Thursday, 7 March 2019

बदल गया जमाना स्त्रियाँ माँगती क्यों हैं...!

अलाव में तप के
शीत में शिला होके
बौछार से थेथर
स्त्री शिव,  विष पी के

जिंदगी चुनती है आज वो अपनी मर्जी से... जीती है अपने शर्तों पर.. नहीं चाहिए किसी और की मेहरबानी...  सेव से बात हुई.. सेव समान आधा समझ गई.. पूरक है... समानता का अधिकार धोखा है.. जिसने भी विमर्श शुरू किया उसने भी कमतर आंका... 

"लॉलीपॉप है महिला दिवस की बातें"
इंसान बनके जिन्हें जीना नहीं आ गया..

 फ्रिज और दिवार के बीच दुबकी रक्तरंजित रुमाल संग टूटी चूड़ियाँ बिखरी पड़ी है।
मंच पर बेमोल हँसी, कर्मठ, कर्त्तव्यपरायण, सुंदरता आज़ादी की निखरी पड़ी हैं
सियासतदानों का बेमेल हिसाब के खिलाफ जाना विस्फारित आँखें ओखरी पड़ी है

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 10 मार्च 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना

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  2. सबसे पहले सभी महिलाओं को महिला दिवस पर शुभकामनाएँ

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  3. जिंदगी चुनती है आज वो अपनी मर्जी से... जीती है अपने शर्तों पर.. नहीं चाहिए किसी और की मेहरबानी...
    बहुत खूब...सार्थक एवं सटीक...

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  4. बातें तो बस बातें हैं। सुन्दर।

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  5. अति उत्तम ,फर्ज अदा करना दुनिया का दस्तूर है इस काम में ये माहिर है ,जमाने के साथ चलना है सो चल रहे सब

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  6. अनुपम सृजन

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  7. सच्ची बात ,सादर नमस्कार बिभा दी

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