Saturday 30 November 2013

बैंगलोर की यात्रा


बैंगलोर की यात्रा सुखद रही

Swati Evergreen और मैं 






Maya Shenoy, भी 


इसका सत्ताइसा था 



भतीजा बहु की बेटी 





गेम ख़त्म था … माया सोच रही है .... वो हारी कैसे ....

मैं तो बेटा को हार सीखाने के लिए सीखी थी
आज एक बार माया को जीत सीखाने में काम दे गया 

माया को एक टूर्नामेंट में भाग लेना है और 
खेलने में माहिर है नहीं और मैं जबसे गई 
उसे सीखा कर खेलने लायक बनाना चाह रही थी 

बिहार में दाल भरी पूरी
कैसे बनती है माँ
आप आज आराम कर लो
आज मैं बना लेती हूँ नाश्ता 
कल आप मुझे पूरी बनाना सीखा देना
उसे ही पूरण पोली भी कहते है क्या माँ
बिहार की दाल भरी पूरी के लिए 
जो दाल का मिश्रण तैयार करते हैं
उसमें गुड नहीं होता , लेकिन पूर्ण पोली के दाल के मिश्रण में गुड होता है
अच्छा अच्छा अब समझ गई 
कल सीख कर खाना है
चेहरे पर उत्सुकता की गजब की चमक
दुसरे दिन तैयारी को बहुत ध्यान से देखती रही , हाँथ बटाती रही 
दाल के मिश्रण को test करने के लिए थोडा ,
उसके मुंह में डाली तो एक बच्ची की तरह .............
थोडा सा और देगी माँ ...... शायद पहले बहु का संकोच 
रोक रखा हो पर एक बच्ची को कैसा संकोच .... 
माँ ये तो ऐसे ही अच्छा लग रहा है जैसे सब खा जाऊ ......
बहुत प्यारी बच्ची है 
शीशे की तरह पारदर्शी 
छल कपट से कोसो दूर 
जो दिल में होता है वही
आँखों और चेहरे पर 
साफ साफ झलकता है
उससे तो किसी को प्यार हो जाये
She say 
Mey bohot lucky hoon.. Dil se love you maa.... Rani beti  <३ <3


रोने का मन कर रहा है माँ
क्ययूँ 
इतना कहना था कि
जोर जोर से रोने लगी
और रोते रोते बोली
जाना जरूरी है
नहीं न जाइये 
साथ चलेंगे
या आप यही रहिये ना
कैसे रह जाऊ
जाना इसलिए जरूरी है
कि सबको बुलाई हूँ तो
वहाँ की व्यवस्था देखनी है
बहुत जल्द फिर तो मिल रहे है
वो नहीं जानती अभी आप नहीं जाओ
उसका रोना देख 
मैं भी बिलख पड़ी
बेटी के रूप में बिलखने का
मौका नहीं मिला
बेटी की माँ बनी नहीं
जो बिछुड़ने का मौका मिलता ,
बिलखने का ,बिखरने का मौका
एक बच्ची की सास को मिला .....

She Say
Woh pal bohot mushkil tha.. Rok nahi payi apne aap ko.....


इस से नायाब तौहफा कोई दूसरा
हो ही नहीं सकता है ।

रानी बेटी बनाई है ......

माया का हिंदी सीखने की वज़ह थी
माँ से गप्प कर सके
और
माँ का लिखा पढ़ सके .....

मेरे लिए कहीं और छपने से बड़ा सुख है
आश्चर्य भी हुआ कि
माया के सोच में ये आया .....

माँ के लिए गर्व कि बात है

LOve U Maya Shenoy

She Say
Maaa.. Feeling proud.. Bohot saalon ke baad 
hindi mey likhne ki ek choti si koshish 

&
maa love you for making me feel special




Sunday 10 November 2013

मुक्तक

मुक्तक की परिभाषा अभी समझ रही हूँ 

दो मुक्तक 

1

"कलम यहाँ तक ले आया 
नाज़ कलम पे हो आया 
दोस्त बेहतरीन मिले 
इश्क कलम से हो आया। "



2
" अन्धविश्वास बना सका शक्की 
 खुद पर करो यक़ीन , जीत पक्की
तदबीर बदल देता है तक़दीर
किस्मत भी सुधार सकती चक्की। "

~~
क्या सही है ??

Thursday 7 November 2013

ना समझ कौन





मुझसे बेहतर मुझे ,
कौन जान सका है …। 
मेरे बारे कौन ,
क्या कहता है 
क्या फर्क पड़ता है .....
मैं जानती हूँ 
मैं क्या हूँ .....




Lessons Learned In Life thank U

कोई ना समझ सके मुझे तो
ना समझ कौन ??
मैं तो नहीं ....

मेरी तलाश
अपूर्ण ही सही
मैं संतुष्ट हूँ ....

स्वाभिमान को
अभिमान समझना
भूल किसकी है
मेरी तो नहीं .....

गलत और सही का
मापदंड कौन तय करे
मेरी नज़र से जो सही
  तुम्हारी नज़र में वो गलत
फिर गलत कौन
मैं तो नहीं

~~





Monday 4 November 2013

भाई दूज






कथा -

भगवान सूर्यदेव की पत्नी का नाम छाया था ....  उसकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ .... यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थी .... वह उससे बराबर निवेदन करती थी कि वह उसके घर आकर भोजन करे ... लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त होने के कारण यमुना की बात को टाल देते थे .... कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन करने के लिए बुलाया .... बहन के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया ...  भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष विभोर होकर भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया ...  इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा ... बहन ने भाई से कहा - आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहेगा ....  यमराज ने अपनी बहन यमुना को मनचाहा वर दिया और अमूल्य वस्त्र, आभुषण देकर यमपुरी को चले गये .... तब से ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके , पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं , उन्हें यम का भय नहीं रहता ....

मैं दीवाली के दूसरे दिन सबरे सबेरे बासी मुंह गोधन बनाती हूँ ....
गाय के गोबर से चार कोने का घर बनाती हूँ .... जो उत्तर-दक्खिन का होता है .… जिसके द्वार पर द्वारपाल भी होता है … घर के अंदर यम-यमनी होते हैं। … घर के अंदर ,चाँद सूरज ,सांप बिच्छू ,चूल्हा सिलवट ,जितने भाई उतने खड़ाऊं ,अपना सिन्होरा ,कंघी ,ओखल-मूसल यानि जितने सामान बना सकूँ ,बनाती हूँ ....


भाई-दूज के दिन सुबह बासी मुंह ही स्नान कर पहले अपने सारे भाई को बद्दुआ देती हूँ कि वे अल्पायु हों .... पूजा थाली में बजड़ी ,मिठाई ,फूल ,जल ,रेंगनी का कांटा ,अक्षत ,रोली ,सिन्होरा रहता है ....
फिर गोधन के पास जाकर यम यमिनि की पूजा करती हूँ .... पूजा क्रम में यम के सीने पर कालिख लगा हड़िया या नया ईंटा और मूसल को रखती हूँ … काजल बनाती हूँ … कच्चे रुई से माला बनाती हूँ ....
मूसल को यम के सीने से पांच बार उठाती और सुलाती हूँ और साथ में बोलती हूँ ....

उठह देव उठह
सुतल भइल छह मास
कुँआर ना बिआहल जाए
बिआहल ना ससुराल जाए ....

 … फिर मूसल से यम के सीने पर कालिख लगा
हड़िया या नया ईंटा को कूटती हूँ .... और बोलती हूँ ...

अउरा कुटी लेअ
बउरा कुटी लेअ
कुटी लेअ यम के करेज

यम को कूटने के बाद , उनके घर को पांच बार ,
एक ओर से ही इस पार से उस पार लांघती हूँ .…




फिर शुरू करती हूँ भाई को जिलाने का काम ....
रेंगनी के काटें को जीभ पर गड़ाते हुए बोलती हूँ
भाई का आयु बढे मेरे मुंह में कांटा गड़े .…

जिस जल से पूजा की रहती हूँ उसे पांच बार पीती हूँ ....

पिलाने वाली पूछती है क्या पी  रही हूँ ?
मैं  बोलती हूँ
भाई का रोग बलाय  .... यम का खून ....
बजड़ी और मिठाई भाई को खिलाती हूँ ...
जो भाई नहीं होते उन्हें पूर्णिमा तक खिलाया जा सकता है .......








अभिधावक हो सोचो
सुविधा अनियत है
आजादी ना बेचो

~~

सम शुक्ल चन्द्र बढ़ो
तिलक यही बोले
उन्नति शिखर बढ़ो

~~

भवबन्धन में खोता
बहना भाई का
शुचि रिश्ता है होता

~~

ऐसे ही एक माहिया

ठग विधि का विजित रसिक
दुरुत्तर अधर्मी
तुष्ट तुलाकूट हसिक

~~

बीती दीवाली



हाइकु {५७५}

रौशनी लाई 
खुशियों की सौगात 
बीती दीवाली 
~~



जो साड़ी - ब्लाउज , मैं पहनी हुई हूँ
वो मेरी खुद की बनाई हुई है ....




तांका {५७५७७}

बताशे मिले 
गुनगुनाते हुए 
खिलखिलाते 
खील गले उतारे 
दीप है अली मेरी 

~~

वन्दनवार
लज्जत ए इजहार
रौशन इश्क
हठी इस्तकबाल 
लिखा देहरी पर 

~~

Friday 1 November 2013

हाइकु + सेदोका






हाइकु {५७५}

1

पथिकार है 
हरा दुर्मद तम
अतृष्ण दीप। 
~~
2

तमोघ्न बना 
हराया तमोभूत 
नन्हा दीपक। 
~~
3
रंग पुताई
दिल दिमाग की हो
तभी दीवाली।
~~
घर रंग हो
निकालते दिवाला
   भगाते लक्ष्मी। :P
~~
4
निकली आह
निर्धन कृश काया
भष्म दीवाली।

~~
5
पटाखा बम
फैलाता प्रदुषण
फले बर्बादी।
~~

एक सेदोका {५७७५७७}

तमिस्रा मिटा
प्रकाशमान होता
सच्चा दीपक वही
नव्य साहस
संचरण करता
विकल्प सूर्य का हो

~~





दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...