Wednesday 20 March 2019

ज्ञानी


"होली हो गई आपलोगों की?" ननद की आवाज थी
"भाभी कहाँ हैं?" यूँ तो छोटे देवर की आवाज बेहद धीमी थी परंतु शांति में सुई के गिरने की आवाज पकड़ने वाली बहू सचेत थी
"वाशरूम में..," ननद भी इशारे से भी समझा दी।
ज्यों ही वो वाशरूम निकलकर बाहर आने लगी देवर रंग वाली छोटी बाल्टी उसपर उड़ेलना चाहा और उनकी मदद के लिए पति महोदय भी बाल्टी थाम लिए... लेकिन सचेत होने के कारण बहू दोनों हाथ से बाल्टी ईको ऊपर से ही थाम ली...
"अरे!अरे! संभालना.. जरा संभल कर बहू.. गर्भवती हो और दिन पूरे हो गए हैं... रंग डाल ही लेने दो उन्हें तुम्हारे ऊपर.. कहीं पैर ना फिसल जाए कोई ऊंच-नीच ना हो जाये..," सास चीख पड़ीं।
"क्यों माँ तुम्हें भाभी की चिंता कब से होने लगी..? पूरे नौ महीने उन्हें ना तो एक दिन आराम का मिला और ना चैन-सकूँ का..!"
"यह तुम अभी नहीं समझोगी, अभी तो तुम्हारी शादी भी नहीं हुई है। गर्भवती को क्या फायदा क्या नुकसान बड़ी-बूढ़ी ही समझा सकती हैं।"
सास-ननद की बातों तरफ देवर पति को उलझे देख बाल्टी पर पकड़ कमजोर पाई और सारा रंग देवर के ऊपर उड़ेल कर बोली... "किसी को कोई चिंता करने की बात नहीं है... स्त्रियाँ सशक्त हो चली हैं...।" सभी के ठहाके से रंगीन होली हो ली।


Thursday 7 March 2019

बदल गया जमाना स्त्रियाँ माँगती क्यों हैं...!

अलाव में तप के
शीत में शिला होके
बौछार से थेथर
स्त्री शिव,  विष पी के

जिंदगी चुनती है आज वो अपनी मर्जी से... जीती है अपने शर्तों पर.. नहीं चाहिए किसी और की मेहरबानी...  सेव से बात हुई.. सेव समान आधा समझ गई.. पूरक है... समानता का अधिकार धोखा है.. जिसने भी विमर्श शुरू किया उसने भी कमतर आंका... 

"लॉलीपॉप है महिला दिवस की बातें"
इंसान बनके जिन्हें जीना नहीं आ गया..

 फ्रिज और दिवार के बीच दुबकी रक्तरंजित रुमाल संग टूटी चूड़ियाँ बिखरी पड़ी है।
मंच पर बेमोल हँसी, कर्मठ, कर्त्तव्यपरायण, सुंदरता आज़ादी की निखरी पड़ी हैं
सियासतदानों का बेमेल हिसाब के खिलाफ जाना विस्फारित आँखें ओखरी पड़ी है

Saturday 2 March 2019

"बंदर बाँट"



"रे शाम्भा! पहना बाबू को बढ़ियाँ पोशाक.. इसे छोड़ने जाना है...।"
"तौबा!तौबा! क्या कहते हैं हुजूर.. , ना आपने हित साधने हेतु कोई शर्त रखी और ना उधर से कोई माफीनामा आया... तौबा!तौबा.. इसके बल पर हम बहुत कुछ मनवा सकते हैं... अभी आधे हिस्से के आधार पर कई हिस्से पा लेना है... तौबा! तौबा.. हमारी तो नाक ही कट कर रह जायेगी, अगर ऐसे इस नामुराद को वापस कर दिया गया.., तौबा! तौबा.. किसी साथी को ही..."
"मौके की नज़ाकत को तुम नहीं समझ रहे हो नामुराद... हम इसको दामाद की तरह वापस नहीं जाने दिए तो हम मिट जाएंगे... दुश्मन का हम कितना नष्ट कर सकते हैं ? उसके देश का एक चौथाई हिस्सा... उतने में ही हम नेस्तनाबूद हो जाएंगे... जिस देश के हम गुलाम रहें... आजादी के बाद भी उसीके मुंहताज हैं.. उसकी मध्यस्थता मान हम अपने वजूद को तो बचा लें..
"लेकिन..,"
"लेकिन वेकिन कुछ नहीं.. छोड़ना है तो छोड़ना है.. समझ! समझायेंगे स्थिति.. चींटी भी हाथी की हवा निकाल सकती है...।"

Friday 1 March 2019

थोड़ी इमोशनल फूल हूँ


मिटा ले सकते हो चिह्न नक्शे से कतलाम तक पहुँचा दो
चूहे बिल्ली का खेल चलते रहना अभिराम तक पहुँचा दो
मुझसे कायर तब कहना जब लाशों में अपनो को खोजना
हिरोशिमा के अपरिपक्कवता  को फरजाम तक पहुँचा दो

लो!
खब्ती
दोचित्ती
अंत अरि
जय जवान
ज्यों पीली पत्तियाँ
छीन ली गई धरी।{01.}
ओ!
घाल
जवाल
नटसाल
अरि तंद्राल
भू-पुत्र कराल
गुरू जय जवान। {02.}

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...