Friday 24 May 2019

"ऊँच-नीच"





"कहाँ गए थे इस हाल में?" चौकीदार काका को उनकी साइकिल थमाते इशर से उसके पिता ने पूछा। इशर जिस पार्टी का कार्यकर्त्ता था उसी पार्टी की जिम्मेदार नेत्री से मिलकर वापस आया था।
"महिबा जी से भेंट करने!"
"इस तरह, इतनी रात को..ऐसी क्या बात हो गई ?"
"दिन महिबा जी के सोने का समय होता है.., अचानक कामरेड का सन्देश आ गया था , महिबा जी से मिलना बेहद जरूरी था... आपको पता है न अभी मतदान का समय है!"
"हाँ तो ! हमारे हैसियत का तो ख्याल रखते... ड्राइवर घर में ही रहता है।"
"अगर आपको किसी चीज से नफरत है तो अपने मन को शुद्ध कीजिये, अपने लिए अपने मन से नफरत को मिटा दीजिये... वैसे भी उनकी गली में हवा भी उनके दलाल के इजाज़त से टहलती है..,  सरकार के हाकिमों की नजरें दिन में वहाँ से गुजरती नहीं..।"
"क्क्य्य्या?" इशर के पिता इतनी जोर से चीखें मानो उन्हें  करेंट लगा हो ।



Wednesday 22 May 2019

"मुक्ति"



"यह क्या है! बाहर के लोग क्या कहेंगे भाभी?" विधवा भाभी को बड़ी बिंदी लगाती देखकर ननद ने सवाल किया।
"मकड़जाल से निकल चुकी हूँ। हौसले को याद दिलाने में चूक ना जाऊँ... इसलिए...,"
"आप शायद भूल रही हैं कि बड़े भैया (धीमे से:आपके पति -परमेश्वर) को आपका बिंदी लगाना पसंद नहीं था!"
"कैसे भूल सकती हूँ कहीं भी किसी मौके पर अपने रुमाल से मेरे माथे का बिंदी पोछ देना और गंवार कहकर बुलाना... उन्हें तो मेरा सांस लेना पसंद नहीं था (धीमे से:चलचित्र युगपुरुष का नाना पाटेकर)।"
"ना कोइ रोके, ना कोई टोके!" दही-चीनी से मुँह मीठा कराती... बहू के भाल पर उग आए पसीने को अपने आँचल में सोखती सास ने कहा ,-"माँ का आँचल मकड़जाल को नष्ट कर देता है!"

Friday 17 May 2019

मतदान स्व विवेक से करें


"चाय बना दो!"
"बस जरा दूध ले आऊँ..।"
गिरते भागते दूध लाई चाय बना कर दी... साबूत मूंग बनाने चली तो टमाटर लहसुन नहीं था... फिर घर-बाजार-घर तक का दौड़ लगाई..।
"समाज से फुर्सत मिले तो घर देख लेना..!"
मतदान के लिए समाज का आवाह्न करने प्रातःकाल से फेरी लगा घर वापस आई थी। ताने का तीखा छौंक लगना स्वाभाविक था।
{"देश चला रहा है बिजनेसमैन और नाम हो रहा है मोदी-मोदी।" ठेले पर आलू प्याज बेचने वाला जब किसी से बोल रहा था, थोड़ी देर पहले तो #फेसबुक_लाइव नहीं कर पाने का अफसोस हो गया था। #इसी_तबके_के_लोगों_द्वारा_अब_तक_उलटफेर_होता_आया_है_बिहार_की_राजनीति_में...}
 "आज तो देश का सवाल है, देश तब समाज तब घर...।"
"बुजुर्ग कह गए हैं कि घर में दीया जलाकर तब मंदिर में दीया जलाया जाता है!"
"इसलिए न नेताओं की तिजोरी भरती चली जाती है और...!"

Friday 10 May 2019

गुलमोहर


01.गुलमोहर-
छज्जे में सज गया
मधु के छत्ते।
02.गुलमोहर-
बच्चें पेंच भिड़ाये
खेलमखेल/कूदमकूद।


बच्चों का बड़ा होना
अब खलने लगा है
मन उबने लगा है
शतरंज खेलना और पेंच लगाना
गुलमोहर के गुल Image result for गुलमोहर फुल परागसे
नाजुक शाखाओं का
जरा तेज हवा चली कि विछोह निश्चित
महबूब को मानों खजाना मिल जाता था
"माँ-माँ आओ न पेंच लड़ाते हैं
देखते हैं कितनी बाज़ी कौन जीत लेता है"
"तुम अभी जितना हारोगे
उतना जीतने के लिए ललकोगे"


बड़ी बारीकी से,
बड़ी कुशलता से,
कलम के लिए,
लगाए जाते हैं चीरे।
उगाए जाते हैं नए पौध,
धैर्य रहा सदा विषय शोध,
सहजता असर करता धीरे।
भगवान के समता में बागवान,
चीरे से नवजीवन का सच्चा ज्ञान,
बन बागवान होड़ भगवान से लगाती।
नहीं बदलना ना अतुराना,
पा जाएँ सभी लक्ष्य ठिकाना,
सम तुला स्नेह शासन माँ तौल अपनाती।
सूरज से रौशनी चाँद पा जाता
तभी तो धवल विभा चमकती।

Saturday 4 May 2019

"चुनावी फानी"




   सेना से निर्वासित सैनिक निर्दलीय चुनाव के लिए खुद को तैयार कर रहा था..
       विपक्षी दल के लोग बैठे हुए आपस में विचार-विमर्श कर रहे थे कि सत्ता पक्ष के प्रमुख के समक्ष किस व्यक्ति को टिकट दिया जाये जो उसे टक्कर देने के साथ-साथ पराजित भी कर सके।
"अरे! भाई अवसर का लाभ उठाइए! आजकल सत्ता पक्ष सेना द्वारा पड़ोसी देश पर हुई विजय को अपने पक्ष में भुना रहा है तो क्यों न हम अभी पिछले दिनों वीडियो वायरल प्रकरण में सेना से निकाले गये सैनिक को टिकट दे दिया जाए।"
चर्चित नेता के विचार पर सभी उपस्थित नेता-कार्यकर्ता उछल पड़े.., "अब तो हमारी पार्टी की जीत पक्की समझो.., अब तो सेना में हो रही धाँधलियों की पोल खुलकर रहेगा.. जनता की संवेदना , वेदना पर भड़कती है..., वह निश्चित रूप से जीत जाएगा।" नेता जनता की सहानुभूति के प्रति आश्वस्त था।
विपक्षी दल में सैनिक को टिकट देने में सबकी सहमति बन गयी। अतः सैनिक अपना नामांकन प्रमुख विपक्षी दल की ओर से दाखिल कर दिया...। यह बात सभी प्रकार के मीडिया द्वारा काफी उछाली जाने लगी। चुनाव-आयोग कानूनी तौर पर तथा देशहित में यह तय किया कि ऐसे लोगों का चुनाव लड़ना तथा सेना की कमियों संबंधी बातें जनता तक पहुँचने से पड़ोसी दुश्मन देश को जहाँ शह मिलेगी वहीं आमजन के मध्य सेना अधिकारियों के प्रति सम्मान भी प्रभावित होगा। देश की प्रतिष्ठा को देखते हुए सैनिक का निर्वासन स्थगित करते हुए, चुनाव के लिए नामांकन रद्द कर दिया गया।
चुनाव-आयोग की इस कार्यवाही से जहाँ विपक्षी दल के हौसले पस्त हो मायूसी छा गया वहीं सत्तादल के प्रमुख को अपने समक्ष पड़ी सजी-सँवरी कुर्सी दिखने लगी।

Friday 3 May 2019

"ओजोन के शत्रु"


"क्या आंटी जी! हमारे चढ़ने से आपको तकलीफ़ हो गई.. ? मेरी बिटिया मेरे गोद में है फिर भी आपको दुबकना पड़ा?" ऑटो में चढ़ी चौथी सवारी ने पहले से बैठी महिला से कहा... । चार सवारी बैठी हो और एक किशोरावय बच्ची खड़ी हो तो हवा की गुंजाइश नहीं बचती है।
"क्यों ? मुझे क्यों परेशानी होगी आपकी बच्ची से क्या मैं बांझ दिखाई दे रही हूँ... मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं साथ नहीं होते तो क्या मैं दूसरों के बच्चों से चिढ़ने लगूँ?"
"आंटी जी आप भले ना चिढ़ रही हों परन्तु आपके उम्र के लोग चिढ़ते हैं.. किराए के मकान की तलाश में जाती हूँ तो कहते हैं लोग "कितने बच्चें हैं बताओ?"
"क्यों क्या उन्हें खेवा-खर्ची देनी होती है?"
"वही तो जो जन्म दिया है भरण-पोषण तो वही करेगा न? कुछ लोग होते हैं जिन्हें शोर नहीं पसंद होता है... अब बेटे के इंतजार में चार बेटियाँ हो गई तो क्या उन्हें सड़क पर छोड़ जाएं?"
"पानी खर्च ज्यादा तो बिजली की खपत ज्यादा... महंगाई सुरसा मुख की तरह... दूसरों की बात छोड़ो आज के ज़माने में चार बच्चों की परवरिश क्या आसान है ?" तीसरी सवारी का सवाल था।
"हमारा वंश तो बेटे से ही चलेगा..," मेरी सास सदा कहती रही।"
"उनसे पूछना उनसे पहले की सातवीं पीढ़ी में से किसी का नाम...!"

Thursday 2 May 2019

"सूखी नदी"



"बाबा! आप पीछे के सीट पर बैठ जाइए.. आबादी बढ़ गई सड़के सकरी गली की चौड़ी हो नहीं रही है, आगे पुल पर भीड़ में आपको चोट लग जायेगी ।" अपने बगल में बैठाए वृद्ध से ई-रिक्शा चालक ने कहा,जब पीछे से एक सवारी उतर गई। ई-रिक्शा चालक के हिस्से के पीछे में एक महिला और एक किशोर बैठे थे उसके आगे हिस्से में एक युवा सवारी बैठा था एक स्थान खाली था (चार सवारी के बैठने का स्थान होता ही है)
 खाली स्थान पर ज्यों ही वृद्ध बैठने लगे किशोर झटके से उस स्थान पर बैठ गया।
"अरे! क्या हुआ? स्थान क्यों बदल लिए?" दंग हो वृद्ध ने पूछा।
"उल्टा लग रहा था..!"
"पैदा तो इंसान उल्टा ही होता है.. पाँच-दस मिनट में हम इस ऑटो को छोड़ देंगे जैसे ही हमारी मंजिल आएगी... ना तो तुम और ना तो मैं स्थाई रूप से इस पर बैठे रहने वाले हैं.. लेकिन जिस तरह से तुम चौड़े स्थान को झपटने में उतावलपन दिखलाये हो उससे संस्कारों के प्रति सचेत नहीं दिख रहे हो.. देख लो जिस पुल पर से ऑटो गुजर रहा है उसके नीचे धूल उड़ रही है।" वृद्ध के आवाज में चिंता झलक रही थी...।

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...