Tuesday, 25 June 2019

इकीसवीं सदी : बदले वक़्त की बदली हवा



लू के थपेेड़े–
दस्यु स्त्रियों की भीड़
जूस ठेले पे।


महिला महाविद्यालय के सामने खड़ी हो हर आने-जाने वाली लड़कियों को बहुत गौर से निहार रही थी(आज प्रख्याता के रूप में उसका पहला दिन था) ,लेकिन कोई चेहरा नहीं दिख रहा था।

 सबके चेहरे ढंके हुए थे... "दस्यु सुंदरी बनना है क्या?" दाँत पिसती शिक्षिका की आवाज से उसकी तन्द्रा भंग हुई.. बौखलाहट में वह दाएँ-बाएँ देखने लगी फिर उसे सहमी कन्या याद आई जो एक दिन दुप्पटे को नकाब बनाये खल्ली(चौक) को सिगरेट रूप में उठा ही रही थी कि वर्ग शिक्षिका(क्लास टीचर) चिल्लाती कक्षा में प्रवेश की,"कल तुम अपनी माँ-पापा को लेकर विद्यालय आना, लगता है तुम्हें चंबल जाने का शौक है... अभिभावक को बेटी के शौक का पता होना चाहिए...!" उसकी तो घिघ्घी बंध गई थी और बहुत आरजू-मिन्नतों के बाद वह गुमनाम होने से बच पायी थी।

2 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन

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  2. लाजवाब सृजन विभा दी ।

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