Friday 8 February 2019

"संधि"


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ज्योत्स्ना :- "मेरी एक परिचित हैं... उनके पति को गुजरे कुछ ही महीने हुए हैं। उनके खुद की शादी की घोषणा करते खलबली मच गई है... उनके बच्चें शादी योग्य हैं। उनकी शादी का ना सोच खुद की शादी...! बच्चों की शादी में कई बाधाएं बढ़ जाने की आशंका...!"
         विधु :- "मेरे हिसाब से शादी करने में कोई बुराई नहीं अगर दोनों दिल से राजी हों तो... बच्चों की शादी के बाद उसे भी साथी की जरूरत रहेगी ही..!"
           ज्योत्स्ना :- "दिल से राजी वाला इतनी जल्दी मिल कैसे गया ? सवाल यह उठ रहा है..! सोच-सोच कर उनके अपने परेशान हैं... पति-सेवा कर रही थी तो लगता था, सारी दुनिया को भूला कर बैठी है! पति के रहते कोई आया कैसे उनके जीवन में...?"
          विधु :- "क्या कह सकते हैं... पर अगर उसने अपने पति के रहते उसकी सेवा में दिन-रात एक कर दिया था तो भी लोग बातें बनाने से बाज नहीं आ रहे। लोगों का तो काम ही है बात बनाना हर इंसान को अपनी खुशी के बारे में सोचने का पूरा हक है अपने परिवार के साथ-साथ..।"
        दक्ष :- "लेकिन अभी पति का देहांत हुआ है तो इमोशंस में कोई हो भी गया हो..!"
ज्योत्स्ना :- "बाद में भटकने लगे तो वह ना घर की रहेगी ना घाट की?"
     दक्ष :- "औरतें जब बहादुर होती हैं तो खूब बहादुर होती हैं लेकिन कमजोर पड़ जाएं तो बहुत कमजोर भी पड़ जाती हैं। उनके अपनों की चिंता भी जायज है। और आजकल जगह-जगह धोखे दिख भी रहे हैं..।"
         विधु :- "चिंता करना जायज है.. अगर बेवजह बातें बना रहे या सब अच्छा होते हुये भी रोड़े अटका रहे तो वो गलत... अगर ये पुरानी सोच के कारण है तो गलत... लेकिन अगर बंदा ही गलत तो उनकी चिंता जायज है। पर दीदिया ने चिंता नहीं सोच बताया है..।"
         दक्ष :- "दीदी अब क्या पता..? लेकिन अचानक कोई कैसे मिल सकता है और शादी की इतनी जल्दी क्या है ? पहले अपने बच्चों की शादी करनी चाहिए.. तब तक तो जो मिला है, उसका साथ दे सकता है..!"
       ज्योत्स्ना :- "शायद पति बहुत समय से पीड़ित बिछावन पर पड़ा होगा कोई मददगार हो जिनमें नजदीकी बढ़ गया हो... बच्चों की शादी के बाद ही अपनी जिंदगी में अलग से आगे बढ़े.. क्योंकि सबके चेहरे पर कई चेहरे जड़े दिख रहे... हमारा समाज आगे नहीं बढ़ पाया है आज भी...!"

दिखावे में सब सिमट रहा।
प्रेम बस तन से लिपट रहा।
प्रस्ताव सदा संग सहने की,
सूप चलनी से निपट रहा।

Wednesday 6 February 2019

खतरे के खिलाड़ी



"अरे! तुम इस समय?" अपने घर में आई कमला को देखकर चौंकने का अभिनय करने में सफल रहा हरेंद्र। होली की शाम थी वह घर में अकेला था।
"क्यों? तुमने ही तो कहा था.. होली के दिन मेरे घर अबीर खेलने आना..! चलो अब अबीर मुझे लगा दो... घर में मुझे सब ढूँढ रहे होंगे..!"
"वो तो मैं आजमाया था कि तुम मुझसे कितना प्रेम करती हो...! तुम तो अव्वल नम्बर से पास हो गई..।"
"आजमाने में रिश्ते बना नहीं करते... आज के दिन अकेली लड़की का घर से दूर जाना कई खतरे राह में प्रतीक्षित होते हैं..। वक़्त बदला है समस्याएं नहीं बदली...!"
"मान लेता हूँ... मेरा दबाव गलत था... अबीर तुम्हें शादी के बाद ही समाज के सामने लगाउँगा..! चलो तुम्हें सुरक्षित घर छोड़कर आता हूँ..।"

छतरी का चलनी…

 हाइकु लिखने वालों के लिए ०४ दिसम्बर राष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में महत्त्वपूर्ण है तो १७ अप्रैल अन्तरराष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में यादगा...