Monday 7 December 2015

सपना











एक आयोजन सफल हुआ कि आँखें फिर नई संजो लेती है

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने सन् 1916 में पहली बार हाइकु की चर्चा किये थे
उस हिसाब से 2016 हाइकु शताब्दी वर्ष है
तो
क्यों न हम 100 हाइकुकार इक किताब में सहयोगाधार पर शामिल हो , विमोचन पर एकत्रित हो यादगार आयोजनोत्सव मनायें
जो शामिल होना चाहें
स्वागत है

Monday 26 October 2015

अथ से इति - वर्ण स्तम्भ


शरद पूर्णिमा की ज्योत्स्ना और हमारी धवल इच्छा आपके सामने


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वर्ण पिरामिड लेखन की एक पुस्तक लाने की योजना है
51 प्रतिभागियों का
ये प्रयास है लोगों को जोड़ने की
अथ से इति -- वर्ण स्तम्भ पुस्तक में
 लाखों का 416 पेज का बुक
इच्छुक मुझसे फेसबुक पर जुड़ सकते हैं



Monday 12 October 2015

अंत हो मरने के बाद के श्राद्ध का




आज अंतिम दिन पितृपक्ष का कल से नवरात्र शुरू

जान में जान हो
जाने में राह आसान हो
जान लें जाना कहाँ है
जाने से पहले

आत्मतृप्ति के बाद आत्मा तृप्ति की जरूरत नहीं होती

 तीन में कि तेरह में

एक बार चाची(पड़ोसन) से बातचीत के दौरान पता चला इसका सही सही अर्थ

चाची बताई कि 
मिथिला में बेटियां तीन दिन में अपने माता पिता का श्राद्ध करती हैं
और बेटे तेरह दिन में

मिथिला में बेटियों का कन्यादान तिल विहीन किया जाता है इसलिए तिल भर सम्बन्ध या यूँ कहें दायित्व निभाने की जिम्मेदारी मिल जाती है

वहीं छपरा जिला में बेटियां ना तीन में ना तेरह में होती हैं

लेकिन
बेटे बहुत लायक होते हैं तो बेटियां चैन से रहती हैं
~~

Wednesday 7 October 2015

प्यासी जल में सीपी



~~
 प्यासी जल में सीपी

भूल जाओ पुरानी बातें ....... माफ़ कर दो सबको ..... माफ़ करने वाला महान होता है ...... सबके झुके सर देखो ..... बार बार बड़े भैया बोले जा रहे थे .....

बड़े भैया की बातें जैसे पुष्पा के कान सुन ही नहीं रहे थे .....
आयोजन था पुष्पा के 25 वें शादी की सालगिरह का ...... ससुराल की तरफ से सभी जुटे थे ...... सास ससुर देवर देवरानी ननद संग उनके बच्चे ..... मायके  से आने वाले केवल उसके बड़े भैया भाभी ही थे । बुलाना वो अपने पिता को भी चाहती थी लेकिन उसके पति ने बुलाने से इंकार कर दिया था क्यों कि ..............
नासूर बनी पुरानी बात , ख़ुशी के हर नई बात पर भारी पड़ जाती है न

सास को पुष्पा कभी पसंद नहीं आई ..... पसंद तो वो किसी को नहीं करती थी .... उन्हें केवल खुद से प्यार था और बेटों को अपने वश में रखने के लिए बहुओं के खिलाफ साजिश रचा करती थी ...... बेटे भी कान के कच्चे , माँ पर आँख बन्द कर विश्वास करते थे ..... बिना सफाई का मौका दिए , बिना कोई जबाब मांगे अपनी पत्नियों की धुलाई करते
पुष्पा तब तक सब सहती रही जब तक उसका बेटा समझने लायक नहीं हुआ

फिर धीरे धीरे विरोध जताना शुरू किया  लेकिन शादी का सालगिरह क्यों मनाये खुद को समझा नहीं पा रही थी

घर छोड़ चली गई होती तब जब बार बार निकाली गई थी तो..........

बुजुर्ग से बदला कभी नहीं लिया ......लेकिन सोचती रही बुढ़ापा तब दिखलाई नहीं दिया था क्यों

??

 http://atootbandhann.blogspot.in/2015/10/blog-post_39.html



दमाद बेटी को खुश रखे
बेटा श्रवण पूत बने
??
जिस घर में बेटी हो बेटा ना हो
बेटा भ्रूण की हत्या करें
??
जिस घर में बेटा हो , बेटी ना हो
बेटी भ्रूण की हत्या करें
??
अरे नहीं रे
छोटा परिवार सुखी परिवार
हम दो हमारे एक की रीत निभायें

पहली सन्तान जो हो वो रहे बस
सारा फसाद एक घर में दोनों होना ही है
दमाद घर जमाई बन बेटे का धर्म निभाये
बेटी माँ बाप का ज्यादा ख्याल रखती हैं न

श्रवण पूत अल्पायु था कुँवारा बेचारा

सारा टँटा बहुयें से ही तो है

झगड़ा - फसाद के जड़ को ही खत्म करते हैं
बहु के अस्तित्व को ही मिटा देते हैं

बेटे के माँ बाप काशी वास करें

ना रहेगा बांस ना बजेगी बाँसुरी
ननद भौजाई भी नहीं बचेगी

ह न त



4 सितम्बर 201

Saturday 3 October 2015

बकबक



जले दीप को
गर्म चाय प्याली को
कौतुक में स्पर्श को
धैर्य स्व माँ को
डुबो दी ऊँगली को
सीख देने शिशु को

~~~

दो कदम पीछे हट कर ज्यूँ छलांग भरते हैं

तो

अविवेकी की पहचान क्रोधी

हाँ तो

मत ललकारो उन्हें , जिनके पास कुछ खोने के नहीं होता

नहीं तो

मूलमंत्र है सम्भाल कर रखो

मानोगे नहीं ....... जिद्दी हो ...... सैद्धांतिक तो बुजुर्गों के बकबक बुढ़ापे की निशानी है ...... प्रायोगिक ही व्यावहारिक होता है ...... ये कठकरेजि जानती है

महबूब भी बहुत जिद्दी था ....... उसे लाल चीज छूने की ज़िद थी ..... जलते लैम्प लालटेन का शीशा .... बिहार में बिजली की दुश्मनी बहुत पुरानी है .....

गर्म चाय की प्याली ..... दादी गोद में बैठाये रखती

लकड़ी गोहरा की अग्नि ...... तब गैस घर में नहीं आया था ..... घर में पेड़ पौधे व गाय रखने का फायदा था

उसके लपकने पर सब खुश होते ....... लेकिन मेरी जान अटकी रहती ...... एक दिन उसकी ऊँगली जला ही दी ..... तब सब मुझे कहने लगे ....... कठकरेजि

बुजुर्गों के पास ज्ञानी बुकची होती है ..... बकबक नहीं 


Friday 25 September 2015

वर्ण पिरामिड



हम ख़ुद की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा लें तो वही बहुत है
बलि का मीट
बिना लहसुन प्याज का पकता
दशहरा में शोर क्यों नहीं मचता
हिन्दुओं-बात हिन्दुओं को पचता
1
स्व
सरी
निश्छल
स्थिर होती
सींचती जीव
डूबा देती नाव
ज्यूँ उबाल में आती
2
हो
नाव
मोहक
जलयान
धारा की सखी
क्षुधा पूर्ति साध्य
जीविका मल्लाह की

Monday 21 September 2015

क़ाबिले तारीफ़

विभा दीदी पीछे में तारीफ करते हैं भाई साहब 😊😃उस दिन जब आप किचेन में थी तब आपकी काफी तारीफ कर रहे थे भाईसाहब 😊फिर आप को देख कर चुप हो गए 😊
कल लल्ली ने लिखा ...... पत्नी प्रोत्साहन दिवस था कल 
पीठ पीछे जो तारीफ़ होती हो ..... सामने भी कुछ यूँ तारीफ़ करते हैं

हमारे परिचित में जितनी औरतें हैं उनमें सबसे कम काम तुम करती हो 
कैसे ?
देखो ! सुबह शाम टहलने जाती हो खुद के लिए तो सब्जी दूध घर का सामान ले आती हो ...... काम ना तुम्हारा टहलना हुआ और समान ले आई तो कितने तनाव से बची ..... खुद के लाये समान में नुक्ताचीनी कर नहीं सकती हो ...... ना सवाल कि क्या पकायें

रोटी कन्ट्रोल सब्जी पकाती हो ...... कम खाने से मोटापा नहीं होता तो ...... ना bp ना सुगर ..... ना कोई सेवा का मौका ..... ना डॉ का दौड़ धूप तुम्हें करना पड़ता है

ना रोज कपड़ा धोती हो ना रोज आयरन करती हो ..... दो जोड़ी कपड़े तो निकलते हैं ..... एक दिन बीच कर वाशिंग मशीन चलाती हो ..... एक दिन बीच कर आयरन करती हो
आयरन करने से रोटी पकाने से तुम्हारा ही फायदा है .... मुफ़्त का कसरत कलाई का होता है

बर्तन खुद धोती हो कि दाई का किचकिच कौन सुने .... ना आई तो बर्तनों का अम्बार देख कौन कुफ्त होये ...... यहां भी फायदा तुम्हारा ......

आज चाय में ऐसा क्या पड़ गया 
क्यों क्या हुआ ?
गलती से शायद ! अच्छा बन गया


है न काबिले तारीफ़ ; तारीफ़ करने का अंदाज , दिल बाग़ बाग़ करता ...... झुँझलाने का हक़ नहीं पत्नियों का 😘

Friday 11 September 2015

हिंदी हर बोली में होती



शादी के बाद ...... मेरे पापा की लिखी चिट्ठी ...... मुझे लिखी , पढ़ने को मिली(शादी के पहले हमेशा साथ रहने की वजह) .... चिट्ठी की ख़ासियत ये होती थी कि ..... कभी वे भोजपुरी से शुरुआत करते तो ..... मध्य आते आते हिंदी में लेखन हो जाता था या ..... कभी हिंदी से शुरुआत करते तो मध्य आते आते भोजपुरी में लेखन हो जाता था ..... बेसब्री से इंतजार रहता था उनकी चिट्ठियों का .... तब मोबाइल नहीं था .... लैंड लाइन भी तो नहीं था ....... 
~~~~~~~~~~~ मेरे माइके में हम सभी घर में भोजपुरी में बात करते थे ...... सहरसा में जबतक हमारा परिवार रहा ; घर के बाहर मैथली का बोलबाला था , सबसे मैथली में बात करना पड़ा ...... बहुत ही मीठी बोली है *मैथली* ....... जब पापा सहरसा से सीवान आ गए तो घर बाहर केवल भोजपुरी का सम्राज्य हो गया ....
 आरा छपरा घर बा कवना बात के डर बा
 शादी के बाद रक्सौल आये तो घर बाहर भोजपुरी का ही राज्य था लेकिन केवल मेरे पति को मुझसे हिंदी में बात करना पसंद था ..... फिर राहुल का जब जन्म हुआ तो राहुल से सब हिंदी में ही बात करने लगे ..... इनकी नौकरी में बिहार (तब झारखंड बना नहीं था) में कई जगहों पर रहने का मौका मिला ..... भोजपुरी+मगही+ मैथली+आदिवासी+हिंदी+उर्दू = खिचड़ी मजेदार लज्जतदार मेरी भाषा

1
शब्दों की खान
हिंदी उर्दू बहनें
भाषायें जान
2
हिंदी समृद्धी
हर धारा मिलती
माँ कहलाती



Tuesday 8 September 2015

दंश ~ कालिख संघ मुख



कलियाँ खिली
ब्याही सुता हो जाती
स्व समर्पित

एक ब्याहता स्वयं समर्पण करती है .....
बलात्कृत तो कली कुचली जाती है ...... खिलती नहीं

 परिवार में लड़की अगर सुरक्षित नहीं तो परिवार की जरूरत ही नहीं

हम फिर इतिहास दोहराएंगे बहुत जल्द

आज ही फेसबुक पर जानकारी मिली कि किसी लड़की ने अपने साथ हुए ...... उसके घर के ही किसी सदस्य के हैवानियत के कारण ...... आत्महत्या कर ली ......

Tuesday 1 September 2015

उड़ेगी बिटिया




नीतू भतीजी , डॉ बिटिया महक , प्रीती दक्ष , स्वाति , मोनिका 
संग
बहुत सी बिटिया 
रब ने दिलाई
कोखजाई एक भी नहीं
ना इनमें से किसी से 
मेरा गर्भनाल रिश्ता है
लेकिन जो रिश्ता है
उसके लिए गर्भ का
होना न होना मायने नहीं रखता है
हम एक दूसरे के आंसू 
शायद ना पोछ पायें
लेकिन आंसू दिखलाने में
कमजोर महसूस नहीं करते हैं
खुशियाँ बांटने के लिए भी
बच्चों की तरह उछलते हैं .......

आप सोच रहे होंगे , आपको बता बोर क्यों कर रही हूँ ......

बेटिया वो ही नहीं होती , जिसे हम जन्म देते हैं ....
तब तो प्यारा तोता पिंजरा में हो गया
सिंधु कुँए में कैद हो गया
सोच का दायरा बढ़ना चाहिए

बेटा जोरू का गुलाम 
समझा नहीं जाना चाहिए
दमाद बेटी को खुश रखता है
आप खुश होती हैं न

 बेटा को ही प्यार करने से , यशोदा को नहीं जाना जाता



Friday 28 August 2015

भाई बहनें ऐसे भी होते हैं


1
तू
सोचे
व्यापार
जेब तौले
बोझ बन्धन
रक्षा का सूता
अभागी बहना
फिर तू न कहना
बन्द होते आँखें मैया
मुख क्यों नहीं मोड़े भैया
~~
हो
मूढ़
कहता
सूता बंध
पोंका मोह का
पोहना अंह का
चौमासा है निरभ्र
दुर्गति रिश्ता का करे
~~
2

कहते सुनते शर्म भी शर्मसार हो
लिखते भी जीवट जी बेहाल हो

उच्च जाति , धनाढ्य , शिक्षित , कुलीन की परिभाषा की धज्जियाँ उड़ाती कथा है .... बहू , पत्नी , भाभी को तो छोड़ें ....... एक स्त्री को .... मरणासन्न या यूँ कहें मरा ही समझ कर.... परिवार घर से दूर ..... सड़क पर फेक चले गए ..... वो स्त्री कैसे होश में आई ; अरे ऐसी स्त्रियों की साँसें बड़ी बेशर्म जीवट होती है , कैसे अपनों के पास पहुँची , या यूँ कहें कैसे पहुँचाई गई ..... कैसे वर्षों मानसिक पीड़ा से गुजरी ..... कैसे फिर सम्भली ... कैसे अपने पैरों पर खड़ी हो कर अकेले जीवन यापन कर रही है अभी भी ..... ये जानने से ज्यादा जरूरी हैं ; ये जानना कि वो मरणासन्न स्थिति में पहुँची कैसे , कारण था सगे भाई बहन में नाजायज सम्बन्ध और घर को चाहिए था केवल एक वारिस ..... जो संजोग से पैदा भी हुआ बेटा ..... 

भाई बहनें ऎसे भी होते हैं



उड़ेगी बिटिया






 हाँ नहीं तो और क्या

द+हे+ज
द(विशेषण)=दाता
ज(विशेषण)=उत्पन्न करने वाला 
😜😘

दहेज के जन्मदाता हम
पालनकर्ता हम
तो सामूल मिटाने वाला कौन होगा

हो चुका जो हो चुका
चूक तो बहुत हुई
चूका तो बहुत मौका
सुधरने सुधारने का जोश चढ़ा है
तो मौका है खा लो ना सौगन्ध
ना दोगे ना लोगे दहेज
कोर्ट मैरेज का कानून बना है
शुरुआत मैं कर चुकी
सब क्यों चूके मौक़ा
ना सताये समाजिक रूतबा
लोग क्या कहेंगे ...... लोगों का तो काम ही है कहना
कोरी बातें जितना करवा लो
लम्बी लम्बी डींगे हांकवा लो
करने का वक़्त आयेगा तो
बगले झँकवा लो
बेटे की माँ को बेटे के जन्म से ही उसकी शादी का
शौक का नशा चढ़ा रहता है
तो बेटी की अम्मा तो गुड़िया की शादी शादी खेलती
आत्मजा में अपने सपने संजोये रहती है
डर लगेगी बिटिया कैसे ब्याही जायेगी
डर को दफन करो
मचलेगी बिटिया
उड़ेगी बिटिया

हाँ नहीं तो और क्या




यशोधरा

दहेज का दोष दूँ या माँ बाप के मनोरोग का या लड़की के जुझारू ना होने का
मेरे एक परिचित की दूसरी शादी अपने से दस साल छोटी खूबसूरत लड़की से होती है ...... शादी का तौहफा अपने तीन छोटे छोटे बच्चे देता है जो उसकी पहली पत्नी के सन्तान होते हैं ..... एक दो साल सब ठीक ठाक रहा ; ऐसा मुझे अनुमान है , हम एक मकान में ही रहते थे तब ..... दूसरी शादी के दो तीन साल के बाद एक दिन अचानक वो मर्द नामक जीव गायब हो गया .......
 तीन बच्चों की परवरिश करती वो स्त्री आज भी अपने पति का इंतजार कर रही है 23 साल से

क्या वो यशोधरा है 
बच्चें कैसे पूछें

कहती है चेटी
तू नानी की बेटी

~~~~~
~~~~~~~ किसी ने कहा
जिस घर में बेटी दी जाती है ; उसके भरण पोषण का खर्चा , पूरी जिंदगी वो घर उठाता है तो दहेज स्वाभाविक चीज है
_____________________ भरण पोषण घर तो पहले भी नहीं उठाता था ...... आँख खुलने से लेकर आँख बन्द होने तक मुफ़्त की नौकरानी धोबिन नर्स मिलती थी ...... अब तो पकाने से लेकर कमाने वाली भी मिलती है
~~~~~~~ किसी ने कहा
हम अपने लिए कुछ थोड़े ना मांग रहे जो दे रहे अपनी बेटी को ख़ुशी खुशी दे रहे हैं
___________________ कुछ बेटियाँ अपवाद होती हैं जो मांग मांग कर जबरदस्ती अपना दहेज तैयार करवाती हैं ....
अपवाद को छोड़ दें तो दहेज देने में कितने माँ बाप खुश होते हैं
_______ दहेज को बेटी को दिया तोहफा का नाम मत दीजिये
~~~~~~~ किसी ने कहा
पिता के अर्जित धन में से जो दहेज मिल जाता है ; वही तो बेटी को मिल पाता है , सब तो बेटों को ही तो मिलता है
___________ पिता के अर्जित धन में से बेटियों को भी मिले ये तो कानून में भी है ..... पिता की जिम्मेदारियों को बेटियाँ भी उठाये ये भी कानून हैं ...... कितने ससुराल वाले सहयोग करते कि बेटियाँ आजादी से वो जिम्मेदारी पूरा कर सके
__________ तब तो केवल बेटों की ओर समाज देखता और बहुओं को जिम्मेदारियों को याद दिलाया जाता है ..... क्यों नहीं बेटियाँ आकर भाभियों को राहत का पल देती हैं
__________ अपवाद नहीं देखना मुझे

Thursday 27 August 2015

कन्या पढ़ेंगी भी और उड़ेंगी भी



बात बहुत पुरानी है ..... पर लिखना जरूरी है .....  तब हम रक्सौल में रहते थे ..... मेरे ससुर जी व्यापार मंडल के मैनेजर और मेरे बड़े भैया की सिंचाई विभाग में इंजीनियर की नौकरी वहाँ थी ...... बड़े भैया के बॉस थे ; जिनके घर पहली संतान बेटी हुई , दादी और पिता का व्यवहार उस नन्हीं सी जान और उसकी माता के प्रति अच्छा नहीं था ...... घर में ना पैसों की कमी थी ना लड़कियों की संख्या ज्यादा थी ........ सिंचाई विभाग में कार्य करने वालों के घर में नोटों का बिस्तर होता है ...... बरसात के समय झांगा से बहार कर घर नोट लाते हैं लोग ....
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ संजोग से उस समय मैं गर्भवती थी ; किसी ने मुझसे मजाक में कहा :-  सोच लीजिये , आपको जो लड़की हुई ............ मेरा जबाब था :- सोचे वो , जो गाय को शेरनी बनते नहीं देखें हैं .......
सब आवाक ...... कहने वाले का मजाक ही था , क्योंकि हमारे घर में लड़का लड़की में कोई फर्क कभी नहीं रहा .... मेरी ननद को एक ही लड़की है और उनकी परवरिश किसी लड़के से कम नहीं हुई है ......

जिसने भी बिल्ली को जनते देखा है , उसके गुर्राने से वाकिफ  होंगे ........ अपने पर माँ आ जाये तो हर बाधा को दूर कर सकती है ........ कन्या भ्रूण में हत्या की पूरी जिम्मेदारी एक स्त्री की मैं मानती हूँ ...... 

__________ एक छत के लिए कितना सहती है स्त्रियाँ
जिस छत के नीचे मान सम्मान अधिकार सुरक्षित नहीं , किस काम की ऐसी छत
___________ छोड़ देना आसान नहीं तो नामुमकिन भी नहीं ऎसी छत
__________ गिरते बिलखते सम्भलते ऊंचाइयों को छूते देखी हूँ , बहुत सी स्त्रियों को ऐसी छत से विलग होकर ......

सभी कन्याओं को ढ़ेरों आआशीष के संग अशेष शुभकामनायें

~~~~|~~~~~|~~~~~

आस की प्यास
हौसले की थपकी
कहो माता मैं हूँ ना
सुरक्षित हो
पढ़ेगी भी बिटिया
उड़ेगी ही बेटियाँ

~~~~~

हम सब कहें न
हम हैं न
है न



Saturday 22 August 2015

ह न त



ह न त

समय बदलता ही है ....... पति के कलाई और उँगलियों पर दवाई मलती करमजली सोच रही थी ...... अब हमेशा दर्द और झुनझुनी से उसके पति बहुत परेशान रहते हैं ..... एक समय ऐसा था कि उनके झापड़ से लोग डरते थे ..... चटाक हुआ कि नीला लाल हुआ वो जगह ..... अपने टूटी कान की बाली व कान से बहते पानी और फूटते फूटती बची आँखें कहाँ भूल पाई है आज तक करमजली

ह न त

भूलना ही आसान कहाँ होता है ......
यादों से धूल झड़ना मुश्किल कहाँ होता है ......

ह न त

किसी ने सच कहा है
वक्त वक्त की बात हैं
जल में नाव में गाडी
तो
थल पे गाडी पे नाव

ह न त

Wednesday 19 August 2015

मनुहार पाती









पूजनीय भैया
                   सादर प्रणाम

यहाँ सब कुशल है । आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है आप लोग भी सकुशल होंगे ।
                                 दोनों भाभी व बाबू से बात हुई तो मैं अति उत्साह में बोली कि इस बार मैं किसी को राखी नहीं भेजूंगी ।। शनिवार दिन है ; बैंक आधे दिन का होता है तो राखी के कारण वो आधा दिन भी छुट्टी में , छोटे भैया की छुट्टी । आप इसी साल रिटायर्ड किये हैं तो छुट्टी ही छुट्टी । बाबू टूर ले लेगा ; दूसरे दिन रविवार तो किसी को कोई समस्या नहीं , आसानी से आना हो सकता है ।
                                जब से होश सम्भाली हूँ ; राखी और जन्मदिन हर्षोल्लास से मनाती आई हूँ लेकिन दोनों एक दिन कभी नहीं मनाई , पड़ा ही नहीं न किसी साल एक दिन ही । इस साल एक दिन पड़ने से अति उत्साहित हूँ ; एकदम छोटी सी बेबी फिर जीने लगी है , उम्र का क्या वो तो भूलने में लगी है ।
                                                    जैसे जैसे दिन नजदीक आने लगे सोच बचपने पर हावी होने लगे ; अगले पल का ठिकाना नहीं ; सावन का मौसम तबीयत किसी की खराब हो सकती है । ये तो जबरदस्ती हो गई न विवश करना ; वो भी इमोशनल ब्लैकमेलिंग । ब्याही बहना का एक हद होता है , भाभी का कुछ प्रोग्राम हो सकता है । किसी कारणवश कोई भाई ना आ पाये और मैं राखी भी न भेजूं तो तब अफसोस का क्या फायदा होगा ।
                                       राखी भेज रही हूँ लेकिन नाउम्मीद नहीं हूँ । प्रतीक्षा तो नैनों को रहती है , आस में दिल होता है । कमबख्त दिमाग बहुत सोचता है ।
             
                   व्यग्र बहना
                ले अक्षत व डोरी
                   ताके ड्योढ़ी

सबको यथायोग्य प्रणामाशीष बोल देंगे मेरी ओर से

                                आशीष की आकांक्षी
                        आपकी छोटी बहना
         
                    बेबी



जिसकी शंका थी वही हुआ न
छोटे भैया का फोन आया ; उनकी बदली होने वाली है तो वे शायद ना आ सकें
 दिल दिमाग की जंग में जीत दिमाग की हो तो बात दिमाग की मान लेनी चाहिए
है न

Friday 14 August 2015

वन्दे मातरम जय हिन्द



वन्दे मातरम 

India Indian जो कहना है कहो फिरंगियों के कहने का हमें क्या परवाह
 हमें तो हिंद हिंदी का मान अभिमान हमेशा से रहा और हमेशा रहेगा

उड़ाई नींद देश के हालात , जनी चिंता गहराई है
जश्ने आजादी उजड़ी मांग सूनी कोख ने दिलाई है
नहीं सोच पाते मुख पोते स्याही कैसे मिटा पायेंगे
कुछ अपने स्वार्थवश धर्म जाति की राख उड़ाई है

~~~~~~~~~~~~~~~ 

जश्ने आजादी ने जलेबी याद दिलाई है 
पापा काश आप लौट सकते 


दुष्टान्न त्यागें
हिन्द मिट्टी का नशा
दुश्मनी भूलें
~~ 
टंटा करते 
छिपकली फतिंगा -
पाक हिन्द से 

चाहत-बेड़े में साधिकारजो खड़ी होती
किस्मत ,लकिरों से यूँ ना लड़ी होती
तरसते रह गए एक सालिम मिलते
न तपिश औ न असुअन झड़ी होती

~~
हर हिन्दू विवेकानन्द और हर मुस्लिम हो कलाम
हो जाए न कमाल का हिन्द
खूबसूरत सपना है
स्वप्न ही तो हम हिन्दुस्तानियों की ताकत है

जय हिन्द 

~~~~~~~~~~~~~~
अंकुर झाँके
जनित्री विहँसती
शिशु दुलारे 

Wednesday 12 August 2015

संग्रह





चाहत के बेड़े में जो खड़ी होती
हाथ-लकिरों से यूँ ना लड़ी होती
तरसते रह गए एक सालिम मिलते
न तपिश औ न असुअन झड़ी होती
....

बचना ऐसे मेहमाँ से
खुद राजा बन बैठता मेजमाँ पर रजा चलाता है
गुलाम खुद के घर में रंक टुकड़ो में बाँट बनाता है
..
क से कुबेर क से कंगाल कहो है न वश की बात
मेहमाँ न रहे बसे ज्यादा दिन जो बाहर औकात
..
जुबान नहीं होते तो जंग नहीं होते मान ली बात
घुटन से निजात कैसे मिलते सहे जो ना जाए घात
....
छोटे छोटे टांको से 
दर्द की तुरपाई की
खिलखिलाहट पैच
दरके की भरपाई की




Sunday 2 August 2015

मित्रता दिवस की बधाई

1
बादल बदला के लिए नहीं तरसते
एक समान सरी व मरु में हैं बरसते
मित्रता यूँ होना चाहिए हम समझते
2
अच्छाइयों का कद्र वे नहीं करते जो खुद अच्छे नहीं होते
अहंकार अभिमान स्वाभिमान का अंतर नासमझ नहीं समझते
मोम को आंच पर चढ़ा कर हैं आकार देते 
3
कुंदन फोन की अपनी सहेली पुष्पा को ; फोन पुष्पा के पति उठाये
हेल्लो हाँ आप कौन ?
 कुंदन
कौन कुंदन
कुंदन फोन पटक दी
बाद में पति के बताने पर कि कुंदन का फोन आया था ; पुष्पा कुंदन को फोन की
हेल्लो
मैं पुष्पा
कौन पुष्पा ; आज के बाद कभी मुझसे कोई बात नहीं करना , तुम अपने पति को मेरा परिचय नहीं दी थी 
अरे मेरी बात तो सुनो
फोन कट चुका था फिर कभी कुंदन पुष्पा का फोन नहीं उठाई वो कहाँ है उसका पता पुष्पा कैसे ढूंढे और बताये उसके पति याद नहीं रख सके इसमें उसका क्या कसूर
कुंदन का फोन नम्बर पुष्पा अपने पति के दोस्त की पत्नी के माध्यम से उनकी फुफेरी बहन के द्वारा खोज निकाली थी ...... कुंदन उस गांव में तब टीचर थी ..... बाद में वो उस गांव को छोड़ कर चली गई

Friday 10 July 2015

समय के साथ साथ सोच बदलता है या अलग अलग मनुज की अलग अलग सोच होती ही है ... समय काल कोई भी हो

                मेरी शादी में एक दूर के रिश्ते की ननद से मेरी मुलाकात दो चार दिनों की हुई वो बहुत सुलझी हुई लगी
एक दो साल बाद उनकी भी शादी हुई ..... मेरी जब उनसे मुलाकात हुई तो मैं उनसे पूछी .... आप सम्बन्ध विच्छेद कर नई जिंदगी क्यों नहीं शुरू करती हैं .... उनका जबाब था जैसी किस्मत मेरी ..... उनमें एक ही कमी है , वैसे वे बहुत अच्छे इंसान हैं .... फिर कौन जानता है, दूसरा कैसा इंसान मिले ... इतने अनाथ बच्चे हैं दुनिया में किसी को गोद ले अपने आँचल भर लुंगी....
करीब 29 - 30 बाद मेरे पड़ोसी की लड़की की शादी हुई ...
फिर एक बार लड़के वालों के धोखे की शिकार एक लड़की हुई
लड़की दो तीन दिन में ही लड़के को तलाक दे अपने नौकरी पर लौट गई

दोनों लड़की के नजरिये से मुझे दोनों का निर्णय मुझे सही लगा .....

किसी ऐसे मनुज के साथ रहना जिंदगी भर ; जो ना स्त्री हो और जो ना पुरुष हो .......


         हमेशा हमें अपने सहनशीलता को खुद के लिए तौलते रहना चाहिए ...... क्षमता के अनुसार ही सहना चाहिए


दवा जानलेवा

डेढ़ साल पहले एस्प्रिन सेवन से मेरे बड़े भैया की बहुत हालत खराब हुई थी ..... खून इतना पतला हो गया था कि शरीर से बाहर बहने लगा था ।
                जिन्हें हाई bp होता है उन्हें ऐसी दवा दी जाती है जिनसे उनका खून पतला रहे ताकि हर्ट प्रॉब्लम ना हो ।
            मेरी सहेली के जेठ की मृत्यु हो गई । उनका खून इतना पतला हो गया कि दिमाग पर असर कर गया , जिसे सम्भाला नहीं जा सका ।
डॉ से नियमित जांच हर के लिए जरूरी है 
          जिंदगी में लापरवाही खुद के लिए हानिकारक होने के साथ आप अपनों को भी चोट पहुंचाते हैं 

Saturday 20 June 2015

हाइकु








हाइकु के नियम बहुत पहले से थे
मुझे जानने में देरी हुई

विशेषण का प्रयोग ना हो
दो हिस्सों में दो बिम्ब स्पष्ट हो
प्रकृति का मानवीकरण ना हो
पांच इन्द्रियों से जो हु ब हु अनुभव हो उसका ही वर्णन हो


Friday 8 May 2015

विवाद और बहस

पक्ष विपक्ष हर बात का होता है
नजरिया सबकी अपनी अपनी
सोच समझ जो होती अपनी अपनी
ग्रहण करने की क्षमता जो होती अपनी अपनी
विवाद हो बहस हो लेकिन बात पर हो
लोग बात से हट व्यक्तिगत
आरोप प्रत्यारोप पर उतर
मंदबुद्धी के परिचय देने में
जुझारु हो जाते हैं
 अपने अपने समझ के सिरे से
सोच सार्थक रखना वो भी सच्ची
चलो सही है लेकिन आत्ममुग्ध हो
सामने वाले को सिरे से नाकार देना
सारे आविष्कार एक सोच से ही सम्भव रहा क्या ?
वाद-विवाद बहस हमेशा से जरुरत रही है
100% आप अपने को सही समझे
सामने वाला भी तो अपने को 100% सही समझेगा
आप अगर गलत नहीं हैं तो वो कैसे गलत होगा
+ + मिलकर + ही होता है
सोच तो सकारात्मक हो
हम विवाद और बहस से क्यों भागते हैं। … हमारे पास तर्क नहीं होता है या हम दूसरे की बात को अपनाने में अपनी बेइज्जती समझते हैं। … कहीं हमें कोई अल्पज्ञानी ना समझ बैठे। … डर हमें सही बात को भी अपनाने से रोकता है। …
जब मैं BEd की पढ़ाई कर रही थी तो एक क्लास होता था जिसमें सभी को कुछ सुनाना होता था। …। जब एक लड़के की बारी आई तो वो सुनाया
पत्थर पूजन हरी मिले
तो मैं पूजूं पहाड़
या तो भली चक्की
 पीस खाए संसार
मेरी भी बारी आई। … मैं भी सुना बैठी
कंकड़ पत्थर जोड़ के
दिए मस्जिद बनाये
ता पे मुल्ला बांग दे
बहिरा हुआ खुदाई
पूरी कक्षा पहले तो एन्जॉय किया फिर बहस शुरू हुआ लगा मानो हिन्दू मुस्लिम युद्ध हो जाएगा
मुझे सीख मिला अपने गुस्से पर हमेशा नियंत्रण रखना चाहिए  …।

Monday 27 April 2015

भूकंप


परसों सुबह सुबह बहुत खुश थी ..... 
चारों ओर हरियाली अपने बगीचे में देख कर ....


उड़ी उदासी
पतझड़ की पाती
ठूंठ गुलाबी।

लेकिन दोपहर होते होते ख़ुशी हवा के संग हवा हो गई। …

ढहे मकान
ताश पत्ते बिखरे
भूडोल चीखी।


नेपाल केंद्र रहा भूकंप का लेकिन हिन्द के आधे भाग भी अछूते नहीं रहे तो ….. मुझे भी अनुभव रहा ….

मौत का खौफ
शोर चीखता जोर
भू डोलती ज्यूँ

या कुछ ऐसा

मौत का खौफ
जीव भोगे यथार्थ
भू कांपती ज्यूँ

सभी भगवान को दोष दे रहे …..

सृष्टि खंजर
क्रूरता का मंजर
खाक गुलिस्ताँ 

तो कुछ ….इंसानी पाप का फल समझ रहे हैं ….. मुझे लगा

भूडोल चीखी
स्त्री कुचली सताई
बिफरी मौन

मेरे एक फेसबुक के मित्र को लगा

Tushar Gandhi जी

tremors
even after earthquake-
Parkinson’s


anuvadit rachana Vibha Shrivastava ji ke sahayog se…..

भूडोल चीखें
तामसी थरथरी/थरहरी
पार्किंसनस।

Sunday 12 April 2015

बुढ़ापा





पिता जैसा बनना ..... हर लडकी का सपना ..... लक्ष्य निर्धारित किया अपना ....
संयुक्त परिवार विलीन नहीं हो सकते हैं
रफू का गुण सीखो रिश्ते रफ़ू से ही चलते हैं ..
.
बुढापे पर बात चली है ... और मैं उम्र गुजारते उस पडाव पर आने वाली हूँ .... बीच की पीढ़ी हूँ ..... कई सीढ़ी चढ़ चुकी हूँ .... कई घरों को बनते ,बिगड़ते देखने की पूंजी है मेरे पास .... 
घर संस्कारों से बना होना चाहिए .... नई पीढ़ी ,अगर पुरानी पीढ़ी को ,अपने बुजुर्गों का अहमियत देते देखी होगी तो वो जरुर सीखेगी ....
=
कुछ दिनों पहले चंडीगढ़ की यात्रा थी
हम बुजुर्गों के टोली में बैठे
चर्चा कर रहे थे बुढापे पर
मेरा कहना था … बुढ़ापा यानि बिछावन लेटा शरीर
अगर हम दो रोटी सेक कर खिला सकते हैं तो बुढ़ापा कैसा ?
हमसे पहले की पीढ़ी में 10 से 20 साल की उम्र में शादी हुई
40 साल में सारी जिम्मेदारी पूरी और दादी नानी बन गुजर गई जिन्दगी
आज 30 से 35 साल की उम्र में शादी होती है
50 से 55 की उम्र गुजर गई जिम्मेदारी में
अपने लिए अभी तो जीना शुरू किये। ....
बच्चों को पंख मिले उन्हें उड़ने दो। ...
बनाने दो खुद से खुद के लिए नीड़
पालने दो खुद के छौने
मत जिओ केवल बन दादी नानी
जब शरीर बिछावन पर जाएगा
एहसास कहाँ होगी , कहाँ पड़े हैं

अस्पताल या वृद्धाश्रम या गली के सडको पर
=

Friday 3 April 2015

हाइकु


रोज गार्डन चंडीगढ़

आठ सौ पच्चीस तरह के गुलाबों के बीच हमारी गोष्ठी

विभिन्न विषयों के साथ हाइकु पर भी बातें हुई
कुछ लोग बहुत ही अच्छा लिखना जानते हैं।


मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था
 कि ये कनैल का वृक्ष है ....

कनेर कला
स्वर्ण हँसी बिखरे
हरे घर में।
==


1
नभ को छूते
आओ सखियाँ कूदें
रुढी को तोड़ें।
2
पद्मा बनती
लक्ष्मी आस बांटती
पैसों की पौद ।
3
नव लें साँसें
निशीथ स्त्री जीवन
तरणी आस।
4
आँगन पौधे
दुरुक्ति चटखारे
समय राग।
5
आँख मिचौली
रवि मेघ के संग
चीड बिचौली।
6
कुलाचें , चुस्की
ग्रीन टी मेघ लेता
गिरि खंगाले ।
7
पढते छौने
सुस्ती मिटाये चुस्की
पौ फटते ही। 
8
आकुल सिन्धु
उफने क्रोधी उर्मी
बेवश घन/वाणी।

=

Thursday 12 March 2015

हाइकु


1
वीर हँसते
जिन्दगी ज्यूँ छेड़ती
भीरु रो लेते ।

2
वसंत शोर
रवि-स्वर्णाभा-होड़
पीले गुच्छों से।

3
असार स्वप्न
भस्म हुई उम्मीदें 
धुँआ जिन्दगी ।

4
दुःख व हंसी
जिंदगी की सौगातें
रूप सिक्के के ।

5
पद के मद
आंगन में दीवारें
घर कलह।

6
घर कलह
बरसे रिश्तों पर 
बेमौसम सा।

7
अँक हो तंग 
मिटे जलन जंग
स्नेह बौछारें ।

8
मेघों की टोली
लाये रंगीन डोली
महके बौर 

=

Tuesday 24 February 2015

क्षणिकाएँ


 होली की ठिठोली
=
1

झूमो झनको
रंग पानी सा मिलकर
भूलें गिले होकर गीले
झगड़ना या झरना बन बहना
एक दूजे में झलको

2

स्वप्न का धनक निखरे
गैर बिराना मौन ना बचे
पुताई हर दिल हर चेहरे हो
प्यार खरीदार सारे बचे
चहक चहुँ ओर बिखरे

3

जर्द धरा चेहरे पे दर्द
किसने क्यूँ फैलाई
यादों की बुक्कल हटाओ
मलो रंग अबीर मलाई
हटे फिजाओं से सर्द

4

मन ना अश्लील करो
डूबा रंग पोखरे हलकान करो
सलहज भौजी ननद साली
हो जाती सब दिलदार भोली
व्यवहार हमेशा श्लील करो

5

कर गया चोरी दर्जी
सिल दी तंग चोली
बरजोरी की , ले रंग
दंग हमजोली
तोड़ डाले कांच से रिश्ते
बिना जाने उस की मर्जी 

===

Sunday 15 February 2015

फागुनी प्यार

तीन महीनों से अलग अलग कई शहरों में ; अपनों के बीच
कई शादी समारोह में शामिल होने का मौका मिला ...
हर स्त्री -पुरुष को सजते संवरते देख अच्छा लगा .... 
सब जगह मैं अलग थलग सी लगती बिना सजे संवरे ..... कई लोगों ने टोका ..... मैं कल सोची ... कुछ मैं भी अभ्यास कर लूँ ,दो-तीन दिन बाद फिर एक शादी समारोह में शामिल होने जाना है ..... जैसे ही चेहरे पर कुछ लगाने का शुरू ही की कि ये पीछे से आकर पूछे क्या हो रहा है .....
मैं चुप ....
ये गहरी मुस्कान बिखरते हुए ..... चमेली है क्या 
प्यार का नमूना हजारो में से एक .....
हिन्द में प्यार जाहिर करने के लिए , ना दिन तारीख और ना समय तैय है …..
 हम तो प्रतिदिन प्रतिपल इजहारे इश्क में होते हैं

1

खड़का कुण्डा
हुआ ठूंठ बासंती
फागुनी थापी ।

2

बिंधे सौ तीर
बिन पी , मीन साध्वी
फागुनी पीर ।

3

बिखरी रोली
तरु बाँछें खिलती
फगुआ मस्ती।

4

शिकवा / सताया हेम
विरही-भृंग पीड़ा
कली सुनती।


तब शुरु शुरु कांटी थर्मल में रहने आये थे
कुछ भी खरीदना हो तो मुजफ्फरपुर जाना होता था ;पहली बार बाजार गए ,साडी ही खरीदने  उस बाजार में दोनों तरफ दुकानें और बीच की सडक गली जैसे हालात और भीड़ आदमी पर आदमी
साडी खरीद कर बाहर हम आये तो मैं भीड के चलते मोटरसाइकिल पर बैठने में देर कर दी पति महोदय को लगा होगा मैं बैठ चुकी वो नौ दो ग्यारह
भीड के शोर के कारण मेरी आवाज भी नहीं सुन पाये
अब मैं कैसे कहाँ जाऊँ बैचैन खडी सोच रही थी थोडी देर में मेरे देवर सामने से मोटरसाईकिल से गुजर गये मैं बाबु बाबु पुकारती रह गई तब किसी का नाम लेना अपराध था
पति महोदय देवर के घर गए आराम से नाश्ता किये जब चाय पीने लगे तो मेरी देवरानी पुछी दीदी क्यों नहीं आईं तो होश आया अरे तुम्हारी दीदी तो आई है
कहाँ हैं ? बाजार में तो नहीं छुट गई
तब हडबडाये घबडाये आये
मैं तो वहीं खडी थी जहाँ छोड गये थे


दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...