Friday 30 December 2016

मौन




 

एक बच्चा धीरे से आकर बोला
"मैम मैं कुछ कहना चाहता हूँ । थोड़ा सा समय आपका लेना चाहता हूँ"।
 वो देख रहा था मैं घर निकलने के लिए जल्दी कर रही हूँ। हम काव्य गोष्ठी में से बाहर आ गये
"हाँ हाँ ! बोलो न । मैं सुन रही हूँ"
"जी मैं दहेज का समर्थक हूँ"! वो मेरे विचार ध्यान से सुना,ये मेरे लिए ख़ुशी की बात थी ।
"क्यूँ क्यों भाई" ?
"मुझे लगता है कि अगर मेरे पिता जी के पास एक रुपया ,एक रुपया भी है तो पचास पैसा अगर उतना भी नहीं तो 49 पैसा तो मेरी बहन को मिलना ही चाहिए"।
"बहन से बहुत प्यार करते हो! बहन को हमेशा तौहफा चाहिए । उसे तौहफा देते रहना । किसी दहेज के लोभी को खरीदना नहीं । दहेज के लोभी स्वाहा कर देंगे तुम्हारी बहन को । किसी लड़की का हाथ इस लिए नहीं छोड़ देना कि उसके पिता के पास दहेज देने के लिए पैसे नहीं है ।"
"क्या उस लड़की के पिता के पास एक रुपया नहीं होगा । 51 पैसे देने की बात नहीं कर रहा हूँ मैम !"
"क्या तुम्हें लगता है कि 50 पैसा या 49 पैसा ही सही ; लें कर आने वाली लड़की , हर महीने के 15 दिन केवल बेटी बहन बन कर रह सकेगी , पत्नी बहू की मजबूरी से छूट ?
..
....
"......"
........
..........
नव वर्ष की असीम शुभ कामनाओं के साथ हम विदा होते हैं .... जब जबाब मिल जाए ....

YOU CALL ME


Wednesday 28 December 2016

हत्या



“हां हां हां हां ! ये क्या कर रही हो , बौरा गई हो क्या ? सब मीटियामेट कर डाला , धुंध की वजह से अभी तो बने घड़े का पानी नहीं सूखा था। तेरे डाले पानी के भार को कैसे सहता ? देख सारे घड़े फिर मिट्टी के लोदा हो गये"। ोचुन्नी को कच्चे घड़े में पानी भरते देख उसकी माँ चीख ही पड़ी ।

“हाँ! बौरा जाना मेरा स्वाभाविक नहीं है क्या ? आठ साल की दीदी थी तो जंघा पर बैठा दान करने के लोभ में आपलोगों ने उसकी शादी कर दी …. दीदी दस वर्ष की हुई तो विदा होकर ससुराल चली गई । ग्यारहवे साल में माँ बनते बनते भू शैय्या अभी लेटी है “ ना चाहते हुए भी चुन्नी पलट कर अपनी माँ को जबाब दी।

Saturday 24 December 2016

गुजरा या गुजारा



आदत नहीं कभी बहाना बनाना
फुरसताह समझता रहा ज़माना
छिपा रखें कहाँ टोंटी का नलिका
सीखना है आँखों से पानी बहाना

नाक बिदुरना आना बहुत जरूरी होता है
~ कल का पूरा दिन .... कई अनुभवों का उतार चढ़ाव देखते गुजर गया .... 




अनी

संगीनी

अभिमानी

मैला तटनी

रिश्ते दूध-खून

पिसते नुक्ताचीनी
भू

उत्स

निपान

सरी सुता

दूध सागर

हिंद का सम्मान

पिता गिरी का दान

Tuesday 20 December 2016

निश्चिंता (ऐसा भी होता है)




"दरवाजे पर कोई है ! जरा देखना । मुझसे कोई मिलने आया हो तो बैठक में बैठना । मैं बस तैयार हो कर बाहर आ ही रहा हूँ " कार्यालय जाने के लिए तैयार होते अरुण को लगा कि किसी ने बाहर दरवाजा को खटखटाया है तो वो अपनी पत्नी ज्योत्स्ना को आवाज लगा कर बोले । ज्योत्स्ना चौके में जो काम समेट रही थी उसे छोड़ बाहर जाकर देखी तो कोई आदमी खड़ा था ,उसे देखते ही वो आदमी रवि से मिलने की इच्छा जाहिर की । ज्योत्स्ना उस आदमी को बैठक में बैठा कर रवि को बताते हुए फिर चौके में जाकर अपना काम करने लगी । थोड़ी ही देर में रवि की आवाज आई "एक कप अच्छी कॉफ़ी बना कर लाना"। ज्योत्स्ना कॉफी बना बैठक में पहुँचा लौटने लगी तो उसने देखा कि मिलने आये व्यक्ति ने रुपयों से भरी बड़ी अटैची रवि को रख लेने का अनुरोध कर रहा था । खुली अटैची को बंद कर रवि उस आदमी को वापस करते हुए बोल रहे थे कि "चुकि आप मेरे घर में खड़े हैं तो मेहमान समझ कर आपके साथ मैं कोई गलत व्यवहार नहीं कर पा रहा हूँ । साल का आज अंतिम दिन है आपके घर में आपका इंतजार हो रहा होगा । कॉफी पी लीजिये और तशरीफ़ ले जाएँ , नहीं तो घर आकर रिश्वत देने के जुर्म में आपको जेल भेजवा सकता हूँ अभी "।
रवि चार स्टोर के पदाधिकारी थे । आने वाला व्यक्ति स्टोर में सामान देने वाली कम्पनी का मालिक था । गलत सामान स्टोर में सप्लाई कर चुका था ,जब रवि के निगाहों में गलत सामान आया तो सामान रखने से इंकार करते हुए टेंडर कैंसिल कर रहे थे , सामान वापस ले जाने में कम्पनी को बहुत मुश्किल होने वाली थी ।रवि के पहले जो पदाधिकारी थे या अभी भी दूसरे शहर के स्टोर के जो पदाधिकारी थे उन्हें गलत सामान रखने में कोई हर्ज नहीं था उनकी भी तिजोरी भरती थी । घाटा सरकार को हो , हानि जनता का हो ,इससे किसी को कोई सरोकार नहीं था ।
कम्पनी के मालिक को विदा कर रवि कार्यालय पहुंचे तो बड़े पदाधिकारी को उनके ही केबिन में प्रतीक्षा करते पाया जो थोड़े झल्लाए से भी लगे । रवि को समझते देर नहीं लगी कि उनकी शिकायत पहुंच चुकी है ।
बड़े पदाधिकारी रवि को समझाने की बहुत कोशिश किये कि रवि स्टोर में आया समान वापस ना करे
रवि बड़े पदाधिकारी से बोला "आप खुद के हस्ताक्षर से सामान रख लें ताकि आगे जब भी कोई बात हो तो सामान की जिम्मेदारी आप पर रहे
"तुम मेरी बात नहीं मान कर अवज्ञा कर रहे हो ,तुम्हें निलंबित कर दूंगा"।
"शौक से कर दीजिये"
"पद च्युत कर दूंगा"।
"अगर आप ऐसा कर सके तो मुझे बेहद ख़ुशी होगी"।
"तुमको मैं देख लूंगा"
"जरूर! जरा गौर से देखिएगा । रोज देर रात को लौटता हूँ घर"!
लेकिन सरकारी नौकरी में बहुत आसान कहाँ होता किसी को किसी को देख लेना। भ्रष्ट व्यक्ति के वश में और कुछ नहीं होता ,रवि ये बात जानता था । अपने पति की ईमानदारी की चमक से रौशन होता नव वर्ष का सूरज और चमकीला नजर आया ज्योत्स्ना को ।

Sunday 18 December 2016

षड्यंत्र


असुविधा जनक थी बात
परिवर्तन की हुई शुरुआत
फिर क्यों चल रही हवा घात

बात 1968-1972 के आस पास की है
कभी लठ्ठो वाला आये
कभी मूंगफली वाला आये
कभी बायस्कोप वाला आये
कभी चूड़ीहारन आये
कभी मछली वाला/वाली आये
दादी धान या गेंहू से बदल लेती थीं
खेतों में काम करने वाले मजदूर हों
धोबी हो
नाई हो
कुम्हार हो
भुजा भुजवाना हो
आनाज ही पाते देखी या खेत मिला है बोओ खाओ
मजदूरी करो
यानि कैसलेश दुनिया हमने देखी है
कुछ नया देखें तो कोई बात नई लगे

Saturday 17 December 2016

विपदा खेल


"क्या बहू तुम्हें यही जगह मिला !
हमारी उम्र मन्दिर में हरे राम हरे कृष्ण जपने का है । तुम हमें कलियुगी रास लीला दिखलाने विक्टोरिया मेमोरियल ,काली घाट घूमा रही हो । झाड़ियों के ओट में ,अंधेरों को साया बनाये ,आँखों में बेहयाई की लाली लगाये ये युवा साबित क्या करना चाहते हैं ?" इंजीनियर्स नेशनल कॉंग्रेस में शामिल होने आये बेटा गुप्ता जी के साथ आई उनकी माँ अपनी बहु पर गुस्सा कर बैठीं
सह दे बैठीं श्रीमति सिन्हा। "अभी समय है ,कठिन संघर्ष का । मेहनत कर अपने को एक मुकाम पर ला खड़े करने का । जो समय घर पहुंच कर अध्ययन करने का है ,उस समय को यूँ चुम्मा चाटी करते हुए नष्ट करते हुए जग को नजरें चुराने में विवश कर रहा सब ।"
तभी सबकी नजर पड़ी ,एक लड़का एक लड़की को बलजोरी कलाई पकड़ घसीटने का प्रयास कर रहा था । लड़की अपने सामर्थ्य भर छुड़ाने का प्रयास कर रही थी । एक अन्य जोड़ी काफी तेजी से आकर उनदोनो को समझाने का प्रयास करने लगी ।
देखो देखो क्या फ़िल्मी अंदाज है गुप्ता जी की माँ फिर अपनी बहू पर दांत पीसने लगी



ना स्त्री है ना पुरुष
तो उसे का कहें
मांग रहा था
या
मांग रही थी
जब दोनों नहीं है
तो
दोनों कैसे लगे
खैर
हर जोड़े से वसूली हो रहा था
मानों जोड़े में बैठे होने का
 टैक्स भर रहे थे जुगल जोड़ी
बच्चे दस या बीस का नोट
देने के क्यों मजबूर थे
अपने जोड़े में बैठे को
जुर्म समझ रहे थे जो जुर्माना दे रहे थे
मुझे वो जुर्म ही लग रहा था
क्या उस स्थिति में बैठे होना
क्या कहलाता होगा
प्यार इश्क तो कतई नहीं
कहला सकता है
प्रिंसेप घाट (कलकत्ता)में
बेटिकट कई शो
देखने को मिल सकता है

Wednesday 14 December 2016

आपदा



01.
वर्तुल चाँद
भूख की स्याह छाया
मीन की काया ।
02.
पोस के खल
जल में रह जल
सिताम्बु ढ़ल ।
03.
बूझा है चूल्हा
नोटबन्दी में पंक्ति
बैंक में खड़ी ।
04.
वरदा शूल
लहूलुहान चैने
आपदा मूल ।


*मुक्तक*

जब तक धरा धारा मिटती नहीं
लगा लो जोर स्त्रियाँ टूटती नहीं
भीड़ रिश्तों ,जीती जाती तन्हाई
तपी ऐसी भट्ठी में कि फूटती नहीं



वर्ण पिरामिड


लीले
आपदा
सनै सनै
दंड वरदा
बदहाल जीव
लहुलुहान चेन्नै
ना !
चारा
सम्पत्ति
परिवृत्ति
चले कुचाल
कर्म दिष्ट धारा
शक्ति फल विपत्ति

Tuesday 13 December 2016

हिसाब मिले बेअक्ली की कैसे



निसंदेह गलतफहमियां यूँ होती
स्याह पाये जाते क्या गजमोती
चाँद ! सोच में उभरती ज्योत्स्ना
धवल मक्खन उजास शोभना
स्वर्णिम हुए पूनो बताओ कैसे
रवि से चुराए तेज तुम्हारे जैसे
अक्ल भोथराए कला-कलाएं
मिले अहोरा-बहोरा यात्राएं


चित्र में ये शामिल हो सकता है: रात

Tuesday 6 December 2016

डर से आगे जीत





तिनका हूँ खुद का वज़ूद ही कितना
चलती गई जिसने राह बताई जितना

    


एक साल के बाद वो घड़ी आ ही गई
अपने किये वादों के अनुरूप एक दिन पहले पटना आये अतिथि

 


हाइकु लिखते समय
छोटे छोटे कम वर्ण के शब्द चुने
और
चुकि आधे वर्ण की गिनती नहीं होती
तो
ऐसे शब्द चुने जिनमें आधे वर्ण हो
! ये चिह्न लगे शब्द भी महत्वपूर्ण होते हैं
श्री भट्ट जी की ये बताई बातें हमें बहुत पसंद आई 




तलाश जारी
एक सौ इक्यावन
शत के बाद





Thursday 1 December 2016

काला धन


 
काला धन के नाम पर अत्याचार


तंज़
स्वाश्रयी
मरी मीन
तिज़ोरी कैद
कत्ल शिष्यकारु
काला धन रंगीन 【01】
<><>
लो
चर्चा
बयानी
अम्र कौमी
नंगा कहर
दाग बेदखल
काला धन महर 【02】

Thursday 17 November 2016

दिमाग डाल डाल - सोच पात पात


"पंखुरी ! तुम्हारे घर से ऐसी आवाजें किस चीज से आ रही है ?"
पंखुरी अपने फ्लैट से सटे फ्लैट में ,अपनी सहेली के संग खेल रही थी तो सहेली की माँ उससे सवाल की।
"कैसी आवाजें आपको सुनाई दे रही है चाची ?"
"धम - धम की आवाजें ! जैसे कुछ कुटाई हो रही हो। चुड़ा-चावल बनाने के लिए धान कूटते हैं वैसा ?"
"हाँ चाची ! माँ और मेरी चाची मिल कर कुटाई कर रही हैं। "
"वही तो पूछ रही हूँ किस चीज की कुटाई हो रही है ?"
"लुगदी है चाची।"
"लुगदी ! लुगदी कूट कर क्या करेंगी तुम्हारी माँ व चाची ?"
"लुगदी कूट कर बड़ा दउरा बनाया जायेगा चाची।"
"इतनी मेहनत ! और इस जमाने में ? अपार्टमेंट में रहने वाले के लिए दउरा का प्रयोजन !" पड़ोसन होने  का धर्म उनके दिलो दिमाग में खलबली मचाये हुए था .... दोनों घरों में एक ही जासूस सहायिका थी। .. उससे उन्हें खबर मिली कि 500-1000 के नोट को खपाया जा रहा है ... मिक्सी में पिस कर कब तक बहाते रहते !"

Tuesday 15 November 2016

वजूद


घर मेरा है
चलेगी मर्जी मेरी
स्व का सोचना
छी खुदगर्जी तेरी
पुरातन ख्याल
वजूद पर सवाल
दिल को जलाता
सकूं मिटा जाता
उधेड़े पत्ती पत्ती
ज्ञान अनावर्त्ती
सत झंझकोरता
ज्ञान हिलोरता
बिना स्व बिखेरे
धन्यवाद बोल तेरे
महक आती
 नर्गिसी फूलों
चहक जाती
धमक शूलों

Saturday 12 November 2016

जलजला






"आज देवोत्थान है तारा ... चलो गंगा स्नान कर आते हैं .. लेकिन उसके पहले थोड़ा नाश्ते की तैयारी कर लेते हैं ताकि जब हम गंगा स्नान से लौटें तो किसी को कोई परेशानी ना हो।" तारा की सास सावित्री देवी आवाज लगाई
                       "किसी को कोई परेशानी नहीं होगी अम्मा जी ... हम रोज पांच बजे उठते हैं तो बच्चों का टिफिन आसानी से बन जाता है। अभी तो सुबह के 3 ही बजे हैं। हम इतनी जल्दी क्यूँ जा रहे हैं ? पौ फटने में तो अभी बहुत देर है "....
"इस समय ही गंगा में काफी भीड़ होगी। .. कार्तिक स्नान करने वाले इसी समय गंगा किनारे जुटने लगते हैं बहू तारा। .. सत्संग लाभ होगा हमें भी "
"ठीक है .. मैं तुरंत आई "
"क्या तुम रमन को फोन की थी कि वो अपने परिवार संग ,हमलोगों से आकर मिले ?"
"नहीं अम्मा जी ! आपकी बताई बातें याद हो आई। "
"कौन सी बातें ?"
"ननदोंई अपने पैसे ,जमीन को साले की पत्नी और उनके बच्चों के नाम पर खर्च करते हैं ,ये सोचते हुए कि कुछ दिनों के बाद उन्हें मिल जायेगा .. ससुराल से मिले तौहफे पर आयकर मुक्त होता । लेकिन पूरी जिन्दगी वापसी की प्रतीक्षा रह जाती है कोई नहीं लौटाता है। "
"अरे हाँ ! चलो छोड़ो ! अच्छा की कि तुम फोन नहीं की। .... मेरी बताई बातें तुम याद रखी। मैं ही भूल गई। ... मैं कपड़े का गट्ठर ले आई हूँ ,चलो स्नान कर आते हैं। " गप्प करते करते दोनों सास बहू गंगा किनारे पहुंच गई थीं।
घाट पर काफी अँधेरा था। तब .... भी बहुत लोग जुटे हुए थे। कार्तिक स्नान ब्रह्ममुहूर्त में या यूँ कहें अँधेरे में करने का नियम है।  ..... सबके स्नान कर जाने के बाद ... जब रवि रश्मियाँ धरा पर फैली तो लक्ष्मी को तैरते देख कर शोर मच गया। .... हजार हजार का बज़ार देख कर।
जलसमाधि ... चिता जलना .... लक्ष्मी के साथ यही होता है .... हो गृह लक्ष्मी या हो कागज की।
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01.
मोक्षदायनी
लक्ष्मी कार्तिक स्नान
पाप तरणी।
02.
लक्ष्मी है पाती
जमाखोरों की सजा
जल समाधि।

<><>

Friday 11 November 2016

"चहुँमुखी"







घर घर घूम कर हज्जाम न्योता दे रहा था कि आज साहूकार की बहु का जन्मदिन है .... सभी घरनियों का बुलावा है , बहु ! गांव के पुरुषों के सामने आ नहीं सकती है , इसलिए पुरुषों का आना जरूरी नहीं है । जो कोई आये भी तो वो ड्योढ़ी पर ही रुके ।
गांव के सभी लोग अचंभित भी हो रहे थे और दबी जुबान में कानाफूसी भी कर रहे थे कि जो जोंक आज तक हमारे खून पर जी रहा था वो हमारे घरनियों को जीमने बुला रहा है । किसी में बोलने की ना तो हिम्मत थी या ना कुछ पूछने की ।
शाम हुई सभी महिलायें साहूकार के घर उनके बहु के जन्मदिन में शामिल हुईं । देर रात तक आयोजन चलता रहा .... नाच गाना और खाना खाने के बाद महिलाएं लौटीं तो घर के पुरुष सो चुके थे ।
दूसरे दिन बैंक के सामने उन्हीं महिलाओं की लम्बी पंक्ति रुपया जमा कराने और रुपया बदलने की लगी हुई थी । सबके पास 500-1000 की थैली थी । किसी का 2 लाख 8 हजार का , किसी का २ लाख 10 हजार का , किसी का  २ लाख 15 हजार का , किसी का 2 लाख 20 हजार का  ..... गृहणियों को ढाई लाख तक की आयकर छूट मिली हुई है .... साहूकार के कुछ आदमी बैंक के आस पास उनके सुरक्षा के लिए खड़े थे ।

Sunday 6 November 2016

"विकल्प"



मंडप के बेदी पर माता पिता , बेटी का हाथ होने वाले दामाद के हाथों में थमा कन्यादान करने वाले ही थे कि छोटा बेटा मुन्ना तूफान ला दिया कि कन्यादान की रस्म होने नहीं देगा ।
 "मेरी दीदी कोई वस्तु नहीं , जो दान कर दी जाये । दो इंसानों की शादी हो रही है तो दीदी की ही दान क्यों की जाए ? बारात हमारे घर दान लेने आई है या दहेज से खुद को बेचने आई है तो वर का दान , वर के माता पिता क्यों नहीं कर रहे हैं ?"।
सारा समाज हदप्रद रह गया । रिश्तेदारों में कानाफुंसी शुरू हो गई कि आज कोई नई चीज थोड़े न हो रही है , ये तो सदियों से होती आ रही रस्म है । दो चार उम्र में बड़े लोग ,कन्यादान का विरोध कर रहे बेटे को समझाने में लग गए क्यों कि विवाह विधि रुकी हुई थी और मुहूर्त बीता जा रहा था । परन्तु दीदी का लाड़ला भाई पगलाये हाथी की तरह आक्रोश में विरोध पर अड़ा रहा । उसके अड़ियल व्यवहार को देखते हुए वर ने वादा किया कि "आपकी दीदी का दान नहीं होगा । इस रस्म का मैं भी विरोध करते हुए आपके साथ हूँ ।"
          मिथिला में कन्यादान के रस्मों में तिल का प्रयोग नहीं होता है , जिससे लड़की का सम्बन्ध पूरी तरह माता पिता से खत्म नहीं होता है । बेटियां माता पिता के सुख दुःख की सहयोगी होती ही हैं , उनके मरणोपरांत उनके श्राद्ध भी तीन दिन का करती हैं । बेटी या बहू है ,इसका पता चल जाता है कि तीन में कि तेरह में से ।"
इस विधा को समझते हुए मुन्ना का क्रोध थोड़ा शांत हुआ और शादी शांतिपूर्वक संपन्न हुई | साथ ही मुन्ना कहावत का अर्थ भी समझ गया .... "ना तीन में ना तेरह में" .....

Saturday 5 November 2016

// परिवार में चूल्हा बंटता है ,पर्व नहीं //


"दूरदर्शी"

"जानती हो विभा ! राय जी अपने तीनों बेटों को बुला कर बोले कि G+3 फ्लोर मकान बनवाने के पीछे की मंशा ये थी कि तुम तीनों अलग अलग फ्लोर पर शिफ्ट हो जाओ । हम माँ बाप ग्राउंड फ्लोर पर ही रहेंगे ।"
"क्यों पिता जी ? ऐसा क्यों ! हमलोगों से क्या कोई गलती हुई है ? कल ही तो सबसे छोटे भाई की शादी हुई और आज आप हम। तीनों को अलग अलग फ्लोर पर शिफ्ट होने का आज्ञा दे बंटवारे की बात कर रहे हैं ।" तीनों बेटों बहुओं का एक ही सवाल सुन राय जी मुस्कुराये और बोले " आज कोई गलती तुमलोगों से नहीं हुई है । कल तुम लोग कोई गलती कर एक दूसरे से दूर ना हो जाओ दिलों से ,"आज फ्लोर से बस दूर हो जाओ।"
हम माँ बाप जिस फ्लोर पर रहेंगे वो फ्लोर सबका होगा । हमारे रिश्तेदार , हमारे संगी साथी खास कर हमारी बेटियों का निसंकोच मायका आबाद रहेगा ! ...
जया चाची (मकान-मालकिन) की बात सुन विभा अतीत में खो गई ... वर्षों पहले कुछ ऐसे विचार से ही वो अपने पापा को अवगत कराई थी

जी आदरणीया

करीब 27 -28 साल पुरानी सीख है जो मैंने अपने पिता को दी थी 🙏
अवकाश प्राप्त कर नौकरी के क्वाटर को छोड़ कर जब वे घर रहने जा रहे थे .... संजोग से मैं उस समय वहाँ थी .... घर पहुंचते रात हो जाने वाली थी .... मैं भाभी को बोली "सबके लिए यही से खाना बना कर ले चलते हैं ...

मेरी बात खाना बनाने वाली सुनते ही मेरे पिता दुखित हो गए ..... घर पर उनसे बहुत बड़े भाई , भाई=पिता समान यानि मेरे बड़े बाबू जी और बड़ी अम्मा रहते थे ... जो खुद वृद्ध थे .... उनके बच्चे बाहर रहते थे ..... वे लोग जिद से घर रहते थे .. कि गांव का वातावरण भोजन उन्हें स्वस्थ्य रखता है और मन लगता है ....  सच में आज भी जो अपनापन गांवों में बुजुर्गों को मिलता है ... वो शहरी परिवेश नहीं दे सकता है .... गप्पबाज़ी सेहत के लिए ज्यादा जरूरी
 
मेरे पिता को लगा कि आज भोजन लेकर चलेंगे तो बड़े भाई से अलग हो जाना होगा ..... जिसकी शुरुआत उनके कारण होगी .... लेकिन मेरी सोच कह रही थी कि पापा का पूरा परिवार उनके संग रहेगा क्यों कि मेरी माँ नहीं थी तो जब तक मेरे पापा जीवित रहे कोई न कोई भाभी उनके साथ रही तब दो दो भाभियाँ रहती थी ..... उनके बच्चे थे .... सबका अपना अपना स्वाद था .... अपनी अपनी आजादी थी ..... मैं एक ही बात बोली "आज आप चूल्हा अलग करते हैं तो बड़े बाबूजी के दिल से कभी अलग नहीं होंगे" ....  उनको आप अपने साथ रखियेगा दो चौका रहेगा तो परेशानी किसी को नहीं होगी .... नहीं तो कीच कीच स्वाभाविक है और दरारे पड़ने के बाद अलग होने से दीवारें खड़ी होती है .... और आज भी हम सब अपने चचेरे भाई बहन कोई पर्व हो शादी ब्याह हो एक चूल्हा जलता है ...
 
मेरी भाभियों पर मेरे पापा के संग बड़े बाबूजी और बड़ी अम्मा लादे गए बोझ नहीं थे लेकिन एक आँगन में होने से इंसानियत ज्यादा दिखाई सबका बराबर ख्याल रखा गया क्यों कि केवल सुपरविजन करना था
"बांधे रखना चाहते हो कुनबे को तो सबको मुक्त कर दो 🙏"
पिजड़े से फरार पक्षी ,पिंजड़े में नहीं लौटता है .... साख से उड़ा पक्षी ,बसेरा साख को ही बनाता है ....

Friday 4 November 2016

छठ




कोसी मनौती का ही होता है .... बेटा हुआ तो भरा जायेगा  ... बेटा की शादी हुई तो भरा जायेगा ... बेटों की नौकरी लगी तो भरा जायेगा।


नहाय खाय से आज छठ व्रत शुरू .... सभी व्रती को मेरा सादर नमन .... बहुत कठिन व्रत है .... श्रद्धा और विश्वास से ही पार लगता है .... आस्था श्रद्धा विश्वास के संग स्वच्छता का सन्देश देता पर्व हैं

सयुंक्त परिवार का आनंद है ... पूरा परिवार जुटता है .... वो सबसे अच्छी बात है इस व्रत में ....

कहते हैं छठ बैठाना नहीं चाहिए अपसगुन होता है ... मेरी बड़ी माँ छठ बैठाई तो भाई की मृत्यु हुई .... मझली माँ छठ छोड़ी तो उसी समय एकादशी {देवउठन} के दिन खुद गुजर गईं ... ... मेरी सास छठ बैठा दीं .... हमारे परिवार में एक साथ जुटने का साधन केवल शादी है जो हर साल तो होती नहीं .... अन्धविश्वास लेकिन मुझे विश्वास करने का मन करता है .... पहले छठ से लोग बहुत डरते थे ... घर की कोई वृद्ध महिला ही करती थी ... सभी तैयारियों में मदद करते थे ।

मेरे बड़े भैया का टाँसिल का ऑपरेशन होने वाला था। ... अस्पताल के बाहर में हम जहां प्रतीक्षित थे वहीं पर ... छठ के लिए सुप दौरा बन रहा था। .. मेरी माँ बहुत घबराई हुई थीं ....{माँ का दिल , माँ बनने के बाद ही समझ में आया मुझे } .... वे मनौती मान लीं कि सब कुशल मंगल रहेगा तो वे छठ में सारा सामग्री देंगी एक सूप का। ..... भैया के टाँसिल का ऑपरेशन हुआ और सफल रह ,सब कुशल मंगल रहा। ... मेरी माँ उसी साल से एक सूप के संग सभी सामग्री देने लगी .... मेरी माँ मेरी शादी के तीन साल पहले गुजर गईं सारी जिम्मेदारी पापा भैया भाभी पर छोड़ कर। ... मेरी शादी के लिए मेरे वही भैया मनौती माने कि वे पानी में छठ के दिन खड़े होंगे ....मेरी शादी जून में हुई और वे उसी साल से छठ में पानी में खड़े होने लगे ....साल दर साल गुजरता रहा। ... छोटे भैया की शादी के कुछ सालों के बाद दोनों भाभियाँ मेरी छठ करने का विचार की कि माँ का मनौती का बोझ कब तक दुसरे उठाते रहेंगे। ... भैया हाल के दो-तीन वर्षों से खरना भी करने लगे हैं। ... आस्था का पर्व है छठ ....यूँ भी कहा जाता है ...मानों तो देव नहीं तो पत्थर।



Saturday 29 October 2016

दीपावली की असीम शुभकामनायें





 ज
दीन
लोनिनी
आशनाई
धन ते रस
जलापा अलस
तेजस्कर दीवाली ।
<><><>
सत्व
संदीप
मोल दीप
सेंत उजास
चैत्य कारी वास
दीपावली उल्लास ।



"क्यों नहीं आएगा पटाखा ?" पटाखों के लिए रोते-मचलते और जिद करते हुए अपने पोते को देख कर बैचेन होते हुए सिन्हा जी अपने आदत के विपरीत थोड़ी ऊँची आवाज में अपने बहु से बोल दिए ।
"आप ना बोलें कुछ पापा , आपके सह देने से बिगड़ जाएगा । आज ही सुबह में इसके स्कूल ना जाने के जिद को बचपना कह टाल रहे थे आप। "
"बचपन में इसका बाप भी स्कूल नहीं जाना चाहता था ।" 
"यही बात ! यही बात, आपकी इसे शोख बना देगी "सिन्हा जी की बहु थोड़ी तीखे अंदाज़ में बोली ।
"मैं सह दूंगा ? क्या मैं चाहूँगा कि वो बिगड़ जाए ?"तेज आवाज और धुंआ प्रदूषण फैलाती है । शगुण के लिये अनार , चक्करी , फुलझड़ी आते ही हैं , कुछ लाल मिर्चा वाले आ जाएंगे । शगुण भी हो जाएगा और मेरे पोते की ख़ुशी भी बढ़ जाएगी । तेज आवाज और ज्यादा धुंआ वाले पटाखे से प्रकृति प्रदूषित होती है और आस पास के वृद्ध जन परेशान होते हैं ।
"आप अभी भी नहीं समझ रहे हैं"
"हाँ हाँ नहीं समझने की बारी मेरी है ,मेरे पोते के संग ।
याद करना जब तुम्हारे बच्चों के बच्चे होंगे 
राम कथा के साथ दीवाली कथा सुनाते "





Friday 21 October 2016

खोजवा


कहानी :- खोजवा
विभा रानी श्रीवास्तव

5000 टका ... हाँ जी 5000 ही टका आपलोगों से मिलेगा हमें कि आपलोग हमलोगों से बद्दुआ ही लेने के लिए तैयार हैं , मेरे मकान मालिक के बेटे के शादी के बाद आये , किन्नरों की टोली का मुखिया चिल्लाया/चिल्लाई ... बहुत वर्षों की बात है , तब 5000 रूपये की कीमत बहुत थी । किसी मध्यम परिवार वालों के लिए किन्नरों पर , आशीष के बदले लुटाना हृदयाघात की बात थी , लेकिन किन्नरों की बद्दुआ फलती है , ये अंधविश्वास भी फैली हुई थी ।
      किन्नरों को समीप से देखने का पहला मौका था मेरा ...  उस घटना के बाद रुपया पैसा के लिए किन्नरों का शोर कई बार देखने सुनने का मौका मिला । कभी किसी के घर शादी हुई हो , कभी किसी का नया घर बना हो , कभी किसी के घर बच्चे का जन्म हुआ हो , हिजड़ों की टोली गाने बजाने आशीर्वाद देने के बहाने , लूटने जरूर पहुँचती है । लूटना इस सन्दर्भ में कहती हूँ कि वे बद्दुआ की धमकी दे कर , गंदे गंदे शब्दों का प्रयोग कर , अपनी मुँहमाँगी कीमत वसूलती हैं टोली । जब भी किन्नरों से मुलाकात हुई उनका विभस्त व अश्लील रूप ही देखने को मिला । कई बार रेल यात्रा में उनको यात्रियों को लूटते पाई । महिला यात्री का स्तन छू देना , पुरुष यात्री का गाल या शिश्न को छूने के हाथ बढ़ाना ,सबको एक अजीब परिस्थितियों का सामना करने के लिए बाध्य करना । मुँहमाँगी कीमत दो नहीं तो नंगा हो जाए कहते कहते नीचे से साड़ी उठाने का भय दिखाना । एक बार तो एक ने अपने सारे कपड़े उतार ही डाले । मुझे हमेशा खौफ़ में डाले रखा । अभी हाल में कई दुकानों में हफ्ता यानि कभी आकर पैसे की मांग करते देखी ।
केवल एक अंग में अंतर होने से ये ना तो स्त्रीलिंग वर्ग में या ना तो पुलिंग वर्ग में तो क्या कहें इन्हें होते है या होती हैं
सिक्के का एक पहलू ही तो था खौफ़ का अनुभव मेरा जब तक .....समय के साथ सोच बदलता है या अलग अलग मनुज की अलग अलग सोच होती ही है … समय काल कोई भी हो .... मेरी शादी में एक दूर के रिश्ते की ननद से मेरी मुलाकात दो चार दिनों की हुई वो बहुत सुलझी हुई लगी .... एक दो साल बाद उनकी भी शादी हुई ….. मेरी जब उनसे मुलाकात हुई तो मैं उनसे पूछी ….
"आपको कैसा लगा जब आप जानी कि वे नामर्द हैं ?"

"भाभी क्या शब्दों में कोई कह सकता हैं कि जब वो मर जाता है तो कैसा लगता है ?"

"आप सम्बन्ध विच्छेद कर नई जिंदगी क्यों नहीं शुरू करती हैं ?"
उनका जबाब था "जैसी किस्मत मेरी भाभी उनमें एक ही कमी है ..... लेकिन वे बहुत अच्छे इंसान हैं ..... फिर कौन जानता है , दूसरा कैसा इंसान मिले … ?
इतने अनाथ बच्चे हैं दुनिया में किसी को गोद ले अपने आँचल भर लुंगी ।"

"शारीरिक सुख का क्या होगा ?"
"कैसा सुख ? जब भूख कभी लगी ही नहीं । पाकर खोना कष्टप्रद होता है । जो चीज का अनुभव ही नहीं तो ना मिलने का दुःख कैसा !"
त्याग का मिसाल था ये रिश्ता , लेकिन निभाने का हौसला साथी से मिला साथ ,प्यार ,अपनापन संग उचित व्यवहार ही था न ।
उफ्फ्फ्फ़ क्या दर्द  ! उन किन्नरों को समाज परिवार अपनों से मिला होता है , जो ये इतने क्रूर होते/होती हैं , हम साधारण इंसान इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं ।
समाज में फैले इस कोढ़ को मिटाने का उपाय भी मुझे नज़र आया खुद के ननद के त्याग में
जिस परिवार में भी ऐसे बच्चे का जन्म हो उसकी परवरिश परिवार समाज में सच्चाई के साथ सामान्य बच्चों की तरह हो ..... जब ऐसे बच्चे वंश बढ़ाने में सहायक नहीं हैं तो शादी क्यों हो ! जैसे

दो साल पहले मेरे पड़ोसी की लड़की की भव्य शादी हुई , फिर एक बार लड़के वालों के धोखे की शिकार एक लड़की हुई उसकी भी शादी हिंजड़े के साथ कर दी गई

लड़की दो तीन दिन में ही लड़के को तलाक दे अपने नौकरी पर लौट गई

दोनों लडकियों के नजरिये से मुझे दोनों का निर्णय मुझे सही लगा

हम हमेशा अपने को आजमायें …. खुद में जितनी सहनशक्ति हो उतनी ही क्षमता की कार्य जरुर करें .... खोजवा के बारे में एक बार फिर से खोज हो और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जुड़ा जरुर रहने दिया जाये ... पूरे मान सम्मान अधिकार के संग ... दया का पात्र ,उपहास का पात्र बना क्रूर बनने पर मजबूर ना किया जाए .... स्त्रीलिंग पुलिंग नपुंसकलिंग ... तीन धारा .... तीन प्रकार के इंसान ....

भैया की पोती के लिए आये टोली को कल देख भी विचार जन्में



Saturday 24 September 2016

दान



न बर्दाश्त दिनों-रात बुजुर्गों के खायें-खायें
कौवों को दान दिए श्रद्धा से आ आ किये
क्यों कि उसके कांव कांव को मनहूस मानते रहे , 
मुंडेर पे बैठा नहीं कि चल हट भाग हुड़के
गाय जैसी बहु खोजते रहे
दमन करना आसान मिले
घर में जकड़ ना सके तो
गली गली भटकने छोड़ ही सके

नदियों कौओं गायें को दान क्यूँ
जितने निरीह हैं उन्हें दान क्यों नहीं

Tuesday 16 August 2016

टूटती शाखें


 …… राखी ......

मेरे लिए भी ..... 4 राखी मंगवा दीजियेगा ….. 3 राखी डाक से .... भाई लोगों को भेज दूंगी ….. एक राखी रह जायेगा …. भैया आयेंगे तो बांध दूंगीं …..

देवर को , सास बाजार भेज रही थीं ..... राखी लाने के लिए ….. सुबह से ही ननद हल्ला मचा रही थी …. माँ राखी मंगवा दो … राखी मंगवा भैया को भेज दो …. देर हो जाने से भैया लोग को .... समय पर नहीं मिलेगा …. बाद में मिलने से ..... क्या फायदा …..

पुष्पा भी कहना चाह रही थी कई दिनों से ….. लेकिन उलझन में थी …. बोले या ना बोले …. शादी होकर आये दो महीना ही तो गुजरा था ससुराल में ….. शादी के बाद पहली राखी थी ….. पति पढ़ाई के लिए ..... दुसरे शहर में रहते थे …. पुष्पा सास ससुर ननद देवर के साथ रहती थी …… जो कहना था ,सास से ही कहना था .....

देवर को बाज़ार जाते देख ….. संकोच त्याग बोल ही दी ….. पुष्पा को राखी के लिए बोलते सुन ….

पुष्पा के ससुर जी बोले :- पहले भी कभी बाँधी हो ..... राखी अपने भाइयों को ..... या ननद की पटदारी कर रही हो …. वो बांधेगी तो तुम भी बांधोगी ...... सास ननद देवर व्यंग से ठिठिहाअ दिए .....

पुष्पा स्तब्ध रह गई ….. कैसा परिवार है .... हर बड़ी छोटी बात व्यंग में करते हैं  ...... क्या अभी अभी ….. मेरे शादी के बाद ..... राखी प्रचलन में आया है …. मेरी माँ भी मामा को राखी बांधना शुरू कर दी थीं .... पुष्पा बोलना चाहती थी .... लेकिन उसकी आवाज घूंट कर रह गई …… कहीं शाखें चरमरा गई …..

मान घटता
संकुचित विचारों
टूटती साखें



Saturday 13 August 2016

तिरंगा



तिरंगा शहीदों का कफन होता है ......
बलात्कार की शिकार हुई ..... बालाओं ..... नारियों का कफन क्या हो ?
बलात्कारियों  के कमी नहीं होने से बेटियों की कमी हो  जायेगी .... पहले बहुओं को जलाये जाने से हो रही थी ..... अपने बेटी से प्यार किये तो कौन सा जग जीत लिए .... शान तब है जब घर में बहुओं का मान है ....


चाहे कोई पार्टी हो ..... आखिर क्या कारण है 

Padmasambhava Shrivastava
अमित शाह जी क्या उत्तर देंगे ?
छात्रा से दुष्कर्म के आरोपी बस्ती से कांग्रेसी विधायक संजय जायसवाल को भाजपा में क्यों शामिल किया है ? 
यह बेटी का सम्मान या अपमान है ?

देश स्वतंत्र हुए 69 वर्ष हो गये ...... स्वतंत्र होने का अर्थ सबने अपने अपने हिसाब से लिया है ... कोई बलात्कारी हो कर कोई बलात्कारी को पनाह देकर ..... देश अपना मर्जी अपनी ..... रिश्तेदारी निभाना तब और भी जरुरी जब कुर्सी बचाए रखना हो ..... बलात्कारी खुद हो या किसी ना किसी का .... मामा .... काका ..... साला .... बेटा हो जाता है ......

स्व
सोर
विहन्ता
स्वाधीनता
कोटि कुर्बानी
भूले मंत्री संत्री
दुष्कर्मी को पोषते {01}

<><><><><><>

हो
टोल
ठठोल
कुर्सी झोल
आजादी मोल
बढ़ा बड़-बोल
निहाल चाटु लोल {02}

लिखने कुछ बैठती हूँ .... लिखती कुछ हूँ ..... लिखना चाहती थी तिरंगे के शान में ..... स्वतंत्रता के मान में .... दिमाग तो उलझा है ..... बलात्कार

Friday 12 August 2016

समय



खुद की मान बढ़ाने के चक्कर में दूसरे के मान को ना छेड़ें
समय का बही-खाता ऐसा है कि सबका हिसाब रखता है ढेरे

शारदा जी के खिलाफ विभा को और विभा के खिलाफ शारदा जी को भड़काने का एक भी मौका नहीं गंवाते राजू अंजू .... शारदा जी पुत्र मोह में और देवर देवरानी को हितैषी समझ विभा यकीन करती रही ....नतीजा ये हुआ कि शारदा जी और विभा में पूरी जिन्दगी नहीं बनी ....विभा के पति अरुण को अपनी माँ शारदा जी पर पूरा विश्वास था ....शारदा जी जो कहतीं , अरुण आँख बंद कर विश्वास करते और अपनी पत्नी को कभी सफाई देने का भी मौका नहीं देते .... विभा पूरी जिन्दगी सभी रिश्तों को खोती ही रही .... राजू अंजू को खुद को काबिल समझने का तरीका अच्छा मिला था .... 30-32 साल का समय कैसे कटा विभा का इस कागज़ पर लिख पाना संभव नहीं ... लेकिन शारदा जी के मौत के बाद उनकी डायरी विभा को मिली .....
अब विभा करे भी तो क्या करे ................................... चिड़िया खेत चुग चुकी है

आप में से किसी की स्थति शायद सम्भल जाए

Wednesday 10 August 2016

ड्योढ़ी कब लांघे ?



समाज में कई सवाल बिखरे पड़े हैं ..... सहना क्यूँ कब तक बहना ?

जब तक केवल वो बहु थी
कुछ नहीं रही उसकी औकात
न घर की ना घाट की !
जब बने सास तब होती खास
जमीर रहे गर उसकी जिंदा
बहु ले पाती चंद सांस !!

गृह त्याग तब क्यूँ नहीं की ….. जब कर्कशा सास हर आने जाने वाले रिश्तेदार को दहेज में कमी होने का रोना रोती और खुद महान होने का नाटक परोसती …..

गृह त्याग तब क्यूँ नहीं की …. जब बददिमाग मुंहफट ननद …. मझली भाभी के भाई को हरामी बोली …. मझली भाभी के हंगामा करने पर …. बड़ी भाभी के मुंह से निकल गया …. बबुनी को ऐसा नहीं बोलना चाहिए था ….. बड़ी भाभी का बोलना गुनाह इतना बड़ा हुआ कि उसके भाई को बुला कर घर छोड़ देने का आदेश मिला …. {बड़ी भाभी तब तक गर्भवती हो चुकी थी …. पुत्र जन्म देने पर उसके विरोध में उसके बेटे को ही खड़ा करने की जी तोड़ कोशिश की सबने}….. कैसे और कहाँ जाती इस दोखज़ समाज में …… उसके बाद तो सिलसिला शुरू हो गया ….. हर छोटी बड़ी बात पर घर से निकल जाने का आदेश पास हो हाज़िर हो जाता ….. देश का राष्ट्रपति मुंह पे ऊँगली रखे रहता है …. घर में पेटीकोट सरकार हो और कापुरुष हो संग तो ……. घर का सबसे बेगैरत बेरोजगार (काश ! हमेशा रहता ) छोटा बेटा रातो रात बड़ी भाभी के मइके जाता और उस समय जो आ पाता उसे वो साथ लेकर पौ फटते चला आता ….. मइके वाले शायद इसलिए चले आते समाज में प्रतिष्ठा बनी रहे ….. मझला बेटा बहू को सूरत का घमंड था …..काश कुछ सीरत भी मिला होता ….जिसे लूट सकता उससे सटता ….. लूटे माल पे इतराते घूमते ….. बड़ी भाभी का शिकायत करना ….. उनका मनपसंद शगल था ….. जड़ खोदता रहा ……

गृह त्याग तब क्यूँ नहीं की …. जब पति छोटी उम्र की स्त्रियों को साली और बड़ी उम्र के स्त्रियों को भौजाई कहता और उसके सामने ही फ्लर्ट करने की कोशिश करता ….. बिना उसके गलती को जाने समझे पूछे उसे पिट डालता …. कान का कच्चा बेटा पाकर डायन सास लगाती बुझाती रही पूरी जिन्दगी …..

आज अपने पति की बेवफाई सिद्ध होने पर ….. बिना पल गंवाये सिंदूर चुड़ी बिंदी उतार उसी पति को सौंप …. पथ पर भटकते हुए सोच रही है ….. इन्ही बेटों की परवरिश कर अहंकार से कर्कशा शारदा देवी कहती थी ……दीया लेकर खोजने निकलो तो मेरे बेटों जैसे बच्चे दुसरे नहीं मिलेंगे
अच्छा है दुनिया में एक ही परिवार ऐसा है ……

पति या पत्नी का बहकना
उसके पीछे होता
उसे मिले
संस्कार का होना
सहना तभी तक गहना
जब तक मान न गंवाना
हर भाई बहना समझना


Tuesday 9 August 2016

अनुभूति



सारे रिश्ते
स्वार्थी मतलबी
झूठे होते हैं
चाहे जन्म से मिले
चाहे जग में बने
अकेला जन्म
अकेला मृत्यु
सत्य यही
कल भी था
कल भी होगा

Sunita Pushpraj Pandey :- माना जन्म और मृत्यु अकेले पर जीवन मे अपनो का साथ
सबकुछ सहज बना देता है

विभा रानी श्रीवास्तव :- कौन अपना ? किसी अपने को कभी आंक कर देखना सखी

Sunita Pushpraj Pandey :- बाकी का नही पता पर पति मेरा अपना है मेरा कष्ट उनके चेहरे पर नजर आता है जबकि वो कहते हैं मै सिर्फ अपने कर्तव्य निभाता हूँ

विभा रानी श्रीवास्तव :- आप खुशकिस्मत हैं कि पत्नी का दर्द महसूस करने वाला आपको आपके पति मिले
जरा उनसे पूछ कर बताइयेगा कि क्या आपके चिता के संग सती/सता होंगे न वे / अगर आप पहले मुक्त हुई इस जीवन से तो .... या रह भी जायेंगे तो .... सन्यासी हो जायेंगे न ...?

Sunita Pushpraj Pandey :- हाँ प्रैक्टिकल तो है वो पर परिवार से प्यार करते हैं किसी के विषय में सोच तो सकते हैं पर अपना नही सकते मेरे साथ भी मेरे बाद भी

विभा रानी श्रीवास्तव :- चिता के संग जायेंगे सवाल का जबाब ढुंढियेगा सखी

Sushma Singh :- सहमत पर कूछ अच्छे अौर सच्चे भी होते है

विभा रानी श्रीवास्तव :- पति के साथ सती होती थी स्त्रियां उसे भी रूढ़ी मान बदल दिया गया
उसके आगे पीछे किसी रिश्तेदार को किसी रिश्तेदार के साथ मरते नहीं पाई हूँ  अब तक .....

माता भू शैय्या
लॉकर खंगालते
बेटा बहुयें।

अंकिता कुलश्रेष्ठ :- जीजी ये तो सही है.. हर कोई निज स्वार्थ से रिश्ते बनाता है
चाहे जैसा स्वार्थ हो.. जैसे आप के साथ रिश्ता ... मुझे ऊर्जा प्रेरणा और खुशी देता है..
हुआ न मेरा स्वार्थ

विभा रानी श्रीवास्तव ;- हमारा क्या रिश्ता है इसकी कोई परिभाषा ही नहीं गढ़ सकता है
लेकिन एक दूसरे के वियोग में हम प्राण नहीं त्याग सकते हैं
पैरों में कई बन्धन हो सकते हैं न लिटिल Sis

अंकिता कुलश्रेष्ठ :- पर आप मेरे लिए अनमोल हो ... प्राण तो जिसने दिइए उसका अधिकार

विभा रानी श्रीवास्तव :- बिलकुल सही बात लिटिल Sis ..... जो सहमत नहीं उनकी अनुभूति उनके विचार
जैसे किसी का लेखन उसकी अनुभूति की अभिव्यक्ति होती है वैसे ही उस लेखन से दूसरे की सहमति या असहमति उसके खुद की अनुभूति होती है ... मैं अपनी अनुभूति में अपने कानों को शामिल नहीं करती हूँ

प्रश्न :- किसी के अनुभूति का दायरा कितना होता है ?

उत्तर :- श्री उमेश मौर्य जी :- व्यक्ति की परिस्थिति, पर्यावरण, चिंतन, और उसके पूर्व (अच्छे व बुरे) अनुभव ही उसकी अनभूति का माध्यम बनते है |
एक ही बात अलग अलग परिस्थिति में अलग अनुभव की हो सकती है |
हम किस तरह के परिवेश, माहौल में रहते है जिससे हमारी मनः स्थित प्रभावित होती है |
और हमारे पूर्व अनुभव हमारे सामने आने वाले सभी विचारों का मूल्याकंन कर एक आधार बनाते है |


Sunday 7 August 2016

बेचारी बनी हिंदी




मेघाच्छादित
धारे युवा युवती
जींस धुंधली ।

@जींस धुंधली = यानि faded जींस यानि ब्लू जींस पे सफेद धब्बे .... फैशन

सुझाव मिला

तिर्छी नज़र -
मेरा फीका ब्लू
जीन्स आकर्षे

हाइकु और वर्ण पिरामिड विधा में काव्य लेखन में वर्ण से कमाल होता है
कोई -कोई शब्द बहुत अच्छे लगते हैं
लेकिन
वर्णों के कारण जी मसोस कर रह जाना पड़ता है

वर्ण की सुविधा के लिए
बहुत लोग हिंदी के शब्दों में से वर्ण कम कर रहे हैं
तिरछी = तिर्छी
आकर्षित = आकर्षे
मध्यान = मध्या

परिवर्तन दुनिया का नियम है
चलो मान लेती हूँ
परिवर्तन हिंदी में ही क्यों जबकि वो समृद्ध है
English में ज्यादा जरूरी नहीं है न
Man सरक के go के पास आ जाता है तो
mango हो जाता है
अच्छी बात है मुझे भी नये नये शब्दों को जानने का शौक है
English word में से भी लेटर सरका सकते हैं न
Mango = Mgo लिखते हैं

आंटी से बुआ मौसी चाची मामी
अंकल से फूफा मौसा चाचा मामा
Law लगा दो तो सारे रिश्ते अपने रूप बदल लेते है
परिवर्तन वहाँ क्यों नहीं जरूरी समझ रहे हैं लोग

हिंदी में तो बिंदी का भी महत्व है
शंकर शकर को देख लें

सब समझौता माँ ही करती है न
हिंदी भी क्या करे संस्कृत की बेटी संस्कृत से संस्कार ली
सबके परिवर्तन को अपनाते जाओ
अस्तित्व ही मिटाते जाओ


Wednesday 27 July 2016

हिंद - हिन्दुस्तानी - हिंदी






ऋचा सिंह मिसेज इंटेलिजेंस वर्ल्ड माइक पकड़े 
मेरे पति के मित्र की बेटी
पटना की बेटी
बिहार की बेटी
हिंद की बेटी
मेरी बेटी


 पटना में मिसेज एशिया यूनिवर्स का
फाइनल प्रोग्राम
सोमवार 24 जुलाई की रात हुआ
आजतक न्यूज़ चैनल पर प्रसारित मैं देखी 
कई देशों में दिखलाया गया होगा

आठ महीनों के प्रयास .... समझाने की कोशिश सफल हुई 
ऋचा के
कि ये प्रोग्राम बिहार में किया जाये
जद्दोजहद बिहार की स्थिति के कारण ऋचा को करने पड़े होंगे
भारत .... भारत में बिहार ... बिहार में आतंक
राजनीत का आतंक .... शिक्षा की कमी का आतंक
बिहारी शब्द बिहारियों के लिए गाली के रूप में प्रयोग होता है

जिसमें एक जज साऊथ अफ्रीका की मिसेज वर्ल्ड 2015 

एक प्रतिभागी कनाडा की थी

जिसे देखने मैं गई थी ... मोबाइल से रिकार्ड कर लाई तो अपने फेसबुक टाइम लाइन पे लगाई 
उस प्रोग्राम में इंग्लिश में बात सबने की थी
जिसे देखकर श्री 
मुकेश कुमार सिन्हा जी 
को देशभक्ति पर शक हुआ
उनका सवाल था कि जब विदेशी अपनी भाषा नहीं छोड़ते तो हम अपनी भाषा क्यों छोड़े
तो

विमर्श का विषय है कि जहां हिंदी नहीं चल सकती वहाँ क्या करना चाहिए ?

बिहार में मगही ,मैथली,भोजपुरी के संग हिंदी भी बोली जाती है ..... या यूँ कहें तो ज्यादातर हिंदी ही बोली जाती है .... बदलते माहौल का असर रहा तो कुछ सालों के बाद ज्यादातर अंग्रेजी ही बोली सुनी जाएगी .... जगह जगह मशरूम कुकुरमुत्ते की तरह अंग्रेजी स्कूलों का खुलने का असर और बच्चों पर दबाव कि वे अंग्रेजी में गिटपिट करें ....
हवाई यात्रा में मुस्कुराहट खो जाती हैं .... नोटों के नीचे कहीं दबी रहती है .... इंग्लिश की चीलपों ....
लेकिन  .... जब बिहार आने के लिए रेल की यात्रा करती हूँ तो बहुत आनंद आता है ..... मगही मैथली भोजपुरी हिंदी की गुनगुनाहट सुनाई देती है ..... अंग्रेजी बोलने वाले कम ट्रेन से सफर करते हैं न .... लेकिन जब बिहार से बाहर जाने वाली रेल यात्रा करती हूँ तो अक्सर एक दर्द साथ ...... सहयात्री को ज्यूँ पता चलता है बिहारी हूँ .... चेहरे का रंगत बदल जाता है .... मानों कोई क्रिमनल संग बैठी है .... जब देश में ये हालात है तो विदेशों में क्या हालात होते होंगे 
ऐसे हालात में विश्वास दिलाना कितना मुश्किल रहा होगा ..... 






Sunday 26 June 2016

सुप्रभात मंच




** सुप्रभात मंच** बिहार शाखा का गठन
सम्मानित मित्रो,
अत्यंत हर्ष के साथ सूचित किया जाता है कि आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी की अध्यक्षता में सुप्रभात मंच की साहित्यिक प्रतिच्छाया संस्था का गठन बिहार में कर दिया गया है । पदाधिकारियों एवं कार्यकारिणी सदस्यों की घोषणा अति शीघ्र कर दी जायेगी ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि विभारानी श्रीवास्तव जी के नेतृत्व में यह संस्था हिन्दी साहित्य के प्रति निष्ठा से कर्तव्य का पालन करेगी ।
***** सुरेशपाल वर्मा जसाला



आदरणीय सुरेश पाल वर्मा जसाला जी द्वारा रजिस्टर्ड NGO सुप्रभात मंच

सुप्रभात मंच की सीहित्यिक प्रतिच्छाया संस्था दिल्ली के

बिहार शाखा का गठन
एवं
हाइकु गोष्ठी का आयोजन



Chief guest :- Dr. Satish Raj Pushkarna ji
President :- Vibha Rani Shrivastava
Vice President :- Smt Sangeeta Govil ji and Dr. Moni Tripathy ji
Chief Secretary :- Smt Poonam Anand ji
Secretary :- Dr. Pushpa Jamuar ji , Smt Kiran Singh ji , Smt Saumya Tiwari ji and Smt Binashree Hembrom ji
Treasurer :- Smt Ekta Kumari
Vice Treasurer :- Smt Maniben Diwedi and Alka JI
Advertisements :- Dr. Virendra Bhardwaj and Osama JI
Anchoring :- Smt Binashree Hembrom


आज बीज पड़ा
अंकुर , वृक्ष , फूल-फल समय पे निर्भर
समाज से लिया कर्जा
समाज को लौटाने की एक कोशिश

जमीं से जुड़ जायेंगे
तभी तो 
नभ तक उड़ पायेंगे






Sunday 19 June 2016

पिता









कड़क छवि ...... अनुशासन .... कायदे कानून ..... केयरिंग ..... हम छोटे भाई बहन को ..... बड़े भैया में देखने को मिले ..... यानि पिता का जो रोल हम सुनते पढ़ते आये वो रोल तो बड़े भैया निभाये ..... इसलिए शायद पिता की कमी हमें आज भी महसूस नहीं होती ...... 

हमारे पिता (मेरे पिता + मेरे पति के पिता) बेहद सरल इंसा थे ..... दोनों घरों में मुझे माँ की भूमिका मुख्य दिखी ..... 


एक बार मेरे पति बोले कि .... * राहुल का बाहर जाना , मुझे शायद इसलिए नहीं खला कि ...... या तो मैं उसे सोया नजर आया या वो मुझे सोया नजर आया * ..... या कभी जगे में भेंट हो गई तो जितनी बात होती थी , उतनी बात आज भी फोन पर हो जाती है ...... कैसे हो ..... पढ़ाई कैसी चल रही है .... कोई जरूरत हो तो बताना ..... 


शायद इसलिए मेरे विचार ये बने कि बच्चों का भविष्य माँ के हाथों से सुघड़ होता है ..... पिता बस प्यार प्यार प्यार प्यार .................. बाँटते हैं ......




नीम बरगद पहाड़ नारियल ..... पिता को क्या परिभाषित किया जा सकता है .....




बेटी होना इक कर्ज

कुछ हिसाब एक जन्म में चुकता नहीं हो सकता है .... समय रहते या तो बुद्धि काम नहीं करती या हौसला में कमी हो जाती है .... समय रहते बुद्धि काम करती या समाज से लड़ने का हौसला होता तो ..... आज समाज से बहुत सी कुरितीयों का समूल नाश हो गया होता .... जिन कुरितीयों को सहना स्त्री भाग्य का लिखा मान लेती है .....
बेटी के बाप की गलती ना भी हो तो वो दामाद के पैर पकड़ माफ़ी मांगता है ताकि बेटी खुशहाल जिंदगी जिए ..... वैसी परिस्थितियों में बेटी तब क्या सोचती होगी ?
बेटी होना एक कर्ज है जो इक जन्म में अदा नहीं होता .......

Wednesday 15 June 2016

वर्ण पिरामिड

वर्ण-पिरामिड सप्ताहाँक - 56 = ( सम्मान्य प्रमुख :: डी डी एम त्रिपाठी जी {भाई बड़े मणि } )
संचालन : आदरणीय श्री सुरेश पाल वर्मा जसाला जी
और समूह के सभी सदस्यगण
शीर्षक = बेहाल / परेशान / दुखी
चै
डूबा
डहार
लू कासार
टूटे ज्यूँ तट
तलमलाहट
काकतालीय दुःख {1}
हो
चूनी
कुपंथी
छीने चुन्नी
स्त्री परेशानी
समाज बेहाल
देख दुष्कर्मी चाल {2}
 

वर्ण-पिरामिड सप्ताहाँक - 48 = ( सम्मान्य प्रमुख :: कुसुम वियोगी जी )
शीर्षक = जयहिंद
>>>>
1
है
भीती
अधीती
जयहिंद
हिम ताज है
तोड़ न सका है
जयचंद संघाती
>>>>>
2
भू
गीती
चुनौती
अग्रवर्ती
नेक-नीयती
जुडाये अकृती
जयहिंद उदोती
>>>> हिन्द की जितनी जय की जाये ..... कम ही होगा
जय हिन्द

Thursday 9 June 2016

पेड़ अधिक आबादी कम , इन बातों में कितना दम ?



परवचन में कुशल बहुत मिलेंगे ..... मुझे मेरे जिन्दगी में ..... बहुत ऐसे मिले भी .... जिनके हाथी जैसे खाने के और दिखाने के और .... अलग अलग दांत थे ..... बिना अपनी जिन्दगी में अपनाये केवल परोपदेश देना .... गाल बजाने जैसा होता है .... केवल थ्योरी की बातें असरदार नहीं होती है .....



1982 में मेरी शादी आर्थिक रूप से समृद्ध मध्यम परिवार में इंजीनियर से हुई ..... उस समय भारत में ...... हम दो हमारे दो .....  दो बच्चे होते अच्छे ..... छोटा परिवार सुखी परिवार .... का नारा गूंज रहा था .... क्यों कि उस समय तक ..... अधिकतर लोगों को चार से छः बच्चे होते थे ..... जनसंख्या बढ़ने से बेरोजगारी बढ़ रही थी ....  बेरोजगारी का असर मंहगाई पर भी पड़ती है ... बेरोजगारी हो और मंहगाई हो तो चारों तरफ त्राही त्राही मचना स्वाभाविक था .... तभी मेरे पति का निर्णय हुआ कि हम एक बच्चे को जन्म देंगे और उसकी ही परवरिश अच्छे से कर लें ..... यही बहुत होगा .... उस समय हमारे इस निर्णय से हमारे परिवार में एक तूफ़ान सा आ गया .... सभी का कहना था कि चार छः नहीं तो दो तीन तो होना ही चाहिए ..... समृद्ध होते हुए , भगवान का अपमान है .... कम बच्चा होना .... एकलौता बच्चा के सुख दुःख में कौन साथ देगा .... { संयुक्त परिवार टूटने के कगार पर था .... कारण था सुख-दुःख में साथ ना होना ही }

बाँझ का मुंह देखना चल भी जाता है ..... एकौंझ का मुँह देखना बहुत बड़ा अपसगुण है .......

बहुत बातों को सुनते .... नजरन्दाज करते हुए .... हम अपने निर्णय पर अडिग रहे और बाद में हमारे अनुकरण में हमारे देवर ननद का भी एक एक ही बच्चा रखने का निर्णय हुआ ...
मेरी ननद को एक बेटी ही रही मुझे एक और मेरे एक देवर को एक बेटा + एक बेटी तथा एक देवर को एक ही बेटा रहा ..... 
यानि जितने हम भाई बहन थे ..... उतने की ही संख्या बरकार रही ....


आज सभी बच्चे बड़े हो चुके हैं .... उनकी परवरिश में ... हमें ... कभी किसी तरह की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा .... चाहे उच्च शिक्षा दिलानी हो या चाहे उनकी पसंद की चीजे .... कहीं भी मन नहीं मारना पड़ा ..... जिस रफ़्तार से महंगाई बढ़ी .... हर क्षेत्र में कहीं ना कहीं समझौता करना पड़ सकता था ....

कम बच्चे होने से या यूँ कहें कम आबादी होने से भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सकती है .... सुरसा महंगाई को रोका जा सकता है .....


इतने सालों में मेरा अनुभव ये रहा कि पेड़ की कटाई काफ़ी तेज़ी से हुई है ..... कंक्रीट का शहर बसाने का जरिया हो या उद्योग लगाने का हो .... रोजगार बढ़ाने का साधन बना हो या फैशन के अनुसार फर्नीचर बनवाने का हो ..... उसका नतीजा ही है ... आज की गर्मी का बढ़ना ..... बारिश का नहीं होना या पहाड़ का खिसकना .... क्षति से परेशान मनु अपनी गलती मानने के लिए तैयार नहीं है ....  लेकिन मानना जरूरी है  ..... उस क्षति की पूर्ति के लिए ... हर जगह मैं और मेरे परिवार के सदस्य , हर आयोजन पर पेड़ लगा रहे हैं ...... कई शहरों में अनेकों प्रकार के पेड़ हम लगा चुके हैं ..... और .... सभी से अनुरोध करते हैं कि हर आयोजन पर पेड़ लगा कर , पर्यावरण से प्रदुषण को दूर करने में सहायक बनें .....


TAKE THE WORLD and PAINT IT GREEN!

मेरी रानी बेटी Maya Shenoy Shrivastava

पेड़ अधिक आबादी कम , इन बातों में बहुत है दम 

Tuesday 7 June 2016

साधू - बिच्छू




Fb जैसा असली दुनिया में भी ब्लॉक का आप्शन होना चाहिये था
बार बार साधू की भूमिका नहीं निभानी पड़ती किसी बिच्छू के लिए

नजरों के सामने गुलाटी मारते देखना ज्यादा दंश देता होगा न

..... दिल ब्लॉक हो तो ........




सच को ..... चाशनी में लपेटना ..... हमेशा भूल जाती हूँ ..... जबकि जलेबी पसंद है ..... लेकिन मिर्ची ज्यादा लुभाती है .....





दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...