"सोच का सृजन"
Sunday 17 March 2024
दुर्वह
Thursday 29 February 2024
वामन का चाँद छूना : २९ फरवरी २०२४
“स्तब्ध हूँ! यह पोशाक विदेशी दुल्हन का होता है जो यह सिर्फ़ एक तस्वीर खिंचवाने के लिए शौक़ से पहन ली हैं!”
“तो क्या हो गया! हिर्स में पहन ली!”
“हुआ कुछ नहीं… अभी उनके माथे से सिन्दूर पोछाए हुआ ही कितना दिन है! क्या ज़रा भी मलाल झलकता है आपको? भगवान ना करे किसी पर ऐसा दिन आए लेकिन आ गया तो थोड़ा तो लोक लिहाज़ का ख़्याल कर आज़ाद होने के दिखावे से परहेज़ किया जाना चाहिए कि नहीं?”
“किस लोक लिहाज़ की चर्चा कर रही हैं! उसी लोक लिहाज़ की जिसके कारण आप अपने को ड्योढ़ी के अन्दर क़ैद कर ली हैं! व्रत त्योहार में भी पैर हाथ नहीं रंगती हैं!”
“मैं तो किसी आयोजन में नहीं जा पाती हूँ! हित नात वाले लगातार फोन पर खोज-ख़बर लेते हैं…! मेरी देवरानी मुझसे बहुत छोटी है वो भी मुझसे ज़्यादा दयनीय स्थिति में समय गुज़ार रही है!”
“अपने हित नात वालों के लिए उनका हद तय कर दें! आप से उम्मीद की जाती है कि अपनी देवरानी के लिए आप बड़ी बहन बन दोनों के राह के काँटें हटा सकती हैं!”
Sunday 4 February 2024
मानी पत्थर
“दो-चार दिनों में अपार्टमेंट निर्माता से मिलने जाना है। वो बता देगा कि कब फ्लैट हमारे हाथों में सौंपेगा! आपलोग फ्लैट देख भी लीजिएगा और वहीं से हमलोग ननद के घर रात में रुककर, दूसरे दिन वापस आएँगे..!” देवरानी ने कहा।
“तुमलोग चली जाना, मैं नहीं जा सकूँगी।” जेठानी ने कहा।
“क्या आप हमारा घर देखना नहीं चाहेंगी?” देवर ने पूछा।
“देखूँगी न! अवश्य देखूँगी जब आपलोग उस घर में व्यवस्थित हो जाएँगे। आ जाऊँगी किसी दिन आपके घर से मिलने।” भाभी ने कहा।
“इस बार तुम्हारा चलना अलग बात होती…।” जेठानी के पति ने कहा।
“तब क्या अलग बात नहीं थी जब आपने फ्लैट खरीदा था। ख़रीदने के पहले कम से कम दस फ्लैट को जाँच-परखकर, मोल-भाव हुआ होगा। नहीं-नहीं पहले तो योजना बनी होगी; उसके पहले भी रक़म जमा की गयी होगी। किसी एक पड़ाव पर मेरे कानों तक बात पहुँची होती।” जेठानी ने कहा।
“लगभग बीस-पच्चीस साल पुरानी बातों का क्या बदला लेना चाह रही हो?” जेठानी के पति ने पूछा।
“बदला! किस-किस बात का बदला लूँ और क्या उस पल का बदला लिया जा सकता है? आपके संग आपसे मिले सारे रिश्तों ने मेरे सम्मुख केवल अपनी-अपनी माँग रखी। और मैं अधिकार का बिना कोंपल उगाये अपना संपूर्ण अस्तित्व कर्त्तव्यों के पीछे विलीन कर सारी उम्र ख़र्च कर गयी। आपने अपने मित्र और उनकी पत्नी के संग बड़े से फ्रेम में लगी अपनी जो तस्वीर को अलमीरा में डाल रखा है। आप दोनों मित्र एक दिन ही सेवा निवृत हुए थे। मैं अपने बुलावे का देर रात तक प्रतीक्षा करती रही…।” जेठानी ने कहा।
Wednesday 24 January 2024
उलझे रहो
।। विचार -सार।। -रावत
लक्ष्य क्या है ? यदि उसमें शुभ संकल्पों की नींव न हो । पराजय फिर निश्चित है।
रावत-:- आदि शंकराचार्य की दार्शनिक शिक्षाओं में, यह कथन श्री राम की न केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक व्यक्ति के रूप में, बल्कि सर्वोच्च वास्तविकता के अवतार के रूप में गहन समझ को समाहित करता है। शंकराचार्य के अनुसार, श्री राम एक दिव्य मार्गदर्शक के रूप में सेवा करने के लिए मानव रूप में अवतरित हुए, जो पारलौकिक ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाने वाला मार्ग बताते हैं। सर्वोच्च वास्तविकता के रूप में श्री राम का उल्लेख इस धारणा पर जोर देता है कि परमात्मा उच्च आध्यात्मिक समझ चाहने वाले व्यक्तियों के लिए मार्ग को रोशन करने के लिए मूर्त मानवीय अनुभव में प्रकट हो सकता है। इस संदर्भ में, श्री राम का जीवन और शिक्षाएं एक आध्यात्मिक रोडमैप बन जाती हैं, जो अस्तित्व की प्रकृति, आत्म-जागरूकता और परम सत्य की ओर यात्रा में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। आदि शंकराचार्य का दृष्टिकोण दिव्य ज्ञान की सार्वभौमिकता और मानव अनुभव के भीतर दिव्य को पहचानने में निहित परिवर्तनकारी क्षमता को रेखांकित करता है।
विलक्षण-:- अति उत्तम! जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि राम का नाम राजनीति का या धार्मिक विषय है ही नहीं।
शंकराचार्य जी ने यही तो समझाने का किया है, जिसे समझने में हिंदू जनमानस सदैव की भाँति आखिरकार असफल साबित हुआ है। हम वे हैं, जिन्होंने विश्व की ज्ञान दिया, और यह भी हम ही हैं कि मानसिक रूप से दिवालियेपन की ओर बढ़ रहे हैं। यदि इसे राम से जोड़कर देखें तो समझ आ जाएगा कि हमने राम को समझने में कहाँ गलती की है।
राम एक राजकुमार हैं, किंतु सामान्य बालक की भाँति वन में जाकर शिक्षा पूरी करते हैं। शस्त्र और शास्त्र का उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त करते हैं। इतने से ही नहीं, विश्वामित्र के साथ फिर वन चले जाते हैं। कुछ राक्षसों का वध करते हैं और फलस्वरुप उत्कृष्ट अस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह सब क्या था? चाहते तो महल में रहकर भी शिक्षा पूरी कर सकते थे। विश्वामित्र साथ जाने से इंकार कर सकते थे, लेकिन नहीं। उन्हें पता है कि यह सब तो सोने को तपाकर कुंदन बनाने की प्रक्रिया है। यदि ऐसा न होता तो अच्छे धनुर्धर तो बन जाते, लेकिन जीवन के कष्टों को इतनी सरलता से न झेल पाते। रावण जैसे अति बलशाली को हराना असंभव था। संभवतः शिव धनुष को उठाने में भी असफल हो जाते।
विभा-:-विवेकशील होने के लिए सन्तुलित होना होता है अभी तो असन्तुलन का काल है… अहं ब्रह्माऽस्मि का काल…! वरना बिना दानव के देव कब थे..! वैसे भी ईश्वर बनना आसान है इन्सान बनने से…
Tuesday 24 October 2023
घर्षण
"दो बार का मस्तिष्काघात और एक बार का हल्का पक्षाघात सह जाने वाला पति का शरीर गिरना सहन नहीं कर पाया। कलाई की हड्डी टूट गयी। सहानुभूति रखनेवालों का पत्नी के पर कुतरने का प्रयास जारी है।"
Wednesday 18 October 2023
उधेड़बुन : उपचारिका की डायरी : एकालाप शैली
26 जनवरी 2006
पद्मश्री थामते हुए रोयें गनगना नहीं रहे थे। रोयें फ्लोरेंस नाईटिंगेल पुरस्कार छूते हुए भी नहीं गनगनाये थे। चिकित्सा का लाभ उठाने के लिए सुनामी से प्रभावित जनजाति जिन्हें नेग्रिटो नस्लियों स्टॉक कहा जाता था को मनाने में छठी का दूध याद आना हो जाता था। लेकिन चुनौती के दाँत खट्टे कर ही डाली।
25 जून 2014
बता दूँ! नहीं बताती हूँ! झूठ कैसे बोलूँगी... बता ही देती हूँ! लेकिन बता देने के बाद जो परिणाम होगा उसकी जिम्मेदारी किसके कन्धे पर होगी। सेक्सटॉर्शन में फँसकर बुजुर्ग ने आत्महत्या करने का प्रयास किया है। दो दिन के उलझन के बाद आज बुजुर्ग के बेटे को बता ही दिया। उसने वादा किया है। शान्ति से सोच समझ कर समस्या का हल निकालने में मेरी मदद लेगा।
14 अगस्त 2016
आज न्यायालय से हमारी शादी का पंजीयन हो गया। रिश्तेदारों का मानना था कि धनी परिवार की लड़की के लिए उपचारिका का पेशा बिलकुल सही नहीं है। इसलिए मैंने शादी ही नहीं करने का निर्णय लिया था। लेकिन सौगन्ध थोड़े न खायी थी। सेक्सटॉर्शन से उबरे बुजुर्ग और उनके बेटे की ज़िद के आगे मेरा निर्णय टिक नहीं सका।
20 मार्च 2020
आज हमारे अस्पताल में एक आकस्मिक मीटिंग के लिए बुलाया गया था। मीटिंग में हमें बताया गया कि हमारा हॉस्पिटल कोविड के मरीजों को भर्ती करेगा और हमें खुद को इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार करना होगा। हम घर परिवार से दूर होंगे। मेरी बेटी एक साल की रिया को छोड़कर कैसे जाऊँ? अस्पताल ने मेरा नाम पुन: राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भेजा है। नहीं जाऊँ तो श्रम से की गयी सेवा के बदले जो सम्मान मिला है वह धूल धुसरित हो जायेगा!
Thursday 5 October 2023
धर्म में शर्म नहीं!
"आज भी कुछ घरों के मंदिर में मिलता प्रवेश नहीं है, क्या पूर्वजों के बनाए नियम में दोष नहीं है!"
"आराम का संदेश, सभी नियमों में अहित समावेश नहीं है। ये जो हमलोगों को मिली नियति से शक्ति है, क्यों तुम और तुम्हारी सखी झिझकती है!"
"पैड प्रयोग करने की जागरूकता बढ़ी है। लेकिन कूड़ा निपटाने की समस्या ज्यादा सर चढ़ी है।"
"रुढ़ियों को तोड़ों! स्वास्थ्य को बचाना है, पढ़ो-लिखो आगे बढ़ते जाना है।"
"हमारे घरों की सहायिकाओं को स्काउट गाइड में प्रवेश दिलवाना है।"
"अवश्य! उत्तम प्रशिक्षण। ना इसमें ना कोई भेदभाव है ना जातिवाद होता है। क्या समाज को देना है, क्या जीवन से पाना है, तुम सभी का क्या लक्ष्य है?"
"पूछने वाला कोई गाँवों का हाल नहीं है। वहाँ वृद्धाश्रम का चाल नहीं है। मल पर पड़े तन्हा वृद्धों की सेवा करना, हमारा ध्येय है।"
"जब बचाने की बात हो तो वृक्ष छोड़ दिए जाने चाहिए, बीज को कभी भी नहीं छोड़े जाने चाहिए। क्योंकि बीजों से फिर नए वृक्ष हो ही जाते हैं।"
Tuesday 26 September 2023
अभियंता की डायरी : सारथी की यात्रा
मई 1998
बतौर कार्यपालक अभियन्ता गोदाम का दायित्व भार संभालते हुए ही बात समझ में आ गयी थी कि छोटी मछली को लील लेने के लिए व्हेल के संग अजगर मौजूद है। किसी कम्पनी को काली सूची में डलवाने में प्राण खतरे में आ जाना स्वाभाविक था।
जुलाई 2013
ईमानदारी का सूरज भभक गया। दो-चार नहीं, पाँच-छ वरिष्ठ अभियंताओं को दरकिनार कर मुझे पदोन्नति देकर मुख्य कार्य भार दिया गया। जाति विशेष से आक्रांत क्षेत्र को सुरक्षित करने में प्राण जोखिम में पड़ना ही था। इस सरकारी जिम्मेदारी के कारण एक राष्ट्रीय संगठन-बहु-विषयक पेशेवर निकाय के सर्वोच्च पद के लिए पंजीयन नहीं करवा रहा हूँ।
अगस्त 2015
तीन सौ करोड़ में से चुनाव लड़ रहे नेताओं को सौ करोड़ का हिस्सा चाहिए था जो मेरे रहते सम्भव नहीं था तो रातोरात मेरा तबादला पूर्व पद से भी नीचे कर दिया गया। और इस तनाव का असर मुझे मेरे मस्तिष्क आघात के रूप में मिला। एक बार नहीं दो बार।
जुलाई 2017
राम-राम करते मेरी सरकारी नौकरी से बा-ईज्जत सेवानिवृत होकर प्राण सस्ते में सांसत से भी स्वतंत्र हो गया। अब पूरा समय राष्ट्रीय संगठन को दे पाऊँगा। कई बार प्रांत शाखा के उच्च पद हेतु अधिक मत से चयनित हूँ।
जून 2022
सभी ज़िद कर रहे हैं, राष्ट्रीय संगठन के सर्वोच्च पद के लिए चुनाव लड़ लूँ! लेकिन मैं जानता हूँ कि संगठन में हो चुके लगभग पैतीस-चालीस करोड़ के घपले का निपटारा मुझसे नहीं हो सकेगा। रेल के वातानुकूलित कुप्पे में चलना जब जेब को भारी लगे, हवा में उड़ने के सपने देखना मूर्खता है।
सितम्बर 2023
राष्ट्रीय संगठन की प्रान्त शाखा के उच्च पद {लगभग चौदह साल (कोरोना की वजह से अतिरिक्त साल का मौका मिल जाने की वजह से ) के बाद} से मुक्त हो गया। अब राष्ट्रीय संगठन के युवा सदस्यों को योद्धा बनाने में ज्यादा समय लगाऊँगा।
Monday 4 September 2023
कोढ़ में खाज
"नमस्कार राष्ट्रीय संयोजक महोदय! 49897 यानी लगभग पचास हजार सदस्यों वाली आपकी संस्था अपनी 13 वीं वर्षगाँठ मना चुकी है। ५० हजार कलमकारों को एक मंच पर लाना। ७५००० किलोमीटर से अधिक की साहित्यिक यात्रा का किया जाना। उसके लिए और आज होने वाले 'एक शाम माँ के नाम' के ३०२५ वें कार्यक्रम की बधाई स्वीकार करें।"
"नमस्कार के संग आपका बहुत-बहुत धन्यवाद पत्रकार महोदय।"
"राष्ट्रीय साहित्यिक कार्यक्रम में देखा यही गया है कि श्रोता कम होते हैं। वही व्यक्ति साहित्यिक कार्यक्रम में सम्मिलित होना चाहते हैं जिन्हें रचना पाठ करने के लिए अवसर मिल सके। मंचासीन हो जाएँ तो सोने पर सुहागा। इस कार्यक्रम की ऐसी कोई विशेष बात जिसे साहित्य और समाज हित/अहित की हो साझा करना उचित हो।"
"है न! एक प्रतिभागी का औडियो में जानकारी पूछा जाना!"
"कैसी जानकारी"
"उनका कहना था कि आप के द्वारा हमें किस रूप में आमंत्रित किया जा रहा है श्रोता के रूप में या स्पर्धा प्रतिभागी के रूप में। क्या हमलोग अब प्रतिद्वंद्वी प्रतिभागी बनने के योग्य हैं या आने वाली नयी पीढ़ी के बीच स्पर्धा होनी चाहिए!
मेरे पास एक और अति आवश्यक महत्त्वपूर्ण कार्य आ गया है। आपके बताये निर्णय पर मुझे भी चयन करना होगा कि मेरे लिए ज्यादा लाभकारी कौन सा है।"
"ओह्ह्ह,उन्हें चयन करना है कौन ज्यादा लाभकारी है! ऐसे-ऐसे व्यापारी! आयोजक से ऐसी बात कर लेना बौनेपन की निशानी है। ऐसे साहित्यिक दीमक ही बढ़ रहे हैं! अफसोस के साथ विदा होते हैं कि हमारे राज्य की यात्रा में आपको ऐसे अनुभव हुए।
Wednesday 30 August 2023
खीर में नमक
"फजीरे-फजिरे काहे एतना बीख चढ़ल बा?"
"बीख त कालहे चढ़ल रहे रातवए में मेल कर देले बानी। लघुकथा के story लिखाईल बा•••,"
"चर्च में गणेश भगवान के पूजा शोभा ना दिही नु•••!ओहि तरे मंदिर में चादर/फादर ना होखे के चाहीं।अंग्रेजवा चल गईलन स बाकी ऐह लोगन के छोड़ दिहलन स, ललाटवा पे गुलामी लिकखवा ले ले बा लोग"
"मठ चाहीं सभन के एही देश में ••• लेकिन वफादारी निभाई लोग परदेश में••• चाकरी के कवनों हद नईखे! गलीयन में पटटवा भी लटकावला के काम बा।"
"लघुकथा को अंग्रेजी में भी लघुकथा ही कहा जाता है"
StoryMirror Hindi
-हमें जो प्रमाणपत्र मिला उसमें story लिखा हुआ है
-पूरा प्रमाणपत्र अंग्रेजी में है
आपलोगों के द्वारा विधा के संग लेखन का भी अपमान हो गया
-30 दिनों का समय और श्रम निरर्थक होने का अफसोस नहीं है•••
Thursday 24 August 2023
जलेबी
“पूरी दुनिया में हमारे द्वारा बनाए नीड़ के भी लाखों-करोड़ों खर्च करने वाले प्रशंसकों की भीड़ हैं और मान लो कि मेरे पंख तुमसे बेहतर हैं ही।” अबाबील चहक रही है।
“वाकई तुम्हारे पंख दिखने में मेरे पंखों से कहीं अधिक सुंदर हैं। लेकिन मेरे पंख ज्यादा बेहतर हैं क्योंकि ये हर मौसम में मेरे साथ रहते हैं और इनके कारण मौसम चाहे कैसा भी हो, मैं हमेशा उड़ पाता हूँ।"
रहिमन निज मन की विथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय।
किस भाव से ध्यान करे उलझा मरीचि तोय
जपत-जपत अवसाद में काहे न जगत होय।
महत्वपूर्ण ये नहीं है, कि वास्तविकता क्या है… बल्कि, महत्वपूर्ण ये है कि, आप अपनी बात को सही साबित करने के लिए कितने संभावित तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं….!!
बारह मंजिला खिड़की से गिरा दी गई या नशे में गिर गई, सीढ़ी से पैर फिसला या गला दबाने के बाद फेंक दी गई, कुल्हाड़ी से या हथौड़े से मारी गयी•••!
उत्तेजक क्या रहा होगा•••! पोस्टमार्टम रिपोर्ट कौन बदल रहा•••! कैसे दुनिया जानेगी कि मनमोहना ने प्रेमी के संग मिलकर हत्या की या झूठा दहेज उत्पीड़न में आत्महत्या कर लेने हेतु उकसाया गया•••!
गले में नाग की तरह परिश्रावक/स्टेथॉस्कोप को लटकाये तहबंद/एप्रन को चढ़ाए चिकित्सकों-उपचारिकाओं और काले कोट धारक अधिवक्ताओं की हड़ताल पर बैठी भीड़ में बहस जारी है।
चिकित्सक-साहित्यकार पत्नी और उच्च पदाधिकारी- अधिवक्ता पति की लाश, समाज को मनुष्यता विमर्श के कटघरे में ला पटकी है। आगे प्रतीक्षा है न्याय क्या होता है•••!
छायाचित्र उतारनेवाले मित्र-बन्धु राजेन्द्र पुरोहित और अनिल मकरिया के संग सोशल मिडिया से आपकी खबरी विभा रानी श्रीवास्तव का नमस्कार और अब हम विदा लेते हैं!
दुर्वह
“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...
-
अन्य के कार्य देखकर पीड़ित होना छोड़ दिया... कुछ पल का बचत.. एक वक्त में एक कार्य तो इश्क करना आसान किया लाल घेरे में गूढ़ाक्षरों को करे हिन...
-
मेरे देवर का बेटा तीन दिन से दुर्घटनाग्रस्त होकर गहन चिकित्सा विभाग में भर्ती था। आज लगभग साढ़े चार बजे हम पुनः गहन चिकित्सा विभाग के सामने...