Thursday 28 May 2020

नई भोर


प्रदर्शी का जन सैलाब उमड़ता देखकर और विक्री से उफनती तिजोरी से आयोजनकर्ता बेहद खुश थे। जब बेहद आनन्दित क्षण सम्भाला नहीं गया तो उन्होंने अपने मातहतों से कहा,-"इस साल तुम्हारा बोनस दोगुना होगा।"

उनकी बात सुनते ही मातहतों में खुसर-फुसर शुरू हो गई.. –"वैश्विक युद्ध और लॉकडाउन की परिस्थितियों में एक साथ मिलकर चित्रकार, कशीदाकार, करघा कर्मकार सभी ने हालातानुसार 'भावनात्मक समानुभूति' से कपड़ों पर काम किया और उन वस्त्रों को देखकर हमें कितनी डांट खानी पड़ी थी।"

"कोई बात नहीं इनाम भी तो हमें ही मिल रहा है।"



वन विहार–
पक्षी उकेरा वस्त्र
प्रदर्शनी में।


Saturday 23 May 2020

चीनी कानाफूसी




"अरे वाहः! फुटबॉल खेलने वाला पार्क खुल गया।" चौंकते हुए मैं बोली। शाम का समय था और चारों जन, मैं, मेरे पति और बेटे-बहू के साथ टहलने निकले थे। पचासी दिनों से पसरा सन्नाटा फुटबॉल पर पड़ते थाप से टूट गया था।
"हाँ माँ! बच्चों और बड़ों को खेलता देखकर अच्छा लग रहा है। कल हमलोग पहाड़ों की तरफ लॉन्ग ड्राइव पर घूमने निकलेंगे।" चहकते हुए मेरी बहू ने कहा।
"हमलोग भारत वापस जा सकते हैं, आज डर कुछ कम हुआ।" मैं बोली।
"वन सेकेंड! अभी ऐसे हालात नहीं हो गए। पार्क में लगे सूचना पट्ट को गौर से देखकर धैर्य से पढ़ लो। 'केवल परिवार सदस्यों के संग खेलें।' दूसरों के नजदीक ना जायें।" मेरे पति महोदय ने कहा।
"पापा ठीक कह रहे हैं। ग्रीन जोन जिस इलाके को कहा जा है, जहाँ शराब की दुकान खोली जा रही है , जिधर पार्क खोली जा रही या वहाँ के 'अस्पतालों में हरियाली की कमी हो गई है।" मेरे बेटे ने कहा।
"कुछ देर पहले ही तुम कह रहे थे कि सन् 2009 में जो स्वाइन फ्लू फैला था उसमें ज्यादा मौत हुई थी.. , ज्यादा हाहाकार मज़ा था। लेकिन मुझे कोई ऐसा वाक्या क्यों नहीं याद आता कि ऐसी लॉकडाउन की स्थिति बनी हो...!"
"तुम बिलकुल ठीक कह रही । कोरोना से होने वाली मौत का दर भी एक-दो प्रतिशत ही है। और वो मरने वाले भी पहले से किसी गम्भीर बीमारी से ग्रसित रहे हों।"
"कल की ही बात है 'हाइकु चर्चा' में डॉ. जगदीश व्योम जी ने एक गहरी बात कही,-
"आजकल वही सबसे अधिक परेशान हैं , जो अधिक संवेदनशील हैं ।"
"हाँ! तो 'अति सर्वत्र वर्जयेत्'। किसी पहले ने कहा कि 'राम आम खाता है' तो किसी अन्य तक बात पहुँची कि, -'आम राम को खाता है'।"



जीवन में जिंदा होना थोड़ा सा मुश्किल है,
हर रोज तो बेख़ुदी ही ज़मीर का कातिल है।



Wednesday 20 May 2020

अजब-गजब पल


भले घर की लड़कियाँ
ये सब काम नहीं करती
ज़माना सही नहीं है
जब अभिभावकों के
हद के बाहर का हो
पलड़े का वजन


हड़काये रहा
जैसे कहानी को
लघुकथा नहीं बना पाती
हर कथन को
हाइकु नहीं कहती
बाल काटते
डूबी नहीं रहना उसी में
कॉल पर कार्टून नहीं
दिखना चाहिए


हज़ामत बनाते डरना नहीं


Friday 15 May 2020

विश्व परिवार दिवस




"बहुत बड़ी चिंता दूर हुई और अब शायद पापा के साथ हम सबका तनाव कुछ कम हो पायेगा।"
बेटे-बहू से मिलने श्रीवास्तव जी अपने पत्नी के साथ कैलिफोर्निया आये..। वे छ: महीने के लिए आये थे तो अपनी दवाइयों को उसी अनुपात में लाये थे। छ महीना पूरा होने पर आ गया था, लेकिन वैश्विक युद्ध के कारण उनका वापसी टलता जा रहा था। श्रीवास्तव जी की स्थिति की गम्भीरता को समझते हुए पूरा परिवार परेशान था। श्रीवास्तव जी का बेटा अपने परिचित, मित्रों में बात चलाता है जिसमें उसे पता चलता है कि बैंगलोर में रहने वाला तनय 'अर्जेन्ट मेडिसिन्स फॉर्म इंडिया टू वर्ल्डवाइड' के माध्यम से विश्व के किसी कोने में दवा उपलब्ध करवा देता है।
श्रीवास्तव जी के बेटा-बहू तनय से सम्पर्क करते हैं.. वर्चुअल गोष्ठी में तनय से माया कहती है,-"हमें तत्काल दवा चाहिए आप अपना अकाउंट डिटेल दीजिए।"
"पहले आप सभी दवाओं का नाम, प्रिस्क्रिप्शन दिखाइये, अपना आधार कार्ड दिखाइए। दवाओं का इंतजाम कर जब आपको भेज दूँ तो पैसे की बात होगी।" तनय कहते हैं।
"इन हालात में आपको इतना विश्वास है..?" श्रीवास्तव जी की बहू को आश्चर्यचकित होते हुए पूछती है।
"क्या आपको वसुधैव कुटुम्बकम् पर विश्वास नहीं...?"



अडिग



Write a 5 Lines Story this week ❤

लेखन कार्य करना है 5 पंक्तियों में एक कहानी.., दी गई तस्वीर से जुड़ी।

7 Best Stories को किया जायेगा स्पेशल फीचर इस रविवार  🙂

अपने किन्ही 5 दोस्तों को फेसबुक पर भी टैग करें।

नीरजा कृष्णा , पटना

–आदरणीया  Nirja Krishna जी
🤔सिर्फ 5 को टैग करना असंभव तो है अतः जिन्हें #टैग करवाने की #इच्छा हो उनका #स्वागत है

#5LinesStory
#ThePinkComrade

मेरी_पाँच_पँक्तियों_की_कहानी_कुछ_यों_चली

01. पँक्ति_एक :–,-शेर-ए-कश्मीर इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस से अंतिम परीक्षा देकर शुचिता घर वापिस आई तो फिर उस पहाड़ी शहर में साल भर के बाद ही चिकित्सक बनकर आ पाई।

02. पँक्ति_दो :–,-1934 और 2015 में आये भूकम्प ने जिस तरह धन-जन-जमीन को क्षति पहुँचा दिया था, 2020 के दिसम्बर में धन-जन-मन की क्षति स्पष्ट रूप से नजर आ रही थी।

03. पँक्ति_तीन :–,-"शुचिता ने तय किया कि वह बिना धन लिए जन के साथ उनके मन की भी सेवा करेगी, जिसके लिए उसे युवाओं की मंडली बनानी पड़ेगी।

04. पँक्ति_चार :–,-"जबतक भेजे को साफ करने वाला थ्रेसर नहीं आ जाता, तबतक उसे धैर्य से काम चलाना चाहिये..," कई बार मज़ाक-मज़ाक में सुनी बात ,उसे सच साबित होती नजर आ रही थी।

05. पँक्ति_पाँच :–, शुचिता को अपने लगन व श्रम पर पूरा विश्वास था कि "ताला में ही तो जंग लगा है..,"

Sunday 10 May 2020

*"मातृ शक्ति को नमन"*


–मेरी दादी माँ लगभग सौ साल की होकर गुजरी होंगी... । अपने पंद्रह-सोलह बच्चों की परवरिश के संग बहू-दामाद , नाती-नतनियों, पोते-पोतियों के चहल-पहल से गुलजार घर में सारा समय गुजर गया । एक अन्न बर्बाद हो जाए, उन्हें पसंद नहीं था...उन्हें पूजा-पंडित से कोई मतलब नहीं था.. ।

–लेकिन मेरी माँ को रामायण और कुलगुरु (घर के पुरोहित) पर अंधविश्वास था.. जब भी उन्हें कोई परेशानी नजर आती या तो कुलगुरु को बुलाकर पूजा जाप करवा लेतीं या रामायण खोल कर पढ़तीं और किसी विशेष पन्ने पर हम बच्चों से अपनी आँखों को बन्दकर किसी एक शब्द पर उँगली को रखने के लिए कहतीं और जो दोहा बनता उससे परिणाम निकाल कर अपने कामों में व्यस्त हो जातीं। वैसे उनके जैसा शक्ल पाकर भी मैं उनके जैसा मधुर आवाज और लयमय गीत गाना नहीं पा सकी।


Saturday 9 May 2020

मातृ शक्ति को नमन


माँ क्या होती है?
–जानने को मिला
अनसूया की कथा पढ़!
त्रिदेव जिस वजह से
शिशु बने हों!
मेरी माँ अनसूया सी थी..

–जानने को मिला
गाय बहुला की कथा पढ़
मोह में कृष्ण सिंह बने हों!
मेरी माँ बहुला सी थी..

–जानने को मिला
कृष्ण को ओखल से बाँध
धारा-धार रोती...,
गर्भनाल की ही जो बात होती
माता यशोदा-धाय पन्ना की
बात नहीं होती।
मेरी माँ यशोदा सी थी..

–जानने को मिला
गिरजाघर में ईशा की शांति में
माँ मरियम की सौम्य मूर्ति में
'मेरी माँ मरियम सी थी!'

–जानने को मिला
गाय-तेंदुआ की कथा पढ़!
माँ बस माँ होती है
मेरी माँ प्रत्येक माँ सी थी..

माँ क्या होती है?
होती है क्या माँ!
बिन माँ बने ,जान पाना
कहाँ आसान होता है...,
मैं माँ सी तो हूँ!
तो जानती हूँ
माँ मुझ सी ही होती है..

आपके कितने बच्चे हो गए होंगे?
माया का प्रश्न
बेहद कौतूहलवश था।
प्रीति, एकता, बुचिया, बिटिया,
शाइस्ता , प्रियंका,
मुनिया, चुनिया, बिट्टू,
अभिलाष, रवि, आदर्श, सन्दीप,
राहुल, संजय, रब्बान, आदर्श,
प्रभास , हिमांशु, विष्णु, उपेंद्र...,
"हा हा हा! बस! बस! रहने दें माँ...
बहू होने के पहले जान गई थी
मैं रानी बेटी बनते हुए...
एक के आगे शून्य बढ़ाते जाना है,
माँ का आँचल आकाश सा होना है।"

क्या इस कोरोना काल में
माँ का आँचल आकाश सा है।

जो होना शुद्ध होना..

 सिंधु तट पे
अपलक बैठी मैं–
बुद्ध पूर्णिमा ।

सीमांत तक आलोचना करना अच्छा लगता है।
अपना महत्त्व सूचीबद्ध हो जाना अच्छा लगता है।
हम विष्णु के दस अवतारों में से कोई तो होते,
हम महावीर बुद्ध ईशा सुकरात में से कोई होते,
उस समय होते तो ऐसा कर लेते वैसा कर लेते।
सुझाव-सलाह देने में तो विद्यावाचस्पति हैं।
कैसे रहते , क्यों कहते , क्या वो अध्वाति हैं।
जानने में रुचि नहीं है क्या करना है क्या कर रहे हैं।
वर्त्तमान परिवेश-परवरिश में आज हो क्या रहा है...
मानो डोर बोम्मलट्टम , गोम्बेयेट्टा अन्य अंगुल्यादेश
जानो डूब-उतरा रहे अंदेशा, आशंका और पसोपेश
चाँद होना चाहिए कि होना चाहिए चकोर
चाहे जो होना शुद्ध होना बचा रहे घघराघोर




Thursday 7 May 2020

"बिन शॉर्टकट का श्रम"


   "ये क्या है शशांक! सब कुशल है न? तुम सारा खाना ज्यों का त्यों छोड़ दिये हो, मानों थाली के भोजन में हाथ डाले ही नहीं हो। ऐसा क्यों?" रात्रि भोजन के समय बिना खाना खत्म किये उठते हुए शशांक को देखकर उसकी माँ ने थोड़े चिंतित स्वर में पूछा।

"खाया नहीं गया, तुम जानती ही हो, थाली में भोजन छोड़ना मुझे बिलकुल पसंद नहीं।" शशांक ने कहा।

      "यही तो मैंने भी सवाल किया माँ! तो मुझे कहा कि भोजन बेस्वाद है। ना जाने आज क्या हो गया? इतने सालों में पहली बार खाना ठीक से नहीं खाया जबकि, अधकच्ची, जली जैसी भी बनाऊँ ये बिना शिकायत के भोजन कर लेते थे।" सदा उल्लासित रहने वाली शशांक की पत्नी का स्वर वेदनामय था।

      "हमारी शादी का और तुम्हारी नौकरी का साल एक है।प्रशिक्षण काल कितने वर्षों तक चलाया जा सकता...? विशिष्ट प्रशिक्षण के लिए तुम चयनित होकर भारत से लंदन गई। मैं विदेश आ गया था तुम मेरे साथ रहने के लिए अपनी कम्पनी में पद-त्याग करने गई तो तुम्हें मेरे साथ के लिएविदेश भेज दिया गया। हर स्तर पर तुम्हें हथेलियों पर रखा गया। उसके लिए चाम तो आधार नहीं न बना होगा?

   "हथेली पर सरसों उगाना ही होता है । चाहे कामयाब पेशवर बनो या चाहे अन्नपूर्णा बनो।" शशांक की बातों के समर्थन में उसकी माँ का स्वर गुंजायमान था।

     समझ जाने की मुद्रा में गर्दन हिलाती शशांक की पत्नी प्रसन्नता प्रकट कर रही थी।

Tuesday 5 May 2020

मिटेगा संताप काल..

01.
गोधूलि बेला–
रक्तिम लिपिस्टिक 
श्यामा होठ पे।
02.
वैश्विक युद्ध–
अनब्लॉक हो गये
वैद्य यांत्रिकी ।
03.
वैश्विक युद्ध–
वॉरियर्स पे हुए
पुष्प बौछार।


आज हाल कुछ अच्छा लगा तो बाहर टहलने निकले




चंपा फूल ने मुझे सदा सम्मोहित किया... बचपन से मुझे इससे इश्क है... हमारे घर में चंपा का पेड़ था। जब से होश संभला... 1973 तक इससे सारी बातें साझा करती रही... उसके बाद शहर बदल गया , इसका साथ छूट गया... परन्तु कहीं दिख जाता था तो कुछ देर के लिए ही सही मुझे ठमका ही लेता। 1994 के 29 अगस्त को हम पटना रहने आये। पटेल नगर पटना के जिस मकान में मैं रहती थी , वहाँ भी इस फूल का बड़ा पेड़ था.. एक बार सड़क चौड़ीकरण में उस पेड़ को जड़ समेत काट देना पड़ा.. जिस समय वह पेड़ कट रहा था , वहाँ मुझसे खड़ा नहीं रहा गया.. कटे पेड़ की टहनियाँ आग में जलती तो रौंगटे खड़े हो जाते.. मोटा तना सूख रहा था.. एक दिन यह भी जल जाएगा रोज मुझे रुंआसा करता। कुछ दिनों के बाद ,एक दिन अचानक उस सूखे तने में से पौधा निकल आया.. जिसे हम पुनः लगा सके। जलने के लिए आग में डाला जाता तो लुआठी होता...।


'बोधि वृक्ष' चौथी पीढ़ी का वृक्ष है। बिहार राज्य के गया जिले में बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित एक पीपल का वृक्ष। बोधि वृक्ष को नष्ट करने का प्रयास-
पहली कोशिश
कहा जाता है कि बोधिवृक्ष को सम्राट अशोक की एक वैश्य रानी तिष्यरक्षिता ने चोरी-छुपे कटवा दिया था। यह बोधिवृक्ष को कटवाने का सबसे पहला प्रयास था।मान्यताओं के अनुसार रानी का यह प्रयास विफल साबित हुआ और बोधिवृक्ष नष्ट नहीं हुआ। कुछ ही सालों बाद बोधिवृक्ष की जड़ से एक नया वृक्ष उगकर आया, उसे दूसरी पीढ़ी का वृक्ष माना जाता है, जो तकरीबन 800 सालों तक रहा
दूसरी कोशिश
दूसरी बार इस पेड़ को बंगाल के राजा शशांक ने बोधिवृक्ष को जड़ से ही उखड़ने की ठानी। कहते हैं कि जब इसकी जड़ें नहीं निकली तो राजा शशांक ने बोधिवृक्ष को कटवा दिया और इसकी जड़ों में आग लगवा दी। लेकिन जड़ें पूरी तरह नष्ट नहीं हो पाईं। कुछ सालों बाद इसी जड़ से तीसरी पीढ़ी का बोधिवृक्ष निकला, जो तकरीबन 1250 साल तक मौजूद रहा।
   बन्द आँखों से या खुली आँखों से कभी सपना नहीं देखा.. जब जैसी भी स्थिति रही, जिस
यूँ तो हमलोग शारीरिक स्थिति से ठीक हैं लेकिन चिंता तो बहुत है... जबसे होश संभाला कभी-कभी मुझे एक ही सपना आता था कि अथाह जल में फँसी हूँ... वैसी ही स्थिति है... बीच में खड़ी हूँ .. कई पटरियाँ हैं... किसी भी तरफ निकल भागने का रास्ता नहीं।  कैलिफोर्निया की स्थिति बहुत नाजुक रहा... मौत देखकर डॉक्टर की आत्महत्या हिला कर रख देता है...
परन्तु जीने की जिजीविषा ठूँठ में नए पल्लव देते हैं...

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...