1
तू
सोचे
व्यापार
जेब तौले
बोझ बन्धन
रक्षा का सूता
अभागी बहना
फिर तू न कहना
बन्द होते आँखें मैया
मुख क्यों नहीं मोड़े भैया
~~
हो
मूढ़
कहता
सूता बंध
पोंका मोह का
पोहना अंह का
चौमासा है निरभ्र
दुर्गति रिश्ता का करे
~~
~~
हो
मूढ़
कहता
सूता बंध
पोंका मोह का
पोहना अंह का
चौमासा है निरभ्र
दुर्गति रिश्ता का करे
~~
2
कहते सुनते शर्म भी शर्मसार हो
लिखते भी जीवट जी बेहाल हो
उच्च जाति , धनाढ्य , शिक्षित , कुलीन की परिभाषा की धज्जियाँ उड़ाती कथा है .... बहू , पत्नी , भाभी को तो छोड़ें ....... एक स्त्री को .... मरणासन्न या यूँ कहें मरा ही समझ कर.... परिवार घर से दूर ..... सड़क पर फेक चले गए ..... वो स्त्री कैसे होश में आई ; अरे ऐसी स्त्रियों की साँसें बड़ी बेशर्म जीवट होती है , कैसे अपनों के पास पहुँची , या यूँ कहें कैसे पहुँचाई गई ..... कैसे वर्षों मानसिक पीड़ा से गुजरी ..... कैसे फिर सम्भली ... कैसे अपने पैरों पर खड़ी हो कर अकेले जीवन यापन कर रही है अभी भी ..... ये जानने से ज्यादा जरूरी हैं ; ये जानना कि वो मरणासन्न स्थिति में पहुँची कैसे , कारण था सगे भाई बहन में नाजायज सम्बन्ध और घर को चाहिए था केवल एक वारिस ..... जो संजोग से पैदा भी हुआ बेटा .....
भाई बहनें ऎसे भी होते हैं
बहुत कुछ है
ReplyDeleteइंसान अनबूझ है । सुंदर ।
कुछ लोग रिश्तों की मर्यादा नहीं समझ पाते.
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