हाइकु लिखने वालों के लिए ०४ दिसम्बर राष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में महत्त्वपूर्ण है तो १७ अप्रैल अन्तरराष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में यादगार है…
सुरकानन—
तितली पपड़ियाँ
नख में चढ़े
छतरी का चलनी…
“शहर के किसी कोने में कोई आयोजन हो आप बतौर अतिथि नज़र आ ही जाती हैं और पत्रकार होने नाते हमारी भेंट हो जाना स्वाभाविक है! पहले पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित थीं अभी साल-दर-साल नारी शक्ति पुरस्कार, मानव सेवा पुरस्कार, बालिका प्रोत्साहन पुरस्कार इत्यादि आपकी झोली में गौरवान्वित हो रहे हैं! हमारी ओर से बधाई स्वीकार करें महोदया!”
“हमारी संस्था और हम सभी के श्रम का फल मिल रहा है!”
“आपकी संस्था के अन्दर की बातें बाहर फैलने भर की देर है!”
“कैसी बातें?”
“संस्था के अन्दर में जो विद्यालय चलता है उसमें रात्रि कक्षा चलना दिखाया जाता है लेकिन कभी-कभी महीने में दो-तीन दिन अध्यापकों को सुबह में बुलाकर शाम तक रखा जाता है।आपके संस्था में और बाहर के दो चेहरे हैं! कर्मचारियों और बच्चिओं पर तानाशाही वाला माहौल है। वाणी में कठोरता से : अटकती हैं बोलने में! बहुत - बहुत अहंकारी है! हवा में उड़ती रहती है।
उन्नति के कार्यक्रम में नौ-दस लाख का बिल दिखलाया गया।और इस बिल का भुगतान तीन-चार जगहों से करवाया गया! यानी मुश्किल से लगभग तीन-चार लाख का खर्चा हुआ मिला लगभग तीस-चालीस लाख मिला!”
“प्रवाद है सब! परखने वाली दुनिया में समझने वाले कम मिलते हैं!”
“हँसना और रोना समानांतर में असरदार नहीं होते!”
छोटी छोटी ऐसी ही संस्थाएं वृक्ष देश की शाखाएं हैं | यहीं से निकलकर सीखकर देश चलाने वाले अन्दर की बातें बाहर नहीं आने देते हैं :)
ReplyDeleteव्वाहहहहह
ReplyDeleteकमाई का नया जरिया
आभार..
सादर वंदे
सुन्दर
ReplyDelete