Sunday 30 June 2019

"अपराधिक भूल"


"क्या यह लघुकथा आपकी लिखी हुई है? पुस्तक में छपी  लघुकथा को दिखलाती हुई करुणा ने विम्मी से पूछा।
"हाँ!बस शीर्षक बदला हुआ है, सम्पादक महोदय ने बदल दिया है, क्यों दी आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं..?" विम्मी सहज थी।
"हु-ब-हु ऐसी ही लघुकथा कविता की लिखी फेसबुक समूह में पढ़ी हूँ और आज कविता फेसबुक पर पोस्ट भी बनाई है अपनी लघुकथा चोरी कर छपवा लेने की बात कर रही है...,"
"मैंने रेडियो पर कुछ अंश सुना था, उसी से प्रेरित होकर, अपने शब्द में प्रयास किया था,गलती तो स्पष्ट है, इनका पोस्ट देखकर ..  मेरी यही गलती है,,कि कुछ सुनकर , कुछ लिख लिया.. अब क्या निदान है,,??"
" यह तो आप सोचिए कि क्या किया जाए
–भाई गुरु जी को मैं दी.. उन्होंने मुझपर विश्वास किया जो टूट गया..
–भाई गुरु जी पर सम्पादक जी का विश्वास टूट गया..
हथेली से जैसे जल व रेत फिसलता है वैसे विश्वास टूटने के बाद साख भी...!"
 "मुझे एक सीख मिली है, वैसे दी! मिलती,जुलती, कभी कुछ नहीं होता है क्या दी ? सर का साख,भी ना धूमिल हो, कोई उपाय करें दी, दी आपहीं इस संकट से निकालिए। बात तो सही कही आपने दी, मुझे खुद बहुत बुरा लग रहा है।"
" मिलती जुलती का अर्थ समझाना होगा क्या आपको ? जो पोस्ट का लिंक मिला है उसके टिप्पणी में क्षमा मांग लीजिये... और पूरे धैर्य से सहन कीजिये... श्री सम्पादक महोदय के नाम ,क्षमा का एक चिट्ठी लिख दीजिये, चिट्ठी लिखने के बाद मुझे दिखा लीजियेगा ... अगले अंक में चर्चा ना करें इसका अनुरोध कीजियेगा.. वैसे उनकी जो मर्जी।"
"नहीं दी, अब सब तो स्पष्ट है, लेकिन मैंने कभी उनका पढ़ा होता, तो ऐसी भयानक गलती,,कभी कोई नहीं करेगा,,फास्ट ,, नेटवर्क के जमाने में.., सबके साख का सवाल है, अपनी अनभिज्ञता पर मैं बेहद पछता रही हूँ जी, सभी कोई अौर कदम ना ले ले ,, गुस्से में...!आपको  कितना बुरा लग रहा होगा दी,,मेरे कारण... !"☹🙏
"कभी खुद के लिए कुछ बुरा नहीं लगता है यह आप अच्छे से जानती हैं ! लेकिन मुझसे जुड़े किसी अन्य को कोई कष्ट/परेशानी होती है तो मेरी व्यथा भी आप जानती हैं... सब रिस जाए उसके पहले चेत जाना चाहिए..!"


Tuesday 25 June 2019

इकीसवीं सदी : बदले वक़्त की बदली हवा



लू के थपेेड़े–
दस्यु स्त्रियों की भीड़
जूस ठेले पे।


महिला महाविद्यालय के सामने खड़ी हो हर आने-जाने वाली लड़कियों को बहुत गौर से निहार रही थी(आज प्रख्याता के रूप में उसका पहला दिन था) ,लेकिन कोई चेहरा नहीं दिख रहा था।

 सबके चेहरे ढंके हुए थे... "दस्यु सुंदरी बनना है क्या?" दाँत पिसती शिक्षिका की आवाज से उसकी तन्द्रा भंग हुई.. बौखलाहट में वह दाएँ-बाएँ देखने लगी फिर उसे सहमी कन्या याद आई जो एक दिन दुप्पटे को नकाब बनाये खल्ली(चौक) को सिगरेट रूप में उठा ही रही थी कि वर्ग शिक्षिका(क्लास टीचर) चिल्लाती कक्षा में प्रवेश की,"कल तुम अपनी माँ-पापा को लेकर विद्यालय आना, लगता है तुम्हें चंबल जाने का शौक है... अभिभावक को बेटी के शौक का पता होना चाहिए...!" उसकी तो घिघ्घी बंध गई थी और बहुत आरजू-मिन्नतों के बाद वह गुमनाम होने से बच पायी थी।

Saturday 22 June 2019

"स्नेह का रुतबा"







"यह क्या है?" कुछ तस्वीरें कुमुद के सामने फेंकते हुए कुमुद के पति केशव ने पूछा।
"कोडईकनाल की यादें!"

"बैरे ही मिले थे, सामूहिक तस्वीरों के लिए? अपना जो स्टेटस है उसके स्टैंडर्ड का तो ख्याल करती.., हम संस्था के शताब्दी वार्षिकोत्सव मनाने के लिए हजारों किलोमीटर दूर फाइव स्टार होटल बुक करते हैं , पूरे देश से हर प्रान्त के नामचीन हस्ती और उनकी पत्नियाँ जुटी थीं। और तुम?"

"बच्चे जिस उत्साह से खाना खिला रहे थे उसमें उनका स्तर मुझे नहीं दिखा... उसके बदले में मैं उन्हें यही दे सकती थी...!"
"उन्हें उसके लिए ही पैसे मिलते हैं..,"

"इसलिए तो मैं उन्हें टिप्स में नशा छोड़ने का सलाह-सुझाव दी! बाद में एक बच्चा मेरा पैर छूने आया था जब। मेरे सामने उसने सिगरेट के टुकड़े कर फिर कभी नहीं पीने का वादा किया और हमेशा सम्पर्क में है।"




Wednesday 19 June 2019

वक्त की परीक्षा-समय से

स्पर्श में भी शब्द सी शक्ति होती होगी पीड़ा सोख लेने की🤔 संग हैं! जब भी कोई ऐसा मौका आएगा जिसमें जरूरत हो, यह जता दे!
16 जून 2019
आँख कुछ जल्दी खुल गई... चौके में काम जरा जल्दी निपटाने थे.. दिल्ली से पम्मी सिंह जी, हजारीबाग से अनिता मिश्रा जी आयी थीं, विशेष उनके लिए काव्य गोष्ठी तय था। जून का तीसरा रविवार पितृ दिवस को समर्पित, बब्लू के जन्मोत्सव पर काव्योत्सव की तैयारी थी। मैं अति उत्साहित शयन-कक्ष से ज्यों बाहर आई भयंकर गर्मी का एहसास हुआ। पूरब दिशा में चौका होना, कैसे हानिकारक हो सकता है उसका प्रभाव दिखा। कुछ पलों में लगा सारा शरीर भट्टी में है , सर में अजीब बैचेनी, खड़ा होने में असमर्थता.. बहुत मुश्किल से एक कप चाय बना पाई... फिर जो लेटी तो शरीर काबू से बाहर... लेकिन दिमाग तैयारी में था किसी तरह शरीर को खड़ा करना है... समय गुजरता जा रहा था तथा मुख्य समस्या भोजन बनाने का था... अपार्टमेन्ट में होने का फायदा, पलंग-कुर्सी-अलमीरा पास-पास होने से खड़ा होने का जोखिम उठा दवा-पानी लिया जा सकता है... ढ़ाई बजे तक किसी तरह से गाड़ी में शरीर को डाली और कार्यक्रम स्थल तक गई पम्मी सिंह



और घर वापस आकर बिस्तर पर गिरी तो
17 जून 2019
दूसरे दिन दोपहर में कुछ देर के लिए फिर अपने शरीर को सम्भालना पड़ा... कर्कश आवाज अपनी पहचान खो रही थी ... स्टेशन आने के पहले ट्रेन की गति के सामान... "तुम्हारी आवाज सदा ऐसी क्यों नहीं रहती..." आईने से सवाल करते फिर धराशाई बिस्तर पकड़ी... पेट साथ छोड़ रहा था तथा हल्का-हल्का दर्द भी.. शरीर पर लाल दाने अपने स्थान बनाने शुरू कर दिए संग खुजलाहट
18 जून 2019
सुबह से पेट पूरी तरह साथ छोड़ चुका था.. पेट-दर्द पूरी गति से तेज रफ्तार में... तथा इशारे से बात समझाने में चूक हो रही थी ... स्टेशन पर गाड़ी ठहर चुकी हो उसी तरह आवाज बिलकुल बंद... रात होते-होते अस्पताल जाने से शरीर बचा.. दाने-खुजलाहट अपने चरम सीमा पर...
19 जून 2019
सुबह शरीर खड़ा करने के जद्दोजहद में उलझे ही थे कि खबर मिली कि आदरणीया दीदी डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह जी 17 जून 2019 से पति विछोह सह रही हैं... उनसे मिलने जाना अति आवश्यक था.. सबको खबर की ... पति महोदय पूछे भी "कैसे जाओगी... जाना जरूरी भी है!"
"जब जाना जरूरी है तो अवश्य जाऊँगी!" मिलकर आ गयी हूँ..... तुझे तो सदा हराती आई हूँ ये जिन्दगी...


Tuesday 18 June 2019

खंडहर का अंत


तन पर भारीपन महसूस करते अधजगी प्रमिला की आँख पूरी तरह खुल गयी। भादो की अंधेरिया रात और कोठरी में की बुझी बत्ती में भी उसे उस भारी चीज का एहसास उसके गन्ध से हो रहा था, "कौन है ?" सजग होकर परे हटाने की असफल प्रयास करती पूछी।
"मैं! मुझे भूल गई?"
" तुझे इस जन्म में कैसे भूल सकती हूँ.. तेरे गन्ध को भली-भांति पहचानती हूँ..!"
"फिर धकिया क्यों रही है?"
"सोच-समझने की कोशिश कर रही हूँ, तुझे मेरी याद इतने वर्षों के बाद क्यों और कैसे आई?"
"मैं तेरा पति हूँ!"
"तब याद नहीं रहा, जब दुनिया मुझे बाँझ कहती रही और मेरा इलाज होता रहा.. तेरे इलाज के लिए जब कहती तो कई-कई इल्ज़ाम मुझपर तुमदोनों माँ-बेटे लगा देते!"
"इससे हमारा रिश्ता तो नहीं बदल गया या तुझपर से मेरा हक़ खत्म हो गया?"
"हाँ! हाँ.. बदल गया हमारा रिश्ता.. खत्म हो गया मुझपर से तेरा हक़..," चिल्ला पड़ी प्रमिला,"जब तूने दूसरी शादी कर ली और उससे भी बच्चा नहीं हुआ तो तूने अपना इलाज करवाया और उससे बेटी हुई।"
"तुझे भी जरूरत महसूस होती होगी?"
"जिस औरत को तन की दासता मजबूर कर देती है, वह कोठे पर बैठी रह जाती है।"
"तुझे बेटा हो जाएगा! तेरा ज्यादा मान बढ़ जाएगा..!"
"तेरी इतनी औकात कि तू मुझे अब लालच में फँसा सके..!" पूरी ताकत लगा कर परे धकेलती है और पिछवाड़े पर पुरजोर लात लगा कमरे से बाहर करती हुई चिल्लाती है, "दोबारा कोशिश नहीं करना, वरना काली हो जाऊँगी..!"

Saturday 15 June 2019

स्वप्न




कह देने से
रिश्ते टूटने से
बच गए
चुप रहने से
टूटते रिश्ते
सम्भल गए
बस तय करने में
चूक ना हुआ कि
कब क्या कहना है या
कब चुप रह जाना
पजल बॉक्स है जिंदगी
या बिछी बिसात
गोटी फिट करना
या प्यादे की चाल
हद से ज्यादा दर्द होता
साँसों की डोर कट जाती
जब तक साँसें है
खुशियों को वितरित करने में
सहायक बन गुजरते जाना है

Wednesday 12 June 2019

फिक्र

देख गुलमोहर-अमलतास
ठिठक जाती हूँ
ठमका देता है
सरी में दिखता जल।
अनेकानेक स्थलों पर
विलुप्तता संशय में डाले हुए है
बचपन सा छुप जाए
तलाश में हो लुकाछिपी।
है भी तो नहीं
अँचरा के खूँट
कैसे गाँठ बाँध
ढूंढ़ने की कोशिश होगी
जब कभी उन स्थलों पर
वापसी होगी।

अंत का सत्य



अवलम्बन
पुत्री-पत्नी का
पिता-पति
थोड़े रूप में स्वीकार
किये जा सकते हैं
जनक-पोषण कर्त्ता होते हैं

लेकिन
अवलम्बन माता का?
पुत्र बने कुछ नहीं जमता
वृद्ध होकर कहाँ जाएगी
 यह तन का साथ
छूटने के पहले
सोचना क्या
बुद्धिमान होना कहलाता

गर्भनाशक अमरबेल
एकशाकीय परजीवी
क्वाथ कराये गर्भपात
जर्द पड़े शजर क्यों नहीं
मोहभंग कर विरोध करता
दो ही रास्ते मिलते हैं
कुढ़ कर मूढ़ होकर जी लो
मुन्नी/मुन्ना बन मस्ती से
जीवन गुजार लो


Wednesday 5 June 2019

मेरी ईदी



रात में बाहर खुले में मत टहलना
गर्भवती बहू को सासु जी का आदेश,
उबाली गई जल में नीम की पत्तियाँ
नहाने के लिए जच्चा जरूर प्रयोग करे।
धुला कमरा, धुली चादर,  साफ बिछावन पर
पूरे पत्तों वाली टहनियाँ नीम की,
अंधविश्वास मान लेते हो!
उनको कसो न वैज्ञानिक
कसौटी पर एक-एक कर।

रवि-शशि का दान,
वृक्षों का परिदान।
छठ-चौथ को निहोरा/मनुहार
वट को धागे में लपेट लेना,
कान्हा को मानो जैसे
यशोदा ने बाँधा हो ओखल
यमलार्जुन का शाप-मुक्त होना
सृजक स्त्रियाँ
बखूबी सब समझती हैं।

सागर में बूँदों की तरह,
अनेकानेक हैं जो सालों भर,
पर्यावरण पर सोच-विचार करते हैं।
हम जैसों की नींद खुलती है
जब संकट में खुद को घिरा पाते हैं।
आ जाओ ईदी में वृक्ष लगाते हैं,
सारे रिश्तेदारों को
हम सदा जीवित रखते हैं।
छाल में विष्णु ,जड़ में ब्रह्मा और
 शाखाओं में शिव का वास मानने वाले कहते हैं,
सिर्फ और सिर्फ ऑक्सिजन प्रदाता
रोग निवारक वट अक्षय होते हैं।


Monday 3 June 2019

बस यूँ ही


हमें क्या पसंद हमें क्या अच्छा लगता
इससे आगे हमारा दायरा कहाँ बढ़ता
रात रात क्यों है रोने का ढूंढ़ता बहाना
चक्रव्यूह अभेदक स्व गढ़कर रखता

मरु पै पड़ी रश्मि प्यासा माखौल रब कहता।
दूसरा दूसरे के दर्द का थाह ले नहीं सकता।
गुलशन के सजे सँवरे में भौंरा अटका रहे,
अंदर का बिखरा समेट लेने में समय लगता।

होड़ लगी है कितना का कितना हसोत लें।
छल-बल से मेढ़ खा सारा का सारा जोत लें।
जो संग जाता दुनिया को गठरी में बाँध लेते
परवरिश भुला संस्कार पर कालिख पोत लें।

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...