Sunday 29 September 2013

क्रमश:




कालका से शिमला जाते समय इस सुबह से मुलाकात हुई



आँख मिचौली सूर्य , चीर का पेड़
और



 ट्रेन और मैं





Shilon Resort Kufri





















Shilon Resort Kufri   Shilon Bagh  से दिखता खाड़ी-पहाड़ी
















खुश हैं मिल
हम हैं सहेलियाँ
मिलती यहीं
~~
IEI Shimla
Shilon Resort Near Kufri ....

एक तरफ दो बैठीं हैं ,उधर से
पहली गुजरात से , पंजाब से  , m p से , बिहारी मैं , देहारादून से  , बंगाल से , हरियाणा से
पूरे देश से प्रतिनिधि आते हैं .....



ये कुफ़री का peak point है ....





जहां केवल घोड़े से ही जा सकते हैं , क्यूंकि  रास्ता पतली सी गली है, जो कीचड़ से दलदल है .... पैदल नहीं जा सकते ना ....... आए हैं, तो देखना भी जरूरी था ...



गिरने के डर से आधे घंटे का सफर सावधान रहने में कट गया .... रास्ते का फोटो नहीं लेने का अफसोस बाद में हुआ .....

The India Institution of Engineers (IEI) का सितंबर का काउंसिल मीटिंग बहुत महत्वपूर्ण होता है .....क्यूँ कि इस मीटिंग में सारे काउंसिल मेम्बर मिल कर वोटिंग से प्रेसीडेंट का चुनाव करते हैं .... जिन्हें एक साल के लिए कार्य संभालना होता है
इस बार के ये हैं The India Institution of Engineers (IEI) के नए प्रेसीडेंट ......


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बहुत-बहुत बधाई
और
हार्दिक शुभकामनायें



https://www.facebook.com/photo.php?v=518516328243451&notif_t=video_processed

क्रमश:

Saturday 21 September 2013

भारत



https://www.facebook.com/groups/tasvironkashahar/

के लिये कुछ तस्वीर यादो के पन्ने से निकली
तो ब्लॉग पर भी संजो ली

https://www.facebook.com/groups/tasvironkashahar/199154203598527/?comment_id=199159350264679&notif_t=group_comment




आओ न मौसी समुंदर में मस्ती करें
माँ की साड़ी पर जो पेंटिंग है वो माँ खुद बनाई है


Vibha Shrivastava's photo.




लो देखो भारत का विशाल सागर 



रेत से बनी सुंदरी समुंदर किनारे देख लो भारत में 


ये भी रेत से बने 
 जय भोले भण्डारी  
बता दो भारत कही से भी 
किसी से भी कम नहीं है 




ये तस्वीर है सिमरिया घाट(बरौनी के समीप) की 
जब कोई इंसान अपने शरीर का त्याग कर देता है 
तो उसके परिजन ,यहाँ उसके मिट्टी को 
मिट्टी में मिला ,गंगा जी में प्रवाहित कर देते हैं 


गला तर कर लूँ 


आ जूं निकाल दूँ ...


कल की शाम Bangalore की 


कल की ही शाम Barauni की


आज का चाँद 
 रहा समानांतर
हो मेरे साथ 

बेटा का बनाया खाना देख मैं भी अचंभित रह जाती हूँ  
समय सब सिखला देता है 




इत्ती बड़ी सत्तू भरी पूरी 
मैं कभी नहीं बना पाई 
ये मेरे बेटे ने बनाई 


आइये आप भी खाएं 
बेटे की पकाई हुई है 



इससे सुंदर कोई तस्वीर हो सकती है 
53 साल का बेटा का जन्मदिन मनाते माता-पिता
कौन खुशनसीब ज्यादा था उस वक़्त 
वक़्त थमता क्यूँ नहीं  


IEI के Annual Congress में पूरे देश के engineers आते हैं 
जो IEI के मेम्बर होने चाहिए और 
साथ में विदेश से भी वे आते हैं 
जो The Institution of Engineers के चेरमेन हों.....
मेरे पति उस समय(2009)
 IEI( The Institution of Engineers (INDIA) Bihar State Center के चेरमेन थे 
और IEI का Annual Congress था (09 से 16 दिसम्बर 2009) मंगलोर में .... 
वही श्री लंका से आये The Institution of Engineers के चेरमेन के साथ, 
उनकी पत्नी से मुलाकात हुई ..... 
तारीफ की बात 
न उन्हे हिन्दी बोलना समझना आता था और 
न मैं उनसे परिचित थी कि कोई बात होती .... 
लेकिन साथ रहना मिलना खाना एक साथ होता था( 09 से 16 दिसम्बर 2009 तक)
इसी बीच वे केवल मेरी चूड़ियों से आकर्षित होती रही 
क्यूँ कि वे सब साड़ियों के मैचिंग और पूरे भरे-भरे हांथ होते थे ....
और एक दिन वे एक दुभाषिए के साथ मेरे पास आई 
और मेरी चूड़ियों की प्रशंसा की 
तब मैं उन्हे अपने चूड़ियों को उन्हे भेट स्वरूप दी...





लंका की नारी 
हंसी वजह खुशी
मैचिंग चूड़ी 
~~


हम हिंदुस्तानी इसी वजह से तो दुसरे के दिल में जगह बना लेते हैं 


अमूल्य हंसी 
रावण की धरती
पर ही गई 

(*_*)

~~


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Thursday 19 September 2013

श्राद्ध



ब्लॉग पर श्राद्ध के बारे में लिख ही रही थी
कि अम्मा (रश्मि जी की अम्मा  ) की देहांत की खबर मिली
और मेरी लेखनी रुक गई ....
 जो लिखना चाहती थी वो लिख नहीं सकी
पूरा दिन लिखने का मन ही नहीं किया
माँ की मौत के बाद जो जगह खाली होती है
वो तो कोई नहीं भर सकता है ये मुझ से बेहतर कौन जान सकता है
आज चौतीस साल से तड़प में जी रही हूँ ...

इसलिए आज फिर वही से बात शुरू करती हूँ ....
कुछ भी राय-विचार देने के लिए
खुद उस अनुभव से गुजरना जरूरी होता है ....

कुछ वर्ष पहले (2006) मेरे सास-ससुर की भी इच्छा हुई कि
अपने पुर्वजो का पिंड दान कर दिया जाये क्यूँ कि वे धीरे-धीरे अस्वस्थ्य हो रहे थे
गया में इस समय बहुत भीड़ होती है ,देश के अलावे विदेश से भी लोग आते हैं
उनकी इच्छा जान कर ,
मैं और मेरे पति के साथ सास-ससुर गया गए
वहाँ की भीड़ देख कर सब घबडा गए
लेकिन मेरे पति मुझे गेस्ट हाउस में पहुंचा कर ,
अपने माता - पिता को लेकर पिंड-दान कराने ले गए
पूरा कार्य अपने हाथो से सम्पूर्ण करवा दिए
पंडा बोले ,मेरे ससुर से :- आपको श्रवण -पुत्र मिला है
मेरे ससुर बोले :- मेरी आत्मा आज ही मुक्त हो गई
मेरे मरने के बाद मेरा बेटा पिंडदान नहीं भी करेगा तो
क्यूँ कि आज मेरे सारे दायित्व को मेरा बेटा पूरा किया है
जिससे हमलोग तृप्त हैं
पूरी जिंदगी मेरे सास-ससुर मेरे पति से तृप्त रहे
मेरे पति अपने माता - पिता के प्रति
अपने सारे दायित्व को अच्छी तरह निभाए
आज मेरे पति के मन में न तो पिंड-दान की इच्छा है
और न मेरे सास-ससुर की आत्मा को कोई उम्मीद होगी
और न समाज उन्हें कुछ कहने का अधिकार पा सका

 पितृ, पुत्र, पंडा .. और पिंडदान .....
 श्रापित फल्गु के तट पर सभी का मिलन .....
 यह मिलन श्रद्धा के साथ श्राद्ध का है , जिसके तार पितृलोक से जुडे हुए हैं ....
 आश्रि्वन कृष्णपक्ष को पितृपक्ष कहा गया है .....
 इस पक्ष के समय पितर समीप आ जाते हैं
और अपने-अपने बच्चों से जल और पिंड की आशा करते हैं ....
 कालांतर से चली आ रही यह परंपरा गया (बिहार) में आज भी जीवंत है ....
 प्रत्येक वर्ष अनंत चतुर्दशी की तिथि से
 17 दिवसीय पिंडदान का आरंभ पुनपुन नदी में तर्पण से होता है ....
 इसी दिन गया में पितृपक्ष मेला शुरू होता है ....
सुनती हूँ
गया में पिंड-दान कर देने के बाद आत्मा मुक्त हो जाती है
उसे फिर कभी तर्पण की आवश्यकता नहीं होती …

श्रापित फल्गु

वाल्मिकी रामायण में सीता द्वारा पिंडदान देकर
दशरथ की आत्मा को मोक्ष दिलाने का संदर्भ आता है ....
वनवास के दौरान भगवान राम , लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे , वहां श्राद्ध कर्म के लिए ,आवश्यक सामग्री जुटाने के लिये , राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल गए ,जब दोपहर हो गई , पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढती जा रही थी , तभी दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी .... गया के फल्गू नदी पर अकेली सीता जी असमंजस में पड गई ....  उन्होंने फल्गू नदी के साथ , वटवृक्ष , केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया .... थोडी देर में राम और लक्ष्मण लौटे तो सीता जी ने कहा कि समय निकल जाने के कारण , मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया है  , बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है, इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा तब सीता जी ने कहा कि यह फल्गू नदी की रेत , केतकी के फूल , गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं .... लेकिन सीता जी के अनुरोध करने पर भी फल्गू नदी , गाय और केतकी के फूल ,तीनों उस बात से मुकर गए .... सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही .... तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके ,उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की .... दशरथ जी ने सीता जी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि सही समय पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया है ....
 इस पर राम आश्वस्त हुए ....
लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दिया कि फल्गू नदी ... जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी , तुझमें पानी नहीं रहेगा .... इस कारण फल्गू नदी ,आज भी गया में सूखी रहती है .... गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी ...और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढाया जाएगा ....  वटवृक्ष को सीता जी का आर्शीवाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी .... यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पडता है, केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है ....


श्राद्ध

शुभप्रभात
 
आज से श्रद्धापर्व श्राद्ध का प्रारम्भ हो रहा है.अपने पूर्वजों का स्मरण कर उनके सद्कार्यों से कुछ सीख सकें और श्रद्धा समर्पण कर सकें.मेरे विचार से यही महत्व है श्राद्ध पर्व का
श्राद्ध पक्ष का हिंदू सनातन संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है. भाद्रपद माह की पूर्णिमा (आश्विन माह की प्रतिपदा )से श्राद्ध प्रारंभ होते हैं,तथा आश्विन की अमावस्या को श्राद्ध समाप्त हो जाते हैं,अतः इन सोलह दिनों में समस्त तिथियों का आगमन हो जाता है,जिनको अपने किसी भी प्रिय जन का शरीरांत हुआ हो.यूँ तो अपने प्रिय जनों ,पूर्वजों को स्मरण कभी भी किया जा सकता है परन्तु अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव करने के लिए श्राद्ध पक्ष की व्यवस्था हिंदू संस्कृति में की गई है.Nisha Mittal

मेरा मानना है कि

श्राद्ध

श्रद्धा पूर्वक वो दान जो जीवित माता-पिता को दिया जाए
दान न कह कर कर्तव्य कहें ,उचित रूप से किया जाए तो आत्मिक शांति महसूस होती है
इसी लोक में जब माता-पिता की आत्मा तृप्त हो जाएगी तो वो मुक्त हो जाएगी ....

श्राद्ध

श्रद्धा से दान
जीवित माँ-पिता को
सही सम्मान

आत्मा तृप्त हो
इसी लोक में जब
माता-पिता की
हो ही जाएगी वो तो
मुक्त हो ही जाएगी

~~


Wednesday 18 September 2013

जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई भैया



Animated Lord Ganesha On Anant Chaturdashi
आभार google


आज अनंत चतुर्दशी है...
गणेश जी को विदा करने का दिन 
और 
 अनंत भगवान 
अर्थात 
विष्णु भगवान को ढूँढने का दिन ....


सभी को हार्दिक शुभकामनायें 

मेरे मैके में बहुत हर्षौल्लास से हम मनाते थे 
माँ खुद से पीठी गढ़ ,दूध-पीठी + पूरी बनाती थीं
*(वैसे तो
माँ हमेशा दूध-पीठी बनाती थीं
लेकिन
 हर साल पीठी के साथ सेवइयाँ का भी
 इंतजार रहता था क्यूंकि उस दिन की
सेवइयाँ माँ अपने हांथो से बनाती थी
बारीक-बारीक सेवइयाँ डगरे पर
सभी अचंभित रह जाते थे )*
एक समय ही खाते थे 
और
संध्या(सूर्य अस्त होने के पहले तक)के 
पहले तक ही पानी पीना रहता था ....

मुझ से बड़े भैया का जन्मदिन भी
 हिन्दी तिथि से आज ही है 
जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई भैया 

वैसे आज ही के दिन 
मेरे ससुर जी का जन्मदिन भी मनाया जाता था ....
उन्हे दाल भरी पूरी और खीर बहुत ही पसंद था वही बनता था 
और साथ में जलेबी भी आता था 

अब बहुत याद आते हैं वो पल ........


आखिर में मैं सौ कागज़ इस ब्लॉग के काले कर ही डाले
मुझे झेलने के लिए मेरे मित्रों का शुक्रिया और आभार


Clipart Gif animé lettre v

v for victory 
विजयी मन 
विजय क्रोध पर 
विजयी रहे 
~~      


         



Tuesday 17 September 2013

( 99 वीं पोस्ट ) स्वार्थ (हर युग में राम को भरत मिले .... जरूरी तो नहीं )


emiliogomariz.gif

हमारी परीक्षा कब हो जाए कहना मुश्किल है .... 
हमारी परीक्षा तब भी होती है .... जब हमारे अपने , हमारे परिचित ,
हमारे दोस्त-साथी परीक्षाओं की घड़ियों से गुजर रहे होते हैं .... 

एक परिवार में .....
जब पिता रिटायर्ड हुये तो अपने तीन बेटों और एक बेटी से राय कर अपने सारे जमा-पूंजी लगा कर एक बना-बनाया मकान खरीदे ....सहयोग बच्चों की माँ का भी था .... 
तीन बेटों में ....
बड़ा बेटा सरकारी ऑफिसर था और उनका तबादला अलग-अलग शहरो में होता रहता था ,छोटा बेटा प्राइवेट कंपनी में काम करता था , जो अलग-अलग राज्यों में भ्रमण करता रहता था .... मझला बेटा स्थायी रहता था .… क्यूँ कि वो निजी रोजगार करता था ....
इसलिए बहुमत से ,मकान उसी शहर में खरीदा गया जहां मझला बेटा रहता था .... सबकी सोच यही थी कि बुढ़ापे में स्थायी रहने वाला बेटा ही बूढ़े लाचार माता पिता का ख्याल रख सकेगा ..... माता-पिता जब तक शरीर से सक्षम थे ..... सब बच्चों के घर ..... रिश्तेदारो के घर  ..... घूमने ..... तीर्थाटन करने जाते रहे .... जितने दिन भी , स्थायी घर में मझले बेटे के साथ रहते ,सुकून का पल नसीब नहीं होता था .... जब शरीर से अस्वस्थ्य रहने लगे तो निर्णय हुआ  कि स्थायी घर में ही वे रहे क्यूँ कि उन्हे वही अपना लगता था ,क्यूँ कि सारे जाम-पूंजी लगा कर वे घर खरीदे थे .... लेकिन सुकून का पल न मिलना था न मिला .... वैसे भी ज्यादा दिन बूढ़ी माँ जिंदा नहीं रही .... उनकी मौत बहुत ही आसान हुई .... किसी को उनकी सेवा करने का मौका नहीं मिला .... माँ के नहीं रहने पर पिता बड़े बेटे से बोले कि मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा .... यहाँ नहीं रहूँगा .... बड़े बेटे को क्या आपत्ति हो सकती थी .... वो तो हमेशा चाहता था कि माता-पिता उसके साथ ही रहें .... लेकिन माँ के जिद के आगे लाचार हो जाता था .... माँ के श्राद्ध-कर्म के बाद ,जब वो अपने नौकरी पर लौटने लगा तो अपने पिता को अपने साथ लेता आया ....
 लेकिन कुछ दिन , जितने दिन डॉ से दिखला कर सारे टेस्ट हुये .... पिता शांति से रहे .... फिर ....
 अचानक से ज़ोर ज़ोर से रोने लगते कि मेरा यहाँ मन नहीं लग रहा है .... कोई बात करने वाला नहीं मिलता है .... घर में कैद सा लगता है ....
चुकि स्थायी घर बड़ा था , घर के आगे-पीछे खुला जमीन था ....  घर के सामने आने - जाने वाले से दुआ-सलाम हो जाता था ....
 और बेटे का घर अपार्टमेंट में , घर में रहने वाले तीन प्राणी थे .... बड़ा बेटा को अपने सरकारी काम और दौरे से फुर्सत ही नहीं मिलती थी कि वो अपने पिता से गप्प लगाए और बहू को घर-बाहर का सारे काम करने होते थे .... फिर भी वो फुर्सत निकाल कर उन्हें टहलाती .... गप्प लगाती ..... सारे सेवा करती .... लेकिन पिता को तो आदत थी बेटा-बहू से लड़ने की .... बहुत शोर मचाते .... कहते कि अगर मुझे 10 साल जीना होगा तो 2 साल में ही मर जाऊंगा .... लेकिन बड़े बेटे के घर उचित देख-भाल ,समय पर खाने-पीने से पिता का स्वास्थ्य सुधरने लगा था .... ये देख कर कोई नहीं चाहता था कि पिता फिर से स्थायी घर मझले बेटे के साथ रहने जाएँ और मझला बेटा भी नहीं चाहता था कि पिता उसके पास आए .....
क्यूँ कि माँ के श्राद्ध -कर्म के दौरान बड़े+छोटे बेटे ने मझले बेटे को बहुत डांटे थे कि वो माता-पिता का ख्याल ठीक से रखा नहीं था .... श्राद्ध कर्म से लौटते समय बड़े+छोटे बेटे ने अपने+अपने हिस्से का कमरा में ताला लगा दिया था ....
लेकिन पिता का रोज-रोज का रोना बर्दाश्त भी नहीं किया जा सकता था .... एक दिन पिता को लेकर बड़ा बेटा स्थायी घर गया ,बड़ी बहू नहीं गई ..... क्यूँ कि वो राज़ी नहीं थी कि पिता वहाँ से स्थायी रूप से फिर उसी नरक में जाएँ .... बड़ा बेटा ,बहू को बोला कि ठीक है मैं घूमा कर ले आऊँगा .... जिस दिन भाई-पिता घर आए मझली बहू को ठीक नहीं लगा .... रात में जब बड़ा बेटा अपने कमरे में सोने चला गया तो पिता अपने पास बैठे पड़ोस के एक लड़के को बोले कि पहले ये देख लो कि बड़ा बेटा सो गया हो तो मझला बेटा-बहू को बुला कर ले आओ .... मझले बेटे बहू से पिता बोले कि बड़ा बेटा मुझे यहाँ नहीं रहने देगा लेकिन मैं यहाँ से जाना नहीं चाहता हूँ .... वहाँ मुझे कोई तकलीफ नहीं है ..... लेकिन मन नहीं लगता है .... तुमलोग मुझे जाने नहीं देना ....
सुबह जब बड़ा बेटा आने लगा तो वो अपने पिता को भी तैयार किया साथ लाने के लिए लेकिन पिता आने के लिए तैयार ही नहीं हुये .... मझला बेटा उन्हे पकड़ कर ,बड़े बेटा की गाड़ी में जबर्दस्ती बैठने लगा लेकिन पिता के हाथो में बाहर के ग्रिल पकड़ में आ जाने से कोई बैठा नहीं सका .... उनकी कातर निगाहों को देख कर बड़ा बेटा बोला कि ठीक है अभी रहने दो ,एक सप्ताह के बाद आकर ले जाऊंगा .... बे-मन से पिता को मझले बेटा-बहू को रखना पड़ा , उनके ही घर में .....
अगले सप्ताह बड़ा बेटा फिर गया .... पिता को लाने .... इस बार फिर बड़ी बहू नहीं गई कि वो जाएगी तो उसे वहीं रह कर ,पिता की सेवा करनी होगी क्यूँ कि पिता को बल मिल जाएगा वे जिद करेंगे कि यहीं रहा जाये .... बड़ी बहू को नहीं आया देख ,मझली बहू अपने जेठ के सामने ही चिल्लाने लगी कि केवल मेरी जिम्मेदारी है कि इनकी सेवा करूँ .... मझला बेटा भी बड़े बेटे से पूछा कि भाभी क्यूँ नहीं आई पिता की सेवा करने .... बड़ा बेटा बोला कि मैं पिता को ही ले जाऊंगा तो वे आई या नहीं आई .... क्या फर्क पड़ता है ....
लेकिन फिर उस बार भी पिता नहीं आए .... बड़ा बेटा अकेले लौट आया .... अगले सप्ताह फिर गया तो जब पिता नहीं आने के लिए तैयार हुये तो मझला बेटा बोला ,बड़े बेटा से कि घर के सारे कमरे खोलो .... इनके रहने , खाने पर जो खर्च आयेगा , घर के सारे कामो के लिए जितना पैसा खर्च होगा , सब दो ....
 पिता के सुख-शांति के आगे , बड़े बेटा के लिए , पैसे का क्या मोल था .... पिता के पेंशन के अलावे भी , जितना रुपया-पैसा ,मझला बेटा मांगता ,बड़ा बेटा देता रहा ....
लेकिन होनी तो हो कर रहती है ....
एक दिन पिता का पैर फैसला और उनके कमर की हड्डी टूट गई .... ये मझले बेटे-बहू के उचित देख-भाल का परिणाम था .....
एक-डेढ़ महीने के बाद ही पिता को मझले बेटे ने बड़े बेटे के घर ले कर आ गया .... जब पिता को बड़ी बहू के सामने लाया गया तो वो अचम्भित रह गई .... जिस पिता को अपने पैरो पर बिना सहारा लिए चलने की अवस्था में विदा की थी , वो मरणासन्न अवस्था में सामने थे .... रोज लगता था  .... आज गए या कल गए .... कमर की हड्डी टूटी थी , इसलिए उन्हे पूरी तरह से बिस्तर पर रहना था ....
खबर मिलने पर छोटा बेटा + बेटी भी दो दिन के लिए मिलने आए .... फिर सब यथावत चलने लगा .... जो लगता था कि किसी भी पल कुछ हो जाएगा वो दिन ,दिन से महिना गुजरने लगा .... देखने आने वाले भी अचम्भित होते कि मरणासन्न अवस्था कैसे टल गया और बड़ी बहू की प्रशंसा करते कि बहुत मन से सेवा कर रही है और साफ-सफाई तो बहुत है .... मेहनत करती है ....
कुछ महीने के बाद ..... मझले बेटे को पिता की सुध आई वो बड़े बेटे से बोला कि मैं पिता को अपने पास लाना चाहता हूँ .... बड़ा बेटा मना किया ,तो वो बोला कि पिता जी की इच्छा थी कि जहां माता जी की मौत हुई है , वहीं पिता जी भी मृत्यु को प्राप्त करें .... अगर वे मेरे पास आ जाएँगे तो उनको मुक्ति मिल जाएगी .... तुम्हारे पास अगर दो साल भी इस अवस्था में रहें तो मुक्ति नहीं मिलेगी etc .... बड़े बेटा को लगा कि पिता जी को अच्छा लगेगा बदलाव होगा तो ....
 जब बड़ी बहू सुनी तो बहुत समझाने का प्रयास की कि आप मत भेजिये मैं सब करती हूँ दो साल जीयें या 20 साल जीयें .... देवर जी को अब समाज का डर लग रहा होगा या कोई स्वार्थ होगा बिना स्वार्थ का तो वो कुछ नहीं कर सकते ....  उन्हे आपकी बदनामी करने का मौका मिल जाएगा .... पिता जी की स्थिति ऐसी नहीं है कि ये अब एक जगह से दूसरे जगह जाएँ .... बड़े बेटा का बेटा(पोता) भी अपने पिता को समझाने का प्रयास किया कि जब सब माँ करती है आपको कुछ चिंता नहीं करना पड़ता है .... फिर आप क्यूँ भेजना चाहते हैं ? दादा 2 साल और रहें तो अच्छा है न .... बुजुर्ग का साया सिर पर रहेगा .....
बड़ी बहू और पोता के कुछ भी कहने का असर बड़े बेटे पर नहीं हुआ ....  बड़ा बेटा बोला कि पिता जी सबके हैं .... अगर वो अपने पास रख कर सेवा करना चाहता है तो मैं क्यूँ रोकू .... पिता जी की इच्छा भी वहीं रहने की थी .... कुछ दिन के बाद ले आऊँगा ....
पिता जी फिर मझले बेटे के पास चले गए .... वहाँ पिता जी को ले जाने के बाद मझला बेटा सब से कहता कि बड़ी बहू घर से बाहर निकाल दी है .... पिता जी की ऐसी स्थिति है , मेरे सिवा दूसरा कोई रख ही नहीं सकता था ..... जिससे वो कहता वो बड़ी बहू को आकर कह देता .... बड़ी बहू बोलती , ऊपर वाला सब जानता है .... न्याय उसी पर छोड़ रही हूँ .... मझला बेटा ये नहीं जान रहा था कि बड़ी बहू का शिकायत कर ,वो बड़े बेटे को ही चोट पहुंचा रहा है .... 
हर युग में राम को भरत मिले .... जरूरी तो नहीं ....
और एक महिना 20 दिन के बाद ही पिता की बहुत बुरी अवस्था में मौत हुई .... 
मौत के एक महीने के बाद ही बिना किसी के राय मशवरा लिए मझले बेटे ने पूरे घर पर कब्जा कर लिया .... घर में ही लड़कियों का हॉस्टल खोल लिया , ताकि कोई और आकर नहीं रह सके ....
ये था बड़ी बहू के शक को सच साबित करता स्वार्थ ....

http://www.livingwell.org.au/managing-difficulties/experiencing-difficult-times-toolkit/


Friday 13 September 2013

न्याय अधूरा









9 महीने
वेदना और संघर्ष के दिन एक परिवार के लिए ....
करोड़ों मुख से निकला
दुआओं - प्रार्थनाओं का फल है
ये फांसी का दण्ड ,लेकिन
अभी खुश होने का समय नहीं आया है ....
अभी हमारे महामहिम के पास अर्जी जानी बाकी है ....
हिंदुस्तान है मेरे दोस्त
चुनाव भी नजदीक है
वैसे भी ये न्याय अधूरा है ....
कोई तो मुस्कुरा रहा है
न्याय प्रणाली का मज़ाक उड़ा रहा है ....
हमारा खून जला रहा है .....

Wednesday 11 September 2013

"पहाड़ "




छु लो गगन
भरों आत्मविश्वास
शृंग अंग से
~~2
संत्रास हँसे
सैलाब आ ही जाये
शाल जो मिटे .....    शाल = वृक्ष
~~3
शृंग विहसे
आँधियों के आँचल
काँख फंसाये
~~4
क्षितिज पर
शृंग बांधा हो साफा
सूर्यास्त हुआ ....
 ~~5
 मुंह का खाया
ईच्छा पहाड़ जैसी
श्रमहीन था ....
~~6
सूत कात लें
शृंग कंधे बादल
कपास लगे....
~~7
पहाड़ी भाल
है तनाव मिटाता
छू ले जो गाल
~~8
विस्तृत धान्य(संपदा)
उलीचना जानता
उदार शृंग
~~9
हुई व्यथित 
जुदा रह न सकी
है चन्द्रस्नाता 
~~
Clipart Gif animé lettre v

Tuesday 10 September 2013

चौथ का चाँद





चौथ का चाँद किसने नहीं देखा
चूक गया गाली सुनने का मौका

जब हमलोग छोटे-छोटे थे
अंध विश्वास के गिरफ्त में थे
??

हमारे यहाँ(बिहार के छपरा जिला में) सब कहते थे भादों के शुक्ल-पक्ष के चौथ का चाँद देख लिया अब कलंक लगेगा .... किसी के घर मे पत्थर फेको जब वो गाली देगा कलंक मिट जायेगा .... मेरी माँ हम भाई-बहन को इस दिन चाँद नहीं देखने देती थीं .....

पुत्र के लंबी आयु और स्वास्थ्य जीवन के लिए
(पुत्रियाँ को ही तो
कल ये व्रत करना होता है
वे तो माँ-स्वरूप होती हैं
कोई भी हालात हो
स्वास्थ्य जी ही जाती हैं )
जिस तरह जीउतिया व्रत करती हैं , उसी तरह माघ के शुक्ल पक्ष के चौथ को गणेश-चतुर्थी मनाती हैं पुत्र के लंबी आयु और स्वास्थ्य जीवन के लिए ....

बिहार के मिथला निवासी भादों के शुक्ल-पक्ष के चौथ का चाँद देख कर चौक-चंदा व्रत मनाते .... जिस तरह छठ में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है ,उसी तरह वे लोग चाँद को इस दिन अर्घ्य देते हैं ....

Saturday 7 September 2013

फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र


मैं 11 अगस्त को पटना से बरौनी शिफ्ट हुई …… कैमरा लाना जरुरी नहीं लगा , क्यूँ कि महबूब नया कैमरा लाने वाला था …… लेकिन ये ध्यान नहीं रहा कि वो लेकर आयेगा तो लेकर जायेगा भी …… जंगल पहाड़ झरने मुझे बहुत आकर्षित करते हैं ,लेकिन अब तस्वीर खीचने का शौक नहीं रहा ,क्यूँ कि अब घर में जगह नहीं है तस्वीर रखने की … लेकिन इन पक्षियों की दिनचर्या से बहुत आकर्षित हुई और तस्वीर संजोने से अपने को रोक नहीं पाई ……. तस्वीर साफ नहीं है लेकिन खुबसूरत लम्हा है …….
17 अगस्त को  इनके घोसले पर नज़र गई और
29 को अंडा फूटा इनका जन्म हुआ
आज 7 सितम्बर को ये फुर्र  फुर्र  फुर्र  फुर्र  फुर्र  फुर्र
लो ये तो गए ......



कल तक जन्मदात्री पर निर्भर


अँधेरी रात है
सुबह तो होने देते








आज अपने पंख पर यकीन













लो हम तो गगन को नापने चले











इन्हें पता है ,इनकी तस्वीर उतारी जा रही  है .....
एक क्लिक होते ही ….  दूसरी  पोज …
 इन्हें पता है , मुझे नाश्ता  बनानी है ,
लेकिन एक बार ये गगन को छू लिए
तो पहचानूंगी कैसे मेहमान को ….
आश्चर्य है ना …… ये अपने जन्मदात्री को कैसे पहचानते होंगे …… एक बार नभ को नाप लेने के बाद …… कैसे ऋण उतारते होंगे , अपनी जन्मदात्री का .… फिर हम इन्सान ही क्यूँ चिल- पो मचाते हैं ……. क्यूँ उम्मीद में जीते हैं ,कल कैसे होगा ……. क्या होगा …. जो होगा .... जैसे होगा .... कल की बात कल देख लेंगे जो हमारे करीब होंगे …… सोच-सोच अपना आज ख़राब करते ही हैं ……. बच्चो को भी चैन से जीने नहीं देते  …….
 ऐसा नहीं है कि बुढ़ापा से रु ब रु नहीं हूँ .....
या
ऐसा भी नहीं है बुढ़ापे ने दस्तक नहीं दे चुका है ......
बस बुढ़ापे से डर नहीं लगता   ....
जानती हूँ
आम बो चुकी हूँ और आम ही खाने को मिलेगा
अहंकार नहीं अभिमान है .....
अपने दिये गए संस्कारो पर पूरा विश्वास है

आखिर उड़ ही गये नाजुक बच्चे
महरूम कर गये अपने गुंजन से
बेरोजगार हो गए हम तो  फिर से

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दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...