tag:blogger.com,1999:blog-15476289312500079572024-03-19T15:16:38.746+05:30"सोच का सृजन"विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.comBlogger718125tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-15938911546077825552024-03-17T19:51:00.002+05:302024-03-17T19:51:28.389+05:30दुर्वह<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbKyBKrX8J-9VZu658Z2AiD1ebntFZ-pfd8BH09WGvLgTo4GC4yA0wXDDAS1AzNhNF6jH_qGVkQDydyTAIV5NFhR2nsj6Y9UrcuT1JXJRstOMSUbTRYSklA4KPxC5TGuzueUKpFz4g8j6tXUaxGP2M5ZeigknSMTRumrPLiu8HhFcvt6MsDYO3wSB4S_DU/s201/IMG_1082.jpeg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: medium;"><img border="0" data-original-height="144" data-original-width="201" height="144" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbKyBKrX8J-9VZu658Z2AiD1ebntFZ-pfd8BH09WGvLgTo4GC4yA0wXDDAS1AzNhNF6jH_qGVkQDydyTAIV5NFhR2nsj6Y9UrcuT1JXJRstOMSUbTRYSklA4KPxC5TGuzueUKpFz4g8j6tXUaxGP2M5ZeigknSMTRumrPLiu8HhFcvt6MsDYO3wSB4S_DU/s1600/IMG_1082.jpeg" width="201" /></span></a></div><div><span style="font-size: medium;"><br /></span></div><div><span style="font-size: medium;">“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने कहा।</span></div><div><span style="font-size: medium;"><br /></span></div><div><span style="font-size: medium;">“दो-चार दिन कि छ-आठ दिन..!” रूमा ने व्यंग्य से कहा।</span></div><div><span style="font-size: medium;"><br /></span></div><div><span style="font-size: medium;">“इस बार एक मुश्त की छुट्टी छठ में चार-पाँच दिनों की…,” सहायिका दबे ज़ुबान में भी बात पूरी नहीं कर सकी।</span></div><div><span style="font-size: medium;"><br /></span></div><div><span style="font-size: medium;">“अरे तू छठ किसलिए करती है तुझे कौन सा बेटा है! एक बेटी ही तो..,” रूमा ने गुर्राते हुए कहा।</span></div><div><span style="font-size: medium;"><br /></span></div><div><span style="font-size: medium;">“जी मालकिन चाची! उसी बेटी के लिए छठ करती हूँ… बड़े जप-तप से माँगल बेटी है। बेटी को किसी चीज की कमी ना हो, अच्छी पढ़ाई कर सके, इसलिए आपलोगों के घरों में चाकरी-काम करती हूँ…!” सहायिका के स्वर में मान झलक रहा था।</span></div><div><span style="font-size: medium;"><br /></span></div><div><span style="font-size: medium;">“एक दिन मैं अपनी बेटी को लेकर काम पर आ गयी थी। मेरी बेटी के विद्यालय में अभिभावक-अध्यापक की गोष्ठी थी। मेरी बेटी विद्यालय की पोशाक में थी। मालकीन माँ ने उस दिन मुझसे काम नहीं लिया और समझाया, बेटी को अपने काम के घरों में लेकर मत आया करो…!” सहायिका ने पुनः कहा।</span></div><div><span style="font-size: medium;"><br /></span></div><div><span style="font-size: medium;">“बेटी दूसरे के घर चली जाएगी..,” रूमा की व्यंग्य भरी बातें सहायिका को नागफनी पर चढ़ा रही थी।</span></div><div><span style="font-size: medium;"><br /></span></div><div><span style="font-size: medium;">“तो क्या हो जाएगा.. वक्त पड़ने पर अपनी माँ की तरह काम आएगी। क्या आप जानती हैं हमारी सहायिका तीन बहन छ भाई है…! जब इसके पिता गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे तो उन्हें यही अपने पास रख लाखों खर्च कर इलाज़ करवायी है। कितना भी पौ फट जाये हमारी ही आँखें नहीं खुलती है!” सहायिका को उबारते हुए पुष्पा ने रूमा को चेताया।</span></div>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-28145260690809096992024-02-29T22:46:00.002+05:302024-03-07T16:06:59.958+05:30वामन का चाँद छूना : २९ फरवरी २०२४<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQjLFfSU1QNExef-6bu0RYyhsj_PuaaEmSv_H-8rQkDMR9dA5zvFmKDxXp4bdNf6hEq5NI3WG85lT3_WeFtAhJiaxkXaNFDurOXuViYZlTD8n_Nzwwirx3bhG2N1lHB7O4RcYMgJ45595DOP-gxwUOWIJObKPB2bjQLLZHtw3Ob3lQVuoLw-VsWhGuYXZL/s1280/8980174b-a79e-42fe-916f-ac0d915a208d.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="691" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQjLFfSU1QNExef-6bu0RYyhsj_PuaaEmSv_H-8rQkDMR9dA5zvFmKDxXp4bdNf6hEq5NI3WG85lT3_WeFtAhJiaxkXaNFDurOXuViYZlTD8n_Nzwwirx3bhG2N1lHB7O4RcYMgJ45595DOP-gxwUOWIJObKPB2bjQLLZHtw3Ob3lQVuoLw-VsWhGuYXZL/s320/8980174b-a79e-42fe-916f-ac0d915a208d.jpeg" width="173" /></a></div><p>“स्तब्ध हूँ! यह पोशाक विदेशी दुल्हन का होता है जो यह सिर्फ़ एक तस्वीर खिंचवाने के लिए शौक़ से पहन ली हैं!”</p><p>“तो क्या हो गया! हिर्स में पहन ली!”</p><p>“हुआ कुछ नहीं… अभी उनके माथे से सिन्दूर पोछाए हुआ ही कितना दिन है! क्या ज़रा भी मलाल झलकता है आपको? भगवान ना करे किसी पर ऐसा दिन आए लेकिन आ गया तो थोड़ा तो लोक लिहाज़ का ख़्याल कर आज़ाद होने के दिखावे से परहेज़ किया जाना चाहिए कि नहीं?”</p><p>“किस लोक लिहाज़ की चर्चा कर रही हैं! उसी लोक लिहाज़ की जिसके कारण आप अपने को ड्योढ़ी के अन्दर क़ैद कर ली हैं! व्रत त्योहार में भी पैर हाथ नहीं रंगती हैं!”</p><p>“मैं तो किसी आयोजन में नहीं जा पाती हूँ! हित नात वाले लगातार फोन पर खोज-ख़बर लेते हैं…! मेरी देवरानी मुझसे बहुत छोटी है वो भी मुझसे ज़्यादा दयनीय स्थिति में समय गुज़ार रही है!”</p><p>“अपने हित नात वालों के लिए उनका हद तय कर दें! आप से उम्मीद की जाती है कि अपनी देवरानी के लिए आप बड़ी बहन बन दोनों के राह के काँटें हटा सकती हैं!”</p><p><br /></p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-33909186045218077592024-02-04T12:22:00.000+05:302024-02-04T12:22:08.751+05:30मानी पत्थर<p> “दो-चार दिनों में अपार्टमेंट निर्माता से मिलने जाना है। वो बता देगा कि कब फ्लैट हमारे हाथों में सौंपेगा! आपलोग फ्लैट देख भी लीजिएगा और वहीं से हमलोग ननद के घर रात में रुककर, दूसरे दिन वापस आएँगे..!” देवरानी ने कहा।</p><p>“तुमलोग चली जाना, मैं नहीं जा सकूँगी।” जेठानी ने कहा।</p><p>“क्या आप हमारा घर देखना नहीं चाहेंगी?” देवर ने पूछा।</p><p>“देखूँगी न! अवश्य देखूँगी जब आपलोग उस घर में व्यवस्थित हो जाएँगे। आ जाऊँगी किसी दिन आपके घर से मिलने।” भाभी ने कहा।</p><p>“इस बार तुम्हारा चलना अलग बात होती…।” जेठानी के पति ने कहा।</p><p>“तब क्या अलग बात नहीं थी जब आपने फ्लैट खरीदा था। ख़रीदने के पहले कम से कम दस फ्लैट को जाँच-परखकर, मोल-भाव हुआ होगा। नहीं-नहीं पहले तो योजना बनी होगी; उसके पहले भी रक़म जमा की गयी होगी। किसी एक पड़ाव पर मेरे कानों तक बात पहुँची होती।” जेठानी ने कहा।</p><p>“लगभग बीस-पच्चीस साल पुरानी बातों का क्या बदला लेना चाह रही हो?” जेठानी के पति ने पूछा।</p><p>“बदला! किस-किस बात का बदला लूँ और क्या उस पल का बदला लिया जा सकता है? आपके संग आपसे मिले सारे रिश्तों ने मेरे सम्मुख केवल अपनी-अपनी माँग रखी। और मैं अधिकार का बिना कोंपल उगाये अपना संपूर्ण अस्तित्व कर्त्तव्यों के पीछे विलीन कर सारी उम्र ख़र्च कर गयी। आपने अपने मित्र और उनकी पत्नी के संग बड़े से फ्रेम में लगी अपनी जो तस्वीर को अलमीरा में डाल रखा है। आप दोनों मित्र एक दिन ही सेवा निवृत हुए थे। मैं अपने बुलावे का देर रात तक प्रतीक्षा करती रही…।” जेठानी ने कहा।</p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-35366962096642334052024-01-24T00:44:00.001+05:302024-01-24T00:44:38.688+05:30उलझे रहो<p> ।। विचार -सार।। -रावत</p><p>लक्ष्य क्या है ? यदि उसमें शुभ संकल्पों की नींव न हो । पराजय फिर निश्चित है।</p><p>रावत-:- आदि शंकराचार्य की दार्शनिक शिक्षाओं में, यह कथन श्री राम की न केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक व्यक्ति के रूप में, बल्कि सर्वोच्च वास्तविकता के अवतार के रूप में गहन समझ को समाहित करता है। शंकराचार्य के अनुसार, श्री राम एक दिव्य मार्गदर्शक के रूप में सेवा करने के लिए मानव रूप में अवतरित हुए, जो पारलौकिक ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाने वाला मार्ग बताते हैं। सर्वोच्च वास्तविकता के रूप में श्री राम का उल्लेख इस धारणा पर जोर देता है कि परमात्मा उच्च आध्यात्मिक समझ चाहने वाले व्यक्तियों के लिए मार्ग को रोशन करने के लिए मूर्त मानवीय अनुभव में प्रकट हो सकता है। इस संदर्भ में, श्री राम का जीवन और शिक्षाएं एक आध्यात्मिक रोडमैप बन जाती हैं, जो अस्तित्व की प्रकृति, आत्म-जागरूकता और परम सत्य की ओर यात्रा में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। आदि शंकराचार्य का दृष्टिकोण दिव्य ज्ञान की सार्वभौमिकता और मानव अनुभव के भीतर दिव्य को पहचानने में निहित परिवर्तनकारी क्षमता को रेखांकित करता है।</p><p>विलक्षण-:- अति उत्तम! जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि राम का नाम राजनीति का या धार्मिक विषय है ही नहीं।</p><p>शंकराचार्य जी ने यही तो समझाने का किया है, जिसे समझने में हिंदू जनमानस सदैव की भाँति आखिरकार असफल साबित हुआ है। हम वे हैं, जिन्होंने विश्व की ज्ञान दिया, और यह भी हम ही हैं कि मानसिक रूप से दिवालियेपन की ओर बढ़ रहे हैं। यदि इसे राम से जोड़कर देखें तो समझ आ जाएगा कि हमने राम को समझने में कहाँ गलती की है।</p><p>राम एक राजकुमार हैं, किंतु सामान्य बालक की भाँति वन में जाकर शिक्षा पूरी करते हैं। शस्त्र और शास्त्र का उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त करते हैं। इतने से ही नहीं, विश्वामित्र के साथ फिर वन चले जाते हैं। कुछ राक्षसों का वध करते हैं और फलस्वरुप उत्कृष्ट अस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह सब क्या था? चाहते तो महल में रहकर भी शिक्षा पूरी कर सकते थे। विश्वामित्र साथ जाने से इंकार कर सकते थे, लेकिन नहीं। उन्हें पता है कि यह सब तो सोने को तपाकर कुंदन बनाने की प्रक्रिया है। यदि ऐसा न होता तो अच्छे धनुर्धर तो बन जाते, लेकिन जीवन के कष्टों को इतनी सरलता से न झेल पाते। रावण जैसे अति बलशाली को हराना असंभव था। संभवतः शिव धनुष को उठाने में भी असफल हो जाते।</p><p>विभा-:-विवेकशील होने के लिए सन्तुलित होना होता है अभी तो असन्तुलन का काल है… अहं ब्रह्माऽस्मि का काल…! वरना बिना दानव के देव कब थे..! वैसे भी ईश्वर बनना आसान है इन्सान बनने से…</p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-39952337359800196852023-10-24T23:35:00.000+05:302023-10-24T23:35:07.476+05:30घर्षण<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNbMuv_yPoHYHbdbdkZgggtX3I9ctU3s74YUwpX0h9u7mFCIcE2s1IEi-Wh-WjhA_jiDr4dkL-iG4_WkvYRmXLFj-5hiHk12K7TJZIzex5Z0CVSa7fyovTr_OfR7PiPLvY2xZ5DwubLwqYpfLemqRgZiUcu77GHXnGN3-S5fEpFdjy0SiZOkdb7D7Aza-R/s1041/received_1106044094110954.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1041" data-original-width="847" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNbMuv_yPoHYHbdbdkZgggtX3I9ctU3s74YUwpX0h9u7mFCIcE2s1IEi-Wh-WjhA_jiDr4dkL-iG4_WkvYRmXLFj-5hiHk12K7TJZIzex5Z0CVSa7fyovTr_OfR7PiPLvY2xZ5DwubLwqYpfLemqRgZiUcu77GHXnGN3-S5fEpFdjy0SiZOkdb7D7Aza-R/s320/received_1106044094110954.jpeg" width="260" /></a></div><br />"दो बार का मस्तिष्काघात और एक बार का हल्का पक्षाघात सह जाने वाला पति का शरीर गिरना सहन नहीं कर पाया। कलाई की हड्डी टूट गयी। सहानुभूति रखनेवालों का पत्नी के पर कुतरने का प्रयास जारी है।"</div><div>"मेरे पति मेरे लिए मित्र से बढ़कर थे। उनके मृत्यु के बाद उनके रिश्तेदारों ने मेरे नौकरी करने, बाहर जाने-आने पर रोक लगाने के लिए रुढ़िग्रस्त पाँच-दस कारणों का आधार बनाने लगे तो मेरे बेटों ने मेरा साथ दिया कि मैं अपने शर्तों पर जीना शुरू कर सकी।"</div><div>"वन में सीता का सती अनसूया से भेंट, सीता का अपहरण, अग्नि परीक्षा देने की बातें, वन में लव-कुश का जन्म पालन-पोषण, भूमि में समा जाने की बातें मिथक कथा में फैलायी नहीं गयी होती तो क्या स्त्रियों से इतने धैर्य की उम्मीद की जाती••!"</div><div><div>"मिथक कथानुसार सीता स्वयं रावण का नाश कर सकती थी।लेकिन उदहारण देना था, मुश्किलों में जीवन साथी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। हालात का निडरता के साथ सामना करना चाहिए। एकदम से किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए••!"</div></div><div>"कलयुग के पिता अपनी सुता के साथ खड़े हो रहे हैं। क्या राजा जनक को इतना सामर्थ्य नहीं था कि वे अपनी एक गर्भवती बेटी का साथ दे पाते••!"</div><div><br /></div>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-75859078079808545002023-10-18T16:45:00.000+05:302023-10-18T16:45:06.315+05:30उधेड़बुन : उपचारिका की डायरी : एकालाप शैली<p><b><span style="color: red; font-size: large;"><u>26 जनवरी 2006</u></span></b></p><p><span style="font-size: medium;">पद्मश्री थामते हुए रोयें गनगना नहीं रहे थे। रोयें फ्लोरेंस नाईटिंगेल पुरस्कार छूते हुए भी नहीं गनगनाये थे। चिकित्सा का लाभ उठाने के लिए सुनामी से प्रभावित जनजाति जिन्हें नेग्रिटो नस्लियों स्टॉक कहा जाता था को मनाने में छठी का दूध याद आना हो जाता था। लेकिन चुनौती के दाँत खट्टे कर ही डाली।</span></p><p><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>25 जून 2014</u></b></span></p><p><span style="font-size: medium;">बता दूँ! नहीं बताती हूँ! झूठ कैसे बोलूँगी... बता ही देती हूँ! लेकिन बता देने के बाद जो परिणाम होगा उसकी जिम्मेदारी किसके कन्धे पर होगी। सेक्सटॉर्शन में फँसकर बुजुर्ग ने आत्महत्या करने का प्रयास किया है। दो दिन के उलझन के बाद आज बुजुर्ग के बेटे को बता ही दिया। उसने वादा किया है। शान्ति से सोच समझ कर समस्या का हल निकालने में मेरी मदद लेगा।</span></p><p><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>14 अगस्त 2016</u></b></span></p><p><span style="font-size: medium;">आज न्यायालय से हमारी शादी का पंजीयन हो गया। रिश्तेदारों का मानना था कि धनी परिवार की लड़की के लिए उपचारिका का पेशा बिलकुल सही नहीं है। इसलिए मैंने शादी ही नहीं करने का निर्णय लिया था। लेकिन सौगन्ध थोड़े न खायी थी। सेक्सटॉर्शन से उबरे बुजुर्ग और उनके बेटे की ज़िद के आगे मेरा निर्णय टिक नहीं सका।</span></p><p><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>20 मार्च 2020</u></b></span></p><p><span style="font-size: medium;">आज हमारे अस्पताल में एक आकस्मिक मीटिंग के लिए बुलाया गया था। मीटिंग में हमें बताया गया कि हमारा हॉस्पिटल कोविड के मरीजों को भर्ती करेगा और हमें खुद को इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार करना होगा। हम घर परिवार से दूर होंगे। मेरी बेटी एक साल की रिया को छोड़कर कैसे जाऊँ? अस्पताल ने मेरा नाम पुन: राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भेजा है। नहीं जाऊँ तो श्रम से की गयी सेवा के बदले जो सम्मान मिला है वह धूल धुसरित हो जायेगा!</span></p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-82215707805590591982023-10-05T08:49:00.006+05:302023-10-05T09:43:22.483+05:30धर्म में शर्म नहीं!<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0ec48hTAbouGhAYW2IpwdZj-vIlchRBRx7sFaKNSczvOFKy-ns0sw4-9ADU-EsUXHFP56ILXo1OoNoo0ookzq4jVHX0h4b1iLSVcCETHkIUj9e7FV03my0vxhdYavAoQvHKtEDhB157wlPEPxSLd0YD8-oKVdwjOppRltC8Qrzo7pBnX36o1bHjm5ZeOi/s1156/IMG-20231004-WA0122(1).jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="534" data-original-width="1156" height="148" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0ec48hTAbouGhAYW2IpwdZj-vIlchRBRx7sFaKNSczvOFKy-ns0sw4-9ADU-EsUXHFP56ILXo1OoNoo0ookzq4jVHX0h4b1iLSVcCETHkIUj9e7FV03my0vxhdYavAoQvHKtEDhB157wlPEPxSLd0YD8-oKVdwjOppRltC8Qrzo7pBnX36o1bHjm5ZeOi/s320/IMG-20231004-WA0122(1).jpg" width="320" /></a></div>मेरी परिचित कहती है, "स्नान नहीं करना, घड़ा, आचार नहीं छूना।"<p></p><p>"आज भी कुछ घरों के मंदिर में मिलता प्रवेश नहीं है, क्या पूर्वजों के बनाए नियम में दोष नहीं है!"</p><p>"आराम का संदेश, सभी नियमों में अहित समावेश नहीं है। ये जो हमलोगों को मिली नियति से शक्ति है, क्यों तुम और तुम्हारी सखी झिझकती है!"</p><p>"पैड प्रयोग करने की जागरूकता बढ़ी है। लेकिन कूड़ा निपटाने की समस्या ज्यादा सर चढ़ी है।"</p><p>"रुढ़ियों को तोड़ों! स्वास्थ्य को बचाना है, पढ़ो-लिखो आगे बढ़ते जाना है।"</p><p>"हमारे घरों की सहायिकाओं को स्काउट गाइड में प्रवेश दिलवाना है।"</p><p>"अवश्य! उत्तम प्रशिक्षण। ना इसमें ना कोई भेदभाव है ना जातिवाद होता है। क्या समाज को देना है, क्या जीवन से पाना है, तुम सभी का क्या लक्ष्य है?"</p><p>"पूछने वाला कोई गाँवों का हाल नहीं है। वहाँ वृद्धाश्रम का चाल नहीं है। मल पर पड़े तन्हा वृद्धों की सेवा करना, हमारा ध्येय है।"</p><p>"जब बचाने की बात हो तो वृक्ष छोड़ दिए जाने चाहिए, बीज को कभी भी नहीं छोड़े जाने चाहिए। क्योंकि बीजों से फिर नए वृक्ष हो ही जाते हैं।"</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixi43GkhVCD9_n9okPf36WjgrpyAAk6hyjkG8ewzvrq_aXeiZbInCW4CsePy1YQOhf9jEmY7PNdxWIlULhh2mf3rWOxRzeTQAyk6fZOULSADW9UfjEMTUKfUn5R3ZErE2RQSlVb8HI52DUa9FulPayxdcpSwVGrcHdDvZ3xshiRPKsg6ZR3Ji6q43wXAXE/s1280/IMG-20231004-WA0166(1).jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="760" data-original-width="1280" height="190" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixi43GkhVCD9_n9okPf36WjgrpyAAk6hyjkG8ewzvrq_aXeiZbInCW4CsePy1YQOhf9jEmY7PNdxWIlULhh2mf3rWOxRzeTQAyk6fZOULSADW9UfjEMTUKfUn5R3ZErE2RQSlVb8HI52DUa9FulPayxdcpSwVGrcHdDvZ3xshiRPKsg6ZR3Ji6q43wXAXE/s320/IMG-20231004-WA0166(1).jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p><div><br /></div>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-55337314517623089202023-09-26T23:46:00.001+05:302023-09-26T23:46:54.917+05:30 अभियंता की डायरी : सारथी की यात्रा<p><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>मई 1998</u></b></span></p><p><span style="font-size: medium;">बतौर कार्यपालक अभियन्ता गोदाम का दायित्व भार संभालते हुए ही बात समझ में आ गयी थी कि छोटी मछली को लील लेने के लिए व्हेल के संग अजगर मौजूद है। किसी कम्पनी को काली सूची में डलवाने में प्राण खतरे में आ जाना स्वाभाविक था।</span></p><p><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>जुलाई 2013</u></b></span></p><p><span style="font-size: medium;">ईमानदारी का सूरज भभक गया। दो-चार नहीं, पाँच-छ वरिष्ठ अभियंताओं को दरकिनार कर मुझे पदोन्नति देकर मुख्य कार्य भार दिया गया। जाति विशेष से आक्रांत क्षेत्र को सुरक्षित करने में प्राण जोखिम में पड़ना ही था। इस सरकारी जिम्मेदारी के कारण एक राष्ट्रीय संगठन-बहु-विषयक पेशेवर निकाय के सर्वोच्च पद के लिए पंजीयन नहीं करवा रहा हूँ।</span></p><p><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>अगस्त 2015</u></b></span></p><p><span style="font-size: medium;">तीन सौ करोड़ में से चुनाव लड़ रहे नेताओं को सौ करोड़ का हिस्सा चाहिए था जो मेरे रहते सम्भव नहीं था तो रातोरात मेरा तबादला पूर्व पद से भी नीचे कर दिया गया। और इस तनाव का असर मुझे मेरे मस्तिष्क आघात के रूप में मिला। एक बार नहीं दो बार।</span></p><p><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>जुलाई 2017</u></b></span></p><p><span style="font-size: medium;">राम-राम करते मेरी सरकारी नौकरी से बा-ईज्जत सेवानिवृत होकर प्राण सस्ते में सांसत से भी स्वतंत्र हो गया। अब पूरा समय राष्ट्रीय संगठन को दे पाऊँगा। कई बार प्रांत शाखा के उच्च पद हेतु अधिक मत से चयनित हूँ।</span></p><p><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>जून 2022</u></b></span></p><p><span style="font-size: medium;">सभी ज़िद कर रहे हैं, राष्ट्रीय संगठन के सर्वोच्च पद के लिए चुनाव लड़ लूँ! लेकिन मैं जानता हूँ कि संगठन में हो चुके लगभग पैतीस-चालीस करोड़ के घपले का निपटारा मुझसे नहीं हो सकेगा। रेल के वातानुकूलित कुप्पे में चलना जब जेब को भारी लगे, हवा में उड़ने के सपने देखना मूर्खता है।</span></p><p><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>सितम्बर 2023</u></b></span></p><p><span style="font-size: medium;">राष्ट्रीय संगठन की प्रान्त शाखा के उच्च पद {लगभग चौदह साल (कोरोना की वजह से अतिरिक्त साल का मौका मिल जाने की वजह से ) के बाद} से मुक्त हो गया। अब राष्ट्रीय संगठन के युवा सदस्यों को योद्धा बनाने में ज्यादा समय लगाऊँगा।</span></p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-72807103842150354502023-09-04T16:53:00.001+05:302023-09-05T06:51:35.374+05:30कोढ़ में खाज<p>"नमस्कार राष्ट्रीय संयोजक महोदय! 49897 यानी लगभग पचास हजार सदस्यों वाली आपकी संस्था अपनी 13 वीं वर्षगाँठ मना चुकी है। ५० हजार कलमकारों को एक मंच पर लाना। ७५००० किलोमीटर से अधिक की साहित्यिक यात्रा का किया जाना। उसके लिए और आज होने वाले 'एक शाम माँ के नाम' के ३०२५ वें कार्यक्रम की बधाई स्वीकार करें।"</p><p>"नमस्कार के संग आपका बहुत-बहुत धन्यवाद पत्रकार महोदय।"</p><p> "राष्ट्रीय साहित्यिक कार्यक्रम में देखा यही गया है कि श्रोता कम होते हैं। वही व्यक्ति साहित्यिक कार्यक्रम में सम्मिलित होना चाहते हैं जिन्हें रचना पाठ करने के लिए अवसर मिल सके। मंचासीन हो जाएँ तो सोने पर सुहागा। इस कार्यक्रम की ऐसी कोई विशेष बात जिसे साहित्य और समाज हित/अहित की हो साझा करना उचित हो।"</p><p>"है न! एक प्रतिभागी का औडियो में जानकारी पूछा जाना!"</p><p>"कैसी जानकारी"</p><p>"उनका कहना था कि आप के द्वारा हमें किस रूप में आमंत्रित किया जा रहा है श्रोता के रूप में या स्पर्धा प्रतिभागी के रूप में। क्या हमलोग अब प्रतिद्वंद्वी प्रतिभागी बनने के योग्य हैं या आने वाली नयी पीढ़ी के बीच स्पर्धा होनी चाहिए!</p><p>मेरे पास एक और अति आवश्यक महत्त्वपूर्ण कार्य आ गया है। आपके बताये निर्णय पर मुझे भी चयन करना होगा कि मेरे लिए ज्यादा लाभकारी कौन सा है।"</p><p>"ओह्ह्ह,उन्हें चयन करना है कौन ज्यादा लाभकारी है! ऐसे-ऐसे व्यापारी! आयोजक से ऐसी बात कर लेना बौनेपन की निशानी है। ऐसे साहित्यिक दीमक ही बढ़ रहे हैं! अफसोस के साथ विदा होते हैं कि हमारे राज्य की यात्रा में आपको ऐसे अनुभव हुए।</p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-10693864634038149762023-08-30T08:57:00.008+05:302023-08-30T08:57:55.735+05:30खीर में नमक<p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZDHb5yK7s8xhHrKfis9kXdCb7WT11OI83wn6PDrUn0GO0r6RIwTh9ww1S8jSDRaSjOLFolOs3ETz3ZqN9vbrRVhopYOtZx9JXbCCoaKHqhlkBxidiWjR0u_o1IWXZpr2KY-g61ZUVhM8SvxBD6OOY_lidp53u9bvxo9idW3r6IHvAoQDTU2j5n0DcxeIv/s1080/FB_IMG_1693365358752.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="750" data-original-width="1080" height="222" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZDHb5yK7s8xhHrKfis9kXdCb7WT11OI83wn6PDrUn0GO0r6RIwTh9ww1S8jSDRaSjOLFolOs3ETz3ZqN9vbrRVhopYOtZx9JXbCCoaKHqhlkBxidiWjR0u_o1IWXZpr2KY-g61ZUVhM8SvxBD6OOY_lidp53u9bvxo9idW3r6IHvAoQDTU2j5n0DcxeIv/s320/FB_IMG_1693365358752.jpg" width="320" /></a></p><p>"फजीरे-फजिरे काहे एतना बीख चढ़ल बा?"</p><p>"बीख त कालहे चढ़ल रहे रातवए में मेल कर देले बानी। लघुकथा के story लिखाईल बा•••,"</p><p>"चर्च में गणेश भगवान के पूजा शोभा ना दिही नु•••!ओहि तरे मंदिर में चादर/फादर ना होखे के चाहीं।अंग्रेजवा चल गईलन स बाकी ऐह लोगन के छोड़ दिहलन स, ललाटवा पे गुलामी लिकखवा ले ले बा लोग"</p><p>"मठ चाहीं सभन के एही देश में ••• लेकिन वफादारी निभाई लोग परदेश में••• चाकरी के कवनों हद नईखे! गलीयन में पटटवा भी लटकावला के काम बा।"</p><p>"लघुकथा को अंग्रेजी में भी लघुकथा ही कहा जाता है"</p><p>StoryMirror Hindi</p><p>-हमें जो प्रमाणपत्र मिला उसमें story लिखा हुआ है</p><p>-पूरा प्रमाणपत्र अंग्रेजी में है</p><p>आपलोगों के द्वारा विधा के संग लेखन का भी अपमान हो गया</p><p> -30 दिनों का समय और श्रम निरर्थक होने का अफसोस नहीं है•••</p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-27292913337048553772023-08-24T16:39:00.000+05:302023-08-24T16:39:29.872+05:30जलेबी<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="text-align: left;"><span style="font-size: medium;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjOC_AzvKx7lKq8OSWCpinzaL6SNrHgedmjZv9IvuiLEoCDFwh795jg1ajc2nqbW3AChWxoC6LoCrYRSnagl6x9FSAsCt60RzNRSHxbbj9apf0wf1TD8mR2uCjtRPLHzXVNSbKkvCiWQOceongnx2_ojJYSbMObaCyxcBEtpP416O-rK31STyZZhXYgS1Tc/s1630/FB_IMG_1692510521428.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1630" data-original-width="1080" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjOC_AzvKx7lKq8OSWCpinzaL6SNrHgedmjZv9IvuiLEoCDFwh795jg1ajc2nqbW3AChWxoC6LoCrYRSnagl6x9FSAsCt60RzNRSHxbbj9apf0wf1TD8mR2uCjtRPLHzXVNSbKkvCiWQOceongnx2_ojJYSbMObaCyxcBEtpP416O-rK31STyZZhXYgS1Tc/s320/FB_IMG_1692510521428.jpg" width="212" /></a></div>एक ढांचे में बंधी ज़िंदगी आज कुछ खुल गई है। भादो का कृष्णपक्ष, सूरज अशर्फी सा आकाश के कलश में वापस सुरक्षित रखा जा चुका है। क्षितिज के पश्चिम कोने में इंगुर-सिन्दूर बिखर चुका है। कौवा अबाबील के रंग-बिरंगे और सुंदर पंखों को देखकर मंत्र-मुग्ध हो रहा है।</span></span></div><p></p><p><span style="font-size: medium;"> “पूरी दुनिया में हमारे द्वारा बनाए नीड़ के भी लाखों-करोड़ों खर्च करने वाले प्रशंसकों की भीड़ हैं और मान लो कि मेरे पंख तुमसे बेहतर हैं ही।” अबाबील चहक रही है।</span></p><p><span style="font-size: medium;">“वाकई तुम्हारे पंख दिखने में मेरे पंखों से कहीं अधिक सुंदर हैं। लेकिन मेरे पंख ज्यादा बेहतर हैं क्योंकि ये हर मौसम में मेरे साथ रहते हैं और इनके कारण मौसम चाहे कैसा भी हो, मैं हमेशा उड़ पाता हूँ।"</span></p><p><span style="font-size: medium;">रहिमन निज मन की विथा, मन में राखो गोय।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय।</span></p><p><span style="font-size: medium;">किस भाव से ध्यान करे उलझा मरीचि तोय</span></p><p><span style="font-size: medium;">जपत-जपत अवसाद में काहे न जगत होय।</span></p><p><span style="font-size: medium;">महत्वपूर्ण ये नहीं है, कि वास्तविकता क्या है… बल्कि, महत्वपूर्ण ये है कि, आप अपनी बात को सही साबित करने के लिए कितने संभावित तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं….!!</span></p><p><span style="font-size: medium;">बारह मंजिला खिड़की से गिरा दी गई या नशे में गिर गई, सीढ़ी से पैर फिसला या गला दबाने के बाद फेंक दी गई, कुल्हाड़ी से या हथौड़े से मारी गयी•••!</span></p><p><span style="font-size: medium;">उत्तेजक क्या रहा होगा•••! पोस्टमार्टम रिपोर्ट कौन बदल रहा•••! कैसे दुनिया जानेगी कि मनमोहना ने प्रेमी के संग मिलकर हत्या की या झूठा दहेज उत्पीड़न में आत्महत्या कर लेने हेतु उकसाया गया•••!</span></p><p><span style="font-size: medium;"> गले में नाग की तरह परिश्रावक/स्टेथॉस्कोप को लटकाये तहबंद/एप्रन को चढ़ाए चिकित्सकों-उपचारिकाओं और काले कोट धारक अधिवक्ताओं की हड़ताल पर बैठी भीड़ में बहस जारी है।</span></p><p><span style="font-size: medium;">चिकित्सक-साहित्यकार पत्नी और उच्च पदाधिकारी- अधिवक्ता पति की लाश, समाज को मनुष्यता विमर्श के कटघरे में ला पटकी है। आगे प्रतीक्षा है न्याय क्या होता है•••!</span></p><p><span style="font-size: medium;"> छायाचित्र उतारनेवाले मित्र-बन्धु राजेन्द्र पुरोहित और अनिल मकरिया के संग सोशल मिडिया से आपकी खबरी विभा रानी श्रीवास्तव का नमस्कार और अब हम विदा लेते हैं!</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlsVu8OeM26b4QXnnlwBj-d_-YsJSzav4q-ySX8UCTQ7WmNBqmFTvVUY6no0X8KBYn50aTQW6BgmX5QyTQ6vcT4MHbRcoEcGXElMl1jEhr8ibPZ2Sf2CFQo-Tprt5aulEFHQAIzC56fyobB-eVQSdXhpNgNOzVAhV3qSQYkmFD_VCTUbTdK0aAgZAHw_aK/s960/FB_IMG_1692508929877.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: medium;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlsVu8OeM26b4QXnnlwBj-d_-YsJSzav4q-ySX8UCTQ7WmNBqmFTvVUY6no0X8KBYn50aTQW6BgmX5QyTQ6vcT4MHbRcoEcGXElMl1jEhr8ibPZ2Sf2CFQo-Tprt5aulEFHQAIzC56fyobB-eVQSdXhpNgNOzVAhV3qSQYkmFD_VCTUbTdK0aAgZAHw_aK/s320/FB_IMG_1692508929877.jpg" width="240" /></span></a></div><p></p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-91264064606644319222023-08-23T12:09:00.001+05:302023-08-23T12:09:10.006+05:30सूरज डूब रहा<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWudWqB7V8qc3EBu-LZgSBHGSo9OosLiczArsTU1PIV2N1zmw67esdpHn1wVawS0aywDqJaUnI581qDgr9EhvWVsJUxkDKsgAWfDtHe8fwxi4BVMM2CLU8UeJzDAiVnqTmV-u2CWieujl2UrWaXzNqAtt7saZVf6VLhERvOfCZddU0-DlYGN3R5dFdG0yI/s1905/FB_IMG_1692772466590.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1905" data-original-width="1080" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWudWqB7V8qc3EBu-LZgSBHGSo9OosLiczArsTU1PIV2N1zmw67esdpHn1wVawS0aywDqJaUnI581qDgr9EhvWVsJUxkDKsgAWfDtHe8fwxi4BVMM2CLU8UeJzDAiVnqTmV-u2CWieujl2UrWaXzNqAtt7saZVf6VLhERvOfCZddU0-DlYGN3R5dFdG0yI/s320/FB_IMG_1692772466590.jpg" width="181" /></a></div>"सुनों ना! कुछ कहना है•••"<p></p><p>"कहो ना! हम सुनने ही जुटे हैं। अब सोना ही तो है••"</p><p>"गज़ल बेबह्र है काफ़िया भी भगवान भरोसे है"</p><p>"चलता है!"</p><p>"दोहा में चार चरण कहना है लेकिन चार भाव नहीं है"</p><p>"चलता है!"</p><p>"मशीनगण से निकला हाइकु है। ना अनुभूति है ना दो बिम्ब है"</p><p>"चलता है!"</p><p>"लघुकथाओं में ना शीर्षक का सिर-पैर और ना शैली का ओर-छोर, भंग अलग"</p><p>"चलता है! क्यों तुम्हारा खून जल रहा और हमारा सर•••"</p><p>"कैसे पता चले साहित्य में घुन लगा कि दीमक!"</p><p>"पुरानी राह को छोड़कर आगे बढ़ने पर शून्य से शुरू करना पड़ता है। तुम भी सोचो, अथाह संचय को छोड़ना क्या सम्भव है?"</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGAcFfehI9lLEYP7m78Wg-whoFMuySiZUNKtX2hZ3hPTU4VKiR-q0y_iIrv1wswgMEVK0_uuQJDsmka9Y8JZE1rFv-aeickkkDsYVF9dS2becnrCpPWtzqxCNg8XB--9VS4RgFtRtlJ4vfj9WxDzWfVJAC15Tat7K9IvxW9QjM39QVJ_nAvVUjlDOBY1fI/s1888/20230823_101708.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1888" data-original-width="1062" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGAcFfehI9lLEYP7m78Wg-whoFMuySiZUNKtX2hZ3hPTU4VKiR-q0y_iIrv1wswgMEVK0_uuQJDsmka9Y8JZE1rFv-aeickkkDsYVF9dS2becnrCpPWtzqxCNg8XB--9VS4RgFtRtlJ4vfj9WxDzWfVJAC15Tat7K9IvxW9QjM39QVJ_nAvVUjlDOBY1fI/s320/20230823_101708.jpg" width="180" /></a></div><br /><br /><p></p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-24418331900910441472023-08-16T08:48:00.004+05:302023-08-16T13:51:24.557+05:30जमात करामात<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCjsXv8fjfKfouhffw8yx6PL6kJJEO4IFLfsFi8ycF6aMDa7aDN3XhtB91pzxjsbUhuXUJwsX6AzSqiILjgcqV0BWdxXW0izhn8dKAdCVYqF83JI3Io16A9JIRib5l1S6sDmGdsKuLgynPZOSeUy73APM3zqcvyPBbcMzLPmvhqBxyAxdqdi54yjLtgPp0/s1280/20230816_084445.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="712" data-original-width="1280" height="178" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCjsXv8fjfKfouhffw8yx6PL6kJJEO4IFLfsFi8ycF6aMDa7aDN3XhtB91pzxjsbUhuXUJwsX6AzSqiILjgcqV0BWdxXW0izhn8dKAdCVYqF83JI3Io16A9JIRib5l1S6sDmGdsKuLgynPZOSeUy73APM3zqcvyPBbcMzLPmvhqBxyAxdqdi54yjLtgPp0/s320/20230816_084445.jpg" width="320" /></a></div><div><a href=" https://yuvapravartak.com/90267/">जमात करामात</a><br /></div><div><br /></div><a href="https://m.facebook.com/groups/778063565555641/permalink/7009305495764719/?mibextid=Nif5oz">जमात करामात</a><div><br /></div><div>ट्रिन••• ट्रिन••• ट्रिन•••<p></p><p dir="ltr">
••• •••<br />
क्या मेरी बात रानी जी से हो सकती है?<br />
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जी! जी नमस्ते! मेरा नाम डॉ सुनील दत्त मिश्र है। मैं आपसे मिलना चाह रहा था। आपने कहा था कि हम जब कभी आपके शहर में आयें तो आपको सूचित अवश्य करें।<br />
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पूरी पढ़ाई करने के बाद, नौकरी करने जो बच्चे विदेश चले जाते हैं उन बच्चों पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए क्योंकि वे बच्चे समाज के ऋण को लेकर भगोड़ा हो जाते हैं। महोदया दूसरे राज्य के साहित्यिक-सांस्कृतिक मंच से ऐसी माँग को रखने वाली दिलेर माँ को कोई कैसे भूल सकता है!<br />
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क्या फर्क पड़ा? मेरे गाँव में भी खुशियों की लहर दौड़ रही है!<br />
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हम सब यानी मेरा भाई, बेटा, भतीजा, भगिना उस कार्यक्रम में उपस्थित थे जो दुबई के संग विदेश के अनेक राज्यों में धन उगाई करने वाले आपकी ओज से ओत-प्रोत वाणी सुनकर इतने प्रभावित हुए कि धीरे-धीरे देश वापसी कर रहे हैं! सोने पर सुहागा कि गाँव के अन्य युवा नहीं जाने का सोच रहे हैं, जबकि गाँव शहर के बच्चों में पहले होड़ मची थी•••!<br />
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सच में! इसलिए तो मैं आपसे मिलकर आपको धन्यवाद देना चाह रहा था।<br />
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अच्छा! अच्छा आप आ रही हैं और शहीद स्मारक (सात शहीदों की एक जीवन-आकार की मूर्ति है) के पास होने वाले कार्यक्रम में आमंत्रित कर रही हैं!<br />
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पूछ रही हैं कि आऊँगा? सर के बल दौड़ा आऊँगा! मेरे मन के थल पर अँकुरा आपके लिए सम्मान का बीज आपके इस स्नेह के जल, पवन, किरण पाकर बने वट को और कुछ नहीं चाहिये...! जय हिन्द!</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuaPy5nImmenu_5RDRRLtFt4FdgO71U0btsv4dz3pys6okSQiD1yUC72fDPxA04lQdfqJcnRAu5oAXkAbk7nClU83WH-z1JDepTKirJoUzJs0kendKmrroebIxEcY0dItkCtT94lQuDEBhYPuKQNooZASN0DXavck46KtpD3RFmKsvjfru8kkKAPSy1iUv/s1261/20230816_084651.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1261" data-original-width="902" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuaPy5nImmenu_5RDRRLtFt4FdgO71U0btsv4dz3pys6okSQiD1yUC72fDPxA04lQdfqJcnRAu5oAXkAbk7nClU83WH-z1JDepTKirJoUzJs0kendKmrroebIxEcY0dItkCtT94lQuDEBhYPuKQNooZASN0DXavck46KtpD3RFmKsvjfru8kkKAPSy1iUv/s320/20230816_084651.jpg" width="229" /></a></div><p></p></div>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-57531072082226117382023-08-10T22:55:00.000+05:302023-08-10T22:55:02.257+05:30धोखा<p><b><span style="color: red; font-size: large;"><u> Padam Godha</u></span></b><span style="font-size: medium;"> :- आजकल छोटे छोटे बच्चे भी स्कूल बस से मां को फ्लांईंग किस करते हैं। समझ नहीं आता दूसरे का पति उड़ाना ज्यादा अनैतिक है या फ्लांईंग किस?</span></p><b><span style="color: red; font-size: large;"><u>सुनीता त्यागी</u> </span></b><span style="font-size: medium;">:- 1. दूसरे का पति कोई मिट्टी का पुतला नहीं था कि उड़ा लिया।</span><br /><span style="font-size: medium;">2. संसद सदस्याएं राहुल नाम के बालक की मां नहीं थीं।</span><br /><b><span style="color: red; font-size: large;"><u>Roopal Upadhyay</u></span></b><span style="font-size: medium;"> :- सुनीता त्यागी जी मतलब अपनी मित्र जिसने गरीबी पर दया कर के अपने घर में जगह दी उसी के पति को पटाना गलत नही और फ्लाइंग किस देना गलत वाह ये दोगुली मानसिकता ही भारत को पिछड़ा रही है। सच में शिक्षा का बहुत ज्यादा अभाव है।लोगी को इतना तो पता होना चाहिए कि comminunication में non verbal communication का एक part है gesture जिसके अंतर्गत flying kiss आता है जिसका अर्थ होता है i love you all इसमें क्या गलत है। सभी बोलते है i love you all, public figure है लोगो को प्यार करना क्या गलत है, मुझे तो समझ नही आता...</span><br /><b><span style="color: red; font-size: large;"><u>सुनीता त्यागी</u></span></b><span style="font-size: medium;"><u> </u>:- Roopal Upadhyay आदरणीय उच्च शिक्षिता जी मुझे आप को कोई सफाई नहीं देनी।</span><br /><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>विभा रानी श्रीवास्तव</u></b></span><span style="font-size: medium;"> :- शाबास सुनीता त्यागी जी! क्या उपमा दिया मिट्टी का पुतला! मिट्टी का पुतला नहीं था इसलिए उड़ाया जा सका...</span><br /><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>सुनीता त्यागी</u></b></span><span style="font-size: medium;"> :- ओहो तीर निशाने पर जाकर लगा है तभी तो अंध चमचे सफाई देने के लिये मैदान में कूद पड़े हैं।</span><span style="font-size: medium;"> विभा रानी श्रीवास्तव जी मिट्टी का पुतला नहीं था, तो चौपाया भी नहीं होगा वो कि हांक कर ले गयी। अपनी इच्छा से ही अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी के पास गया होगा।</span><br /><span style="color: red; font-size: large;"><u><b>विभा रानी श्रीवास्तव</b></u></span><span style="font-size: medium;"> :- सौ फी सदी सत्य कथन सुनीता त्यागी जी! बिलकुल सहमत हूँ आपसे</span><span style="font-size: large;">। </span><span style="font-size: medium;">'अपनी इच्छा से ही अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी के पास गया होगा।' ये 'दूसरी' आसानी से उपलब्ध जो होती है...! यह दूसरी ना जाने कितनों की दूसरी, अन्य की दूसरी, अन्यों की दूसरी होती होगी...</span><span style="font-size: large;">।</span><br /><span style="color: red; font-size: large;"><u><b>सुनीता त्यागी</b></u></span><span style="font-size: medium;"> :- विभा रानी श्रीवास्तव इस बात का राहुल के फ्लाइंग किस से क्या रिलेशन है समझ नहीं आया। राहुल को तै पहली ही नहीं मिली है दूसरी की उम्मीद छोड़ दे। </span><span style="font-size: medium;">वैसे वो पहली है या दूसरी ये उनका व्यक्तिगत मैटर है।</span><br /><span style="color: red; font-size: large;"><b><u>विभा रानी श्रीवास्तव</u></b></span><span style="font-size: large;"> :- सुनीता त्यागी जी ना तो राहुल के फ्लाईंग किस से मतलब है, </span><span style="font-size: large;">राहुल को पहली नहीं मिली दूसरी की उम्मीद छोड़ दें</span><span style="font-size: large;">।</span><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;">जिसे पहली मिली उसको छोड़ वो दूसरी से मिले</span><span style="font-size: large;">। </span><span style="font-size: medium;">ये हमारे चिन्ता का विषय है ही नहीं</span><span style="font-size: large;">। </span><span style="font-size: medium;">यह राजनीति गलियारा है जहाँ दिन में झगड़ते हैं तो रात में गलबहियाँ दिए दिख जायेंगे</span><span style="font-size: large;">। </span><span style="font-size: large;">एक दूसरे को भक्त और चम्मच कह जो अपनी-अपनी पसंद की पार्टी का समर्थन करते दिखते हैं</span><span style="font-size: large;">। </span><span style="font-size: large;">समय के सत्ता बदलती रहती है</span><span style="font-size: large;">। </span><span style="font-size: large;">काँग्रेस नहीं रहा तो कुछ वर्षों में भाजपा भी नहीं रहेगी</span><span style="font-size: large;">। </span><span style="font-size: large;">देश रहेगा, मुद्दे रहेंगे, समस्याएँ रहेंगी और सवाल उठाते साहित्यकार रहेंगे...!</span>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-69003334687138583942023-08-09T08:55:00.001+05:302023-08-09T08:55:42.505+05:30धर्माधिकारी<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7cxdFziz1uoIt-2b5sDMG_38os-k7uJHtgQeW3WZPtQe0WK09XpTPx-BYdhAM3rQr6emdJXwmNMnaoTs4lTx3YbJwFbyqwdhL6zYzHCSG0_gPTgpyG26f0K4Rbr3LFkPAIlmOOtYx8NHPsskfsj4ZMasC0b5hE3nJYrzaerdgSqoDepIPptryF9VUpyhu/s961/20230809_084404.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="532" data-original-width="961" height="177" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7cxdFziz1uoIt-2b5sDMG_38os-k7uJHtgQeW3WZPtQe0WK09XpTPx-BYdhAM3rQr6emdJXwmNMnaoTs4lTx3YbJwFbyqwdhL6zYzHCSG0_gPTgpyG26f0K4Rbr3LFkPAIlmOOtYx8NHPsskfsj4ZMasC0b5hE3nJYrzaerdgSqoDepIPptryF9VUpyhu/s320/20230809_084404.jpg" width="320" /></a></div>ट्रिन••• ट्रिन••• ट्रिन•••<p></p><p>हैल्लो!</p><p>••••• ••••• </p><p>हाँ! हाँ, सब कुशल मंगल!</p><p>••••• •••••</p><p>अरे•• हाँ! नहीं गया था जंगल। लम्बी कतार थी। तुम्हारा मिस्ड कॉल दिखा। तुम्हारी माँ पूछ रही है; तुम्हारे मित्र संग भेजा गया सामान, क्या तुमने चखा?</p><p>••••• •••••</p><p>बच्चों से दूर रहना हमारा निर्णय था यारा! जीवन सन्ध्या के वक्त और भविष्य ने हमें नहीं मारा। </p><p>••••• •••••</p><p>खिलखिलाती जिन्दगानी तेरी-मेरी कहानी रहनी चाहिए। अच्छी हो या बुरी, खतरे के निशान से ऊपर क्यों बहनी चाहिये!</p><p>••••• •••••</p><p>यहीं सभी चूक जाते हैं। क्योंकि हम मूक पाते हैं। मान लेते हैं विधि का विधान,, जबकि हो सकता है निति से निदान।</p><p>••••• •••••</p><p>बता ही तो रहा हूँ! बाबा अपने डगमगाते कदमों के लिए आपको सहारा लेनी चाहिए, ए टी एम से राशि निकालने गया तो गार्ड ने कहा। क्या उसे प्रिया की फाइलेरिया की लाचारी कहनी चाहिए!</p><p>••••• •••••</p><p>अरे नहीं! नहीं कहा। कह दिया, अभी तो पैसठ को कब्जा रहा हूँ। दूसरे पचहत्तर का सहारा बनने जा रहा हूँ।</p><p>••••• •••••</p><p>वृद्धश्रम वालों ने नगद राशि की माँग रखी थी। तुम्हारी माँ की ज़िद थी कि वृद्धावस्था वृद्धों के संग गुजारेंगे। पहले वृद्धाश्रम का स्वाद नहीं चखी थी। वहाँ की स्थिति देख जिद पकड़ ली वहाँ से निसंतान वृद्ध को घर लानी चाहिए।</p><p>••••• •••••</p><p>उसका सपना तो अब धरा का धरा नहीं रह गया। हमलोग निसंतान दम्पत्ति को घर ले आने वाले हैं। वे अनाथाश्रम में पले थे। हमारे साथ रहने से, वहाँ से मुक्त हो जाने से वृद्धाश्रम ग्रह गया।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisW3Tq1pl3h2y4xQwJYxSjb-RUUvap_EX_X7H3VdOskXgH926Nu2vIPtQtWu4n1Bt-4cLYWsrmQV1dkVBczUbIFVYh9SKdq8QN4_xgkJcN5PRQIeInXcFqcM5jDd_W5cg-pdwGHbxjvOg5Ug1_GujJA9tW3CvU6sL_Q-x82tMEEFK2zFz_K7awRW-EifBw/s807/20230809_085438.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="807" data-original-width="675" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisW3Tq1pl3h2y4xQwJYxSjb-RUUvap_EX_X7H3VdOskXgH926Nu2vIPtQtWu4n1Bt-4cLYWsrmQV1dkVBczUbIFVYh9SKdq8QN4_xgkJcN5PRQIeInXcFqcM5jDd_W5cg-pdwGHbxjvOg5Ug1_GujJA9tW3CvU6sL_Q-x82tMEEFK2zFz_K7awRW-EifBw/s320/20230809_085438.jpg" width="268" /></a></div><br /><p></p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-39420917281429177222023-08-02T10:34:00.000+05:302023-08-02T10:34:36.652+05:30पुनरुत्थान : डायरी शैली<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjI0iNfVjwVo8LuR2hD23Q9PhjT8SJXtasbsR_5ZdZYfNqQGgeqopEIwML5gg_Uu9mE4vQNZLPWwcB5bwMCumvaY2Uzndj3Odx4y_IjiRpkC1Y-a775R1uRtHi47QYrqGn_zYnbwQyrGneSmyZn2O13FLGeQFgQa5G0uQ3EmILsX0UfGQdFHMuWkRJF41el/s797/FB_IMG_1690823606941.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="797" data-original-width="634" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjI0iNfVjwVo8LuR2hD23Q9PhjT8SJXtasbsR_5ZdZYfNqQGgeqopEIwML5gg_Uu9mE4vQNZLPWwcB5bwMCumvaY2Uzndj3Odx4y_IjiRpkC1Y-a775R1uRtHi47QYrqGn_zYnbwQyrGneSmyZn2O13FLGeQFgQa5G0uQ3EmILsX0UfGQdFHMuWkRJF41el/s320/FB_IMG_1690823606941.jpg" width="255" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span face=""Google Sans", Roboto, "Helvetica Neue", Arial, sans-serif" style="background-color: white; color: #1f1f1f; font-size: 24px; text-align: start;">शुभेच्छु की डायरी</span></div><br /><b><u><span style="color: red;">22 सितम्बर 2014</span></u></b><p></p><p>"एक पुस्तक को प्रकाशित करवाने में न जाने कितने वृक्षों को काटना पड़ता है इसलिए प्रकाशित करवाने के पहले पुस्तक के उद्देश्य और सार्थकता पर गंभीरतापूर्वक सोचना जरूर चाहिए।" कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ अतिथि लोकार्पणकर्त्ता ने कहा। जो मुझे सुनकर उचित-सही नहीं लगी।</p><p> किसी लोकार्पण में यह कहा जाना अशोभनीय था। पुस्तक लोकार्पण को दुल्हन की मुँह दिखाई कहा जा सकता है••• घूँघट उठाकर कहा जाये कि इससे शादी के पहले सोच-विचार करना चाहिए था•••</p><p>कटाक्ष को सहजता से नहीं लेकर हताश होकर साहित्य से विमुख हो जाना रेशमा के लिए स्वाभाविक रहा।</p><p>"आसान तो नहीं होता होगा! बीज शोधन, बीज का बोरे में अंकुरण, घनघोर घने रूप में बिजड़ा होना तब फसल में परिवर्तित होकर, पुष्ट दानों की सुनहले बालियों के रूप में झूम जाना।" यह बात, रेशमा को बार-बार याद दिलाते रहना पड़ेगा।</p><p><b><u><span style="color: red;">22 जनवरी 2016</span></u></b></p><p>रेशमा द्वारा आमंत्रित करने पर वसंतोत्सव में शामिल होना अच्छा लगा। उनका अपनी मंडली के संग उल्लास से सरस्वती पूजा करना और गुलाल लगाना रोमांचित कर रहा था।</p><p>"शहर से थोड़ा बाहर है लेकिन शोरगुल से भी दूर होना अच्छा लग रहा है। तुम्हारे लिए विशेष रूप से••" मेरे कहते रेशमा चहकने लगी।</p><p>"इसी भवन में सभी तरह की कलाओं के कार्यशाला भी चलते हैं और हम जैसे यहाँ ससम्मान टीक भी सकते हैं•••। यह सरकार से हमें आवंटित किया गया है।"</p><p>उनके लिए खुले आकाश के संग घोसले की चाहत पूरी हो जाना बड़ी बात थी।</p><p><b><u><span style="color: red;">09 नवम्बर 2019</span></u></b></p><p>पुस्तक मेला में घूमते-घूमते प्यास लग गयी थी। चाय-पानी की तलाश हमें एक स्टॉल पर ला खड़ा किया।</p><p> "आप सभी का स्वागत है! इनसे पैसा नहीं लेना। ये हमारे विशेष अतिथि हैं।"</p><p>"घोड़ा घास से यारी करेगा•••।"</p><p>"अरे! यह यहाँ अनुकूल नहीं है। आपने ही कहा था जीविका के लिए कुछ ठोस करो। हमने भोजनालय खोल लिया•••!"</p><p>"हाँ लेकिन अपने प्राकृतिक गुण को भी नहीं छोड़ना••,"</p><p>"मिले एक दराती से काबिलियत का परिचय द्वारा माता ने अपने पुत्र के गुणों को भाप लिया और एक संदेश भी दिया कि किसी की महानता का पता उनके व्यवहार अर्थात जीवन शैली से ही चल जाता हैं। आप मेरे लिए वही माँ हैं।"</p><p>"बिना तपे कुन्दन•••!"</p><p><b><u><span style="color: red;">23 जुलाई 2023</span></u></b></p><p>चार दिनों से रेशमा का अपनी मंडली के संग अपने विशेष अंदाज में ताली बजा-बजाकर 'बेसरा माता'(जिनकी सवारी मुर्गा है) की पूजा की जगह कथकली, कुचिपुड़ी, ओडिसी, सतत्रिया, मोहिनीअट्टम नृत्य करती अचंभित कर रही थी। सभी को शिव तांडव, माँ दुर्गा का भजन, माँ काली का रौद्र नृत्य की जीवंत प्रस्तुति भी पसन्द आए। जीने की चाह का पराकाष्ठा है राख़ से पुन: खिल जाना...!</p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-74362761287018673202023-07-19T07:23:00.002+05:302023-07-19T09:42:24.997+05:30उधेड़बुन<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTiX6_zwguKI8Efd9M6GFMxX-Ime9n00YekfYsAOPMHHuEd1o9AoNuLqLD8cGz0gKsTJPUomJ7p97GFcGh7aE1VXQ-GpbjPVCybLM7dEClrRY34ctoqi6CrjKq5s0vuyCDJ5DQ8DFT3JsF2_fbMRmqL62Md_M4R_miTmNtjyVxuDX-miXrQ4d0TYRQBZc4/s570/FB_IMG_1689731354325.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="570" data-original-width="526" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTiX6_zwguKI8Efd9M6GFMxX-Ime9n00YekfYsAOPMHHuEd1o9AoNuLqLD8cGz0gKsTJPUomJ7p97GFcGh7aE1VXQ-GpbjPVCybLM7dEClrRY34ctoqi6CrjKq5s0vuyCDJ5DQ8DFT3JsF2_fbMRmqL62Md_M4R_miTmNtjyVxuDX-miXrQ4d0TYRQBZc4/s320/FB_IMG_1689731354325.jpg" width="295" /></a></div>झूला कजरी-<p></p><p>बटोही संगे संगे</p><p>धावे गोरिया</p><p>सावन की दोपहरी! झटके में आसमान कैनवास पर हल्के-मध्यम-गाढ़े, काले-भूरे-सिन्दूरी विभिन्न मिश्रित रंगों का आधुनिक कलात्मक आंदोलन का संदर्भ देता और उस काल की शैली और दर्शन को दर्शाता लुभा रहा था या डंक मारने में सफल हो रहा का आकलन करने की मनोदशा को घनवादी (क्यूबिस्ट) साबित कर रहा था।</p><p>खेत-गड्ढे-ताल फूलकर गुप्पा हो रहे थे। उनके पपड़ी पड़े होठों पर प्रसाधन के लेप चढ़ गये थे तो नदी के शरीर में कुछ ज्यादा ही चिकनाहट दिखने लगी थी। एक दूसरे को कनखियों से देखकर मुस्करा रहे थे। मेघ के परिग्रह में उतावलापन को देख मेड़-तट चिन्ताग्रस्त हो रहे थे। उनके किनारे-किनारे बसे घरों के बुजुर्ग-बच्चे मस्ती कर रहे थे।</p><p>"सपने में बंदरों का झुंड देखना शुभ होता है। मान्यता है कि इससे आर्थिक लाभ होता है। परिवार में खुशहाली आ सकती है।"</p><p>"सपने में बंदरों के झुंड को खेलते देखने का अर्थ होता है कि घर में चल रहा क्लेश खत्म हो सकता है।"</p><p>"शुभ संकेत समझ रही हूँ रात मेरे सपने में बंदर को खाना चुराते देखा, स्वप्न शास्त्र के अनुसार हमें अचानक कोई लाभ हो सकता है।"</p><p>"मेरे सपने में अक्सर बंदर अथाह पानी में तैरते दिखता है। जिसका मतलब होता है कि जल्द ही समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। हम पा भी जाते हैं।"</p><p>"चल पुछ्ते हैं हम इनके इतने सहायक हैं तो क्या ये हमें घर बनाना सिखला देंगीं!"</p><p>महिलाओं के झुण्ड को गप्पबाजी में मशगूल देखकर बन्दर दल के मुखिया ने कहा।</p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-53806935180188789862023-07-05T06:06:00.001+05:302023-07-05T06:06:36.965+05:30 ...कृषि सुखाने...<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhA9sYlLMugoH3vEPtmwTuGZKTOtp4vzTSR5Fe9FQYkOlr3n5zi_idlkArjKLN1L5RadNkkdYSNEgOv-IkN5IzSPgRjvhmcR1m0fhS2Qba6KD0lJ5NofRqyJcrXk0ypZjz_dBsvDTAsw_PwN0iYSvjOYUqbqTfpDc3S73hSz14XEm-yazyVoGhYMhD3LhLc/s796/20230704_182342.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="574" data-original-width="796" height="231" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhA9sYlLMugoH3vEPtmwTuGZKTOtp4vzTSR5Fe9FQYkOlr3n5zi_idlkArjKLN1L5RadNkkdYSNEgOv-IkN5IzSPgRjvhmcR1m0fhS2Qba6KD0lJ5NofRqyJcrXk0ypZjz_dBsvDTAsw_PwN0iYSvjOYUqbqTfpDc3S73hSz14XEm-yazyVoGhYMhD3LhLc/s320/20230704_182342.jpg" width="320" /></a></div><br />छन छन छन् न् छन् न् छन जल प्रपात का संगीत गूँज रहा था और उसके जल पर सूर्य की किरणें इंद्रधनुष बना रही थी। लाखों पर्यटकों की भीड़ इकेबना की तरह सजी हुई थी। एक नाम को सभी पुकार रहे थे। वही इस जल प्रपात को ढूँढ़ निकालने वाला और संरक्षक था। पिछ्ले दिनों आई बाढ़ में लगभग सौ लोगों की जान बचा लेने वाला, स्व अपनी जान बचा लेने का गुहार लगा रहा था। उसे पुलिस दबोच ले गयी थी।<p></p><p><br /></p><p>"जी हजूर! आप किस आधार पर त्रिवेणी को कोतवाली उठा लाए हैं?" पत्रकार ने पुछा।</p><p><br /></p><p>"त्रिवेणी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवायी गयी है कि वह जल बाँटने में, आस-पास लगे दुकानों से अनाधिकार वसूली करता है। नक्सलियों के गढ़..." थानेदार अपनी बात पूरी नहीं कर सका।</p><p><br /></p><p>"वह वसूली करता है या आपलोगों की वसूली नहीं हो पा रही है?वह दिन गए जब खलील खां फाख्ता उड़ाते थे...।" भीड़ से सवाल उछ्ला।</p><p><br /></p><p>"कौन बोला? कौन•••," थानेदार की कलई उतर रही थी तो वह तेज गरम होने लगा था।</p><p><br /></p><p>"सवाल यह नहीं है कि कौन बोला। माँग यह है कि आप त्रिवेणी को अविलंब छोड़ रहे हैं। पदच्युत नहीं ही होना चाहेंगे, उसके समर्थन में जुटी भीड़ का आकलन कर लिजिए। ऐसा ना हो कि दंगा छिड़ जाये।" पत्रकार ने कहा।</p><p><br /></p><p>"आप थानेदार को धमकी दे रहे हैं।" थानेदार की घिघ्घी बन्धने ही वाली थी।</p><p><br /></p><p>"धमकी नहीं दे रहा हूँ, सम्भल जाईये, चेता रहा हूँ। दोबारा ऐसा ना हो। अजगर के पेट में नीलगाय का छौना नहीं अटता।" त्रिवेणी को साथ लेकर निकलता पत्रकार ने कहा।</p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-74942822640444921602023-06-25T06:42:00.000+05:302023-06-25T06:42:03.256+05:30किस्सा की कहानी<p></p><p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCEWbtpaoA7cIVtUYGM9RIvVIkoptjDA9Chmhmx8si8ARYUAwJDbB8V-nrwCx9nT_voWfRukPYgcFA1FIjF0WjOn4-Kh1WrNwMBwXmTiwR1BFJFhyY925MKqRbw2IHjHjTELg9IA3WwoQVQyhigHTmPK0j5IISeJZQbcUViHzJ8INhB9Kyg9CA38lM6N-W/s510/20230623_175908.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="506" data-original-width="510" height="317" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCEWbtpaoA7cIVtUYGM9RIvVIkoptjDA9Chmhmx8si8ARYUAwJDbB8V-nrwCx9nT_voWfRukPYgcFA1FIjF0WjOn4-Kh1WrNwMBwXmTiwR1BFJFhyY925MKqRbw2IHjHjTELg9IA3WwoQVQyhigHTmPK0j5IISeJZQbcUViHzJ8INhB9Kyg9CA38lM6N-W/s320/20230623_175908.jpg" width="320" /></a></div><br />किस्सा की कहानी : डायरी में दर्ज<p></p>
<p dir="ltr">नवम्बर 1993</p>
<p dir="ltr">छठवीं बच्ची की भी शादी हो गयी। चिकित्सक पिता के लिए आसान नहीं था दो बेटों और चार बेटियों की अच्छी परवरिश और उच्च स्तर की पढ़ाई करवा लेना। समय पर सबकी शादी करवा गृहस्थी बसा देना। कभी-कभी पहाड़ को स्पर्श पाकर फफ़क पड़ते देखा गया।</p>
<p dir="ltr">अगस्त 1980</p>
<p dir="ltr">बड़ा बेटा चिकित्सक की पढ़ाई छोड़कर माँ के पास आ गया। उसे खर्च के लिए पिता पर बोझ नहीं बनना है। अपनी बहनों की पढ़ाई और शादी के खर्चों में सहयोग कर सके इसलिए खेती और व्यापार पर ध्यान देना है। मौसी माँ की छोटी बेटी चिकित्सक बनने की तैयारी कर रही है। उनके बेटे को भी चिकित्सक बनने हेतु प्रेरित करना है। जिम्मेदारी की दवा की कुछ खुराक ज्यादा ली है।</p>
<p dir="ltr">जून 1963</p>
<p dir="ltr"> हैजा महामारी विकराल रूप धरे हुए है। ना जाने क्या विचारकर वादी-प्रतिवादी सलट लिए और उनका आपस के समझौता पत्र के साथ अदालत में मुकदमा वापस लेने की अर्जी लग गयी। अधिवक्ताओं में खलबली मच गयी वे भौंचक्क रह गए। वाद निरस्त करने का फैसला सुनाते हुए न्यायधीश ने कहा, "खुशी की बात है। जीवन में बदलते वक़्त के साथ विचारों में बदलाव हो जाता है। कई बार जिंदगी में समझौता करना पड़ता है। अगर समझौते से रिश्ता बचता है, जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है, किसी का भला हो जाता है और नफरत मिट जाती है तो समझौता कर ही लेना चाहिए। और सुलह इस आधार पर हुई कि तीन दिन पति एक पत्नी के साथ और तीन दिन दूसरी पत्नी के साथ रहेगा। रविवार और पर्व वाले दिन पूरा परिवार एक को साथ, यदि चाहें मिलते रहेंगे और कोई भविष्य में किसी पर किसी तरह का मुकदमा नहीं कर सकेगा।</p>
<p dir="ltr">मार्च 1960</p>
<p dir="ltr">माता-पिता की पसंद से बड़ी बहन से शादी किया था।तीसरे प्रसव के समय बच्चों का ख्याल रखने के लिए बहन आयी थी। उसके गर्भ ठहर जाने के कारण बहनोई से शादी करनी पड़ी। दोनों ने मिलकर अदालत में पहली पत्नी से तलाक का मुकदमा दायर कर दिया। फिर प्रयत्नशील हुआ गया, संघर्ष की लंबी और अंधेरी रात काटकर सफलता की प्रकाशित भोर सबके हिस्से में लाया जा सके।</p>
<p dir="ltr"><br /></p><br /><p></p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-12800251343242475822023-06-21T19:08:00.004+05:302023-06-21T20:30:05.643+05:30जैसी दिशा वैसी दशा<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNELug3q9DhVMgIMsKWXy8dQvIGoSRx0k8tbc1pU5PVqG6yHrWVLpMp0fKOjEQdK8KS2es8NXZjUMRXsUKqbxe_ox9gJ-DEFIUHZ0t3ZWurchmjlsKutOyFmDKBbS--MC1MsDxIyrew-NyuW6lMJgd4ld5qhy9vJiDgInnnne0IKuTb68I1FJ1xYGlQqsC/s1558/20230621_202737.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1558" data-original-width="1065" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNELug3q9DhVMgIMsKWXy8dQvIGoSRx0k8tbc1pU5PVqG6yHrWVLpMp0fKOjEQdK8KS2es8NXZjUMRXsUKqbxe_ox9gJ-DEFIUHZ0t3ZWurchmjlsKutOyFmDKBbS--MC1MsDxIyrew-NyuW6lMJgd4ld5qhy9vJiDgInnnne0IKuTb68I1FJ1xYGlQqsC/s320/20230621_202737.jpg" width="219" /></a></div><br />"कोई कार्य शुरू करने से पहले हमें मेहनत बहुत करनी पड़ती है। अपना और आपके दिल-दिमागों की धुलाई करनी पड़ती है।और साथ ही नजरों से धुँध छाँटनी पड़ती है। जी हाँ, मित्रों! वैद्युतकशास्त्र संचार माध्यम (इलेक्ट्रानिक मीडिया) से मैं आपकी पत्रकार मित्र मानवी और मेरे संग हैं चलचित्रकार चेतन<p></p><p>फोटोग्राफी का मजा बढ़ जाएँ,</p><p>अगर कोई दृश्य दिल में उतर जाएँ</p><p>आज योग दिवस है और आप तक विस्तृत सूचना पहुँचाने के लिए हम अस्पताल में आ पहुँचे हैं। आइए आज जानते हैं दो महोदय से योग से लाभ और हानी के बारे में। जी हाँ! आप बताएँ अरुण जी•••</p><p>"मैं अपने युवाकाल शायद उच्चतर माध्यमिक विज्ञान (intermediate science) का छात्र था तभी से नेति क्रिया, मयुरासन, पैर से पीछे का जमीन छू लेना इत्यादी अनेको आसान करता रहा। मेरे लिए समय बेहद महत्त्वपूर्ण रहा रात में 9 बजे तक सो जाना और प्रातकालीय 5 बजे उठ जाना।सुबह खाली पेट चाय नहीं लेना। दो बार ब्रेन स्ट्रोक हुआ और एक बार हल्का पक्षाघात लेकिन ना मुझे पता चल पाया और ना और किसी को शायद कारण योग ही रहा हो जी। सेवा निवृति के छ सात के बाद आज मैं अस्पताल में हूँ। ठीक से बोल नहीं सकता ठीक से चल नहीं सकता। बेहद गुस्सा आता है। समय है•••,"</p><p>"आप बताएँ मोहन जी! आप अस्पताल के बिस्तर पर क्यों पड़े हैं?"</p><p>"मैं योग को अपनी दिनचर्या में कभी भी शामिल नहीं किया। योग जरूरी है यह कभी समझ ही नहीं पाया। दो-दो पाँच के चक्कर में रहा। अपने पैसों के बल पर स्व के बल को इक्कीस समझता रहा। मुझसे उम्र में बीस और आर्थिक रूप से उन्नीस सरपट दौड़े जा रहे हैं। और मैं•••,"</p><p>"अच्छा, तो आज आपको यह दिन नहीं देखने पड़ते अगर समय से आप योग कर लिए होते? लेकिन आपके संग रह रहे अरुण जी तो सारी जिन्दगी योग करते रहे।? फिर?"</p><p>"मैं बताता हूँ। योग के अभ्यास के माध्यम से, व्यक्ति आंतरिक शांति पैदा करने, तनाव का प्रबंधन करने और अपने आध्यात्मिक क्षितिज का विस्तार करने के लिए सशक्त हो सकते हैं।अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर क्या••, प्रतिदिन उन प्राचीन ऋषियों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करना आवश्यक है, जिन्होंने निस्वार्थ रूप से पूरी मानवता के लाभ के लिए अपने ज्ञान को साझा किया। संगीत और मन का भी योग करें फल शान्ति मिलेगा। रोज संगीत दिवस भी मनाएँ।"</p><p> "चिकित्सक के दिए सुझाव सभी को मानने चाहिए और हमें अब आप जनता से विदा लेनी चाहिए।"</p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-59590520112178022882023-06-20T12:59:00.003+05:302023-06-20T18:30:13.543+05:30मृगमरीचिका<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTjIaOwV8Boo_g2Dc-uQW9fa3zXVSUWVkMWEOCbdudvCco586ckeyov4daxiQjTqO4ty6ilpQz7aRHMECygz4gGKqTnTQs-FxCApPZf9dj4AHT0HwopcVdi25QLaWgl4ENsRGYp4yWyC57Dnexo9GbwTdGwaZsXT2f0VDs9kcDGcC4Y6GAmzRiDnfwNvXw/s1844/20230620_124327.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1844" data-original-width="1070" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTjIaOwV8Boo_g2Dc-uQW9fa3zXVSUWVkMWEOCbdudvCco586ckeyov4daxiQjTqO4ty6ilpQz7aRHMECygz4gGKqTnTQs-FxCApPZf9dj4AHT0HwopcVdi25QLaWgl4ENsRGYp4yWyC57Dnexo9GbwTdGwaZsXT2f0VDs9kcDGcC4Y6GAmzRiDnfwNvXw/s320/20230620_124327.jpg" width="186" /></a></div>"विदेश में नाम कमाता, शिखर पर पहुँचता बेटे की माँ होकर आप कैसा अनुभव कर रही हैं?"<p></p><p>"नजर रही वही पुरानी</p><p>दुनिया बिखर जायेगी</p><p>नजरिया बदल गया</p><p>दुनिया सँवर जायेगी</p><p>पापा आपके सेवा निवृति में अभी डेढ़ साल बाकी है। मैं यूँ गया और यूँ आया।आजाद परिंदों की रुकती नहीं परवाजे</p><p>जाते हुए कदमों से आते हुए क़दमों से</p><p>भरी रहेगी रहगुजर जो हम गए तोह कुछ नहीं</p><p>इक रास्ता है जिंदगी जो थम गए तोह कुछ नहीं</p><p>यह कदम किसी मुकाम पे जो जम गए तोह कुछ नहीं। विदेश में रहने का अवसर आसानी से कहाँ मिलता है! वेतन वृद्धि का अवसर खोना नहीं चाहता।"</p><p>"मेरे बाद भी इस दुनिया में</p><p>जिन्दा मेरा नाम रहेगा</p><p>जो भी तुझको देखेगा</p><p>तुझे मेरा लाल कहेगा</p><p>तेरे रूप में मिल जायेगा</p><p>मुझको जीवन दोबारा</p><p>–जाओ जी लो प्राण धारण अत्यधिक प्यारा!"</p><p>"पिता लू भरी दोपहरी में यह काम किया पूत के लिए छाँव ढूँढ़ने का वह वट बना।</p><p>ओझल होना ना था एक पल भी गंवारा</p><p>पिता ही साथी रहे हैं, पिता ही थे सहारा।</p><p>आज आठ साल के बाद भी पिता दिवस के दिन प्रवासी पूत का मुझ माता को विडियो कॉल आया, इतनी सुबह? अभी तो वहाँ 5 ही बजे होंगे न!"</p><p>"वहाँ तो शाम है न। मैं अन्य कॉल पर व्यस्त हो जाऊँगा। पापा से बात करवा दो। आज पापा दिवस है।"</p><p>"इकलौता बेटे का वहाँ विदेश में पिता के दर्शन से ही दिन शुरू और यहाँ शामें ख़त्म अन्धेरा शुरू।"</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5ziscosHyzz_hkVdD4KXxqwpNQVvx3nFOplnI7jOykVSNEaxLzQtJTAPJ5A5jeBnBoTcIqlkkp-1p1ASDTJCcUdhxPFMaR2GT1HaWGI9rtRUf6gjwbHxnKdUKZ-2ilTudkN22keBT0ZhtcFokH6HCqSalGtLtzGR_CvedZf0VTvciRmSAZSPQxmbh4y7w/s1080/20230620_125644.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1080" data-original-width="540" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5ziscosHyzz_hkVdD4KXxqwpNQVvx3nFOplnI7jOykVSNEaxLzQtJTAPJ5A5jeBnBoTcIqlkkp-1p1ASDTJCcUdhxPFMaR2GT1HaWGI9rtRUf6gjwbHxnKdUKZ-2ilTudkN22keBT0ZhtcFokH6HCqSalGtLtzGR_CvedZf0VTvciRmSAZSPQxmbh4y7w/s320/20230620_125644.jpg" width="160" /></a></div><br /><p></p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-90131627245335734052023-06-16T06:46:00.002+05:302023-06-16T06:46:28.328+05:30मेड़कटवा<p><a href="https://storymirror.com/read/hindi/story/medddhkttvaa/1p9o90l3"></a></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxk8H1XS4jz5UatdHF5xOFGmk9yXo1r8J3lnyK8Yd9IQJ6FwLSPZ_vapGPBotbO4XgEFiqiOmW4VwFpEP28U8CkGGmsN189BkhzL0T0iFXRthKCnclemYEfsP1jLHeZq-FvtxfZxRrPCbsdWmHNqmpiMSuaIIYutfzZ-n2cr2OAIJBxGmmru3BMZEgKA/s1510/20230616_055952.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1510" data-original-width="883" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxk8H1XS4jz5UatdHF5xOFGmk9yXo1r8J3lnyK8Yd9IQJ6FwLSPZ_vapGPBotbO4XgEFiqiOmW4VwFpEP28U8CkGGmsN189BkhzL0T0iFXRthKCnclemYEfsP1jLHeZq-FvtxfZxRrPCbsdWmHNqmpiMSuaIIYutfzZ-n2cr2OAIJBxGmmru3BMZEgKA/s320/20230616_055952.jpg" width="187" /></a></div>मेड़कटवा<p></p><p>"तुमने सुना, मुन्ना ने चाचा को डंडे से पीटा और दीवाल पर ढ़केल दिया। सर में गुमड़ निकल गया है।"</p><p>इस सूचना से मुझे स्तब्धता होनी चाहिए थी क्या•••! बिलकुल नहीं होनी चाहिए थी। यादों के गुफा में बहुत दंश छुपा हुआ था। हमारा संयुक्त परिवार था। चाचा की जब शादी हुई तो चाचा ससुराल के गाँव के किनारे नहीं जाते थे। कुछ सालों में ऐसा हुआ कि वे केवल ससुराल के होकर रह गये। चाची शहर में पली हैं तो अन्य बड़ी माँ, माँ से तुलना में श्रेष्ठ समझी जातीं। गृहस्थी के सामान्य कार्य में सहयोग नहीं लिया जाता। चाची की पढ़ाई चलती रहती लेकिन कोई मंजिल नहीं मिला। चाची को शिकायत थी कि महानगर में बसी होतीं तो सफल होती। अच्छे बड़े शहर में भी होती तो चलता। चाची शादी के बाद उस संयुक्त परिवार में बिना सर पर पल्ला रखे जेठ लोगों के संग बहस कर लेतीं जबकि उनकी जेठानियों की परछाई जेठ के सामने से नहीं गुजरती। गाँव के घर में चाची को कम ही रखा गया। </p><p>चाची के बच्चे हुए तो वे ननिहाल को जानते थे। मामा मौसी नानी इतने ही रिश्ते पहचाते थे।</p><p>दादा-दादी के पास नहीं आते थे कि दाल-सब्जी तो ठीक है गाँव का चावल मोटा होता है, शहरी बच्चे हैं ठीक से खा नहीं सकते हैं। समय के साथ गाँव में चावल के किस्म में बदलाव होता गया। </p><p>उनके बच्चे पढ़ने में बहुत होशियार हैं, यहाँ उनके स्तर का कोई नहीं मिलता है। अन्य बच्चे अपनी-अपनी मंजिल पाते गये। उनकी तुलना में बीस ही साबित हुए।</p><p>चाचा-चाची के नजरों से सबसे ज्यादा होशियार मुन्ना घर में भी सबका दुलारा। मुन्ना की शादी सफल नहीं हुई कि उसे अपने पिता के बनाए मकान में रहना और उनके पेंशन पर मौज मस्ती से जीवन गुजर-बसर करना था। </p><p>बुजुर्ग की दशा ऐसी•••!</p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-90363028253607892912023-06-14T11:56:00.002+05:302023-06-14T11:56:44.637+05:30समर कैम्प<p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="text-align: left;"><div class="separator" style="clear: both; color: #414141; font-size: 14px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEigTL9Hwl2jPOWNRAVPE9HgoZLPQrKsD9hTqN0Al6597cPaU6D3rOakZQNWWX_l0v3a55BXHfeyJtzgXbk4fFXhO1uQTm5qn6eeWj6CpHXye7eVSn8mgzEZ6hFOWMqetlTQgZUVgw8jHdP2kZPQjbonekmyRXl1gnjF46EL1hCjArSWf5C_0CMlgkKSRA/s1493/20230614_114927.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1493" data-original-width="879" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEigTL9Hwl2jPOWNRAVPE9HgoZLPQrKsD9hTqN0Al6597cPaU6D3rOakZQNWWX_l0v3a55BXHfeyJtzgXbk4fFXhO1uQTm5qn6eeWj6CpHXye7eVSn8mgzEZ6hFOWMqetlTQgZUVgw8jHdP2kZPQjbonekmyRXl1gnjF46EL1hCjArSWf5C_0CMlgkKSRA/s320/20230614_114927.jpg" width="188" /></a></div><a href="https://storymirror.com/read/hindi/story/smr-kaimp/915s0kfk"><b><span style="color: red; font-size: large;">समर कैम्प</span></b></a><br /><span style="color: #414141; font-size: medium;">"हाँ तो बिग ब्रेव गाइज़! आपसे एक सवाल पूछती हूँ, आपकी मामी की ननद की ननद की गोतनी के बेटा या बेटी से आपका क्या रिश्ता होगा?"</span></span></div><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">"••••••"</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">"अर्ली मॉर्निंग ऐण्ड इन इवनिंग में सूरजमुखी का फेस किधर होता है?"</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">"••••••"</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">"यह तो झोके हैं पवन के</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">हैं यह घुंघरू जीवन के</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">यह तो सुर है चमन के</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">खो न जाऐ</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">तारे ज़मीन पर</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">इसलिए मैं मनाकर रहा था कि इसे यहाँ मत भेजो। उसे माता-पिता के संग पहाड़ों पर घूमने जाने दो। लेकिन ना! तुम्हारी ज़िद थी। अब वो भुगते।"</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">"इसमें भुगतना क्या है! समय के साथ धीरे-धीरे सब सीख जायेगा।"</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">दुनिया की भीड़ में क्यों खो रहा</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">मिलेगा कुछ भी न फल जो बो रहा</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">तू आँखें अब खोलकर सब जाँच ले</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">तू अब सच और झूठ के बीच खाँच ले</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">जब तक सीख पायेगा तब तक••• और ना सीख पाया तो•••?"</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">"इसका उत्तर तुम्हें तब सोचना चाहिए था, जब तुम 'एकल परिवार में एक बच्चे' का झण्डा उठाये हुए थे। हमलोगों की पीढ़ी के बच्चे गर्मी की छुट्टी में दादी-नानी के गाँव जाते थे। तीस-चालीस बच्चों का समूह दिन में अमराई, ताल किनारे और रात में छत को भींगाकर तारों के चँदोआ तले ना जाने कितने रिश्ते जिए जाते थे और ना जाने कितने किस्से गढ़े जाते थे।"</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">"••••••"</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">"ये बचपन का प्यार अगर खो जाएगा</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">दिल कितना खाली खाली हो जाएगा</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">तेरे ख्यालों से इसे आबाद करेंगे,</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">तुझे याद करेंगे</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">मामी का भतीजा, बुआ की जयधी गुनगुनाते•••।"</span></p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-88316652534649855302023-06-11T23:25:00.003+05:302023-06-12T08:39:03.532+05:30अपाहिज<p> <a href="https://storymirror.com/read/hindi/story/apaahij/b5c74o0g">अपाहिज</a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2_zhlowJpQXRHv3bRUAlZRQpxB7FpboLL0SeZY_RGOizzsmX-pkkjTGSRQ5BLovO5sdfjomle09XYq8x-XzqfY37I6JqMA8H4UCyEt268Pax5dkX6wkZO0964B3ngDzG7n7OI_ypDiqQOVwqttoMuz9Nen70hNAEQdHGPFxex0h9_7oRfvQiRc92TgQ/s1528/20230611_155140.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="1528" data-original-width="894" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2_zhlowJpQXRHv3bRUAlZRQpxB7FpboLL0SeZY_RGOizzsmX-pkkjTGSRQ5BLovO5sdfjomle09XYq8x-XzqfY37I6JqMA8H4UCyEt268Pax5dkX6wkZO0964B3ngDzG7n7OI_ypDiqQOVwqttoMuz9Nen70hNAEQdHGPFxex0h9_7oRfvQiRc92TgQ/s320/20230611_155140.jpg" width="187" /></a></p><p><br />"अपरिहार्य कारणों से मेरी शादी स्थगित हो गई है। मानसिक स्थिति ठीक होते ही मैं खुद बात करूँगा।"</p><p>"धैर्य बनाए रखना•••,"</p><p>"लड़कीवाला सब फ्रॉड निकला। शादी बड़ी बेटी से करवाना था। फ़ोटो छोटी बेटी का भेजा। फ़ोन और वीडियो कॉल पर छोटी बेटी रहती थी। बड़ी बेटी बचपन से पागल है। छोटी सुंदर है तो उसकी शादी पहले से फिक्स है। लेकिन बड़ी बेटी के कारण उसकी शादी हो नहीं रही थी। तो उन लोगों ने मेरे पर एटेम्पट लिया कि हो जाये तो हो जाये।"</p><p>"लड़की वालों पर सब दया दिखलाते हैं। जबकि जितना कांड हो रहा है, लड़की वाले करते हैं और आजकल लड़की की होशियारी का तो कुछ हद ही नहीं है•••। स्त्री विमर्श का काला पक्ष।"</p><p>"प्लानिंग था कि शादी छोटी से करवाया जाता और विदाई के समय बड़ी को भेज दिया जाता।"</p><p>"वक्त के खेल के आगे सबकी जो मजबूरी हो जाए••।"</p><p>"छेका के अगले दिन ही पता चल गया।"</p><p>"कोई अगुवा होगा?"</p><p>"मेरी अपनी मौसी की बड़ी गोतनी की छोटी बहू लड़की की अपनी चेचेरी बहन है।उसने पहले कहा था कि लड़की बहुत अच्छी है।"</p><p>"पिटाने लायक तो वही है। उसकी ऐसी क्या मजबूरी थी जो इस साज़िश का हिस्सा बन गयी?"</p><p>"और जिस दिन कैंसिल हुआ उस दिन मुकर गयी कि आप लोग खुद पता कर लिए होते। कल उसको फोन किये और बोले कि आपके पूरे परिवार का खून खराब है। और आपके घर मे जितनी भी बेटी और बहन सबको कोठा पर बैठा देंगे। और अगले बार से मेरे बारे में पता करने का कोशिश कीजियेगा तो बीच से चीर देंगे। उसके बाद मेरी मौसी मुझे फ़ोन पर डांटने लगी</p><p>"अपशब्द बोलने से अपना संस्कार खराब होता है। कोई गाली ऐसी नहीं बनी है जो दोषी/अपराधी को सीधे-सीधे कहा जा सके। शादी और बहूभोज की तैयारी में पैसा तो बहुत बर्बाद हो गया लेकिन भविष्य की परेशानियों से बचना हो गया। स्त्री विमर्श का काला पक्ष है, कानून का दुरुपयोग और स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छन्दता समझ लेना•••।"</p><div><br /></div>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1547628931250007957.post-51198176328682850762023-06-08T11:04:00.003+05:302023-06-10T06:26:34.270+05:30समृद्धि<p><span style="font-size: medium;"> <a href="https://storymirror.com/read/hindi/story/smrddhi/0jhwqwhn">समृद्धी</a></span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEge1wWloYKAJkCYoOZojd2xb64v8FeEPIVq8PPTpqmsf_WNX5-IpkU2DS4DIR9HQpsR0mWA9nr9YtSHrUl3RtO34qng8hupbgmhDF1McuIH57bkFsXanfzUeC41-gLNH0EWdnYwlI-FJctMZbbkyCBXIGepEEM7_7at1_8-NqEZe0V7vwWFZkYl3v3ZVg/s1491/20230608_110126.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1491" data-original-width="887" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEge1wWloYKAJkCYoOZojd2xb64v8FeEPIVq8PPTpqmsf_WNX5-IpkU2DS4DIR9HQpsR0mWA9nr9YtSHrUl3RtO34qng8hupbgmhDF1McuIH57bkFsXanfzUeC41-gLNH0EWdnYwlI-FJctMZbbkyCBXIGepEEM7_7at1_8-NqEZe0V7vwWFZkYl3v3ZVg/s320/20230608_110126.jpg" width="190" /></a></span></div><p></p><p><span style="font-size: medium;"><span face="sans-serif" style="background-color: white; color: #414141;">पाँच-सात पसेरी सट से पसर गया</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">दो-तीन पन्नी की थैली में ससर गया</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">सबरे के आठ बजे सब्जी लेने इतनी जल्दी पहुँच गये कि सब्जी विक्रेता की सपने से विमुखता ही नहीं हुई थी। सड़क पर झाडू लगाने वाला साँकल बजा रहा था। दूकान से सटकर खड़ी गाड़ी को पीट रहा था। सब्जी लेने आई अन्य महिला शोर कर रही थी। कुम्भकरण से बाज़ी लगाये युवा विक्रेता के जागने की प्रतीक्षा करुँ या लौट जाऊँ मेरे लिए निर्णयात्मक क्षण उलझन वाला था। घर वापसी पर 'क्या पकाऊँ?' वाला सौ अँक वाला प्रश्न के लिए सीमांत पर लड़े जाने वाले जंग से कम कठिन जंग नहीं होने वाला था।</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">लगभग बीस वर्षों से उसी दूकान से सब्जी-फल आ रहे हैं। अक्सर शाम में ही लाती रही। सुबह का यह दृश्य पहली बार की अनुभूति थी। कोरोना काल की रात्रि में सब्जी पहुँचा देता था।</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">आधे घन्टे के शोर के बाद हलचल दिखी। लगभग चौदह ताले खोले गये जिससे बाँस के बने चार पल्ले हटे। उसके अन्दर मोटरसाइकिल भी था और सब्जियों के ढ़ेर के बीच बिछावन। सब्जी और चूहे के बीच की गहरी दोस्ती(दाँत कटी रोटी वाली) के साक्षात्कार दिखे।</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">"बिन बुलाए मेहमानों का कोई इलाज़ क्यों नहीं करते हो?" मैंने विक्रेता से पूछा।</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">"मेरे अतिथियों को प्याज की बदबू से चिढ़ है क्योंकि यह उनके लिए टॉक्सिक साबित होती हैं। इनके प्रवेश द्वार पर जहाँ भी उनका ठिकाना है वहाँ चिली फ्लेक्स या लाल मिर्च पाउडर छिड़क दिया जाता है। किसी ने कहा छीला लहसुन परोसा जाए। अति से अभ्यस्त हो जाना भी कोई चीज होती है न?" युवा विक्रेता ज्ञानी ने कहा।</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">तबाही अभ्यस्त विध्वंसक पुजारी</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #414141; font-family: sans-serif; margin-bottom: 1rem; margin-top: 0px;"><span style="font-size: medium;">राख़ में जिसे दिख गया हो चिंगारी।" किसी के शब्दों को भुनभुनाती मैं सब्जियाँ छाँटने लगी।</span></p>विभा रानी श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com0