छु लो गगन
भरों आत्मविश्वास
शृंग अंग से
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संत्रास हँसे
सैलाब आ ही जाये
शाल जो मिटे ..... शाल = वृक्ष
~~3
शृंग विहसे
आँधियों के आँचल
काँख फंसाये
क्षितिज पर
शृंग बांधा हो साफा
सूर्यास्त हुआ ....
~~5
मुंह का खाया
ईच्छा पहाड़ जैसी
श्रमहीन था ....
~~6
सूत कात लें
शृंग कंधे बादल
कपास लगे....
~~7
पहाड़ी भाल
है तनाव मिटाता
छू ले जो गाल
विस्तृत धान्य(संपदा)
उलीचना जानता
उदार शृंग
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हुई व्यथित
जुदा रह न सकी
है चन्द्रस्नाता
~~
बहुत ही सुंदर हाइकू ,,
ReplyDeleteRECENT POST : समझ में आया बापू .
वाह चाची जी ....चलते फिरते पहाड़ों के साथ ...."संत्रास हँसे
ReplyDeleteसैलाब आ ही जाये....शाल जो मिटे ..... "भविष्य के प्रति व्याकुल रचना ......सुंदर मतलब ये कि बहुत ही सुंदर |
बहुत सुन्दर हायकू हैं दी...
ReplyDeleteसादर
अनु
sundar haykoo .photo to bahut jandaar hain bahut der tak photo hi dekhti rahi
ReplyDeleteअति सुन्दर. पहाड़ों की तरह ही ताजगी देता हुआ.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर हाइकू ............
ReplyDeletebahut bahut sundar hiku
ReplyDeleteपहाड़ों के इर्द गिर्द लिखे सुन्दर हाइकू ...
ReplyDeleteयह विधा विशुद्ध साहित्यिक परिधान ओढ़ बैठी है, आपकी इस रचना में।
ReplyDeleteAha...bhut sundar .arth bta kr achha kiya samajne me bhut asaani hui aur aanand bhi aya
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteसुंदर लेखन ,बखूबी से बयाँ करते सुंदर हायकू |
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत हाइकू !!
ReplyDeleteसुंदर तस्वीरों के साथ बहुत ही सुंदर हाइकू .....
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