Friday 27 September 2019

"पारितोषिक"



    आदतन श्रीनिवासन समय से पहले अपने कार्यालय पहुँच चुके थे... और अपने अधिपुरुष(बॉस) की प्रतीक्षा कर रहे थे.. उन्हें आज अपना त्याग पत्र सौंपना था...।
बीते कल मुख्यकार्यालय से अधिपुरुष के अधिपुरुष आये थे जिन्हें रात्रि भोजन पर वे अपने घर पर आमंत्रित किये थे... तथा विनम्र आग्रह के साथ सूचित किये थे कि वे अपने पिता के संग रहते हैं जिन्हें अपने पोते-पोती और पुत्र के साथ रात्रि भोजन करने में खूशी मिलती है और समय के बहुत पाबंद हैं। पोते-पोती को भी अनुशासित रहने की शिक्षा उनसे मिली हुई है। प्रातः वंदना टहलना योगासन सबके साथ करते हैं,.."अतः कृपया समय का ख्याल रख हमें अनुगृहीत करें!"
 अपनी पत्नी को सूचित कर दिए कि आज रात्रि भोजन पर दो अतिथि होंगे...। उनकी पत्नी कुशल गृहणी थी... गृह सज्जा से लेकर भोजन की तैयारी कर लेगी इस मामले में वे निश्चिंत थे और वही हुआ भी शाम जब वे घर पहुँचे तो बेहद खुश हुए...। पिता के भोजन का समय होते भोजन मेज पर सभी चीज कायदे से व्यवस्थिति हो गया... लेकिन अतिथि अभी नहीं आये थे उनके पिता बोले कि "थोड़ी प्रतीक्षा कर लिया जाए ..?"
"ना! ना, आप और बच्चे भोजन कर सोने जायें, मैं प्रतीक्षा करता हूँ।" पिता व बच्चों के भोजन कर लेने के बाद वे बाहर आकर बैठ गए। थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद अंदर जाकर पत्नी के साथ भोजन कर, बचा भोजन फ्रीज में रखवाने में मदद कर चुके थे ,कि बाहर से पुकारने की आवाज आई.. वे बाहर जाकर देखे तो दोनों अतिथि खड़े थे.. उन्हें विनम्रतापूर्वक वापस जाने का कहकर मुख्य दरवाजा बंद कर सोने चले गए.. "आपको साहब अपने केबिन में बुला रहे हैं..," अधीनस्थ के पुकारने पर श्रीनिवासन की तन्द्रा भंग हुई और वे साहब के केबिन में जाकर अपना त्यागपत्र सौंप रहे थे कि मुख्यालय से आये साहब उन्हें गले लगाकर बोले कि-"आपकी पदोन्नति की जाती है!"

Thursday 26 September 2019

बुरी बेटियाँ


*"चिंतन"*

तुलसी, तुलसी रहती है
चाहे प्रेम गणेश से करे
चाहे ब्याही जाए शालिग्राम से
बेटी बेटी नहीं रह जाती है
चाहे ब्याही जाए अमर या अकबर के साथ

बुरी होती हैं ?
बुरी होती है बेटियाँ
ब्याह के आते
चाहिए बँटवारा।
एकछत्र साम्राज्य
मांगें सारा का सारा।
खूंटे की मजबूती तौलती
आत्महत्या की धमकी।
प्रभुत्व/रूप से नशा पाती
वंश खत्म करती सनकी
समझती घर को फटकी।
(फटकी=वह झाबा जिसमें बहेलिया पकड़ी हुई चिड़ियाँ रखते हैं)

बहुत बुरी!
हाँ! हाँ, बहुत बुरी
होती है वो बेटियाँ
मूक गऊ सी बंध जाती हैं
सहती जाती हैं,
सहती जाती हैं
लेकिन कभी बोल कर बताना,
दूसरों को कि बोलना जरूरी है,
समय से आवाज उठाओ..
स्त्रियों तुम भी इंसान हो...
दोष नहीं है केवल बेटियों का..
हम अभिभावक उन्हें संतुलित रहने की

  1. सीख देने में असफल हो जाते हैं।

Monday 23 September 2019

निरर्थक विलाप


स्व के खोल में सिमट केवल आदर्श की बात की जा सकती है...
वक़्त के अवलम्बन हैं बेटे जीवन की दिन-रात हैं बेटियाँ,
भंवर के पतवार हैं बेटे आँखों की होती सौगात हैं बेटियाँ,
गर्भनाल का सम्मान तो क्या धाय पन्ना यशोदा की पहचान-सोचना पल के कुशलात हैं बेटे तो शब-ए-बरात हैं बेटियाँ।
22 सितम्बर 20191
सुबह-सुबह दो फोन आया
–आप एक पुस्तक लोकार्पण में आएं और पुस्तक पर बोलें
–मिक्की की मौत हो गई
स्तब्ध रह गई मैं
बी के सिन्हा और मेरे पति एक साथ एक अपार्टमेंट में 104 (हमारा) और 304(उनका) शिफ्ट हुए
बी के सिन्हा को दो बेटा दो बेटी
दोनों बेटा इंजीनियर दोनों दामाद बहुत ही साधारण सबसे बड़ी बेटी अपने पति दोनों बच्चों के साथ माता पिता के साथ रहती उसके बाद का बेटा अमेरिका में छोटा बेटा पहले दिल्ली में जॉब करता था फिर पटना में ही रेडीमेट कपड़ों का दुकान बड़े बहनोई के साधारण किराने की दुकान के पास कर लिया गाहे बगाहे बहनोई साले का दुकान भी देख लेता था छोटा वाला दामाद साधारण कर्मचारी था किसी गाँव में

304 वाला फ्लैट बी के सिन्हा खरीदे अपने पैसे से लेकिन बड़े वाले बेटे के नाम से हो सकता है कुछ पैसे से मदद किया हो अमेरिका का पैसा

पटना में ही जमीन पर भी घर बनाया... नीचे का पूरा हिस्सा छोटे बेटे को उसके ऊपर को दो हिस्सा कर दोनों बेटियों के नाम
लेकिन शहर के पूरा बाहर बड़ी बेटी दोनों बच्चे शहर के बीचोबीच के विद्यालयों में पढ़ते दामाद का दुकान अपार्टमेंट के करीब क्यों माता पिता के सेवा के लिए साथ रहती बेटी

अमेरिका से जब बड़ा वाला बेटा आता अपनी बहन बहनोई को माता पिता से अलग होने के लिए कहता

जब भी कोई हंगामा होता बड़ी वाली बेटी मेरे पास आती रोती कहती अपने को हल्का कर लेती

इसबार फिर बड़ा वाला बेटा आया और हंगामा किया तो इसबार बहनोई अलग जाने की तैयारी कर रहा था कल रात दस बजे मर गई बड़ी बेटी डॉक्टर हार्ट अटैक बताया

पिता बेड पर हैं कई सालों से पार्किन्सन हो गया है कौन करेगा...!

मिक्की की अल्पायु मौत की जिम्मेदारी केवल मिक्की की है..
–पिता अभियंता के पद पर नियुक्त थे.. भाई उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे वह क्यों नहीं अर्थोपार्जन लायक बनी..
–क्यों एक ऐसे इंसान से शादी के लिए तैयार हुई जो पिता के पदानुसार नहीं था... स्वभाव तो शादी के बाद पता चलता है... जान-ए ली चिलम जिनका पर चढ़े अंगारी
–क्यों सुबह से शाम अपने पति , माता-पिता, अपने बच्चों के लिए , भाइयों (शादी के बाद ना बेटे रहे और ना भाई) के लिए चौके से बाजार तक चक्करघिन्नी बनी रही.. खरीद कर लाना पकाना तब खिलाना... कोई सहयोगी नहीं था क्यों कि उसकी आर्थिक स्थिति सही नहीं था...

 उसके माँ-बाप से अक्सर मैं सवाल करती थी... क्यों हुआ ऐसा... चिंतन का सवाल जरूर था...

जब सारी बेटियाँ इतनी अच्छी हैं तो वो दोनों भाभियाँ और उनकी माताएं किस ज़माने की हैं जो मेरी पड़ोसन के घर में आकर उनकी बेटी को घर से निकाल देने के लिए आये दिन गरज जाती थीं ... उन्हें यह समझ में नहीं आता था कि यही एक घर नहीं है जहाँ वे पसर सकती हैं...

मेरा मन करता था सबको चिल्ला-चिल्ला कर कहूँ , मिक्की हर्ट अटैक से नहीं मरी है उसकी हत्या उसके माँ-बाप ने किया है... सब सुनकर सहकर मौन रहकर.. अपना अपमान अपनी बेटी का अपमान... बहू साथ में रहे पोता संग खेल सकें यह लालच... विष था जिसके कारण मिक्की का अपमान नहीं दिखता था उसका सेवा नहीं दिखता था... मुझे फोन कर किसी से बात करने की इच्छा नहीं हुई... लेकिन रहा भी नहीं गया... मैं एकता बिटिया को उनके घर भेजी (एकता को ना कहने नहीं आता... चाहे किसी समय किसी काम के लिए उसे कह दूँ)



Sunday 22 September 2019

"धीमा जहर"




सैन फ्रांसिस्को जाने के लिए फ्लाइट का टिकट हाथ में थामे पुष्पा दिल्ली अन्तरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर बैठी थी.. अपने कंधे पर किसी की हथेली का दबाव महसूस कर पलटी तो पीछे मंजरी को खड़े देखकर बेहद खुश हुई और हुलस कर एक दूसरे को आलिंगनबद्ध कर कुछ देर के लिए उनके लिए स्थान परिवेश गौण हो गया...
"बच्चें कहाँ हैं मंजरी और कैसे हैं ? हम लगभग पन्द्रह-सोलह सालों के बाद मिल रहे हैं.. पड़ोस क्या बदला हमारा सम्पर्क ही समाप्त हो गया..,"
"मेरे पति के गुस्से ने हमारे-तुम्हारे पारिवारिक सम्बंध को बहुत प्रभावित किया उससे ज्यादा प्रभावित मेरे बच्चे के भविष्य को किया। आज ही हम लत संसाधन केंद्र में ध्रुव की भर्ती करवाकर आ रहे हैं।"मंजरी की आँखें रक्तिम हो रही थी।
"मेरे पति से नाराजगी की वजह भी तो तुम्हारे बेटे की उदंडता ही थी, घ्रुव की हर बात पर प्रधानाध्यापक को डाँटने विद्यालय चले जाना, नाई से अध्यापक का सर मुंडवा देना। मेरे बेटे को शिकायत करने के लिए उकसाने का प्रयास करना।"
" तुम्हारे और तुम्हारे पति हमेशा अपने बेटे को सीखाया कि गुरु माता-पिता से बढ़कर होते हैं। "स्पेयर द रॉड स्पॉइल द चाइल्ड" मंत्र ने तुम्हारे बेटे को अंग्रेजों के देश में स्थापित कर दिया।"

Sunday 15 September 2019

जीवनोदक





"प्रतीक्षारत साँसें कितनी विकट होती है... आस पूरी होगी या अकाल मौत मिलती है..?" मंच पर काव्य-पाठ जारी था और श्रवण करने वाले रोमांचित हो रहे थे... हिन्दी दिवस के पूर्व दिवस (शुक्रवार13 सितम्बर 2019)  एम.ओ.पी. महिला वैष्णव महाविद्यालय का सभागार परिसर , विभिन्न महाविद्यालयों से आमंत्रित छात्र-छत्राओं से भरा हुआ था, हालांकि उस दिन का निर्धारित कार्यक्रम समाप्त हो चुका तो सारे अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार मध्याह्न भोजन के लिए जा चुके थे...नई कलम को कितनी अहमियत मिलनी चाहिए सदा चिंतनीय विषय रहना चाहिए... 5 छात्र-छात्राओं का पंजीयन कार्यक्रम के दिन हुआ था और वे समर्थ युवा रचनाकार आठ बजे से आकर अपनी बारी की प्रतीक्षा में तपस्यारत थे.. आदरणीय डॉ. सुधा त्रिवेदी जी उन युवा रचनाकारों की सूचना कई बार घोषित कीं और सराहनीय और अनुकरणीय बात थी कि दिन के दो बजे उनको पाठ का मौका देना..। प्रमाणपत्र बाद में बनवा देंगी सांत्वना बार-बार दे रही थीं.. उनके प्रति मेरी श्रद्धा प्रतिपल बढ़ती जा रही थी।


हिन्दी भाषी प्रदेश में हिन्दी पर कार्य करना कभी रोमांचित नहीं किया... बस एक दायित्वबोध रहा कि खुद को व्यस्त रखने के लिए कुछ करना है.. आज महोदया DrSudha Trivedi जी को अहिन्दी भाषी तमिल भाषा के बीच कार्य करते हुए देख गर्व महसूस हुआ.. हार्दिक आभार आपका
1989 से आज 2019 में अनेकानेक बार चेन्नई संग पूरा तमिलनाडु भ्रमण की हूँ... पहली बार चेन्नई आकर बेहद खुशी हुई...
महाविद्यालय की बहुत सारी छात्राएं पारम्परिक पोशाक साड़ी और गहने पहनी हुई थीं... जिनमें से तीन चयनित होकर निर्णायक के सामने आईं और उनसे एक सवाल #ओणम_मनाने_का_आज_उद्देश्य_क्या_है? किया गया ।
प्रथम आने वाली छात्रा का जबाब रहा- " #नहीं_जानती_कि_ओणम_क्यों_शुरू_हुआ_आज_अन्य_सभी_क्यों_मनाते_हैं_मेरे_लिए_तो_खुशी_मिलने_की_वजह_है_ओणम_कि_पूरा_परिवार_एक_संग_जुटता_है।

नई पीढ़ी तोड़ना नहीं चाहती है.. जो अगर भटकती है तो उसके जिम्मेदार हम हैं और हमारी दी गई परवरिश है..

मैं अपनी आदत से लाचार कार्यक्रम शुरू होने के एक घन्टा पहले पहुँच गई और उस एक घण्टे में छात्राओं को समझने का मौका मिला... सुबह आठ बजे से लेकर मध्याह्न तीन बजे तक हम उनके बीच रहे... शालीन शीतल मेधावी छात्राओं को देखकर बेहद सुकून मिला..


Saturday 14 September 2019

"साहित्य का बढ़ता चीर"




छोटी कलम को आज से चार साल पहले एक संस्था की जानकारी नहीं थी... हालांकि इक्कीस साल से उसी शहर की निवासी थी। आज पच्चीस साल हो जाने पर गली-गली में बस रहे छोटे-बड़े-बहुत बड़े कई संस्थानों को जानने की कोशिश में थी कि शोर से उलझन में हो गई... 
"यह क्या साहित्य का विस्तार है... साहित्य तो लहूलुहान होने के स्थिति में है.. नाकाम इश्क की शायरी में बातें (शेर का बहर पूछ लो तो बगले झांकने लगते/लगती हैं,) चुटकुले, एक्टिंग, स्टोरी टेलिंग, गीत गाना, रैप.. कोई बताए रैप कौन सा साहित्य है? अरे हाँ मज़ेदार बात तो यह है कि ऐसे ओपन माइक्स में शामिल होने के लिए पैसे भी देने पड़ते हैं जो कि पुरी तरह मामले को व्यवसायिक बनाता है।" बड़ी कलम की संस्थाओं के मंच की आवाज गूँज रही थी।
"ठहरें! ठहरें! जरा ठहरें! क्या यहाँ कॉफी हाउस में , नुक्कड़ के चाय की दुकान पर जैसे साहित्य उफनता था और लहरें समेटने के लिए विद्यालय-महाविद्यालय के छात्र व राहगीर वशीभूत होकर वृत में जुट जाते थे वही हालात हैं क्या आज के... बड़े-बड़े महारथियों के जुटान में आलेख पढ़ने के एक-दो हजार से नाम पंजीयन करवाएं.. काव्य-पाठ के लिए चार सौ से आपको शामिल कर आप पर एहसान की जाएगी...!" opne mike(mic) पूरे विवाद करने का अवसर पा गया था..
"वरिष्ठ साहित्यकारों की देख-रेख में सीखना, गुण-दोष जान समझ , अनुशासन में बंध आगे बढ़ना और अत्यधिक श्रम से प्रसिद्धि हासिल करना ही श्रेयस्कर होगा।" छोटी कलम दोनों को सांत्वना दे रही थी।
"जाओ! जाओ! यहाँ गुटबंदी कुनबे के साम्राज्य में कोई एक गुरू मिल गया तो सबके खुन्नस की शिकार हो जाओगी!" बड़ी कलम की संस्थाओं के मंच और opne mike(mic) की आवाज संग-संग गूँज गई।
"इनलोगों ने चींटी से कुछ नहीं सीखा!" मुस्कुरा रही थी छोटी कलम

Thursday 12 September 2019

मुक्तक

ढूँढ़ रही आजू-बाजू दे साथ सदा रहमान
क्रांति की परिभाषा रहे पहले सा सम्मान
सबके कथन से नहीं हो रही सहमती मेरी
आस रहे तमिल-हिन्दी एक-दूजे का मान 
संगी ज्योति उर्जा व ज्ञान का भंडार है
श्रेष्ठ जीवन का लक्ष्य उत्तम संस्कार है
वो हमारी नहीं, हम हिन्दी की मांग हैं
भाषा-उठान आंचलिक का अंकवार है

Saturday 7 September 2019

जय हिन्द-सलाम भारत के वीरों

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, स्क्रीन
ग्यारह रुपये जब मिलते थे
जाते हुए अतिथि की दबी मुट्ठी से
आई किसी भउजी के खोइछा से
कई मनसूबे तैयार होते थे
हमारे ज़माने में
छोटी खुशियों की कीमत
बड़ी होती थी

चन्द्रयान के सफर में लगा
ग्यारह साल सुन-पढ़
कुछ वैसा ही कौतूहल जगा
इस ग्यारह साल में कितने
सपने बुने उलझे टूटे होंगे
फिर दूने जोश से
उठ खड़े हुए होंगे


वैसे जमाना बहुत पहले जैसा रहा नहीं...
मेरे भैया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन
–जा ये चंदा ले आवs खबरिया
–चंदा मामा दूर के, पुए पकाए गुड़ के

Thursday 5 September 2019

"नैध्रुवा"



           "अरे! जरा सम्भलकर..., तुम्हें चोट लग जायेगी। इस अंधरे में क्या कर रही हो और तुम्हारे हाथ में क्या है?" बाहर दौड़ती-कूदती नव्या से उसकी मौसी ने पूछा।
                      "क्या मौसी? आप भी न! इतने एलईडी टॉर्च/छोटे-छोटे बल्ब की रौशनी में आपको अंधेरा नजर आ रहा है!"अपने हाथ में पकड़े जाल को बटोरती रीना बेहद खुश थी।
"वाहः! तुमने सच कहा इस ओर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया.., यूँ यह भी कह सकती हो कि अमावस्या की रात है और हम नभ में तारों के बीच सैर कर रहे हैं। इतनी संख्या में जुगनू देश के किसी और कोने में नहीं पाए जाते होंगे जितने यहाँ किशनगंज में देखने को मिल रहे हैं। लेकिन तुम इनका करोगी क्या ?"
"नर्या भाई को दूँगी.. जब से माँ-पापा उसे पुनर्वासाश्रम से गोद लेकर आये हैं, वह किसी से कोई बात ही नहीं कर रहा है मौसी।" जुगनू से भरा जाल थमाने के लिए ज्यों नव्या नर्या के कंधे पर हथेली टिकाती है, वह सहमकर चिहुँक जाता है।
"उसे थोड़ा समय दो..., वह पहले जिस घर में गया था वहाँ नरपिचासों के बीच फँस गया था..। बंद दीवारों के पीछे शोषण केवल कन्याओं का नहीं होता है। उसे जुगनुओं की जरूरत नहीं है, उसे उगते सूरज की जरूरत है..!"

"नैध्रुवा" = पूर्णता के निकट
नर्या = वीर/मजबूत


Wednesday 4 September 2019

"बदलते पल का न्याय"


"ये यहाँ? ये यहाँ क्या कर रहे हैं?" पार्किन्सन ग्रसित मरीज को व्हीलचेयर पर ठीक से बैठाते हुए नर्स से सवाल करती महिला बेहद क्रोधित नजर आ रही थी.. जबतक नर्स कुछ जबाब देती वह महिला प्रबंधक के कमरे की ओर बढ़ती नजर आई..
"मैं बाहर क्या देखकर आ रही हूँ.. यहाँ वे क्या कर रहे हैं?" महिला प्रबंधक से सवाल करने में भी उस आगंतुक महिला का स्वर तीखा ही था।
"तुम क्या देखकर आई हो, किनके बारे में पूछ रही हो थोड़ा धैर्य से धीमी आवाज में भी पूछ सकती हो न संगी!"
"संगी! मैं संगी! और मुझे ही इतनी बड़ी बात का पता नहीं, तुम मुझसे बातें छिपाने लगी हो?"
"इसमें छिपाने जैसी कोई बात नहीं, उनके यहाँ भर्ती होने के बाद तुमसे आज भेंट हुई हैं। उनकी स्थिति बहुत खराब थी, जब वे यहाँ लाये गए तो समय नहीं निकाल पाई तुम्हें फोन कर पाऊँ…,"
"यहाँ उन्हें भर्ती ही क्यों की ? ये वही हैं न, लगभग अठारह-उन्नीस साल पहले तुम्हें तुम्हारे विकलांग बेटे के साथ अपने घर से भादो की बरसती अंधियारी रात में निकल जाने को कहा था..., डॉक्टरों की गलती से तुम्हारे बेटे के शरीर को नुकसान पहुँचा था, तथा डॉक्टरों के कथनानुसार आयु लगभग बीस-बाइस साल ही था, जो अठारह साल..," आगंतुक संगी की बातों को सुनकर प्रबंधक संगी अतीत की काली रात के भंवर में डूबने लगती है...
"तुम्हें इस मिट्टी के लोदे और मुझ में से किसी एक को चयन करना होगा, अभी और इसी वक्त। इस अंधेरी रात में हम इसे दूर कहीं छोड़ आ सकते हैं , इसे देखकर मुझे घृणा होने लगती है..,"
"पिता होकर आप ऐसी बातें कैसे कर सकते हैं..! माता पार्वती के जिद पर पिता महादेव हाथी का सर पुत्र गणेश को लगाकर जीवित करते हैं और आज भूलोक में प्रथम पूज्य माने-जाने जाते हैं गणेश.. आज हम गणपति स्थापना भी हम कर चुके हैं..,"
"मैं तुमसे कोई दलील नहीं सुनना चाहता हूँ , मुझे तुम्हारा निर्णय जानना है...,"
"तब मैं आज केवल माँ हूँ..,"
"मैडम! गणपति स्थापना की तैयारी हो चुकी है, सभी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं..," परिचारिका की आवाज पर प्रबंधक संगी की तन्द्रा भंग होती है।
"हम बेसहारों के लिए ही न यह अस्पताल संग आश्रय बनवाये हैं संगी...! क्या प्रकृति प्रदत्त वस्तुएं दोस्त-दुश्मन का भेद करती हैं..! चलो न देखो इस बार हम फिटकरी के गणपति की स्थापना करने जा रहे हैं।"

Monday 2 September 2019

"विधा : पत्र"


प्रियांशी माया
सस्नेहाशीष संग अक्षय शुभकामनाएं

आज माता-पिता-पुत्र एक साथ भूमिलोक में विराज रहे हैं यानी हरतालिका तीज और गणेश चतुर्थी पूजन एक साथ भूलोकवासी कर रहे हैं... हरतालिका तीज जहाँ बिहार और उत्तर प्रदेश के स्त्रियों का पर्व है तो गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र कर्नाटक... यह तब की बातें हैं जब सोशल मीडिया का ज़माना नहीं था... अभी तो देश के किसी कोने में जाओ प्रत्येक पर्व की खुशियाँ मिलेगी ही मिलेगी...
 तुम्हें पता ही है हम अभी अपने सगे परिजनों के बीच नहीं हैं... इस कॉलनी में हम अभी जम गए हैं रम नहीं पाये हैं... अगल-बगल के पड़ोसी से बातें हो जाती है.. उनसे ही पता चला कि गणेश-चतुर्थी एक जगह मनाई जाएगी... सभी सहयोग राशि जमा करेंगे परन्तु तुम्हारे पापा किसी कन्या के शादी में पच्चीस-पचास हजार दान कर देंगे लेकिन पूजा-पंडित को तो पाँच रूपया ना दें.. (बिहार का अनुभव या यहाँ भी गाँव का अनुभव -चंदा वसूलकर शोर शराबा दारू नाच लाउडस्पीकर पर भद्दे गाने...) आदतन नहीं देना था और ना दिए...
देश हित के लिए छोटा परिवार सुखी परिवार... बुजुर्ग रहे नहीं और बच्चे विदेश बस जाए.. बुढ़ापे में घर आने की किसी की प्रतीक्षा ना हो.. पर्व के नाम पर रंग रोशन ना हो.. नीरसता किस कदर हावी होता है यह बस अनुभव से समझा जा सकता है।
सामने बच्चे-बड़े उत्सव मना रहे हैं और हम शीशमहल के अंदर से झाँक रहे हैं... आधुनिकता के नाम पर भगवान नहीं मानते.. , मंदी को देखते हुए सब चीजों पर बंदी लगा बैठे हैं.. पर्यावरण का सोच कर बहुत अच्छा कर रहे हैं पर गतिमान जीवन के लिए क्या सोच रहे हैं.....,
बाकी फिर कभी विस्तार से... अपना ख्याल रखना..



तुम्हारी
माँ


वामन का चाँद छूना : २९ फरवरी २०२४

“स्तब्ध हूँ! यह पोशाक विदेशी दुल्हन का होता है जो यह सिर्फ़ एक तस्वीर खिंचवाने के लिए शौक़ से पहन ली हैं!” “तो क्या हो गया! हिर्स में पहन ली...