"क्या आंटी जी! हमारे चढ़ने से आपको तकलीफ़ हो गई.. ? मेरी बिटिया मेरे गोद में है फिर भी आपको दुबकना पड़ा?" ऑटो में चढ़ी चौथी सवारी ने पहले से बैठी महिला से कहा... । चार सवारी बैठी हो और एक किशोरावय बच्ची खड़ी हो तो हवा की गुंजाइश नहीं बचती है।
"क्यों ? मुझे क्यों परेशानी होगी आपकी बच्ची से क्या मैं बांझ दिखाई दे रही हूँ... मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं साथ नहीं होते तो क्या मैं दूसरों के बच्चों से चिढ़ने लगूँ?"
"आंटी जी आप भले ना चिढ़ रही हों परन्तु आपके उम्र के लोग चिढ़ते हैं.. किराए के मकान की तलाश में जाती हूँ तो कहते हैं लोग "कितने बच्चें हैं बताओ?"
"क्यों क्या उन्हें खेवा-खर्ची देनी होती है?"
"वही तो जो जन्म दिया है भरण-पोषण तो वही करेगा न? कुछ लोग होते हैं जिन्हें शोर नहीं पसंद होता है... अब बेटे के इंतजार में चार बेटियाँ हो गई तो क्या उन्हें सड़क पर छोड़ जाएं?"
"पानी खर्च ज्यादा तो बिजली की खपत ज्यादा... महंगाई सुरसा मुख की तरह... दूसरों की बात छोड़ो आज के ज़माने में चार बच्चों की परवरिश क्या आसान है ?" तीसरी सवारी का सवाल था।
"हमारा वंश तो बेटे से ही चलेगा..," मेरी सास सदा कहती रही।"
"उनसे पूछना उनसे पहले की सातवीं पीढ़ी में से किसी का नाम...!"
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