Wednesday 3 September 2014

हाइकु - मुक्तक




निशा का घन
पल सब बदले
भोर भास से। 

क्षीण व पीन
चन्द्र तृप्त करता
मृत अमृत।

जाल जो डाला
पल के आंच फसे
स्मृति के सिंधु।

माया की कश्ती
इच्छा जाल उलझी 

मोह सिंधु में।

वैरागी होना 
माया जाल बिसरा

 स्वयं को पाना।




लोभ प्रबल / भ्रमति है मस्तके  / लब्धा का साया
ताने वितान / कष्टों का आवरण / नैराश्य लाया 
डरे वियोगी / ईर्ष्या में क्रोध संग / वितृप्त मनु
काया से माया / पीर से नीर बहे / बबाल छाया।



6 comments:

  1. छोटे प्रभाव शाली हाइकू !

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-09-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1726 में दिया गया है
    आभार

    ReplyDelete
  3. सुंदर मुक्तक !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 5 . 9 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

    ReplyDelete
  4. सभी हाइकु बढिया ...

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

नेति नेति —अन्त नहीं है, अन्त नहीं है!

नेति नेति {न इति न इति} एक संस्कृत वाक्य है जिसका अर्थ है 'यह नहीं, यह नहीं' या 'यही नहीं, वही नहीं' या 'अन्त नहीं है, अ...