Monday 17 July 2017

अपना-पराया



सीलन लग बर्बाद ना हो जाएँ यादगार लम्हें... बरसात खत्म होने को ही है... चलो आज सफाई कर ही दी जाए... बुदबुदाती विभा अलमीरा से एलबम निकाल पलंग पर फैला दी... पास ही खड़ा बेटा एलबम से एक तस्वीर दिखाता पूछा,- "माँ! सुनील मामा के संग किनकी तस्वीर है "
"कहाँ हो? अजी सुनती हो... तुम्हारे ललन भैया का फोन आया आज... "
"यही हूँ... क्या बात हुई ललन भैया से... उन्हें अपने घर बुला लेते..."
"उनका बेटा बरौनी थर्मल में ट्रेनिंग करना चाहता है..."
"वाह! अच्छी बात... फोर्थ इयर शुरू हो गया भतीजे के इंजीनियरिंग का... क्या बोले आप?"
"बोल दिया हूँ पता कर सूचित करूँगा एक दो दिन में जब फिर उनका फोन आयेगा तो..."
"कोशिश कर ट्रेनिंग शुरू करवा ही देना है..."
"रहेगा कहाँ एक महीने तक...? चार सप्ताह की ट्रेनिंग होगी...!"
"मेरे साथ... हमारे घर में..."
"हमारे साथ कैसे रहेगा?...तुम्हारा सगा भतीजा होता तो और बात होती... "
सगा... हथौड़े की ठक-ठक से अतीत के पत्थर खिसकने लगे...
"मैं यहाँ ? कैसे आ गया ? अस्पताल के कमरे में खुद को पाकर सुनील का सवाल गूँजा।
"मैं ले आया। तुझे कुछ याद भी है ! तू कल शाम से अब तक बेहोश था। क्या रे हम अब इतने पराये हो गये ? चाचा/तुम्हारे पिता के बदली होकर दूसरे शहर जाने से... हम पड़ोसी भी नहीं रहे... !
"अरे! ऐसी कोई बात नहीं ललन... चल... मेरे हॉस्टल चलकर बात करते हैं..."
"हॉस्टल! तेरे हॉस्टल कहाँ... तुम्हारा सारा सामान हमारे घर में शिफ्ट हो गया है..."
"अरे! तुमलोग पहले भी बोले थे... लेकिन तू जानता है! अभी मेरी पढ़ाई पूरी करनी बाकी है तीन साल की जिसके कारण पिता के संग ना जाकर हॉस्टल में रहने का निर्णय हुआ था... फिर नौकरी की तलाश... ?"
"सब जानता हूँ... बचपन से पड़ोसी रहे हैं... हमारे बीच कुछ दुराव-छिपाव नहीं रहा है... तू जान ले जब तक तू इस शहर में है, हमारे घर में रहेगा पूरे हक़ और सम्मान से... "


Saturday 8 July 2017

"सकूँ"



सुबह से निकली गोधुलि लौट रही थी... थकान से जी हलकान हो रहा था... ज्यों ज्यों घर क़रीब आता जा रहा था त्यों त्यों रात्रि भोजन याद आ रहा था साथ ही पकाना याद आ रहा था व साथ याद आ रहा था कि घर में सब्ज़ी के नाम पर ऐसा कुछ नहीं है जो पका सके... शुक्रवार की रात से सोमवार की सुबह तक की चिंता ने विभा को सब्ज़ी के दुकान पर ला खड़ा किया... सब्जी और खरीदार से दुकान भरा पड़ा था... अतीत की बातें थी "सब्जी का मौसम होना"... कई महिलाएँ सब्ज़ी ले रही थी और बातों में मशगुल भी...
एक स्त्री बोली,-"इतना सब लेने के बाद भी, चिंता यह है कि अभी घर जाकर क्या पकाएँगे..."
दूसरी बोली,-सुबह तो कई सब्जियां बना लो... शाम में तो एक मन तो कुछ पकाने का नहीं करता है दूजे ये चिंता पकाए क्या!"
तीसरी बोली,-"बिलकुल सच कहा आपने! मेहनत कर कुछ पकाओ भी तो खाने वाले यही कहते हैं, 'हुँन्हहहह! यही पकाया...
मिला जुला एक अट्टहास गूँजा और विभा टेंशन से टशन में हुई...

Saturday 1 July 2017

अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस

#हिंदी_ब्लॉगिंग

ब्लॉग से सफर हुआ था ..... जारी भी है...

सुखद अनुभति ..... शब्दों की कमी

 चित्र में ये शामिल हो सकता है: 4 लोग, मुस्कुराते लोग, लोग बैठ रहे हैं, लोग खड़े हैं और अंदर




 चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, मुस्कुराते लोग, लोग खड़े हैं और अंदरचित्र में ये शामिल हो सकता है: 3 लोग, मुस्कुराते लोग

http://antrashabdshakti.com/?p=2421 पहले अंक का हिस्सा बनना सुखद अनुभूति होती है








दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...