Tuesday 31 December 2019

नव पल नवोत्थान नवजीवन


हदप्रद पल दोनों कल के सिरे को पकड़े,
आज हर्ष पर बीते कल के डर को जकड़े,
कल , कल में बदल गया विदाई बधाई में–
पाए हक़ निभाये दायित्व पर नियति रगड़े।


हर साल तो यही होता है
थार्नडाइक का
सीखने का सिद्धान्त चलता है
प्रयत्न एवं भूल/प्रयास और त्रुटि का सिद्धांत
संयोजनवाद का रहता सिद्धांत
कम ज्यादा के अनुपात
पलड़ा कब किसका भारी हुआ
पता तब चला
जब सपने टूटने का चक्कर जारी हुआ।
लू की दोपहरी छाया
बूँदों में साया मिलने लगा।
अधूरे सपनों की कसक मिटा
उल्लासित काया मिलने लगा।


Monday 30 December 2019

हाइकु

01.
साल का अंत-
वो छटपटा रहें
निशीथ काल।
02.
शीत सन्नाटा/शीत की शांति–
खिड़की के शोर से
कांप गई मैं।

 Monterey, 17-mile drive, Carmel

सेवेंटीन माइल्स यानी
लगभग सत्ताईस किलोमीटर में फैला समुंद्री तट(बीच)
चमचमाती रेत पे चांदी का वर्क
सिंधु में बिखर गया चांदी समेटे जल
सोनार ने निशा का गहना साफ किया
निशा पहन रही वर्षों से चांदी की हंसिया हार
पहरा था एक सितारे की बिसात
कल ही तो जिक्र की रात थी दूज की बात
खुद के लिए जिद किसी ने नहीं ठानी
चौराहे पर पहले आई गाड़ी को
पहले निकलने का मौका देते ज्ञानी
ग्लोबल जगत के सारभूत
विशेषताओं से परिचित अनुसंधानी

उन ठहाकों का शोर कम हो चला,
शातिर बन बेवकूफ बनाने की
कोशिश कामयाबी पर जो गूंजी थी।
रामायण गीता महाभारत
इतिहास भूगोल की गवाही से
नहीं चेतता अहमी मौंजी



Thursday 26 December 2019

नव भोर उल्लासित रहे


उग्रशेखरा सा उच्चाकांक्षी में
उच्छृंखलता उछाँटना
अन्य पर वार करने का
कारण बनाओ
तो
बहुत खतरनाक
बनाता है..
वरना सच तो
सबका ज़मीर जानता है..


Tuesday 24 December 2019

क्रिसमस की बधाई


जाड़े की छुट्टी/क्रिसमस डे/क्रिसमस+अह्न=क्रिसमसाह्न
जुगनुओं की बाढ़
तंबू में छाई।


तेरा दिया वो जख्म खुला रखता है,
आईना सँजोता नहीं गम रिसता है,
बिना श्रम फलक पर चमक जाता–
जलसा-जलसा चहुँ ओर दिखता है।


गलतियाँ मत ढूंढो, उपाय ढूंढो......नहीं तो ढूंढते ही रह जाओगे और रिश्ते समाप्त हो जाएंगे....सदा सदा के लिए 
©नीरज कृष्ण





Friday 20 December 2019

मुक्तक

यादोहन होता रहता है जब तक हम कमजोर होते हैं
01.
बेहतर पाने के दौड़ में शामिल होते हैं,
परेशानियों-झंझटों के भीड़ में खोते हैं,
अपनी शिकायतें दुश्वारियों का क्यों करें-
लुटा-मिटा त्याज्य जी अनगुत्ते सोते हैं।
02.
कीमत तो चुकानी थी हद पार करने की,
जिंदगी मीठी कड़वे घूँट पी दर्द सहने की,
बहुत मिले दिल चेहरे से खूबसूरत न था–
आदत बनी प्रेम के गैरहाजिर में रहने की।

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...