Wednesday 15 August 2018

"सीख"




बे-परवाही शौक है या हो आदत
कर देती स्वाभिमान को आहत
अनवधान इतने तो नहीं नादान
कैसे बना जा सकता था आखत

किसी जमाने में अंग्रेजों को काला झंडा लहरा या काली पट्टी हाथों में बाँध विरोध दर्ज किया गया होगा... देश स्वतंत्र होने के बाद पहली बार अपने ही दल के नेता को , अपने ही दल के कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध का सामना  करना पड़ा... 12-08-2018 इतिहास में दर्ज हुआ होगा... रक्सौल में भाजपा के संजय जायसवाल को उनके ही कार्यकर्ताओं ने काली पट्टी -काले झंडे दिखलाकर विरोध जताया... क्रोध फूटने का आधार था ... रक्सौल की सड़कें... गड्ढे में सड़क खोजना बेहद कठिन है ,रक्सौल के हर गली में... भारत-नेपाल का कांकड़-रोही है,"रक्सौल-बीरगंज"... 11 अगस्‍त 1942 की याद दिमाग से निकल गई या जान-बूझ कर याद नहीं रखी , यही सोचती रक्सौल से बीरगंज 11 अगस्त 2018 को जाते समय ,खुद शहीद होते-होते बची... नेपाल का कानून है कि ट्रक से किसी को हल्की खरोंच भी आ जाये तो ट्रक वाले को उस व्यक्ति की हत्या कर देना है... दो सच्ची घटना से दिल दहल उठा... एक लड़का साइकिल पर सवार रक्सौल से बीरगंज जाते समय में ट्रक से टकरा गया... साइकिल सवार को बस हल्की सी खरोंच लगी वह हल्के हाथों से धूल साफ कर ही रहा था कि ट्रक वापस लौट उसे उड़ाता हुआ निकल गया... थोड़ी ही दूर आगे बढ़ने पर दूसरा लड़का मोटरसाइकिल पर सवार ट्रक से टकरा गया... मोटरसाइकिल उसके पैरों पर ही गिरने से उसके पैर की हड्डी शायद टूट गई थी, क्यों कि वह उठ नहीं पा रहा था लेकिन उसे अपने मौत की खबर थी वह चिल्ला रहा था... मुझे मत मारो, मुझे मत मारो... उसकी सुनने वाला कौन था... ट्रक वापस लौट उसे सफल कुचलता हुआ भीड़ के कब्जे में आ गया लेकिन उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सका... 
         कैसा कानून है... वहाँ के लोगों ने बताया कि किसी बस या ट्रक आदि से टकराने का नहीं क्योंकि अपंगता में उसे जीवन भर खर्च उठाना पड़ेगा , जबकि स्वर्ग भेजने पर या तो गवाही नहीं होने पर कुछ नहीं या एकबार कुछ हल्की रकम। इसलिए ये बैक गियर से बच के रहने का

Saturday 4 August 2018

"षड़यंत्र"



        निलय की मृत्यु के पश्चात उसके बॉस ने उसकी पत्नी निम्मी के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हुए कहा , "आप जब सामान्य स्थिति में आ जाएं तो निलय के स्थान पर काम कर सकती हैं और हाँ! उनकी भविष्यनिधि भी आपको दे दी जाएगी।"

                      यह बात सुनकर निम्मी के सास-ससुर , ननद-ननदोई और देवर तरह-तरह के मुँह बनाने लगे और आपस में बातचीत करते हुए कहने लगे ,"क्यों न इसे पागल घोषित करके भविष्यनिधि हथिया ली जाए और निलय के स्थान पर उसके देवर को रखवा दिया जाए।"

        बगल के कमरे में बैठी निम्मी सब सुन रही थी और यह सब सुनकर वह सावधान हो गयी और अकस्मात उसने अपनी अटैची तैयार की और घर से बाहर निकलते हुए अपने सास-श्वसुर से कहा, "मैं मायके जा रही हूँ... मुझे बुलाने मत आइएगा... मैं स्वयं ही उचित समय पर आ जाऊँगी।"

          "ये तुम कैसी बातें कर रही हो बेटी ?" श्वसुर ने पूछा
"पागल लोग कैसी बातें किया करते हैं... मैं पागल हूँ न..."  ये संवाद सुनकर सब एक दूसरे के चेहरे देखने लगे और निम्मी अपनी राह बढ़ गयी।


दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...