Monday 30 July 2012

# तेतरी #





तीन -  तीन  अग्रजों की दुलारी तेतरी ....

इठलाती - इतराती , तेरह  बसंत देखे ,

तो जैसे एक खिलौना ,अनुज मिला ....

बड़े भैया ,भाई के साथ पिता का ,

(कन्या दान नहीं) ,कर्तव्य निभाया ....

छोटे भैया ज्यादा तंग करते ,

Rs.दो तो राखी बंधवाउंगा कहते ....

अनुज ,भाई कम ,बेटा ज्यादा लगा ,

छोटा था तो उसने माँ को खो दिया .... 

मझले भैया सबसे ज्यादा प्यार करते , 

प्यार से उसे ढिबरी बुलाते ....

लेकिन 23 जुलाई को जब राखी 

चार दिन बाद था ,तेतरी को 

रोता -विलखता छोड़ गये .... 

उस साल राखी नहीं मना .... 

आज भी ढिबरी 4राखी खरीदती है .... 

3 अंक अपशगुन होता है ?

नहीं ! आज भी उसे लगता है ............................................ !

और भाई भी बेकरार रहते ,वे निराश न हों ....

उनसे भी बहुत प्यार करती ,वे दुखी न हों ....

तेतरी न रही तो क्या हुआ ढिबरी तो है ....

आँखें नम रहती , होठों पर मुस्कान होते ....

बड़ा सादा त्यौहार मनता है ,उसका रक्षा बंधन ....


# (तीन बड़े भाई के बाद जो बहन पैदा हो ,उसे तेतर कहते हैं) #

Saturday 7 July 2012

# संदेसा #



                                             आभार गूगल 
तब शिखर ने बाँधा ,

नभ का साफ़ा ...

जब क्षितिज पर छाता , 

भाष्कर भष्म होता ,

लगता मानो किसी

घरनी ने घरवाले के लिए ,

चिलम पर फूँक मार ,

आग की आँच तेज की है ....

घरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,

जीवन की जंजाल बनी ,

गीली जलावन ,जी जला रहा है.....

लौटे परिंदों ने पता बता दी है ....

किसान ,किस्मत के खेतो में ,

खाद-पानी पटा घर लौट रहा है ....

बैलों के गले में बंधी घंटी ,

हलों के साथ सुर में सुर मिला

संदेसा भेज रहे हैं .... !!


Monday 2 July 2012

# नैनीताल का नज़ारा #


Golph Ground के नज़ारे का आनन्द उठाना हो तो ढ़ाई से साढ़े छ: बजे तक ना जाएँ ....चोट लगने का डर सताता  रहेगा .... !!










बारिश का मौसम है   .... (^_^)
शाम भी रूहानी है  .... (^_^)
तो बातें भी रूमानी हो   .... (^_^)
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जब – जब ,
मेरे चेहरे को सहला कर , 
चमकाती है ,
बारिश की बुँदें ….
लगता है सारा जहाँ ,
मेरे मुट्ठी में है ….
कितने गहरे छलके हैं ,
शाम के साए में क्षितिज  के रंग  ....
उन रंगों से ,
अपने रंगहीन अतीत में ,
रंग भरना चाहती हूँ ....
 जैसे ….
रवि ,अवनी के ,
आगोश में पनाह लेता ,
शाम के साए में ....
वैसे ही  ….
बदन , जिस्म से मिल जाए ....  
उन्हें अपने बाहों में जकड़े रहूँ , 
और सज-संवर जाए जीवन की शाम ....
उन्हें बताना चाहती हूँ ....
नभ में चमकता शाम का अकेला तारा ,  
मेरे नुरानी प्रेम का प्रतिरूप है ....
वे आभास दें सुनने का ,मेरे विचारों को ....
रूपहले ख्यालों को …. धुंधलाए अहसासों को .... 
अपने प्रियतम के आलिंगन में सिमटना चाहती हूँ .... !!



दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...