के मित्रगण उपस्थित थे।

पिन भी गिरता तो शोर कर देता...।

Friday 4 December 2020

हाइकु दिवस की बधाई



असीम शुभकामनाओं के संग चतुर्थ वार्षिकोत्सव व सोलहवें हाइकु दिवस की हार्दिक बधाई

नभ में सिक्का/उछला सिक्का–
पुनः श्रम ही आया
उसके हिस्से।

5 बेहद महत्त्वपूर्ण अंक..




Wednesday 2 December 2020

पूत के पाँव...




"आज पुनः वर्चुअल कार्यक्रम में मेरे ऑफिस की ओर से स्वयं के बनाये ब्रेड से घर बनाने की प्रतियोगिता रखी गयी थी माँ। छोटे-छोटे बच्चों द्वारा किये कार्यों से मैं अचंभित रह गयी।" माया विस्फारित आँखों के संग कहा।

"इस देश में ही सम्भव है बच्चों द्वारा अचम्भित करने योग्य कार्य किया जाना। स्वालम्बी बनाने को हम अपने से दूर करना समझ रहे थे।" माया की माँ ने कहा।

"हाँ माँ! एरोन मोरेनो की ही कहानी पर कौन विश्वास करेगा। एक तरफ कम्पनी बन्द होने आर्थिक दृष्टि से कमजोर पड़ने पर कई लोगों ने आत्महत्या कर ली तो आठ वर्षीय एरोन मोरेनो ने अपनी माँ के संग परिवार का कायाकल्प बदल दिया।" माया ने कहा।

"अरे वाहः जरा विस्तार से पूरी कहानी बताओ," माया की माँ ने कहा।

"वैश्विक आपदा का शिकार एरोन मोरेनो के पिता हो गए। पिता के खोने के बाद एरोन मोरेनो की माँ इस स्थिति में नहीं थी कि वे जिस मकान में रह रहे थे उसका किराया दे सकें और भोजन की व्यवस्था कर सके। कैलिफोर्निया जैसे राज्य में रहने का भुगतान करना था । कुछ ही दिनों में एक समय ऐसा आया उस परिवार के सामने कि घर में बस बारह डॉलर थे और कुछ गमलों में नवजात पौधे। 
एरोन मोरेनो की माँ के एक परिचित ने अपने घर में बने सेड में रहने का आश्रय दे दिया। एरोन मोरेनो को Hot Cheetos with cheese खाने की इच्छा होती थी लेकिन उसके लिए वह अपनी माँ को तंग करना नहीं चाहता था इसके लिए उसने गमले में लगे पौधों को बेचना शुरू किया। 
Hot Cheetos with cheese खरीदने से ज्यादा उसे पैसे मिलने लगे तो उसने और पौधों को बेचने की व्यवस्था करता रहा और कुछ महीनों में उसे GoFundMe से उसे इकतीस हजार डॉलर लोन मिल गया।
इस श्रम से सड़क पर आया परिवार छ महीने में ही पुनः नए मकान में रहने और नयी गाड़ी में घूमने लगा।" माया ने कहा।
"इसमें सहायता एरोन मोरेनो की माँ को मिली नौकरी ने भी किया।" माया के पति ने कहा।
"उबारा तो 'एरोन मोरेनो गार्डन' ही न..!" माया ने कहा।
"अकेला चना...," मिश्रित आवाज गूँज गयी।

Thursday 26 November 2020

गम का नबाब

 

"तुम्हारा मुँह क्यों लटका हुआ है? डरो नहीं हम तुम्हारे पदोन्नति के पार्टी में ज्यादा खर्च नहीं करवाने वाले.. ज्यादा से ज्यादा एक माह के वेतन से हमारा काम चल जाएगा।"

"कैसी पार्टी.. किस बात की पार्टी.. ! सबको कम्पनी ने चार सौ-साढ़े चार सौ डॉलर बोनस दिया। यहाँ तक जो साफ-सफाई के कर्मचारी हैं उन्हें प्रत्येक माह पन्द्रह-बीस डॉलर बढ़ाया गया..। जिनकी पदोन्नति हुई उनके वेतन में एक डॉलर की बढ़ोतरी हुई क्या.. ?"

"मनुष्य के अतिरिक्त और किस-किस प्राणी में अभाव का रोना रोने आता है , किनके-किनके पास तुलना करने वाली सोच होती होगी..?

"तुम मुझ पर व्यंग्य कर रहे हो?"

"अरे नहीं! आओ तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ..

किसी देश में अकाल पड़ गया। लोग भूखे मरने लगे। एक छोटे नगर में एक धनी दयालु पुरुष था। उसने छोटे-छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक रोटी देने की घोषणा कर दी। दूसरे दिन सबेरे एक बगीचे में छोटे-छोटे बच्चे इकट्ठे हुए। उन्हें रोटियाँ बँटने लगीं.. रोटियाँ छोटी-बड़ी थीं। सभी बच्चे एक-दूसरे को धक्का देकर बड़ी ही रोटी पाने का प्रयत्न कर रहे थे। केवल एक छोटी लड़की एक ओर चुपचाप खड़ी थी। वह सबसे अन्त में आगे बढ़ी। टोकरे में सबसे छोटी अन्तिम रोटी बची थी। उसने उसे प्रसन्नता से ले लिया और वह घर चली आयी।

दूसरे दिन फिर रोटियाँ बाँटी गयीं। उस बेचारी लड़की को आज भी सबसे छोटी रोटी मिली। लड़की ने जब घर लौटकर रोटी तोड़ी तो रोटी में से एक मुहर निकली।

उसकी माता ने कहा कि – ‘मुहर उस धनी को दे आओ। इस हमारा कोई अधिकार नहीं!’ लड़की दौड़ी चली गयी मुहर देने।

धनी ने उसे देखकर पूछा – ‘तुम क्यों आयी हो?'

लड़की ने कहा – ‘मेरी रोटी में यह मुहर निकली है। आटे में गिर गयी होगी; देने आयी हूँ, आप अपनी मुहर ले लें।’

धनी ने कहा, – ‘नहीं बेटी! यह तुम्हारे सन्तोष का पुरस्कार है।’

लड़की ने सिर हिलाकर कहा – ‘पर मेरे संतोष का फल तो मुझे तभी मिल गया था, मुझे धक्के नहीं खाने पड़े।’

धनी बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसे अपनी धर्म-पुत्री बना लिया और उसकी माता के लिये मासिक वेतन निश्चित कर दिया। वही लड़की उस धनी की उत्तराधिकारिणी हुई।




Tuesday 24 November 2020

रोष

 "क्या हाल है ?" माया ने सुसी को व्हाट्सएप्प पर सन्देश भेजा।

"कोरोना के साथ जीने की कोशिश कर रही हूँ। हा हा हा हा हा..!सुसी ने अनेक हा, हा लिखते हुए कई हँसता हुआ इमोजी भी लगा कर जबाबी सन्देश भेजा।

"अरे मेरी दोस्त! हमसब कोरोना के साथ ही जीने की कोशिश कर रहे हैं..., थैंक्सगिविंग सप्ताह की छुट्टियों में क्या तुम दो घण्टे का समय निकाल सकती हो, या शहर से बाहर जा रही हो?" माया ने सुसी को पुनः व्हाट्सएप्प सन्देश भेजा।

"कोरोना के साथ जीने की कोशिश कर रही हूँ...यानी मुझे सच में कोरोना हुआ है और मुझे पूरे चौदह दिनों का क्वारंटाइन होने का सुख मिल गया है... हा हा हा हा हा..! सुसी ने अनेक हा, हा लिखते हुए कई हँसता हुआ इमोजी भी लगाकर पुनः जबाबी सन्देश भेजा।

"अरे! तुम्हें कैसे हो सकता है? तुम तो कमरे से बाहर नहीं निकलती हो..। इतने महीनों से तुम अपने घर चीन नहीं गयी...,"माया ने सन्देश भेजा।

"बाहर से जो पका भोजन आता है उसे गरम करने किचन तक जाती हूँ। कुछ दिनों पहले मकान मालकिन का प्रेमी शिकागो से आये थे।"

"अरे! शिकागो से कैलिफोर्निया.. हो सकता है कोई ऑफ्फिसियल टूर हो?"

"नहीं केवल प्रेमिका का चेहरा देखने... उन्हें बेहद चिंता लगी हुई थी... रह नहीं पा रहे थे... कुशलता पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे...!"

"उनदोनों की उम्र कितनी होगी?"

"लगभग 65-70 की प्रेमिका और 62-72 के प्रेमी!"

"वे दोनों गाये होंगे, 'तुझ में रब दिखता है'..! मैं स्तब्ध हूँ!"

"इसलिए तो हमलोगों में कोरोना दिख रहा है..,"

"किस सोच में डूबी हो?" माया के कन्धे पर हाथ रखती हुई उसकी माँ ने पूछा।

"सामान्य कोरोना होने के बाद जीवित रह जाना भी चिन्ता से मुक्ति नहीं है माँ..! स्वस्थ्य होने के कई महीनों के बाद यादाश्त खो जाना, उच्च रक्तचाप..,"

"क्यों क्या हुआ?"

"सुसी को कोरोना हुआ है और वह मुझे हा हा हा हा हा अनेक हा, हा लिखते हुए कई हँसता हुआ इमोजी भी लगाकर जबाबी सन्देश भेजा।"

"बहादुर बच्ची है उसका हौसला बढ़ाने में तुम भी सहायक होना।"



Friday 20 November 2020

अवसाद का सफाया


"देख रही हो इनके चेहरे पर छायी तृप्ति को? इन सात सालों में आज माया पहली बार रसियाव (गुड़ चावल) बनाई... बहुत अच्छा लगता है जब वह सबके पसन्द का ख्याल रखती है!"
"रसियाव बनाना कौन सी बड़ी बात है ? और यह क्या दीदी तुम भी न माया की छोटी-छोटी बातों को अनोखी स्तब्धता तक पहुँचा देती हो.. , चल्ल, हुह्ह्ह..!,"
"यही तो बात है छुटकी! रसम, सांभर यानी इमली जिसके रग-रग में भरा हो वह मीठा भात पका कर तृप्त करे तो है बड़ी बात..।"
"साउथ इंडियन होकर बिहारी से शादी...,"
"जरा सोच! खुश होकर ना पकाती तो... अरे छोड़ो ... यह बताओ बेटियों की गुणगान करने वाली माताएँ बहू प्रशंसा में इतनी कंजूस क्यों हो जाती हैं? ललिता पवार सी सास वाली भूमिका से बाहर निकलेंगी भी नहीं और आजकल की बहुएँ, आजकल की बहुएँ जपेंगी भी।"
"हमारी प्रशंसा तो कोई नहीं किया। खैर! मैं अब चलती हूँ दीदी। अम्मा जी का भेजवाया छठ का प्रसाद तुम्हें देने आयी थी।"
"जिस दिन हम बहू को बहू भी समझने लगेंगे उस दिन समाज में फैला स्यापा मिटने लगेगा और सच में छठ पूजन की सार्थकता समझ में आने लगेगी।"


 

Thursday 19 November 2020

स्वच्छता अभियान

'कथा पात्र : मधुमक्खी और कबूतर'

क रानी मधुमक्खी थी। एक बार वह उड़ती हुई तालाब के ऊपर से जा रही थी। अचानक वह तालाब के पानी में गिर गई। उसके पंख गीले हो गए। अब वह उड़ नही सकती थी। उसकी मृत्यु निश्चित थी। तालाब के पास पेड़ पर एक कबूतर बैठा हुआ था। उसने मधुमक्खी को पानी में डूबते हुए देखा। कबूतर ने पेड़ से एक पत्ता तोड़ा। उसे अपनी चोंच में उठाकर तालाब में मधुमक्खी के पास गिरा दिया। धीरे-धीरे मधुमक्खी उस पत्ते पर चढ़ गई। थोड़ी देर में उसके पंख सूख गये। उसने कबूतर को धन्यवाद दिया। फिर वह उड़ कर दूर चली गई।

कुछ दिनों के बाद उसी कबूतर पर संकट आया। वह पेड़ की डाली पर आँख मूंदकर सो रहा था। तभी एक लड़का गुलेल से उस पर निशाना साध रहा था। कबूतर इस खतरे से अनजान था। मगर मधुमक्खी ने लड़के को निशाना साधते हुए देख लिया। मधुमक्खी उड़कर लड़के के पास पहुँची। उसने लड़के के हाथ में डस लिया। लड़के के हाथ से गुलेल गिर पड़ी। दर्द के मारे वह जोर-जोर से चीखने लगा। लड़के की चीख सुनकर कबूतर जाग उठा। उसने अपनी जान बचाने के लिए मधुमक्खी को धन्यवाद दिया और मजे से उड़ गया।

'कथा पात्र : चिड़िया और मधुमक्खी'

क पेड़ पर चिड़िया और मधुमक्खियों का पूरा परिवार रहता था। दोनों में बड़ी गहरी मित्रता थी। किसी की क्या मजाल जो इन मधुमक्खियों और चिड़िया को नुकसान पहुँचा जाए?

एक रोज चिड़ियाँ दाना चुगने गई। चिड़िया के अंडे को कौवे नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहे थे । तभी अचानक मधुमक्खियों ने कौवे पर हमला करके डंक मार-मार कर घायल कर दिया और कौवों को भागना पड़ा।

कुछ दिनों के बाद एक दिन मधुमक्खी फूल पर पराग लेने बैठती है । पराग से ही तो मधुमक्खी शहद बनाती है। वो शहद जो हमें बेहद पसन्द आता है। फूल पर मकड़ी भी बैठी होती है जिसके जाल में मधुमक्खी फँस जाती है और वह उड़ नहीं पा रही थी। चिड़िया उसे देखती है और बचाने चली जाती है। चिड़िया मधुमक्खी को मकड़ी के जाल से निकाल देती है।

मधुमक्खी चिड़िया को धन्यवाद देती है और कहती है,-"अगर तुम आज नहीं आती तो मुझे नहीं पता है कि कौन मेरी मदद करता।" "अगर तुमने हमारी मदद उस दिन ना की होती तो हमें भी बहुत परेशानी हो जाती।" चिड़िया कहती है। और मधुमक्खी था चिड़िया साथ-साथ मिलकर खुशी-खुशी रहते हैं।

"पुनः भेंट होगी...!" कथा वाचक ने कहा।

"अभी आपलोग सी ई ओ महोदय से बाल कथाओं का आनन्द ले रहे थे।उम्मीद है आपलोगों को पसन्द आयी होगी..! चिड़िया ‘हनीगाइड’ भी होती है...।" संयोजक महोदया ने कहा। "हम अभी जिस इलाके में हैं उसमें पुनः सब जोख़िम में पड़ गया...।

इस केबिन फोबिया काल में

–आपलोग अपने को कैसे बचाकर रखने में सफल हो रहे हैं ?

–कम्पनी के कार्य करने के साथ-साथ और क्या साकारत्मक यानी आपके कौन से शौक पुरे हुए?

–थैंक्स-गिविंग के समय के लिए क्या-क्या  योजनायें हैं ?

वेबिनार में जानने के लिए हमलोग पुनः जुड़ेंगे.., तबतक के लिए विदा..!"

पैतालीस मिनट चले वेबिनार में कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को बाल कहानियों के रंगीन पुस्तकों के पन्ने पलट-पलटकर कहानी कहते हुए और संयोजक महोदया के गोद में स्थिर बैठे शिशु को देखकर सभी अचंभित थे।

लॉकडाउन–

बिज्जुओं व गिद्धों में

गुत्थमगुत्था।

CEO – Chief Executive Officer

Saturday 14 November 2020

गृहलक्ष्मी



"मअआ! आज इंडियन्स स्टोर में इतनी भीड़ थी कि कुछ मत पूछिए...। स्टोर में इतने समान थे , इतने सामान थे कि मन कर रहा था , सारे के सारे खरीद कर ले आऊँ।" बहुत दिनों के बाद माया बाजार निकली थी और लौट कर बेहद उत्साहित स्वर में बता रही थी।
"तो सारे खरीद लायी क्या... ? मुझे भी लगा था कि तुम ऑफिस के कामों से थकी-हारी बाजार गयी हो तो मिठाई खरीद कर ले आना ही ठीक लगेगा।"
"नहीं माँ!  इस बार घर में खुद से ही बनाना है तो खुद से बनाना है। और आप कितना सहज आसान तरीकों से बिना थकावट कैसे काम पूरा किया जा सकता है सीखा रही हैं। वो तो लॉन्ग लाइव मुझे काम देने वाला है।"
"गुलाबजामुन बनाते समय गोली के बीच में इलायचीदाना या मिश्री का दाना या किशमिश डाल देना तो बीच में कड़ा हिस्सा नहीं हो पायेगा..।"
"माँ से ज्ञानों से सीखने के लिए माँ के साथ रहना जरूरी है। फोन कॉल या किसी पुस्तक में यह नहीं मिला करता फुटनोट।

Friday 13 November 2020

दीपोत्सव

लक्ष्मी का अर्थ केवल धन से लगाने में संकुचन.. , आज देर रात्रि सबके सो जाने पर कूड़े के ढ़ेर पर दीया जलाने का प्रचलन है..। अंधेरा हो जाने पर झाड़ू लगाना वर्जित रहा..। यानी कूड़ा को भी लक्ष्मी के रूप में देखा गया... ।

नहीं मानते तो मैं कहाँ लक्ष्मी के सवारी को समझा रही...

सही गलत बताने हेतु वर्ण पिरामिड है...

वर्ण पिरामिड

श्री सौम्यी अत्ययी दीपोत्सव उलूकोदय श्रीहीनासंचयी ग्रस्तोदयाक्षक्रीड़ा।{01.}

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हाँ!
हन्ता
तृषिता
तम रोता
दीप हँसता
बूझो अन्योक्ति
बसता या बसाता।{02.}

Thursday 12 November 2020

प्रदूषण

"मैं तुम्हें मुर्ग बनाकर रखने के लिए बोला था यह क्या घास-फूस उबाल कर रख दी हो?" पति के दहाड़ने की आवाज गूँजी।

"हल्की सर्दी और लगातार बारिश होने के कारण मैं लाने नहीं जा सकी और सारे स्टाफ को आप..," पत्नी मिमियाते हुए बात रखने की कोशिश कर रही थी।

"बन्द करो बकवास..! मुझे मुर्ग खाना है तो मुर्ग खाना है.., ऑर्डर कर मंगवाओ, तब तक मैं उद्घाटन कर आता हूँ!

 Good Morning, Good Evening, Good Afternoon, wherever you are, and whichever applies.! 

चूँकि भारत के समय से अमेरिका-लन्दन के समय में अंतर है। हमारे लिए यह गर्व का विषय है कि हम अपने उद्योग के विस्तार हेतु विदेशों में शाखाएँ स्थापित कर रहे हैं।"

भोजन मेज पर ही लैपटॉप पर वर्चुअल गोष्ठी में लक्ष्मी-गणेश पूजा और शाखा उद्घाटन समाप्त कर,  मुर्ग खाने के बाद चौसर पर बैठे महाप्रन्धक थोड़े अधिक नशे में थे।

बिना हॉल में गए , बिना टिकट कटवाए देखे गए फिल्म की चर्चा विदेशों में शोर मचाने वाली थी। महाप्रबन्ध का स्टॉफ वर्चुअल गोष्ठी का रिकार्डिंग टीवी पर चला रहा था और महाप्रन्धक का नशा उतर रहा था।



Saturday 7 November 2020

अहोई अष्टमी और बहुला अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ…

 पिरामिड जनक : आदरणीय भाई श्री Suresh Pal Verma Jasala जी

***शीर्षक = प्रदत्त चित्र "अहोई/अहोई माता" पर सृजन


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जथा(धन)
अवृथा
साम्यावस्था
अजहत्स्वार्था
मिट जाए व्यथा
माता अहोई कथा।{01.}
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धा
पर्धा
अभिधा
अनहोनी
पुत्रोम्र छीजे
माता आँख मूंदे
अहोई अवमानी।{02.}
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Friday 6 November 2020

'राष्ट्रीय चेतना'

भारत में धोखाधड़ी और धन शोधन के आरोपों में वांछित भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी के प्रत्यार्पण का मामला लन्दन में वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत में अंतिम स्तर में पहुँचने के कारण अटकलें और सट्टाबाजार जोर पकड़ रही थी।
पंजाब नेशनल बैंक से जुड़े करीब 11 हज़ार करोड़ से ज़्यादा के घोटाले के मामले में प्रत्यार्पण के खिलाफ लड़ रहे उन्नचास वर्षीय हीरा कारोबारी की पेशी के मामले में ताजा सुनवाई के लिए दक्षिण-पश्चिम लंदन में वैंड्सवर्थ जेल से वीडियो लिंक के माध्यम से होने, जिस दौरान डिस्ट्रिक्ट जज सैमुअल गूजी आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला साबित करने के लिए सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मुहैया कराये गये कुछ साक्ष्यों की स्वीकार्यकता के खिलाफ नीरव के बचाव दल की दलीलों को सुनने..

भारतीय अधिकारियों की ओर से दलील रख रही क्राउन प्रोसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) इस बात पर जोर देने वाली कि साक्ष्य उन आवश्यक मानकों को पूरा करते हैं जो ब्रिटेन की अदालत के लिए इस बारे में विचार करने के लिए जरूरी हैं कि नीरव मोदी का मामला भारतीय न्याय प्रणाली के समक्ष भेजे जाने योग्य है या..., ...नीरव मोदी आत्म समर्पण कर देता है...।

पत्रकारों की भीड़ नीरव मोदी को अपने घेरे में ले लेती है और प्रश्नों के बौछार करती है, "दण्ड के लिए कैसे तैयार हो गए?"

"इस वैश्विक युद्ध के भयावह काल में आत्मा जग गयी..!"

"कौन विश्वास करेगा...?"

"भारत में प्रायश्चित से साधु बना जा सकता है..! ...अंगुलिमाल और रत्नाकर ने विश्वास जीत लिया..!"

"दण्ड काल काटने के बाद की कोई योजना..?"

"कोशी क्षेत्र के भीम नगर में स्थापित होने का प्रयास करना...।"

...अगला सवाल उछलने के पहले सन्ध्याकाल में सो रही विभा रानी को उसकी बहू माया ने जगा दिया...।



Wednesday 4 November 2020

जैसे को तैसा

 



"क्या तुम्हारे सारे पैसे वापस आ गए जो तुमलोगों ने अति उत्साह में खर्च कर डाले थे?" अलका ने सौम्या से पूछा।

"लगभग!" सौम्या ने कहा।

"कैसे पैसे और कहाँ खर्च कर डाले थे?" रूपा ने पूछा।

वीडियो कॉल के जरिये तीनों सहेलियाँ अलका न्यूयॉर्क सौम्या कैलिफोर्निया व रूपा ह्यूस्टन से जुड़ अपने-अपने अनुभवों का आदान-प्रदान कर रही थीं।

"नीरसता और अवसाद को थोड़ा दूर करने के लिए मेरे पति ने एक योजना बनायी। पूरे अपार्टमेंट वालों से व्हाट्सएप्प ग्रुप के जरिये विमर्श किया और एक पार्टी की तैयारी की, 31 अक्टूबर 2020 को हैलोवीन पार्टी। बच्चों के लिए गेम तथा बच्चों, युवाओं को पसन्द आने लायक भोजन की व्यवस्था की गयी। 

मेरी बिटिया का जन्मदिन 2 नवम्बर को पड़ता है तो हमने सोचा कि एक पंथ दो काज हो गए। सन्ध्या में सभी एकत्रित हुए बच्चें गेम में जुट गए। पुरुष-महिलाओं को बहुत महीनों के बाद एकजुट होने का मौका मिला.. ,सभी गप्प में व्यस्त हो गए। किसी ने ना तो बच्चों का ख्याल रखा और ना तो भोजन लगाने में मेरी किसी तरह की मदद किया। हद तो तब हो गयी जब किसी ने भी किसी तरह से शुक्रिया-धन्यवाद कहने की आवश्यकता महसूस नहीं की। 

मैं भी दूसरे दिन व्हाट्सएप्प ग्रुप में सन्देश दे डाला कि अमुक परिवार को इतनी राशि इस अकाउंट में डाल देनी है।" सौम्या ने कहा।

"मेरे अपार्टमेंट में किसी को किसी तरह की परेशानी हो संयुक्त परिवार की तरह सभी एक दूसरे की सहायता के लिए धन-मन-जन से जुट जाते हैं। मेरे बच्चे के जन्म के समय अस्पताल से लेकर तीन महीनों तक ना तो भोजन की चिंता करनी पड़ी और ना बच्चे के देखरेख की। हमारे अपार्टमेंट में सदैव पुष्प प्रस्फुटित होते ही रहते हैं।" रूपा ने कहा।

"इतना देखभाल तो सास-माँ भी ना करें...," अलका-सौम्या ने एक स्वर में कहा।

"सत्य है हम अपने अनुभव पर अपने विचारों का विस्तार करते हैं।" रूपा ने कहा।

Sunday 1 November 2020

ट्रिक-या-ट्रीटिंग

हल ज्ञात है तो
समस्या की क्या बिसात है..!
"अरे! वाह्ह.. ! हैलोवीन का बेस्ट घोस्ट बना लिया आपने..!" अपने चेहरे पर सोडियम वेपर लाइट की रौशनी बिखराती हुई उल्लास में उछलती हुई तनया ने ठहाके लगाते हुए आगे कहा,-"पम्पकिन लाना सार्थक हो गया। इसका श्रेय मुझे जाता है।"
"हाँ! हाँ! क्यों नहीं..," व्यंग्यात्मक हँसी उछालता हुआ तनया के पति हितार्थ ने कहा,-"सिर्फ शिलान्यास से ही ताजमहल गिनीज़ बुक में नहीं आ जाता..!
"रात के खाने में क्या बनाने का सोची हो तनया?" तनया की सास सबके लिए दोपहर के भोजन की तैयारी करते हुए पूछा।
"अभी-अभी तो तुम्हारी दुलारी की आँख खुली है माँ । उससे रात के खाने के बारे में पूछकर उसको पानी नहीं पिलाओ।"
"जानती हैं माँ, जब मैं अपनी सहेलियों और महिला सहकर्मियों को बताती हूँ कि तुमलोग जो ससुराल की भयावह तस्वीर प्रस्तुत करती हो या तो सास या बहू बेहद दबंग-खड़ूस या निरीह दयनीय स्थिति में.. -, ऐसा तो मुझे अपने सास-ससुर के साथ या ससुराल में सात-आठ वर्षों के दौरान ना तो कभी देखने में या ना अनुभव में सामने आया। कुछ भी पहन लो, कुछ भी खा लो, कभी सो जाओ, कभी सो कर उठ जाओ। जितना कार्य कर सको उतना ही करो, वे लोग विश्वास ही नहीं करती हैं।"
"मल्लिका-ए-हृदय! मेरी बेगम साहिबा! अस्सी-पच्चासी प्रतिशत घरों में नए सवेरा की प्रतीक्षा आज भी है।"
तनया हितार्थ की बातों को बड़े ध्यान से सुनते हुए कहा,-"माँ में बेस्ट पार्ट क्या है आप जानते हैं-उनमें बचपना मौजूद होना। बच्चे सा उत्साहित रहना, सीखने व सिखलाने के लिए।"



Saturday 31 October 2020

रोमहर्षक




"यह क्या किया तूने?" अस्पताल में मिलने आयी तनुजा ने अनुजा से सवाल किया। अनुजा का पूरा शरीर पट्टी से ढ़ंका हुआ था उनRपर दिख रहे रक्त सिहरन पैदा कर रहे थे। समीप खड़ा बेटा ने बताया कि उसके घर में होती रही बातों से अवसाद में होकर पहले शरीर को घायल करने की कोशिश की फिर ढ़ेर सारे नींद की दवा खा ली.. वह तो संजोग था कि इकलौता बेटा छुट्टियों में घर आया हुआ था।

"तितलियों की बेड़ियाँ कब कटेगी दी?"

"क्या बेटे को अमरबेल बनाना चाहती हो या नट की रस्सी पर संतुलन करना सिखलाना चाह रही हो?"

"सभी सीख केवल स्त्रियों के लिए क्यों बना दी?"

"वो सृजक है.. स्त्री है तो सृष्टि है..! अब भूमि से पूछो वह क्यों नहीं नभ से हिसाब माँगती है..!"

"कोई तो सीमांत होगा न ?"

"एक बूँद शहद के लिए कितने फूलों का पराग चाहिए होता है क्या है मधुमक्खी ने बताया कभी तितली को? पागलपन छोड़ बेटे को विश्वास दिलाने की बातकर कि आगे बुरे हादसे नहीं होंगे..!" अनुजा के बेटे को गले लगाते हुए तनुजा ने कहा।


वर्ण पिरामिड



विषय : प्रदत्त चित्र 'चाय" वर्ण पिरामिड जनक आदरणीय भाई Suresh Pal Verma Jasala जी

जी!

ख़्याली

वाताली

प्रेम पगी

रची पत्राली

थामी चाय प्याली

कथा तान दे डाली। {01.}

><

 हाँ!

 डाह

उद्वाह

बदख़्वाह

 ‘चाय’ कि ‘चाह’

सोहे स्याह मोहे

सीने में दर्द तो हैं। {02.}

 











Tuesday 27 October 2020

जीवन का गणित

"तुम दोनों बेहद चिंतित दिख रहे हो क्या बात है?" बेटे-बहू से लावण्या ने पूछा।

"मेरा बहुत खास दोस्त कल भारत जा रहा है माँ..,"

"मैं समझ नहीं पा रही हूँ तो इसमें तुमलोगों के परेशान होने की क्या बात है?"

"माँ वह हमेशा के लिए भारत जा रहा है..,"

"इस भयावह काल में उसकी भी नौकरी चली गयी..!" 

"नहीं, माँ! उसे कम्पनी वाले पदोन्नति देकर भारत भेज रहे हैं..,"

 "यह तो सुनहला अवसर है उसके लिए। पुनः अपने देश में व अपनों के बीच होगा। भारत में उसका कौन-कौन हैं, कितने भाई-बहन हैं?"

"वह अबोध था तभी उसके पिता गुज़र गए.., उससे एक छोटा भाई है। उनकी माँ शिक्षिका की नौकरी कर परवरिश की।"

"क्या उसकी माँ छोटे भाई के साथ रहती हैं ?"

"दोनों भाई प्रवासी हैं।"

"तुमलोगों के पौधे से प्रेम करते हुए देखती हूँ तो बहुत अच्छा लगता है। पौधों में फूल लगते देख तुमलोगों के आँखों की चमक देखते बनती है। जब तुमलोगों के लगाए पौधे पेड़ होंगे तो क्या तुमलोग उनकी छाया में बैठना नहीं चाहोगे या फल नहीं खाओगे?"

"मेरी माँ मेरे दोस्त की माँ के लिए बेहद हर्षित है!"



Sunday 25 October 2020

विजयोत्सव

 



आज मान्या व मेधा बेहद उत्साहित थीं। उनकी बेटी मेहा के लिए सेना सेवा कोर में स्थायी कमीशन हेतु मंजूरी पत्र उनके हाथों में था और तीनों के नेत्र संगम का दृश्य बनाने में सफल हो रहे थे।

मान्या व मेधा, पहाड़ो पर निवास करने वाले परिवार की बेटियाँ थीं। मान्या से लगभग पंद्रह महीने छोटी मेधा सगी बहन थी। दोनों बहनें सम क्षमता से सम कक्षाओं को उत्तीर्ण करती मल्टीनेशनल कम्पनी में संग-संग कार्यरत थीं। माता-पिता, परिवार–समाज को चौंकाती दोनों बहनें शादी नहीं करने का अटल फैसला सुना दी थी। कम्पनी में शनिवार व रविवार को अवकाश रहने के कारण शुक्रवार की शाम दोनों अपने माता-पिता के पास गाँव चली जातीं और सोमवार को पौ फटने के साथ अपने निवास पर वापस आ जातीं।

स्थिर जल में कंकड़ पड़ने इतना हलचल घर-परिवार-समाज में शोर मचाया, जब उनदोनों के संग एक सहमी कली नजर आने लगी। तरह-तरह के मानुष के तरह-तरह की अटकलबाज़ी लगायी जाती रही..।

सखी सुधा के बहुत वादा करने सौगन्ध खाने के बाद मान्या ने उसे बताया, "दशहरे की छुट्टी में हम दोनों बहनें घर जा रही थी। बलात्कृत रक्त से नहायी अबोध बच्ची हमें मिली। हम उसे लेकर पास के वैद्य के निवास पर गए। उस छुट्टी में हम घर नहीं जा सके।"..

Saturday 24 October 2020

चौकस


"ऐसा क्यों किया आपने? इतने आदर-मान के साथ आपकी बिटिया को बुलाने आयी को आपने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया?" श्रीमती मैत्रा ने श्रीमती सान्याल से पूछा।

     "उनके घर के पुरुषों की चर्चा सम्मानजनक नहीं होते हैं..," श्रीमती सान्याल ने कहा।

  "आप भी कानों सुनी बातों पर विश्वास करती हैं?" श्रीमती मैत्रा ने पूछा।

"एक ठग व्यापारी को सज़ा हुई। वह जेल में भी अन्य कैदियों के पैसों-सामानों की चोरी कर लेता था। उसके बारे में शिकायतें सुन-सुन तंग आकर जेलर ने उसे मुक्त कर दिया। साथ में ही दस लोगों को नियुक्त किया कि वे अलग-अलग भाषा में अलग-मोहल्ले में जाकर ठग व्यापारी के बारे में प्रचार करेंगे कि सभी सचेत रहेंगे।

   ठग व्यापारी जेल से बाहर आकर कई रिक्शा वाले, ऑटो वाले से पहुँचा देने के लिए बात किया, लेकिन मुनादी के कारण कोई उसे सवारी बनाने के लिए तैयार नहीं हुआ। आखिरकार कुछ दूर पैदल बढ़ने पर उसे एक ऑटो वाला मिल गया जो उसे सवारी बना लिया। पूरा दिन ठग व्यापारी उस ऑटो पर घूमता रहा। जहाँ से गुजरता मुनादी की वजह से उतर नहीं पा रहा था।

    देर रात होने पर एक जगह ऑटो वाले ने उसे जबरदस्ती उतार दिया और उससे अपने पैसे को माँगा।

      "मुनादी सुनकर भी तुम मुझे सवारी बना घुमाते रहे.. बहरे तो नहीं लगते..,"

"बस! बस श्रीमती सान्याल। आपकी कथा से मेरे भी ज्ञानचक्षु खुल गए.. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका। मैं भी अपनी नतनी को नहीं जाने दूँगी..।" इतना कहते हुए श्रीमती मैत्रा तत्परता से अपने घर जाने के लिए निकल गयीं।

Saturday 17 October 2020

क्रांति

 


प्रक्षालित अंगुली पर निशान लगाए भीड़ को निहारती ईवीएम मशीन के पास खड़ी मैं बड़ी उलझन में थी..। वज्जि जातीय समीकरणों के चक्रव्यूह में फँसा अपने शक्ति, शिक्षा और संस्कृति के गौरवशाली इतिहास पर कालिख पुतवा चुका था। आज उस चक्रव्यूह को भेदने के लिए दो शिक्षित युवा में से किसी एक का चयन करना मेरे लिए चुनौती बना हुआ था..,
जवान किसान मोर्चा पार्टी के उम्मीदवार का कहना था,- "मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपका आशीर्वाद और समर्थन मिलगा । आप जानती हैं कि मैं अपने पुस्तक की डेढ़ सौ मूल्य की एक हजार प्रति की विक्री से आयी राशी को अनाथालय में दे चुका हूँ । मेरा लोग साथ दे या ना दे मैं अपने सिद्धांतों पर लड़ लूँगा। और जीत लूँ या हारूँ 101 संस्कारशाला खोलना है तो खोलना है । हार गया तो धीरे-धीरे खुलेगा..! जीत गया तो एक साल के अंदर खोलूँगा पूरे बिहार में..।" पहला संस्कारशाला खुल चुका है। खोलने में पूरे देश के साहित्यकारों से सहायता मिली थी। उनके कथनानुसार विरोधी खबरें फैला रहें हैं कि उस संस्कारशाला में साहित्यिक कार्यक्रम-गोष्ठियाँ व अध्ययन उनके व्यापारिक हानी से उभरने में सहायक है..। भाई के लिए हर पल शुभकामनाओं के संग आशीर्वाद है..।. साहित्यिक-समाजिक कार्यों के लिए हमेशा साथ रहा है और आगे भी अपने सामर्थ्य भर साथ हूँ...। लेकिन राजनीत समझने में बिलकुल असमर्थ हूँ..।
दूसरे निर्दलीय प्रत्याशी हैं की घोषणा,"सरकारी अस्पताल, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों की सुनता ही कौन है ... l 40 साल से रह रहे हैं फिर भी सरकार स्थाई जगह नहीं दिला पायी इन लोगों के पास आधार कार्ड है वोटर आईडी कार्ड है राशन कार्ड है मगर फिर भी स्थाई निवास का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं l कसम खायी है जब तक इस सिस्टम को बंद नहीं कर लूँगा ,तब तक मैं रुकने वाला नहीं l" अपने 'बिंग हेल्पर टीम' में कई मिशन के साथ काम करते हैं जैसे कि उनका एक हाल-फिलहाल मिशन था "कोई भूखा ना सोए" इसके साथ ही उन्होंने पिछले साल पटना में भयानक बाढ़ की स्थिति में भी लोगों की काफी मदद की जो काम बिहार सरकार को करना चाहिए था । सिर्फ यही नहीं गरीब बच्चों को पढ़ाने हेतु कंप्यूटर क्लासेस स्थापना की गयी है जिसमें निःशुल्क पढ़ाई होती है और वह खुद उसमें पढ़ाते हैं। जोरदार बारिश में भीग कोरोना जैसी गंभीर बीमारी में लोगों की सहायता करते और रात्रि में भोजन बाँटने निकलते हैं।
मतदान से जीत के बाद की स्थिति से निपटने के लिए बार-बार नोटा बटन की ओर ध्यान चला जाता है...।



Wednesday 14 October 2020

दलाल से भेंट

 कोरोना के भयावह काल से भयभीत.. दाँत-मसूड़ों में कई दिनों से हो रहे दर्द के कारण बेहद परेशानी होने के बाद भी पिता को चिकित्सक के पास ले जाने से सोहन कतरा रहा था। गन्दगी की कल्पना शायद हम बिहारियों में कुछ ज्यादा होती है..। सोहन को किसी मित्र ने बताया कि गुरुद्वारा में कैम्प लगाकर बेहद साफ-सफाई से जाँच-इलाज हो रहा है। 

शनिवार 3 अक्टूबर 2020 को जब सोहन अपने पिता के साथ गुरुद्वारा में लगे कैम्प में पहुँचा तो उसे पता चला कि केवल कोरोना का जाँच हो रहा है और बाकी बीमारियों के लिए निजी में ही जाकर दिखलाना होगा। पिता-पुत्र कोरोना के लिए जाँच करवा लेना उचित समझा। तीन दिन के बाद जाँच परिणाम मिलने की बात हुई। 

सोमवार 5 अक्टूबर 2020 सोहन के पास फोन आया कि "आपके पिता को कोरोना नहीं है। आपको अपने लिए राय लेने के लिए चिकित्सक से मिलना होगा । कल मंगलवार 6 अक्टूबर 2020 को चिकित्सक से मिलने का समय निर्धारित कर दिया जाए?"

"कार्यदिवस में अचानक समय निकालना कठिन होता है..," सोहन ने कहा।

"अगले मंगलवार 13 अक्टूबर 2020 को सुबह साढ़े आठ बजे का समय निर्धारित किया जाता है।"

"ठीक है!"

सप्ताह भर प्रतिदिन मेल से, फोन से, व्हाट्सएप्प सन्देश से याद दिलाते रहने का सिलसिला जारी रहा...'भूलिएगा नहीं चिकित्सक से राय लेने की तय दिन-तिथि। सोहन को चिकित्सक की जागरूकता पर अच्छा लग रहा था।

मंगलवार 13 अक्टूबर 2020 की सुबह साढ़े सात बजे सोहन को फोन आया कि आज आपकी साढ़े आठ बजे चिकित्सक से फोन पर बातें होनी तय है उसके लिए एक फार्म भरने की आवश्यकता है। आप बताते जाएँ मैं भरकर आपको मेल कर देता हूँ। फार्म भरने के क्रम में पूछा गया,-"स्वास्थ्य बीमा के बारे में विस्तार से बताएँ..,"

"क्यों ? स्वास्थ्य बीमा से क्या करना है ? चिकित्सक का जो फीस होगा वह मैं जमा कर दूँगा..।""

"चिकित्सक से वर्चुअल गोष्ठी तभी सम्भव है जब आपका स्वास्थ्य बीमा के बारे में हमें जानकारी होगी..।"

"ताकि आपके चिकित्सक महोदय उस राशि के आगे तक मेरा दोहन कर सकें..। मैं चिकित्सक के डकैती को स्थगित करता हूँ।"



Monday 12 October 2020

सृजक




"क्या आपको अपने लिए डर नहीं लगा ?"
"क्या हमें एक पल भी डरने की अनुमति है?"

प्रसव पीड़ा से जूझती गर्भवती रूबी अपने लिए लेबर रूम में  प्रतिक्षारत रहती है तभी उसे पता चलता है कि एक और स्त्री प्रसव पीड़ा से परेशान है। क्योंकि उसकी चिकित्सक जाम में फँसे होने के कारण पहुँच नहीं पा रही है। ऐसी स्थिति में रूबी उस दूसरी स्त्री के पास जाती है और उसका सफल प्रसव करवा देती है। रूबी स्वयं चिकित्सक होती है और अनंतर वह अपने स्वस्थ्य शिशु का जन्म देती है..।
   यह सूचना वनाग्नि की तरह फैल जाती है और अस्पताल में जुटी भीड़ की ओर से तरह-तरह के सवाल पूछे जाते हैं।
"निजी अस्पतालों में धन उगाही का एक माध्यम है , शल्य चिकित्सा से प्रसव, साधारण रोगी का वेंटिलेटर पर पहुँच जाना.., ऐसे हालात में आपका यों...," इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की महिला पत्रकार ने पूछा.. मानो उसका कोई घाव रिस रहा था।
"तो आपलोग सत्य का ज्यादा-से-ज्यादा शोर करें ताकि आवारा ढोर काबू में रहे..!"

Saturday 10 October 2020

चुनौती १०/१०/२०२०

 -ट्रिन-ट्रिन-ट्रिन-

"हैल्लो!"

"क्या कर रही थी?"

"कुछ सोच रही थी.. तुम जानना चाहेगी क्या तो सुनो! कहानी, कथा, गीत, कविता में स्त्रियों को ही महान क्यों दर्शाया जाता है और पाठक भी वैसे ही अंत पर वाहवाही करते हैं.. आखिर क्यों ?"

"लगता है , आज भी तुम कुछ ऐसी अंत वाली रचना पढ़ ली! अच्छा बताओ अंत क्या था उस रचना की?"

"पति अपने दोस्त की विधवा से सम्बंध बना लेता है और पत्नी अपने पति को माफ कर उस विधवा को ही दोषी ठहरा लेती है.. लेखक ऐसी कहानी क्यों नहीं लिखता जिसमें पत्नी के कदम बहके हों और पति माफ कर महान बन जाता है..?"

"जो कहानी तुम पढ़ना चाह रही हो वैसा समाज में खुले तौर पर होने लगा है। बस साहित्य का हिस्सा बनना बाकी है। वह भी कुछ वर्षों में होने लगेगा। अच्छा चलो तुम ऐसी लघुकथा लिख लोऔर किसी बड़े साहित्यकार को टैग कर..!"

"अरे! छोटे लोग बड़े लोग को टैग नहीं करते हैं..!"

"तुम और छोटे लोग? चीनी हो क्या? अच्छा मूंगफली का चिनिया बादाम नाम क्यों पड़ा होगा...,"
फिज़ा में मिश्रित खिलखिलाहट का शोर गूँजने लगा...

Thursday 8 October 2020

'प्रतिरोध्य'




वन, धारा, पहाड़
उबड़-खाबड़ मिलते हैं
जो हमें बेहद पसंद आते हैं।
जीवन समतल की
खोज करते हैं..,

चलो दुआ करें... ! मिट्टी को मिट्टी की समझ आये..।
मिट्टी मिट्टी में मिल जानी है.. ।
बाकी तो! शिकवा-गिला कहने-सुनने में ताउम्र गुजरी है..।


"हे पार्वत्य वासी! सुराधिप! आपने मेरा रास्ता बार-बार बदल कर मुझे मेरी सखी से विमुख कर दिया। पाक में रहते हुए मैं नापाक हो रही हूँ। हिन्द में ही मेरी संस्कृति अक्षुण्ण रह सकती है..! "

"ना कुछ मेरे समझ में आ रहा है और ना मुझे कुछ याद आ रहा है कि मुझे क्या करना है और मैंने किया क्या है..! मुझसे दूर हटो और शीघ्रता से जाने दो। मुझे मेघों को दिशा निर्देश देना है कि कहाँ सुखार करें और कहाँ धरा-गगन को एक कर दें।"

"अक्सर आप मद से मत्त हो जाते हैं और अपने अस्त्र के प्रयोग बल पर मेघों और बिजलियों को सही-सही दिशा निर्देश नहीं दे पाते हैं..।"

"मुझ पर मिथ्या आरोप ना लगाओ..!"

"मुझे यरलुंग त्संगपो व मेघना से मिलने जाना है। दो कारुण्य बाहु के मिलन का योग बना दें..!"

"पुनः सोच लो! अब ज़माना सती सुहिणी का नहीं रहा..।"

"जुनून की उद्यति मेरे वेग से भी सदैव बड़ी होती रही है सदा होती रहेगी।"

Thursday 1 October 2020

अंतरराष्ट्रीय कॉपी दिवस



अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर 

वृद्ध दिवस–
कमरों में पसरा
मकड़जाल।

जीवंत वृद्ध से मिलना कोई नहीं चाहता,
पुण्यतिथि की बेसब्री से प्रतीक्षा होती..।



'विचार लेखन' : 'मेरा हिन्दी प्रेम'

 


हिन्दी महोत्सव 2020 के अंतर्गत मातृभाषा उन्नयन संस्थान के द्वारा आज 'मेरा हिन्दी प्रेम' आयोजित प्रतियोगिता के अंतर्गत, 'स्वयं के हिन्दी भाषा से प्रेम' के बारे में लिखना है.. कहीं 'छोटा मुँह बड़ी बात करना' या स्वयं को 'अहंकारी साबित करना' ना हो जाए .. फिर भी...



हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। “यू ट्यूब” और “गूगल” ने भी हिन्दी को काफी अहमियत दिया है। लगभग सभी सोशल मीडिया के प्लेटफ़ॉर्म पर हिन्दी का विकल्प अभी भी उपलब्ध है ।
'विश्व आर्थिक मंच' की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। वर्त्तमान समय में, अमेरिका में हिन्दी को द्वितीय भाषा बनायी जाए यह प्रयास किया जा रहा है। और दूसरी तरफ हिन्द में सरकारी दफ्तरों , विद्यालय-महाविद्यालयों, अनेकानेक संस्थाओं में ‘हिन्दी दिवस ‘और ‘हिन्दी दिवस पखवाड़ा’ बड़े धूम-धाम से मनाया जा है। मातृभूमि में साँस लेने वालों को राष्ट्रभाषा की आवश्यकता नहीं है, बल्कि हम सब तो अपने-अपने क्षेत्रिय भाषा के लिए लड़ रहे हैं...। ... राज्यों को भाषा के आधार पर टुकड़े-टुकड़े करने के लिए तैयार हैं।
द्रष्टा और दृष्टि का विलयन होने वाले प्राचीन ग्रीकों ने चार तरह के प्यार को पहचाना है : रिश्तेदारी, दोस्ती, रोमानी इच्छा और दिव्य प्रेम। 'प्यार' ऐसा शब्द है जिसका नाम सुनकर ही सबको अच्छा-अच्छा का अनुभव होने लगता है,प्यार शब्द में वो एहसास है जिसे हम कभी नहीं खोना चाहते हैं।
मैं हिन्दी भाषी क्षेत्र बिहार में जन्म ली हूँ। तो हिन्दी बोलना, जानना व लिखना सीखना नहीं पड़ा और स्वयं का हिन्दी के प्रति प्रेम का पता तब चला जब अहिन्दी भाषी प्रदेशों में जाना हुआ। वहाँ के निवासियों को हिन्दी बोलने के नाम पर अपने चेहरे का इतिहास-भूगोल बदलते दिखा और सोशल मिडिया पर मेरा लेखन
–आप ये ब्लॉग पर फेसबुक टाइमलाइन पर कहाँ से चुन-चुन कर हिन्दी के तो नहीं लगते शब्दों को पोस्ट करती है.. समझना-समझाना कितना कठिन हो जाता है। ..
–आपकी लिखी रचनाओं को पढ़ने के लिए शब्दकोश लेकर बैठना पड़े तो पढ़ने का उत्साह चला जाता है।
–आप क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग ना करें आपकी रचना केवल शब्दों का जमावड़ा लगता है.... इत्यादि पद्म विभूषणों से जब सुशोभित होने लगा तो मुझे लगा कि अरे ! मुझे तो हिन्दी से दिव्यप्रेम है...। अजीब सा नशे के कैद में हूँ..।
देश-विदेश में हिन्दी साहित्य की जितनी संस्था (जो मुझे सदस्य बनाये रख सकती है ) मेरे जानकारी में सहभागिता करने का प्रयास करती हूँ।
हिन्दी के लिए कोई कार्यक्रम हो उसमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में ना तो जेठ की दोपहरी रोक पाती है ना भादो की बरसात। ना तीन-चार बजे रात में वर्चुअल साहित्यिक गोष्ठी में उपस्थिति दर्ज करने की बात...।
कई गोष्ठियों में युवाओं को शुद्ध हिन्दी में रचना पाठ करते देख बेहद हर्ष होता है।
समुन्द्र का जिस तरह ओर-छोर नहीं दिखलाई देता है उसी तरह हिन्दी साहित्य है...। उसमें पड़े हमारा लेखन का अस्तित्व एक बूँद ही है...।

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...