Friday 25 September 2015

वर्ण पिरामिड



हम ख़ुद की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा लें तो वही बहुत है
बलि का मीट
बिना लहसुन प्याज का पकता
दशहरा में शोर क्यों नहीं मचता
हिन्दुओं-बात हिन्दुओं को पचता
1
स्व
सरी
निश्छल
स्थिर होती
सींचती जीव
डूबा देती नाव
ज्यूँ उबाल में आती
2
हो
नाव
मोहक
जलयान
धारा की सखी
क्षुधा पूर्ति साध्य
जीविका मल्लाह की

Monday 21 September 2015

क़ाबिले तारीफ़

विभा दीदी पीछे में तारीफ करते हैं भाई साहब 😊😃उस दिन जब आप किचेन में थी तब आपकी काफी तारीफ कर रहे थे भाईसाहब 😊फिर आप को देख कर चुप हो गए 😊
कल लल्ली ने लिखा ...... पत्नी प्रोत्साहन दिवस था कल 
पीठ पीछे जो तारीफ़ होती हो ..... सामने भी कुछ यूँ तारीफ़ करते हैं

हमारे परिचित में जितनी औरतें हैं उनमें सबसे कम काम तुम करती हो 
कैसे ?
देखो ! सुबह शाम टहलने जाती हो खुद के लिए तो सब्जी दूध घर का सामान ले आती हो ...... काम ना तुम्हारा टहलना हुआ और समान ले आई तो कितने तनाव से बची ..... खुद के लाये समान में नुक्ताचीनी कर नहीं सकती हो ...... ना सवाल कि क्या पकायें

रोटी कन्ट्रोल सब्जी पकाती हो ...... कम खाने से मोटापा नहीं होता तो ...... ना bp ना सुगर ..... ना कोई सेवा का मौका ..... ना डॉ का दौड़ धूप तुम्हें करना पड़ता है

ना रोज कपड़ा धोती हो ना रोज आयरन करती हो ..... दो जोड़ी कपड़े तो निकलते हैं ..... एक दिन बीच कर वाशिंग मशीन चलाती हो ..... एक दिन बीच कर आयरन करती हो
आयरन करने से रोटी पकाने से तुम्हारा ही फायदा है .... मुफ़्त का कसरत कलाई का होता है

बर्तन खुद धोती हो कि दाई का किचकिच कौन सुने .... ना आई तो बर्तनों का अम्बार देख कौन कुफ्त होये ...... यहां भी फायदा तुम्हारा ......

आज चाय में ऐसा क्या पड़ गया 
क्यों क्या हुआ ?
गलती से शायद ! अच्छा बन गया


है न काबिले तारीफ़ ; तारीफ़ करने का अंदाज , दिल बाग़ बाग़ करता ...... झुँझलाने का हक़ नहीं पत्नियों का 😘

Friday 11 September 2015

हिंदी हर बोली में होती



शादी के बाद ...... मेरे पापा की लिखी चिट्ठी ...... मुझे लिखी , पढ़ने को मिली(शादी के पहले हमेशा साथ रहने की वजह) .... चिट्ठी की ख़ासियत ये होती थी कि ..... कभी वे भोजपुरी से शुरुआत करते तो ..... मध्य आते आते हिंदी में लेखन हो जाता था या ..... कभी हिंदी से शुरुआत करते तो मध्य आते आते भोजपुरी में लेखन हो जाता था ..... बेसब्री से इंतजार रहता था उनकी चिट्ठियों का .... तब मोबाइल नहीं था .... लैंड लाइन भी तो नहीं था ....... 
~~~~~~~~~~~ मेरे माइके में हम सभी घर में भोजपुरी में बात करते थे ...... सहरसा में जबतक हमारा परिवार रहा ; घर के बाहर मैथली का बोलबाला था , सबसे मैथली में बात करना पड़ा ...... बहुत ही मीठी बोली है *मैथली* ....... जब पापा सहरसा से सीवान आ गए तो घर बाहर केवल भोजपुरी का सम्राज्य हो गया ....
 आरा छपरा घर बा कवना बात के डर बा
 शादी के बाद रक्सौल आये तो घर बाहर भोजपुरी का ही राज्य था लेकिन केवल मेरे पति को मुझसे हिंदी में बात करना पसंद था ..... फिर राहुल का जब जन्म हुआ तो राहुल से सब हिंदी में ही बात करने लगे ..... इनकी नौकरी में बिहार (तब झारखंड बना नहीं था) में कई जगहों पर रहने का मौका मिला ..... भोजपुरी+मगही+ मैथली+आदिवासी+हिंदी+उर्दू = खिचड़ी मजेदार लज्जतदार मेरी भाषा

1
शब्दों की खान
हिंदी उर्दू बहनें
भाषायें जान
2
हिंदी समृद्धी
हर धारा मिलती
माँ कहलाती



Tuesday 8 September 2015

दंश ~ कालिख संघ मुख



कलियाँ खिली
ब्याही सुता हो जाती
स्व समर्पित

एक ब्याहता स्वयं समर्पण करती है .....
बलात्कृत तो कली कुचली जाती है ...... खिलती नहीं

 परिवार में लड़की अगर सुरक्षित नहीं तो परिवार की जरूरत ही नहीं

हम फिर इतिहास दोहराएंगे बहुत जल्द

आज ही फेसबुक पर जानकारी मिली कि किसी लड़की ने अपने साथ हुए ...... उसके घर के ही किसी सदस्य के हैवानियत के कारण ...... आत्महत्या कर ली ......

Tuesday 1 September 2015

उड़ेगी बिटिया




नीतू भतीजी , डॉ बिटिया महक , प्रीती दक्ष , स्वाति , मोनिका 
संग
बहुत सी बिटिया 
रब ने दिलाई
कोखजाई एक भी नहीं
ना इनमें से किसी से 
मेरा गर्भनाल रिश्ता है
लेकिन जो रिश्ता है
उसके लिए गर्भ का
होना न होना मायने नहीं रखता है
हम एक दूसरे के आंसू 
शायद ना पोछ पायें
लेकिन आंसू दिखलाने में
कमजोर महसूस नहीं करते हैं
खुशियाँ बांटने के लिए भी
बच्चों की तरह उछलते हैं .......

आप सोच रहे होंगे , आपको बता बोर क्यों कर रही हूँ ......

बेटिया वो ही नहीं होती , जिसे हम जन्म देते हैं ....
तब तो प्यारा तोता पिंजरा में हो गया
सिंधु कुँए में कैद हो गया
सोच का दायरा बढ़ना चाहिए

बेटा जोरू का गुलाम 
समझा नहीं जाना चाहिए
दमाद बेटी को खुश रखता है
आप खुश होती हैं न

 बेटा को ही प्यार करने से , यशोदा को नहीं जाना जाता



दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...