Tuesday 24 February 2015

क्षणिकाएँ


 होली की ठिठोली
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1

झूमो झनको
रंग पानी सा मिलकर
भूलें गिले होकर गीले
झगड़ना या झरना बन बहना
एक दूजे में झलको

2

स्वप्न का धनक निखरे
गैर बिराना मौन ना बचे
पुताई हर दिल हर चेहरे हो
प्यार खरीदार सारे बचे
चहक चहुँ ओर बिखरे

3

जर्द धरा चेहरे पे दर्द
किसने क्यूँ फैलाई
यादों की बुक्कल हटाओ
मलो रंग अबीर मलाई
हटे फिजाओं से सर्द

4

मन ना अश्लील करो
डूबा रंग पोखरे हलकान करो
सलहज भौजी ननद साली
हो जाती सब दिलदार भोली
व्यवहार हमेशा श्लील करो

5

कर गया चोरी दर्जी
सिल दी तंग चोली
बरजोरी की , ले रंग
दंग हमजोली
तोड़ डाले कांच से रिश्ते
बिना जाने उस की मर्जी 

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Sunday 15 February 2015

फागुनी प्यार

तीन महीनों से अलग अलग कई शहरों में ; अपनों के बीच
कई शादी समारोह में शामिल होने का मौका मिला ...
हर स्त्री -पुरुष को सजते संवरते देख अच्छा लगा .... 
सब जगह मैं अलग थलग सी लगती बिना सजे संवरे ..... कई लोगों ने टोका ..... मैं कल सोची ... कुछ मैं भी अभ्यास कर लूँ ,दो-तीन दिन बाद फिर एक शादी समारोह में शामिल होने जाना है ..... जैसे ही चेहरे पर कुछ लगाने का शुरू ही की कि ये पीछे से आकर पूछे क्या हो रहा है .....
मैं चुप ....
ये गहरी मुस्कान बिखरते हुए ..... चमेली है क्या 
प्यार का नमूना हजारो में से एक .....
हिन्द में प्यार जाहिर करने के लिए , ना दिन तारीख और ना समय तैय है …..
 हम तो प्रतिदिन प्रतिपल इजहारे इश्क में होते हैं

1

खड़का कुण्डा
हुआ ठूंठ बासंती
फागुनी थापी ।

2

बिंधे सौ तीर
बिन पी , मीन साध्वी
फागुनी पीर ।

3

बिखरी रोली
तरु बाँछें खिलती
फगुआ मस्ती।

4

शिकवा / सताया हेम
विरही-भृंग पीड़ा
कली सुनती।


तब शुरु शुरु कांटी थर्मल में रहने आये थे
कुछ भी खरीदना हो तो मुजफ्फरपुर जाना होता था ;पहली बार बाजार गए ,साडी ही खरीदने  उस बाजार में दोनों तरफ दुकानें और बीच की सडक गली जैसे हालात और भीड़ आदमी पर आदमी
साडी खरीद कर बाहर हम आये तो मैं भीड के चलते मोटरसाइकिल पर बैठने में देर कर दी पति महोदय को लगा होगा मैं बैठ चुकी वो नौ दो ग्यारह
भीड के शोर के कारण मेरी आवाज भी नहीं सुन पाये
अब मैं कैसे कहाँ जाऊँ बैचैन खडी सोच रही थी थोडी देर में मेरे देवर सामने से मोटरसाईकिल से गुजर गये मैं बाबु बाबु पुकारती रह गई तब किसी का नाम लेना अपराध था
पति महोदय देवर के घर गए आराम से नाश्ता किये जब चाय पीने लगे तो मेरी देवरानी पुछी दीदी क्यों नहीं आईं तो होश आया अरे तुम्हारी दीदी तो आई है
कहाँ हैं ? बाजार में तो नहीं छुट गई
तब हडबडाये घबडाये आये
मैं तो वहीं खडी थी जहाँ छोड गये थे


दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...