Wednesday 27 September 2017

भ्रम टूटा


20 सितम्बर को दिल्ली स्टेशन पर ट्रेन में बैठे साढ़े ग्यारह-बारह बजे तक फोन से बात कर सोई तो सुबह चंडीगढ़ में आँख खुली... सधारणत: ऐसा मेरे साथ होता नहीं है .... मेरी नींद इतनी गाढ़ी कभी नहीं हुई कि समान चोरी हो जाये... फोन चोरी होने से सबसे सम्पर्क खत्म हो गया.... 

"रणनीतिज्ञ"


"सक्सेना मैम... मैम... सक्सेना मैम..."
आश्चर्य हुआ उसे कि देश से इतनी दूर जर्सी के सड़क पर उसे कौन आवाज दे सकता है फिर भी मुड़कर देखी तो एक नौजवान दौड़ता हुआ उसकी ओर आता दिखा
और करीब आकर उसके चरण-स्पर्श कर बोला "आप मुझे पहचान नहीं सकीं न ?"
"नहीं! नहीं पहचान सकी... आप कौन हैं और मुझे कैसे पहचानते हैं ?"
"दो साल मुझे विद्यालय में आये हो गये थे... सभी सेक्शन की शिक्षिकाएं मुझसे त्रस्त हो गई थीं... मैं बेहद उधमी बच्चा था... आख़िरकार मुझे सुधारने के लिए आपके सेक्शन में भेजा गया... आपने मुझे एक महीना उधम मचाने दिया बिना रोक-टोक के... एक महीना कुर्सी से बाँध कर रखा ,कक्षा शुरू होने से लेकर कक्षा अंत होने तक... पूरे एक महीने के बाद जो आज़ादी मिली तो उधम-उत्पात खो गये थे...
"ओह्ह्ह! कौशल?" चहक उठी सक्सेना मैम...

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...