तीन महीनों से अलग अलग कई शहरों में ; अपनों के बीच
कई शादी समारोह में शामिल होने का मौका मिला ...
हर स्त्री -पुरुष को सजते संवरते देख अच्छा लगा ....
सब जगह मैं अलग थलग सी लगती बिना सजे संवरे ..... कई लोगों ने टोका ..... मैं कल सोची ... कुछ मैं भी अभ्यास कर लूँ ,दो-तीन दिन बाद फिर एक शादी समारोह में शामिल होने जाना है ..... जैसे ही चेहरे पर कुछ लगाने का शुरू ही की कि ये पीछे से आकर पूछे क्या हो रहा है .....
मैं चुप ....
ये गहरी मुस्कान बिखरते हुए ..... चमेली है क्या
प्यार का नमूना हजारो में से एक .....
हिन्द में प्यार जाहिर करने के लिए , ना दिन तारीख और ना समय तैय है …..
हम तो प्रतिदिन प्रतिपल इजहारे इश्क में होते हैं
1
खड़का कुण्डा
हुआ ठूंठ बासंती
फागुनी थापी ।
2
बिंधे सौ तीर
बिन पी , मीन साध्वी
फागुनी पीर ।
3
बिखरी रोली
तरु बाँछें खिलती
फगुआ मस्ती।
4
शिकवा / सताया हेम
विरही-भृंग पीड़ा
कली सुनती।
तब शुरु शुरु कांटी थर्मल में रहने आये थे
कुछ भी खरीदना हो तो मुजफ्फरपुर जाना होता था ;पहली बार बाजार गए ,साडी ही खरीदने उस बाजार में दोनों तरफ दुकानें और बीच की सडक गली जैसे हालात और भीड़ आदमी पर आदमी
साडी खरीद कर बाहर हम आये तो मैं भीड के चलते मोटरसाइकिल पर बैठने में देर कर दी पति महोदय को लगा होगा मैं बैठ चुकी वो नौ दो ग्यारह
भीड के शोर के कारण मेरी आवाज भी नहीं सुन पाये
अब मैं कैसे कहाँ जाऊँ बैचैन खडी सोच रही थी थोडी देर में मेरे देवर सामने से मोटरसाईकिल से गुजर गये मैं बाबु बाबु पुकारती रह गई तब किसी का नाम लेना अपराध था
पति महोदय देवर के घर गए आराम से नाश्ता किये जब चाय पीने लगे तो मेरी देवरानी पुछी दीदी क्यों नहीं आईं तो होश आया अरे तुम्हारी दीदी तो आई है
कहाँ हैं ? बाजार में तो नहीं छुट गई
तब हडबडाये घबडाये आये
मैं तो वहीं खडी थी जहाँ छोड गये थे
कुछ भी खरीदना हो तो मुजफ्फरपुर जाना होता था ;पहली बार बाजार गए ,साडी ही खरीदने उस बाजार में दोनों तरफ दुकानें और बीच की सडक गली जैसे हालात और भीड़ आदमी पर आदमी
साडी खरीद कर बाहर हम आये तो मैं भीड के चलते मोटरसाइकिल पर बैठने में देर कर दी पति महोदय को लगा होगा मैं बैठ चुकी वो नौ दो ग्यारह
भीड के शोर के कारण मेरी आवाज भी नहीं सुन पाये
अब मैं कैसे कहाँ जाऊँ बैचैन खडी सोच रही थी थोडी देर में मेरे देवर सामने से मोटरसाईकिल से गुजर गये मैं बाबु बाबु पुकारती रह गई तब किसी का नाम लेना अपराध था
पति महोदय देवर के घर गए आराम से नाश्ता किये जब चाय पीने लगे तो मेरी देवरानी पुछी दीदी क्यों नहीं आईं तो होश आया अरे तुम्हारी दीदी तो आई है
कहाँ हैं ? बाजार में तो नहीं छुट गई
तब हडबडाये घबडाये आये
मैं तो वहीं खडी थी जहाँ छोड गये थे
bahut rochak vakya .....sundar sundar hayku ke sath
ReplyDeleteसुंदर फागुनी हाइकु
ReplyDeleteबहुत सुंदर हायकू.
ReplyDeleteनई पोस्ट : दिल का मलाल क्या कहा जाए
फागुनी प्यार एक उत्कृष्ठ प्रस्तुति।
ReplyDeleteअरे वाह सुंदर फागुनी हाइकु
ReplyDelete