Tuesday, 31 December 2024

दोहरी मार

अप्रैल २०२४ में सुगर लैंड/ह्यूस्टन जाने का टिकट कट रहा था तो वापसी की बात चली। १५ दिसम्बर को बेटे को बैंगलोर पहुँचने का टिकट था। वह हर साल दिसम्बर में आता है और जनवरी में वापस जाता है तथा फरवरी तक में पुनः दिसम्बर में आने का टिकट कटवा कर रख लेता है! जब हमें दिसम्बर में आना ही है तो हमलोग ४ दिसम्बर के महोत्सव के लिए १ दिसम्बर को पटना आ जाते हैं और फिर १२ दिसम्बर को बैंगलोर आ जाएँगे। तय दिन हमलोग जैसे १ दिसम्बर को पटना पहुँचे तो ख़बर आयी मेरी भाभी का देहांत हो गया। भागे-भागे मायके के गाँव पहुँचे। एक-एक पल काटना मुश्किल उससे ज़्यादा मुश्किल निर्णय कि दाह-संस्कार के पहले मुझे अकेले पटना निकल जाना है। आज भी परम्परा है कि दाह संस्कार के बाद बिना श्राद्धकर्म बीते देहरी नहीं छोड़ी जा सकती…! नहीं जाने से प्रलय नहीं आ जाता लेकिन अपने ही स्वभाव की दवा नहीं होती! देश के कोने-कोने से सभी को आमंत्रित कर ख़ुद नहीं उपस्थित होना स्व की नजरों में ग़लत लग रहा था! हिम्मत बटोरकर निकल चली। किसी के नजरों में देखने का साहस नहीं हो रहा था। भतीजा सब को सामने से हटाना कितना कठिन था यह शब्दों से नहीं अभिव्यक्त हो सकता था! २ दिसंबर की देर रात तक पटना पहुँच जाने के बाद हिम्मत नहीं किया किसी को फ़ोन कर हाल पुनः लिया जाये! ३ दिसंबर को आगन्तुक आमंत्रित अतिथियों के संग पटनासिटी गुरुद्वारा और हरिहर सोनपुर मंदिर घुमाने का कार्यक्रम था-सभी के संग मेरी उपस्थिति थी मेरी मानसिक-शारीरिक अवस्थाएं मेरे मन के साथ विद्रोह करने बावजूद साथ देने के लिए बेबस! शाम तक घर वापस हुई। घर में अकेले होने के बाद पानी तक पीने की इच्छा नही! ४ दिसंबर को आयोजन स्थल पहुँची तो म ग स म के राष्ट्रीय संयोजक महोदय पहले पहुँच चुके थे और स्थल पर ३ दिसम्बर को शादी स्थल होने से बिदाई के बाद : उजड़ा गुलिस्ता मातम की स्थिति बिखरा सामान और स्थल का कर्मचारी यह मानने के लिए तैयार नहीं कि उस समय से वहाँ कोई साहित्यिक महोत्सव आयोजित होने के लिए बुकिंग है और आधे घण्टे में पूरे देश से आए साहित्यकारों की उपस्थिति होने वाली है । हमारा जो दीप था उसको उठा ले गया। राष्ट्रीय संयोजक महोदय उससे दीप निकलवा कर लाए तो वह जिद पर अड़ गया कि आपलोग कमरे से बाहर निकल जाइए ताला बन्द करेंगे। चार बजे से आइएगा। बिहार में शराब बंदी का ढोंग है। वह कर्मचारी पूरे नशे में था उससे बात हो ही नहीं पा रही थी। किसी शराबी के पास खड़ा होना मुझे कभी पसन्द नहीं रहा और उस दिन की मेरी मजबूरी कि मैं उसे समझाने का प्रयास करूँ! केवल विवशता थी कि मैं अतिथियों को आमंत्रित कर बैठी थी! दिमाग़ में चल रहा था कि यह दोहरी मार किस कारण से सहना पड़ रहा है…! विषय समझने के बाद सोचना शुरू हुआ। सोचते रहे, ऐसा क्या है जिसे बदलना चाहिए…! स्वयं की कमियों को बदलना चाहिए या समाज में फैली विसंगतियों-कुरीतियों को! सोचने-विचारने के बाद लगा समाज को बदलने से आसान है स्वयं को बदल लेना। अब उम्र के इस पड़ाव पर स्वयं में बदलाव…! बूढ़ा सुग्गा पोस मानेगा क्या…! फिर सोचने लगी मुझमें ऐसी क्या बात है जो बदल लेनी चाहिए। वैसे आदत-स्वभाव-हस्ताक्षर कहाँ बदलाव पाते हैं! फिर भी आकलन करने पर लगा मेरी जो आदत बन गई है-समय के महत्त्व को समझने की, घड़ी की सुई बाद में अपने निर्धारित स्थान पर पहुँचती है मैं उससे बहुत पहले अपने निर्धारित स्थान पर पहुँच जाती हूँ। कभी-कभी ताला बंद रहता है। कभी दूसरों की घूरती निगाहों से बचने की जो कोशिश करती हूँ उससे मुझे क्या लाभ मिलता है। कभी दरी-कालीन बिछाने वाले, कुर्सी -मेज़-सोफा लगाने वाले, गुलदान-फूल-झालर सजाने वाले, इस किनारे से उस किनारे तक बचकर निकलने वालों की जब मुखाकृति आधुनिक चित्रकारी सी बनती हैं तो नासमझदार होने का अभिनय करने में मुझे क्या आनन्द आता है! जब मुझे कोई आमन्त्रित करता तो मैं उससे सही समय पूछती हूँ तो उसका/उनका हकलाना मुझे क्यों मुस्कुराने पर बेबस करता है! नाहक रटते रहते हैं कि

“जल की तरह पल होते हैं : बह जाते हैं”

“अपने समय को बर्बाद करने से आप अपने जीवन को बर्बाद कर रहे हैं।"

“बीता हुआ कल एक रद्द किया हुआ चेक है; कल एक बचत खाता है; आज नकदी है– इसका बुद्धिमानी से उपयोग करें।”

 "जो समय का सम्मान करता है, समय भी उसका सम्मान करता है।"

“कल का काम आज करो और आज का अभी।"

अपने जैसा समय की पाबंदी दूसरों से वही उम्मीद करने लगती हूँ तो क्यों नहीं मुझे अनुचित लगता है! उन्हें क्यों चेताती रहती हूँ , “समय की अच्छी बात यह है कि हर किसी को सब कुछ समझने का मौका देता है, साथ में अपना और पराया कौन हैं यह देखने को मिलता हैं।”

उलटे दूसरे मुझसे लचीला होने की बात करते हैं तो क्यों मुझे झुँझलाहट होती है…! परीक्षक से बेहतर है परीक्षार्थी जिन्हें कहा गया था वे तो बहुत कम समय के लिए परीक्षा भवन में थे! उन्हीं का देश है। भारत अंग्रेजों का देश थोड़े न है! भारतीयों के पास समय की बहुलता है। निर्धारित समय से दो-तीन घंटे का विलंब हो जाने से कौन सा गठरी कोई उठा ले जाएगा। रात अपनी बात अपनी विलंब होने का कोई क्यों ग़म करे! मुझे ख़ुद को बदलने में देरी बिलकुल नहीं करनी चाहिए! न! न! समाज को बदलने के बारे में सपने में भी सोचना बड़ा अपराध होगा! जिस राज्य की वासी हूँ उस राज्य में शराबबंदी है। अगर मुझ में विलम्ब से पहुँचने की आदत होती तो किसी शराबी से भेंट नहीं होती और न मुझे उससे उलझना पड़ता और ना मैं अपने राज्य की शिकायत कर रही होती। शिकायत करनी बहुत बुरी बात है। सत्य नहीं बोलना चाहिए मुझे अपनी इस आदत को भी बदल लेनी चाहिए। सत्य बोलना भी अपराध होता जा रहा है! इन आदतों के कारण कितना नाम पड़ा मेरा खड़ूस, हिटलर! भला! हिटलर की आत्मा होगी मेरे आस-पास तो क्या सोचती होगी। मुझे बिलकुल बदल जाना चाहिए! जाते दिसम्बर में ख़ुद में बदलाव लाने की पूरी कोशिश करने का वादा ख़ुद से ख़ुद करती हूँ!

6 comments:

  1. म ग स म
    ये क्या है
    शुभ हो हरदम

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    Replies
    1. म ग स म
      मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 05 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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