Monday 30 January 2017

हौसला




"लेखन का क्या हाल-चाल चल रहा है "? बहुत दिनों से प्रभा का लिखा कुछ दिखा नहीं तो ज्योत्सना पूछ बैठी । प्रभा लेखन कार्य में बहुत होशियार थी लेकिन अपने छोटे भाई के अचानक गुज़र जाने से स्तब्ध हो लेखन छोड़ बैठी थी ।

बिल्कुल बंद है दी अभी तो

क्यूँ ?

पता नहीं
राकेश के जाने के बाद एकदम बंद सा हो गया और अब मन ही नही करता । वो पिछले छ: महीने से जो बंद हुआ अभी शुरु हुआ ही नहीं

बहाने हैं सब
साँस जब तक चलती है तो हर काम का समय निश्चित है 🙏

कह सकते हैं दी आप😔
पर अब लेखन में मन नहीं , देखो फिर जागता भी है या नहीं!

सोया ही नहीं है तो जागना क्या ?
अभी जो हम गप्प कर रहे ये भी तो लिख रहे हैं न ? हमारी पहचान ही है कि हम बकबक बहुत करते हैं ,😃😃

ये दी लेखन में नहीं आता न
ये तो बातचीत😝

लेखन में क्या आता है ? गीत , गज़ल , कविता , काव्य , कहानी
लघु कथा क्या होती है ?

लघुकथा तो दी लिखी ही नहीं कभी ! लघुकथा सीखा दीजिए दी ,कोशिश करुंगी!

ये लो कर लो बात
मैं कब लिखी ? मैं तो गप्प को लिख देती हूँ !

ये कमाल आप ही कर सकती हैं😍
मान गए उस्ताद🙏🏻🌹🍫
😀😀😀😀😍😍

उस्ताद बुस्ताद कुछ नहीं
समय काट रही हूँ । जी रही हूँ तो कुछ तो करना है । जाने वाले के साथ जा नहीं सकते । जी रहे सांसें चल रही है तो और सह सकते हैं
सहने की शक्ति है तो लो ज़िंदगी हँस कर जिएँगे ।

जी दी !वो तो सही है
आपसे बहुत कुछ सीखा
तभी तो जेठ के लडके की शादी में किसी को एहसास भी न होने दिया
सबसे ज्यादा हँसी मेरी ही गूँजी ।
सही में दी आपकी ही बहना तो हूँ
मेरे ससुर जी ने बहुत तारीफ की
कि ऐसी लडकी नहीं देखी !

Sunday 29 January 2017

सीख



शाम को टहलते हुए आसानी होती है , दूध व सब्ज़ी ले कर लौटना ... यूँ तो अक्सर दूध बूथ से ही लेती हूँ ... लेकिन कभी कभी किराने की दुकान से भी दूध ले लेती हूँ .... सब्ज़ी का दुकान और किराने का दुकान एक दूसरे के आस पास है .... सब्ज़ी ले कर किराने के दुकान से ही दूध लेना आसान था ..... किराने की दुकान गयी तो दुकान में मालिक युवा था ..... चालीस रुपया दी ; दूध था ३९ का , युवा दूध दे मोबाइल में व्यस्त हो गया । मेरे टोकने पर वो बुदबुदाता(चिल्लर चाहिए) टॉफी का डिब्बा खोलने लगा .... मैं मना की कि नहीं मुझे टॉफी नहीं चाहिए ... बाद में हिसाब कर लेंगे ... तो बेहद उखड़े आवाज में बोला कि मैं हमेशा नहीं बैठता दुकान में ,याद कौन रखेगा , चेंज ले कर आना चाहिए ; मेरे पास एक रुपया नहीं है ,दो का सिक्का है .... युवा वर्ग को तैश गलत बात पर ही ज्यादा आता है ..... सब्जी वाले से मैं एक का सिक्का ली ,किराने के दुकान से दो का सिक्का बदली ,सब्जी वाले को दो का सिक्का देकर चलती बनी

Tuesday 24 January 2017

मध्यांतर



आज दैनिक जागरण अख़बार के कार्यालय में .."बालिका दिवस" .. के अवसर पर संगनी क्लब की सदस्याएं अपने अपने विचार रख रही थीं .. विषय था "बेटियाँ बचाओ - बेटियाँ पढ़ाओ"
"मेरी परवरिश अच्छी हुई .... मैं पढ़ी लिखी हूँ ... शिक्षिका हूँ .... मेरे पिता मेरे संग रहने आये मगर रह ना सकें | हमारा संस्कार , हमारी परवरिश ऐसी है कि हम ससुर से वैसा व्यवहार नहीं कर सकते हैं , जैसा हमारे घर आये हमारे पिता के साथ होता है , हम घर छोड़ भी नहीं सकते " बताते बताते रो पड़ी महिला ...
"बताते हुए आपके आँखों में आँसू है यानि अभी भी आप कमजोर हैं ..... आँखों में नमी लेकर अपनी लड़ाई लड़ी नहीं जा सकती है ..... घर में एक से आप अपनी लड़ाई जीत नहीं सकती .... तो ... ज्यों ही चौखट के बाहर आइयेगा , सैकड़ों से कम से कम लड़ना होगा, कैसे जीतने की उम्मीद कर सकती हैं ..... दीदिया का कहना है ::पुरुष,स्त्री को चाहें जितना भी प्यार कर ले किन्तु,बराबरी का दर्ज़ा.....नको, सोचना भी मत।"
" सोचना क्यूँ है
जहाँ ना हो वहाँ दे भी नहीं"
"ना देने पर घर,हल्दीघाटी बन जाता है विभा।"
"मुझसे बेहतर कोई जान नहीं सकता है दीदिया , लेकिन दवा भी यही है
समय लगता है लेकिन स्थिति सुधरती है"
जंग जारी रखना है और जीतना है

Tuesday 17 January 2017

मुक्तक





प्रीत की रीत की होती नहीं जीत यहाँ
ह्रीत के नीत के होते नहीं मीत यहाँ
शीत यहाँ आगृहीत तड़ीत रूह बसा
क्रीत की गीत की होती नहीं भीत यहाँ

<><>

ली
पाली
रश्मियाँ
'हरियल'
जौ गेंहूँ बाली
भू स्वर्ण नगरी
स्वेद कलमकारी
<><>
पी
प्रधि
शै चोर
स्वप्न संधि
बैरी है बौर
कंचन नरंधि
स्व लगी गप्पियाने

खूबसूरत हरा कबूतर 'हरियल' जिसके पैर पीले होते हैं

<>

Thursday 12 January 2017

स्त्री


स्त्री है तो सृजन है
सृजन है तो संसार है
स्त्री से ही संसार है
संसार है तो व्याप्त श्री है
स्त्री है तो श्री है
फिर भी
लेकिन
.
एकाकीपन चुभन से बुरी लगती जिन्दगी
तलाश कंधे चार नारकीय सहती जिन्दगी
मिलते क्या जो दर्द समझते बेदर्द न होते
चुनिंदा सुनंदा को स्वनंदा करती जिन्दगी
तुला-तंतु में वामा यादों-वादों गमों उलझी
रहमत-ए-खुदा को जुदा करती जिन्दगी

Wednesday 11 January 2017

मुक्तक





असफलता पै नसीहतें नश्तर सा लगता है
स्याह गुजरता पल शैल-संस्तर सा लगता है
बढ़ाता आस तारीफ पुलिंदा अग्नि-प्रस्तर सा
जन्म लेता अवसाद दिवसांतर सा लगता है



चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या और लोेग, लोग बैठ रहे हैं, लोग खड़े हैं और अंदरचित्र में ये शामिल हो सकता है: 4 लोग, लोग बैठ रहे हैं, मेज़ और अंदर



शरारत मिले फौरन आदत बना लेना
पढ़ कर तीस पारे इबादत बना लेना
इतफाक न मढ़ा शहादत गले लगाना
मुस्कुराना हलाक जहालत बना लेना

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, बैठे हैं

Sunday 1 January 2017

अनुत्तरित सवाल


रूपये का पचास पैसा या उनचास पैसा ही लेकर ,अपने पिता के घर से आई स्त्री , महीने के 15 दिन या 13 दिन ही , साल के छ: महीने या चार महीने ही सही , क्या केवल बेटी-बहन बन कर रह सकेगी , पत्नी बहू के मजबूरी से दूर .... मजबूरी ....



पिंजरे प्राची झांकती स्वर्ण रश्मि वो मेरी
तैरो ना एक्वेरियम, मानों सिंधु है वो तेरी
आकार भोग्या जान मान बंदिशों में जकड़े
दे पूनो स्याह शब तट पै एहसान से अकड़े
object अभिसार के कच्चे माल व्यंग्य-विनोद
देने के लिए होते गाली स्त्री यौनिकता प्रमोद
पितृसत्ता का ढ़ोंग बे-कदरी महिमामय स्त्री
स्वत्व कुचलने की श्रम शुरू करती स्व पुत्री


चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या और लोेग, लोग बैठ रहे हैं और जूते


दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...