Friday, 25 September 2015

वर्ण पिरामिड



हम ख़ुद की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा लें तो वही बहुत है
बलि का मीट
बिना लहसुन प्याज का पकता
दशहरा में शोर क्यों नहीं मचता
हिन्दुओं-बात हिन्दुओं को पचता
1
स्व
सरी
निश्छल
स्थिर होती
सींचती जीव
डूबा देती नाव
ज्यूँ उबाल में आती
2
हो
नाव
मोहक
जलयान
धारा की सखी
क्षुधा पूर्ति साध्य
जीविका मल्लाह की

6 comments:

  1. बेहद सुन्दर सार्थक पिरामिड लेखन दी :) बधाई शुभ दोपहरी jsk

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  2. बढ़िया

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  3. बहुत सुंदर है यह वर्ण पिरामिड, अर्थपूर्ण भी

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  4. सुंदर और सार्थक रचना । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।

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