Wednesday 17 December 2014

काश



काश तुममें
काश्मीर की
चाहत ना होती
माँ गोद छिना
बच्चों का घर जख्मी
भू अंक मिला
तुमने क्या पाया
जेहाद व जे हाल
तमन्ना तुम्हारी थी
=
मैं बीएड में पढ़ रही थी तब 
एक कहने सुनने की कक्षा चल रही थी .... 
पूरे कक्षा में हम तीन चार थे जो थोड़े ज्यादा ही गर्म मिजाज के थे। …। 
जिसमें एक लड़का मुसलमान था। .... उसने सुनाया ......
पत्थर पूजन हरि मिले
तो मैं पूजूं पहाड़
या भली चक्की
पीस खाए संसार
= मैं उबल पड़ी और थोड़े जोर से ही चिल्ला बैठी .....
कंकड़ पत्थर चुन के
मुल्ला दिए मस्जिद बना
ता पर चढ़ के मौला बांग दे
बहरा हुआ क्या खुदा
= बहुत वर्षों तक लगता रहा कि बचकानी हरकत थी .....
सबकी घूरती निगाह हमेशा पीछा करती रही ....
आज तो सच में बहरा लगा ख़ुदा
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Wednesday 26 November 2014

ये ……… यूँ ही .....


एक मुक्तक

प्यार का बदला मिले सम्मान कम से कम हक़ तो होता है
मृत सम्वेदनाओं वाले पले आस्तीन में सांप शक तो होता है
अदब-तहज़ीब को भूल कर खुद को ख़ुदा से ऊपर समझे
हाय से ना डरने वाला जेब से नही दिल से रंक तो होता है

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एक क्षणिका

 मौत का आभास नहीं मुझे
लेकिन
जिन्दगी में युद्ध नही
जीने के लिए तो
जीने में मज़ा नही
उबना नही चाहते
बिना समय मारे
मरना नही चाहते।

====

ताँका 

1
बेदर्दी शीत
विग्रही गिरी हारे
व्याकुल होता 
विकंपन झेलता
ओढ़े हिम की घुग्घी।

फिरोजा होती
प्रीत बरसाती स्त्री
शीत की सरि
ड्योढ़ी सजी ममता
अंक नाश समेटे।

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Tuesday 18 November 2014

ओस



1
कांच की मोती
किरणें फोड़ देती
पत्ते लटकी।
===
2
कांच भी साक्ष्य
स्वप्न दुर्वाक्षि टंगा
नभ के आँसू।
===
3
क्यूँ पहचाने
अपने व पराये
स्व दर्द पाये।
===
4
जीवी का रोला
वल्ली खिली कलासी
पंक में पद्म ।

रोला = घमासान युद्ध
कलासी = दो पत्थर या दो लकड़ी के जोड़ के बीच का स्थान
===
5
हिम का झब्बा
काढ़े शीत कशीदा
भू शादी जोड़ा।

रेशम ,कलाबत्तू के तारों का गुच्छा = झब्बा 
silk and silver or gold thread twisted together

===
6
भय से पीला
सूर्य-तल्खी है झेले
नीलाभ सिन्धु ।
===
7
चिप्पी ज्यूँ जोड़े
उधेड़ ही जायेंगे
दिया जो धोखा ।

==============

एतकाद मेहनत पर हो जाता है
वक्ती - मुसीबत हल हो जाता है
हो जाता है खुद पर अगर भरोसा
पसोपेश मुश्तबहा दूर हो जाता है 

==========

Tuesday 11 November 2014

चोका



विषय - सूखे गीले का गिला 

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घटा घरनी 
सूखे गीले का गिला 
कान उमेठूँ
मनुहार सुनोगे 
जाल विछाये
मनोहर दृश्य हो 
भ्रम फैलाये
श्वेत श्याम बादल 
साथ धमके 
बरसे न बरसे
दे उलझन 
दुविधा में सताए
काम बढाये
आँख मिचौली खेले 
घर बाहर 
दौड़ती गृहलक्ष्मी 
वस्त्र सुखाती 
माथापच्ची करती
रेस लगाती 
पल दुरुपयोग
क्रोध बढ़ाये 
स्वयं की आपबीती
भयावहता
मेघ पर बरसे 
दे उलाहना 
नौटंकी तुझे सूझे 
परे तू हट 
बरसो या घिसको
समझूँ तुझे 
ना उलझाओ मुझे
धनक दिखा
काम है निपटाने
सीलन है हटाने 

==


Saturday 8 November 2014

शीत आगमन





1
ठूँठ का मैत्री
वल्लरी का सहारा
मर के जीया।

2
शीत में सरि
प्रीत बरसाती स्त्री
फिरोजा लगे।

3
गरीब खुशियाँ
बारम्बार जलाओ
बुझे दीप को।

4
क्षुधा साधन
ढूंढें गौ संग श्वान
मिलते शिशु।

5
आस बुनती
संस्कार सहेजती
सर्वानन्दी स्त्री।

सर्वानन्दी  = जिसको सभी विषयों में आनंद हो 

6
स्त्री की त्रासदी
स्नेह की आलिंजर
प्रीत की प्यासी।

आलिंजर =  मिटटी का चौड़े मुंह का बर्तन = बड़ा घड़ा


Wednesday 5 November 2014

शीत आगमन




1
साँझ ले आई 
नभ- भेजा सिंधौरा
भू मांग भरी।

2
झटकी बाल
नहाई निशा ज्यूँ ही 
ओस छिटके।

3
पीड़ा मिटती
पाते ही स्नेही-स्पर्श
ओस उम्र सी ।

4
बिज्जु की लड़ी
रजतमय सजी 
नभ की ड्योढ़ी।

5
सुख के तारे
लूता-जाल से घिरे 
तम के तले।

=======

शीत ढिठाई 
स्वर्ण चोरी कर ले
सहमा रवि 
दहकता अंगार
हिम को रास्ता दे दे।

======
लूक सहमे
सूर्य-तन में लीन
शीत का धौंस
ठिठुरी या गुलाबी
मानिनी भू रहती।

*मानिनी =गर्भवती

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चटके रिश्ते
सर्द हवा मिलते
छल – धुंध से
दिल की आग बुझी
बर्फ जमती जाती।

========

Wednesday 22 October 2014

अँधेरा दूसरे घर में है



आज फिर मेरा दिल दहल गया 
और 
उस ॐ शक्ति पर एक सवाल उठ गया मेरे मन में…. 
जहाँ मैं रहती हूँ ....  BTPS के main गेट के सामने चकिया हॉल्ट है .... 
१७ - १८ साल का एक लड़का दिवाली-छठ की छुट्टी में कहीं बाहर से घर आ रहा था 
ठीक गाँव के सामने गाडी धीमी होती देख ,उतावला-पन घर जल्दी पहुँचने की 
ट्रेन से उतरने के क्रम में 6  इंच छोटा हो गया .... ठीक केवल गर्दन कटी 

किसी के घर का दीप बुझ गया 
अँधेरा दूसरे घर में है 

छ महीने से लेकर ……………………………………… जिस उम्र की स्त्री हो 

दहेज कोढ़ हो 

दीपावली हमें जरूर मनानी चाहिए 

हम तो जरूर मनायेंगे 
हम तो शुतुरमुर्ग हैं 

=
नभ भौचक्का
तारे उदास लगे 
दीप जो हँसे।

=
बत्ती की सख्ती
अमा हेकड़ी भूली
अंधेर मिटा।

=
दीप मंसना
तिमिर नष्ट करे
संघ ना सीखे।
=
डरे ना दीप
हथेलियों की छाया
हवा जो चले।
जैसे 
डरे ना बेटी 
पिता कर की छाया
आतंक साया।

=
मिटे न तम
भरा छल का तेल 
बाती बेदम।

=
रागी वैरागी भिक्षुणी तीनों होती है न स्त्री 

जीते जी .... जीते 
पर्स ... हर्ष .... संघर्ष 
...... नारी के जिम्मे।

=
वक्ती गुफ्तगू 
दूर हो मुश्तवहा(संदेह)
घुन्ना से अच्छी।

=
दीन के घर 
तम गुल्लक फूटे
ज्योति बिखरे।

=
मन के अंधे 
ज्ञान-दीप से डरे

अंह में फसे।

=
त्याग के भय
लक्ष्मी के पग पड़े
सासू के ड्योढ़ी
तब दीवाली जमे
घर आँगन सजे।

=
जग का तम
समेटे पेंदी तले 
दीप की आली
तारों से होड़ लेता

भास सूर्य का देता।

==

Sunday 12 October 2014

हाइकु




दीया व बाती
दम्पति का जीवन 
धागा व मोती। 



लौ की लहक 
सीखा दे चहकना
जो ना बहके। 



अमा के घर 
रमा बनी पहुना 
द्युत जमके। 

या

अमा के घर 
पद्मा बनी पहुना 
द्युति दमके। 


संघर्ष धारा
धीर प्लवग पार
जीवन सारा।


मनु पा जाते
स्वर्ण मृग सा लोभ 
जग से छल।


==





Saturday 11 October 2014

मुक्तक




सभी को असीम शुभ कामनायें

शशि मुखरा  / बदली घेर गई / भार्या दहके
डाह के अंधे / शाप भूला ना होगा / धैर्य डहके
सुन के धौंस / छिपा जो मनुहारी / बना वो तोषी
सजा करवा / अचल हो सुहाग / आस चहके

====

Wednesday 1 October 2014

गजब अनुभव



===
कल शाम में मैं जब 
बाहर टहलने निकली तो 
वातावरण में धूप अगरबत्ती 
फूल सबका मिला जुला गंध 
बहुत ही मोहक लगा .... 
मेरी नजरें तलाशने लगी 
लेकिन कहीं पास में 
ना तो कोई माता पंडाल है 
और ना ही कोई मन्दिर है ....

बहेतू हवा
लाई धूनी की गंध
देव द्वार से।

रवि व इंदु 
साँझ में गलबाहीं
नभ भू सिन्धु।

पिस ही गई 
माँ दो बेटों के बीच
ठन ही गई।

क्रीड़क चवा
ढूंढे गुलों का वन
फैलाने रज।

--------
एक बेटे के कलम से खुद को जानना .... 
शब्द नही मिले बताने के लिए ....



Sunday 28 September 2014

हाइकु


1
श्रद्धा व आस
प्रतिमा बने मूर्ति 
आन बसे माँ।

2
त्रिदेवी शक्ति 
विरिंच भी माने माँ 
जग निहाल।

3

4
साँझ सबेरे 
लोहित भू गगन
उबाल मारे




== गगन और भू  ==

स्त्री-पुरुष प्रतीक हैं 
जो रिश्ते के 
बचपन और बुढापे में 
बहुत गर्मजोशी में रहते हैं 
जैसे उबलते रहते हों .... 
इसलिए खून की तरह लाल हैं .... 
बीच अवस्था में तो 
सब बस नून तेल लकड़ी के 
जुगाड़ में ही रहते हैं ....
कूल कूल 
उबलने की फुर्सत कहाँ 
i am right or Wrong??

5
घर गमले 
स्त्री-वट हो बोंजाई
रिश्ते सम्भाले।

6
रफ्फु थे जख्म
यादें खुरच डाले
जलाये चैन।

7
हँस पड़ती
पथ दिखाती ज्योति 
सहमी निशा।

==


Saturday 27 September 2014

यादें




मेरे लिए तो हर दिन त्यौहार होता था ,जब तक मेरी माँ जीवित रहीं ..... छोटा - बडा कोई पर्व हो तो मेरे लिए नये कपडे बनते थे ..... 
और वो कपड़े मेरी माँ ही सिलती थीं .... 
मेरे नखरे दर्जी उठा ही नहीं सकता था .... 
कपड़ा खरीदने से लेकर सिलने तक 
युद्ध-स्तर का एक चुनौती होता था मेरी माँ के लिए ,
क्यूँकि कपडे के दुकान पर मुझे ना तो रंग-डिजाईन और ना कपड़े की क्वालिटी जल्दी पसंद आते थे ..... 
दो चार बार तो बाजार जाना ही जाना पड़ता था .... 
फिर सिलाई की बारी आती तो पोशाक का डिजाइन में भी 
माँ को बहुत तंग करती थी मैं .... 
एक बार दशहरा का ही अवसर था ..... 
मेरे लिए कपडे सिलने थे …… 
लेकिन मेरे स्वभाव के कारण मेरी माँ बहुत परेशान हो चुकीं थीं ..... 
उन्होंने बहुत मनाने की कोशिश की 
लेकिन मेरे नखरे कम ही नहीं हो रहे थे ..... 
समय रुका नहीं रहा और दशहरा शुरू भी हो गया 
तब मेरी जिद थोड़ी कम हुई तब तक माँ शायद कुछ निर्णय ले चुकी थीं उन्होंने सिलने से साफ इनकार कर दिया ...
अब पसीना छूटने की बारी मेरी थी ..... बहुत जिद के बाद भी वे सिलने के लिए तैयार नहीं हुईं .... उनका कहना था ,इतने नखरे हैं तो खुद सील कर देखो ..... 
मुझे नये कपड़े पहनने ही थे .... सहेलियों के बीच प्रतिष्ठा की बात थी .... 
तब स्लैक्स का जमाना था इसलिए केवल उपर के टॉप सिलने थे ..... पहली बार कैंची कपड़े और मशीन से वास्ता पडा मेरा और अब बारी मेरी माँ के चौकने की थी ..... 
लेकिन उस सिलाई के दौरान मेरे नखरे जाते रहे जिद के चीथड़े जो उड़े 
अब ना तो माँ रहीं और ना मेरी जिद। ....... 
==
अधीर बन
बेबाकी चुन्नी ओढे
अभिलाषा हँसती
देहरी लाँघे 
मचली पथ पाने
शासन डोर छोड़े
==
मंदिर की सीढियां चढ़ नहीं सकी
मन मैले हो रखे थे दीप जला नहीं सकी

== तो क्या हुआ कोशिश में रही 
किसी के आँखों की आँसू ना बनूँ 
==

Thursday 25 September 2014

जीवन


एक जीवन में
एक बार ही फलता है
कई दर्जन फल देता है
क्यूँ नहीं मनु सीखता है
जीवन एक बार ही मिलता है



सुखी अकेला
रह नहीं सकता 
केला हूँ मैं।


1

तम गहरी
उम्मीदें बढ़ा जाती
आ रहा भोर।

2

धैर्य ले साथ 
दुश्वारियों से भिड़े 
मंगल सधे।

3

छिटकी मिटटी
धारा की कद बढ़ी
सिसकी छूटी।

4

माया की खाद
हृष्ट पुष्ट हो जाता
आस फसल।

5

छीपी है राका
तारे चन्द्र के छींट
नभ छीबर।

छीबर = वो कपड़ा जिस पर छीट डाला गया
राका=पूर्णिमा की रात
छीपी = छींट डालने वाला कारीगर

6

थाती मौरुसी
पत्नी मौज करती
भिक्षा माँ मांगे।

7

फेरा में पड़ा
निशा-कारा में बंद
रवि बेचारा। 





Tuesday 16 September 2014

हाइकु - मुक्तक








1

पलट देखो .... नाइन और सिक्स .... जिन्दगी रूप
हर्ष विषाद … दो हो एक हो जाए .... बातें चिद्रूप
उलट सीखो ..... छत्तीस ,तिरसठ .... आत्मा जो चाहे
पिच्छिल मनु .... उल्टा सोच के संगी .... तम की कूप

भू स्वर्ग हारा
डल खो दिया बल
जल प्रलय। 

2

गृह बुजुर्ग / थके बोझ उठाये / हरि में ध्यान 
वय आहुति / पकी वंश फसल / गांठ में ज्ञान
कार्य में दक्ष / जीवन का आधार / सकल स्तंभ
जीवन संध्या /स्नेह की प्रतिमूर्ति / चाहे सम्मान 

चन्द्र के दाग
धोने दौड़े उर्मियाँ 
पूनो की रात। 




Friday 5 September 2014

त्रिवेणी






जापानी 'हाइकु' में जहां तीन पंक्तियों में क्रमानुसार 5+7+5 कुल मिलाकर केवल 17 वर्णों में विचार अंकित करने की बाध्यता है, वहीं त्रिवेणी विधा में ऐसी कोई बाघ्यता न होकर तीन लयवद्ध पंक्तियों में विचार व्यक्त करने होते हैं। इस प्रकार तीन पक्तियों की साम्यता के अतिरिक्त इन दोनों विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है।
====
वैसे गुलज़ार साहब ने इसके संबंध में अपनी त्रिवेणी संग्रह रचना त्रिवेणी के प्रकाशन के अवसर पर इसकी परिभाषा इस प्रकार दी थी-

........शुरू शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी - त्रिवेणी नाम इसीलिए दिया था कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं और एक ख़्याल, एक शेर को मुकम्मल करते हैं लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है - सरस्वती जो गुप्त है नज़र नहीं आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा हुआ है । ----गुलज़ार


त्रिवेणी कैसे लिखें---
पहले दो मिसरे छल्ले जैसे हो। एक दूसरे से मिलते हुए। तीसरा मिसरा नग़ की तरह जो बिलकुल फिट बैठे छल्ले में।

शब्द का दुहराव ना हो तो बेहतर लगेगा।

काफिया रदीफ़ और बहर से मुक्त हो सकते हैं पहले दो मिसरे लेकिन मात्रा सटीक हों।2-4 मात्रा इधर उधर हों लेकिन शे'र की शक्ल में हो। तीसरा मिसरा स्वतंत्र रहेगा।

कुछ भी लिखें लेकिन भाव स्पष्ट हो।

==========

1

चातक-चकोर को मदमस्त होते भी सुना है !
ज्वार-भाटे को उसे देख उफनते भी देखा है !


यूँ ही नहीं होता माशूकों को चाँद होने का गुमाँ !!

2

रब एक पलड़े पर ढेर सारे गम रख देता है !
दूसरे पलड़े पर छोटी सी ख़ुशी रख देता है !


महिमा तुलसी के पत्ते के समान हुई !!

3

टोकने वाले बहुत मिले राहों के गलियारों में !
जिन्हें गुमान था कि वही सयाने हैं टोली में !


कामयाबी पर होड़ में खड़े दे रहे बधाई मुझे !!


==


साथ हमारे
विध्वंस या निर्माण

गुरु के हाथ।

====


Wednesday 3 September 2014

हाइकु - मुक्तक




निशा का घन
पल सब बदले
भोर भास से। 

क्षीण व पीन
चन्द्र तृप्त करता
मृत अमृत।

जाल जो डाला
पल के आंच फसे
स्मृति के सिंधु।

माया की कश्ती
इच्छा जाल उलझी 

मोह सिंधु में।

वैरागी होना 
माया जाल बिसरा

 स्वयं को पाना।




लोभ प्रबल / भ्रमति है मस्तके  / लब्धा का साया
ताने वितान / कष्टों का आवरण / नैराश्य लाया 
डरे वियोगी / ईर्ष्या में क्रोध संग / वितृप्त मनु
काया से माया / पीर से नीर बहे / बबाल छाया।



Friday 29 August 2014

29 अगस्त को हिंदी तिथि से भादो के शुक्ल-पक्ष के चतुर्थी






गूगल को धन्यवाद इस उपहार के लिए 

आप सबको गणेशोत्सव के लिए असीम शुभ कामनायें

सुखद संजोग है कि आज मेरा जन्मदिन है 
मेरा जन्म 29 अगस्त को हिंदी तिथि से 
भादो के शुक्ल-पक्ष के चतुर्थी को ही हुआ था 

Blog पर आने में कुछ विलम्ब हुआ क्यों कि
फेसबुक पर 
सबके शुभकामनायें 
यहाँ लाना चाहती थी 
लेकिन कुछ ही ला पाई 
सब लाती तो……
लेकिन सबके दिए शुभकामनाओं से अभिभूत हो अनुगृहित हूँ 
और सभी को बहुत बहुत धन्यवाद 



A mother is a friend,
Who will stay by your side.
A loyal companion,
A teacher and guide.

A warmhearted listener,
Whenever you are blue.
And ever and always,
A guardian to us.

A mother can strengthen,
Console and inspire.
She is someone to honour,
To love and admire.

You are all of these things,
And even more, too.
And that's why Oh mother,
You are loved more than anyone.

A very Happy Birthday to a wonderful Mother! (Vibha Shrivastava
 — Maya Shenoy Shrivastava के साथ विशेष महसूस कर रहा/रही है.


KIND ATTN-ALL ADDEVASIYO
AAJ 29TH AUG 2014 - VIBHA DI KA JANAMDIN HAI..
I WOULD LIKE TO TAKE ALL THE OPPORTUNITY TO WISH MULTI TALENTED MULTI RELATION HOLDER LOVELY VIBHA DI..
HAPPY BIRTHDAY TO YOU.. HAPPY BIRTHDAY TO YOU.. HAPPY BIRTHDAY TO DEAR VIBHA DI.. HAPPY BIRTHDAY TO YOU..
आप सभी को स्नेहाशीष देती हो.. आपके आशीष का खजाना बना रहे बढ़ता रहे..
असीम शुभकामनाएँ - भाई की एवं सभी अड्डेवासियों की..
Neh Sunita न कुछ कहना है 
न कुछ लेना है 
न कुछ देना है 
बस दिल से दिल 
की बात हुयी है 
बातो में मुलाकात हुयी है 
एक दूजे से हिलमिल ऐसे 
जन्मो से हो बिछड़े जैसे 
आरजू यही है 
यही प्रार्थना है 
खुशियों से भरे
दामन तुम्हारा
वय लकीरे न 
छूने पाए तुम्हे 
छा जाओ नभ पर
भोर किरण सी 
ज्योति और ज्वाला 
सब तुझमे समाहित 
नमन माँ तुमको 
ढेरो बधाई



Abhishek Jain जन्मदिन की ढेर सारी बधाई एवं अशेष मंगलकामनाए विभा दी
Ram Niwas Banyala बधाई
सफल हो जीवन तुम्हारा
हर मंगल कामना पूरी हो |

नीति का ना छूटे दामन
भले चाह कोई अधूरी हो
मेरी भी हर दुआ मिला ले
जहां-तहां जितना जरूरी हो |
आंखों से रहें ओझल बेशक
दिल से कभी ना दूरी हो |



आज यही है सुबह सुबह


Siddharth Vallabh चरण स्पर्श माते। 
हमको ग़ालिब ने दुआ दी थी
तुम सलामत रहो हज़ारों साल


ये साल सँभलते नहीं मुझसे ...आप रख लो। 

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं !!
आई है सुबह वो रोशनी लेके
जैसे नए जोश की नयी किरण चमके
विश्वास की लौ सदा जला के रखना
देगी अंधेरों में रास्ता दिया बनके ।
जन्मदिन की हार्दिक बधाई दी   Vibha Shrivastava di


चाँद है रथ /बिखेरती चाँदनी/खुशियां/ अपलक नैं..
Happy birthday Vibha Shrivastava dii



अले तेली क ..... इ त बहुते निमन बा
Vibha Shrivastava की फ़ोटो.







विभा दीदी का जन्मदिन मुबारक हो इस हाइकु समूह के साथ
वि= विमल मन , नित वंदनीय तू , शक्ति स्वरूपा
भा= भाषा सरल , सुधा रस सिक्त है , आदरणीया
श्री= श्री युक्त शोभा , परम सुहावन , मनभावन
वा= वागीश हिया , मातृत्व सुकोमल , निर्मल मन
स्त= स्तवन योग्य , नित स्मरणीय हो , देवी दुर्धर्ष
व= वरद हस्त , करूणामयी देवी , मेरा नमन
नापसंदनापसंद · 
प्यारी विभा दीदी जन्मदिवस की दिल से शुभ कामनाएँ दीदी हमारी सबके दिलो पर राज करती देती हैं खुशियाँ बहुत सबके गम बाँट लेती बस प्रेम चाहे सबसे सबपर प्यार लुटाती हैं जन्मदिवस आज इनका ईश्वर करे हजार बरस तक जिये दीदी हमारी क्या दूँ तोहफा तुमको दीदी तुमको मेरी उम्र लग जाए दीदी जीतेन्द्र "नील"





दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...