शुभप्रभात
आज से श्रद्धापर्व श्राद्ध का प्रारम्भ हो रहा है.अपने पूर्वजों का स्मरण कर उनके सद्कार्यों से कुछ सीख सकें और श्रद्धा समर्पण कर सकें.मेरे विचार से यही महत्व है श्राद्ध पर्व का
श्राद्ध पक्ष का हिंदू सनातन संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है. भाद्रपद माह की पूर्णिमा (आश्विन माह की प्रतिपदा )से श्राद्ध प्रारंभ होते हैं,तथा आश्विन की अमावस्या को श्राद्ध समाप्त हो जाते हैं,अतः इन सोलह दिनों में समस्त तिथियों का आगमन हो जाता है,जिनको अपने किसी भी प्रिय जन का शरीरांत हुआ हो.यूँ तो अपने प्रिय जनों ,पूर्वजों को स्मरण कभी भी किया जा सकता है परन्तु अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव करने के लिए श्राद्ध पक्ष की व्यवस्था हिंदू संस्कृति में की गई है.Nisha Mittal
मेरा मानना है कि
श्राद्ध
श्रद्धा पूर्वक वो दान जो जीवित माता-पिता को दिया जाए
दान न कह कर कर्तव्य कहें ,उचित रूप से किया जाए तो आत्मिक शांति महसूस होती है
इसी लोक में जब माता-पिता की आत्मा तृप्त हो जाएगी तो वो मुक्त हो जाएगी ....
श्राद्ध
श्रद्धा से दान
जीवित माँ-पिता को
सही सम्मान
आत्मा तृप्त हो
इसी लोक में जब
माता-पिता की
हो ही जाएगी वो तो
मुक्त हो ही जाएगी
~~
आज से श्रद्धापर्व श्राद्ध का प्रारम्भ हो रहा है.अपने पूर्वजों का स्मरण कर उनके सद्कार्यों से कुछ सीख सकें और श्रद्धा समर्पण कर सकें.मेरे विचार से यही महत्व है श्राद्ध पर्व का
श्राद्ध पक्ष का हिंदू सनातन संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है. भाद्रपद माह की पूर्णिमा (आश्विन माह की प्रतिपदा )से श्राद्ध प्रारंभ होते हैं,तथा आश्विन की अमावस्या को श्राद्ध समाप्त हो जाते हैं,अतः इन सोलह दिनों में समस्त तिथियों का आगमन हो जाता है,जिनको अपने किसी भी प्रिय जन का शरीरांत हुआ हो.यूँ तो अपने प्रिय जनों ,पूर्वजों को स्मरण कभी भी किया जा सकता है परन्तु अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव करने के लिए श्राद्ध पक्ष की व्यवस्था हिंदू संस्कृति में की गई है.Nisha Mittal
मेरा मानना है कि
श्राद्ध
श्रद्धा पूर्वक वो दान जो जीवित माता-पिता को दिया जाए
दान न कह कर कर्तव्य कहें ,उचित रूप से किया जाए तो आत्मिक शांति महसूस होती है
इसी लोक में जब माता-पिता की आत्मा तृप्त हो जाएगी तो वो मुक्त हो जाएगी ....
श्राद्ध
श्रद्धा से दान
जीवित माँ-पिता को
सही सम्मान
आत्मा तृप्त हो
इसी लोक में जब
माता-पिता की
हो ही जाएगी वो तो
मुक्त हो ही जाएगी
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सच कहा आदरणीय विभा जी आपने
ReplyDeleteहमारी कृतज्ञता का भाव निहित है, अपने पूर्वजों के प्रति
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ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ.जीवित माँ बाप की सेवा, श्रद्धा करके उनको ज्यादा सुखी कर सकते हैं .जीवित रहते दुत्कार दें और मरने के बाद श्राद्ध कर एक दिखावा लगता है
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बिल्कुल सच .....
ReplyDeleteSach http://www.hinditechtrick.blogspot.com
ReplyDeletethik kaha di aapne .. jiwit ko to bharpet khana bhi nahi dete ..bhar samjhte hai jo log jab unka sradh dhum dham se karte hai ..to sayad parlok me bhi unki atma tadapti hogi ..
ReplyDeleteमुर्ति पुजते
साक्षात है सामने
उन्हे कोसते
बिल्कुल सच कहा है...
ReplyDeleteशुक्रिया और आभार आपका
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने ....
ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ.
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लागर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शनिवार हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल :007 लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .
ReplyDeleteशुक्रिया और आभार आपका
Deletelink ?
Deleteपूरी तरह से सहमत हूँ विभा जी ....आपसे ...जीवित माँ-बाप को सम्मान देने में कंजूसी करते हैं लोग .....पर दिखावे में आगे रहते हैं .....
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteHow to repair window 7 and fix corrupted file without using any software
Rightly mentioned.
ReplyDeleteVinnie
पंच तंत्र मे भी ऐसा ही कुछ लिखा है आंटी-
ReplyDelete"जियत पिता से दंगम दंगा
मरत पिता पहुंचाए गंगा
जियत पिता को घूंसे लात
मरत पिता को खीर और भात
जियत पिता को डंडा लठिया
मरत पिता को तोसक तकिया
जियत पिता की न पूछी बात
मरत पिता को श्राद्ध करात। "
इन पंक्तियों से भी आपकी ही बात सिद्ध होती है।
सादर
सहमत ...
ReplyDeleteपितरो के लिय तर्पण करते लोग जिन्दा( बुजुर्गो ) पितरो को क्यों भूल जाते हैं ??
ReplyDeleteफिर ब्राह्मणों के पास चक्कर लगते हैं कि अजी पितृ दोष क्यों लग गया उपाय बताओ जरा !!!!!!