Friday 30 December 2016

मौन




 

एक बच्चा धीरे से आकर बोला
"मैम मैं कुछ कहना चाहता हूँ । थोड़ा सा समय आपका लेना चाहता हूँ"।
 वो देख रहा था मैं घर निकलने के लिए जल्दी कर रही हूँ। हम काव्य गोष्ठी में से बाहर आ गये
"हाँ हाँ ! बोलो न । मैं सुन रही हूँ"
"जी मैं दहेज का समर्थक हूँ"! वो मेरे विचार ध्यान से सुना,ये मेरे लिए ख़ुशी की बात थी ।
"क्यूँ क्यों भाई" ?
"मुझे लगता है कि अगर मेरे पिता जी के पास एक रुपया ,एक रुपया भी है तो पचास पैसा अगर उतना भी नहीं तो 49 पैसा तो मेरी बहन को मिलना ही चाहिए"।
"बहन से बहुत प्यार करते हो! बहन को हमेशा तौहफा चाहिए । उसे तौहफा देते रहना । किसी दहेज के लोभी को खरीदना नहीं । दहेज के लोभी स्वाहा कर देंगे तुम्हारी बहन को । किसी लड़की का हाथ इस लिए नहीं छोड़ देना कि उसके पिता के पास दहेज देने के लिए पैसे नहीं है ।"
"क्या उस लड़की के पिता के पास एक रुपया नहीं होगा । 51 पैसे देने की बात नहीं कर रहा हूँ मैम !"
"क्या तुम्हें लगता है कि 50 पैसा या 49 पैसा ही सही ; लें कर आने वाली लड़की , हर महीने के 15 दिन केवल बेटी बहन बन कर रह सकेगी , पत्नी बहू की मजबूरी से छूट ?
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"......"
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नव वर्ष की असीम शुभ कामनाओं के साथ हम विदा होते हैं .... जब जबाब मिल जाए ....

YOU CALL ME


Wednesday 28 December 2016

हत्या



“हां हां हां हां ! ये क्या कर रही हो , बौरा गई हो क्या ? सब मीटियामेट कर डाला , धुंध की वजह से अभी तो बने घड़े का पानी नहीं सूखा था। तेरे डाले पानी के भार को कैसे सहता ? देख सारे घड़े फिर मिट्टी के लोदा हो गये"। ोचुन्नी को कच्चे घड़े में पानी भरते देख उसकी माँ चीख ही पड़ी ।

“हाँ! बौरा जाना मेरा स्वाभाविक नहीं है क्या ? आठ साल की दीदी थी तो जंघा पर बैठा दान करने के लोभ में आपलोगों ने उसकी शादी कर दी …. दीदी दस वर्ष की हुई तो विदा होकर ससुराल चली गई । ग्यारहवे साल में माँ बनते बनते भू शैय्या अभी लेटी है “ ना चाहते हुए भी चुन्नी पलट कर अपनी माँ को जबाब दी।

Saturday 24 December 2016

गुजरा या गुजारा



आदत नहीं कभी बहाना बनाना
फुरसताह समझता रहा ज़माना
छिपा रखें कहाँ टोंटी का नलिका
सीखना है आँखों से पानी बहाना

नाक बिदुरना आना बहुत जरूरी होता है
~ कल का पूरा दिन .... कई अनुभवों का उतार चढ़ाव देखते गुजर गया .... 




अनी

संगीनी

अभिमानी

मैला तटनी

रिश्ते दूध-खून

पिसते नुक्ताचीनी
भू

उत्स

निपान

सरी सुता

दूध सागर

हिंद का सम्मान

पिता गिरी का दान

Tuesday 20 December 2016

निश्चिंता (ऐसा भी होता है)




"दरवाजे पर कोई है ! जरा देखना । मुझसे कोई मिलने आया हो तो बैठक में बैठना । मैं बस तैयार हो कर बाहर आ ही रहा हूँ " कार्यालय जाने के लिए तैयार होते अरुण को लगा कि किसी ने बाहर दरवाजा को खटखटाया है तो वो अपनी पत्नी ज्योत्स्ना को आवाज लगा कर बोले । ज्योत्स्ना चौके में जो काम समेट रही थी उसे छोड़ बाहर जाकर देखी तो कोई आदमी खड़ा था ,उसे देखते ही वो आदमी रवि से मिलने की इच्छा जाहिर की । ज्योत्स्ना उस आदमी को बैठक में बैठा कर रवि को बताते हुए फिर चौके में जाकर अपना काम करने लगी । थोड़ी ही देर में रवि की आवाज आई "एक कप अच्छी कॉफ़ी बना कर लाना"। ज्योत्स्ना कॉफी बना बैठक में पहुँचा लौटने लगी तो उसने देखा कि मिलने आये व्यक्ति ने रुपयों से भरी बड़ी अटैची रवि को रख लेने का अनुरोध कर रहा था । खुली अटैची को बंद कर रवि उस आदमी को वापस करते हुए बोल रहे थे कि "चुकि आप मेरे घर में खड़े हैं तो मेहमान समझ कर आपके साथ मैं कोई गलत व्यवहार नहीं कर पा रहा हूँ । साल का आज अंतिम दिन है आपके घर में आपका इंतजार हो रहा होगा । कॉफी पी लीजिये और तशरीफ़ ले जाएँ , नहीं तो घर आकर रिश्वत देने के जुर्म में आपको जेल भेजवा सकता हूँ अभी "।
रवि चार स्टोर के पदाधिकारी थे । आने वाला व्यक्ति स्टोर में सामान देने वाली कम्पनी का मालिक था । गलत सामान स्टोर में सप्लाई कर चुका था ,जब रवि के निगाहों में गलत सामान आया तो सामान रखने से इंकार करते हुए टेंडर कैंसिल कर रहे थे , सामान वापस ले जाने में कम्पनी को बहुत मुश्किल होने वाली थी ।रवि के पहले जो पदाधिकारी थे या अभी भी दूसरे शहर के स्टोर के जो पदाधिकारी थे उन्हें गलत सामान रखने में कोई हर्ज नहीं था उनकी भी तिजोरी भरती थी । घाटा सरकार को हो , हानि जनता का हो ,इससे किसी को कोई सरोकार नहीं था ।
कम्पनी के मालिक को विदा कर रवि कार्यालय पहुंचे तो बड़े पदाधिकारी को उनके ही केबिन में प्रतीक्षा करते पाया जो थोड़े झल्लाए से भी लगे । रवि को समझते देर नहीं लगी कि उनकी शिकायत पहुंच चुकी है ।
बड़े पदाधिकारी रवि को समझाने की बहुत कोशिश किये कि रवि स्टोर में आया समान वापस ना करे
रवि बड़े पदाधिकारी से बोला "आप खुद के हस्ताक्षर से सामान रख लें ताकि आगे जब भी कोई बात हो तो सामान की जिम्मेदारी आप पर रहे
"तुम मेरी बात नहीं मान कर अवज्ञा कर रहे हो ,तुम्हें निलंबित कर दूंगा"।
"शौक से कर दीजिये"
"पद च्युत कर दूंगा"।
"अगर आप ऐसा कर सके तो मुझे बेहद ख़ुशी होगी"।
"तुमको मैं देख लूंगा"
"जरूर! जरा गौर से देखिएगा । रोज देर रात को लौटता हूँ घर"!
लेकिन सरकारी नौकरी में बहुत आसान कहाँ होता किसी को किसी को देख लेना। भ्रष्ट व्यक्ति के वश में और कुछ नहीं होता ,रवि ये बात जानता था । अपने पति की ईमानदारी की चमक से रौशन होता नव वर्ष का सूरज और चमकीला नजर आया ज्योत्स्ना को ।

Sunday 18 December 2016

षड्यंत्र


असुविधा जनक थी बात
परिवर्तन की हुई शुरुआत
फिर क्यों चल रही हवा घात

बात 1968-1972 के आस पास की है
कभी लठ्ठो वाला आये
कभी मूंगफली वाला आये
कभी बायस्कोप वाला आये
कभी चूड़ीहारन आये
कभी मछली वाला/वाली आये
दादी धान या गेंहू से बदल लेती थीं
खेतों में काम करने वाले मजदूर हों
धोबी हो
नाई हो
कुम्हार हो
भुजा भुजवाना हो
आनाज ही पाते देखी या खेत मिला है बोओ खाओ
मजदूरी करो
यानि कैसलेश दुनिया हमने देखी है
कुछ नया देखें तो कोई बात नई लगे

Saturday 17 December 2016

विपदा खेल


"क्या बहू तुम्हें यही जगह मिला !
हमारी उम्र मन्दिर में हरे राम हरे कृष्ण जपने का है । तुम हमें कलियुगी रास लीला दिखलाने विक्टोरिया मेमोरियल ,काली घाट घूमा रही हो । झाड़ियों के ओट में ,अंधेरों को साया बनाये ,आँखों में बेहयाई की लाली लगाये ये युवा साबित क्या करना चाहते हैं ?" इंजीनियर्स नेशनल कॉंग्रेस में शामिल होने आये बेटा गुप्ता जी के साथ आई उनकी माँ अपनी बहु पर गुस्सा कर बैठीं
सह दे बैठीं श्रीमति सिन्हा। "अभी समय है ,कठिन संघर्ष का । मेहनत कर अपने को एक मुकाम पर ला खड़े करने का । जो समय घर पहुंच कर अध्ययन करने का है ,उस समय को यूँ चुम्मा चाटी करते हुए नष्ट करते हुए जग को नजरें चुराने में विवश कर रहा सब ।"
तभी सबकी नजर पड़ी ,एक लड़का एक लड़की को बलजोरी कलाई पकड़ घसीटने का प्रयास कर रहा था । लड़की अपने सामर्थ्य भर छुड़ाने का प्रयास कर रही थी । एक अन्य जोड़ी काफी तेजी से आकर उनदोनो को समझाने का प्रयास करने लगी ।
देखो देखो क्या फ़िल्मी अंदाज है गुप्ता जी की माँ फिर अपनी बहू पर दांत पीसने लगी



ना स्त्री है ना पुरुष
तो उसे का कहें
मांग रहा था
या
मांग रही थी
जब दोनों नहीं है
तो
दोनों कैसे लगे
खैर
हर जोड़े से वसूली हो रहा था
मानों जोड़े में बैठे होने का
 टैक्स भर रहे थे जुगल जोड़ी
बच्चे दस या बीस का नोट
देने के क्यों मजबूर थे
अपने जोड़े में बैठे को
जुर्म समझ रहे थे जो जुर्माना दे रहे थे
मुझे वो जुर्म ही लग रहा था
क्या उस स्थिति में बैठे होना
क्या कहलाता होगा
प्यार इश्क तो कतई नहीं
कहला सकता है
प्रिंसेप घाट (कलकत्ता)में
बेटिकट कई शो
देखने को मिल सकता है

Wednesday 14 December 2016

आपदा



01.
वर्तुल चाँद
भूख की स्याह छाया
मीन की काया ।
02.
पोस के खल
जल में रह जल
सिताम्बु ढ़ल ।
03.
बूझा है चूल्हा
नोटबन्दी में पंक्ति
बैंक में खड़ी ।
04.
वरदा शूल
लहूलुहान चैने
आपदा मूल ।


*मुक्तक*

जब तक धरा धारा मिटती नहीं
लगा लो जोर स्त्रियाँ टूटती नहीं
भीड़ रिश्तों ,जीती जाती तन्हाई
तपी ऐसी भट्ठी में कि फूटती नहीं



वर्ण पिरामिड


लीले
आपदा
सनै सनै
दंड वरदा
बदहाल जीव
लहुलुहान चेन्नै
ना !
चारा
सम्पत्ति
परिवृत्ति
चले कुचाल
कर्म दिष्ट धारा
शक्ति फल विपत्ति

Tuesday 13 December 2016

हिसाब मिले बेअक्ली की कैसे



निसंदेह गलतफहमियां यूँ होती
स्याह पाये जाते क्या गजमोती
चाँद ! सोच में उभरती ज्योत्स्ना
धवल मक्खन उजास शोभना
स्वर्णिम हुए पूनो बताओ कैसे
रवि से चुराए तेज तुम्हारे जैसे
अक्ल भोथराए कला-कलाएं
मिले अहोरा-बहोरा यात्राएं


चित्र में ये शामिल हो सकता है: रात

Tuesday 6 December 2016

डर से आगे जीत





तिनका हूँ खुद का वज़ूद ही कितना
चलती गई जिसने राह बताई जितना

    


एक साल के बाद वो घड़ी आ ही गई
अपने किये वादों के अनुरूप एक दिन पहले पटना आये अतिथि

 


हाइकु लिखते समय
छोटे छोटे कम वर्ण के शब्द चुने
और
चुकि आधे वर्ण की गिनती नहीं होती
तो
ऐसे शब्द चुने जिनमें आधे वर्ण हो
! ये चिह्न लगे शब्द भी महत्वपूर्ण होते हैं
श्री भट्ट जी की ये बताई बातें हमें बहुत पसंद आई 




तलाश जारी
एक सौ इक्यावन
शत के बाद





Thursday 1 December 2016

काला धन


 
काला धन के नाम पर अत्याचार


तंज़
स्वाश्रयी
मरी मीन
तिज़ोरी कैद
कत्ल शिष्यकारु
काला धन रंगीन 【01】
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लो
चर्चा
बयानी
अम्र कौमी
नंगा कहर
दाग बेदखल
काला धन महर 【02】

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...