सैन फ्रांसिस्को जाने के लिए फ्लाइट का टिकट हाथ में थामे पुष्पा दिल्ली अन्तरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर बैठी थी.. अपने कंधे पर किसी की हथेली का दबाव महसूस कर पलटी तो पीछे मंजरी को खड़े देखकर बेहद खुश हुई और हुलस कर एक दूसरे को आलिंगनबद्ध कर कुछ देर के लिए उनके लिए स्थान परिवेश गौण हो गया...
"बच्चें कहाँ हैं मंजरी और कैसे हैं ? हम लगभग पन्द्रह-सोलह सालों के बाद मिल रहे हैं.. पड़ोस क्या बदला हमारा सम्पर्क ही समाप्त हो गया..,"
"मेरे पति के गुस्से ने हमारे-तुम्हारे पारिवारिक सम्बंध को बहुत प्रभावित किया उससे ज्यादा प्रभावित मेरे बच्चे के भविष्य को किया। आज ही हम लत संसाधन केंद्र में ध्रुव की भर्ती करवाकर आ रहे हैं।"मंजरी की आँखें रक्तिम हो रही थी।
"मेरे पति से नाराजगी की वजह भी तो तुम्हारे बेटे की उदंडता ही थी, घ्रुव की हर बात पर प्रधानाध्यापक को डाँटने विद्यालय चले जाना, नाई से अध्यापक का सर मुंडवा देना। मेरे बेटे को शिकायत करने के लिए उकसाने का प्रयास करना।"
" तुम्हारे और तुम्हारे पति हमेशा अपने बेटे को सीखाया कि गुरु माता-पिता से बढ़कर होते हैं। "स्पेयर द रॉड स्पॉइल द चाइल्ड" मंत्र ने तुम्हारे बेटे को अंग्रेजों के देश में स्थापित कर दिया।"
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 22 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष संग हार्दिक आभार छोटी बहना
Deleteसोच परिवेश की उपज है
ReplyDeleteपधारें अंदाजे-बयाँ कोई और
विचारणीय प्रस्तुति
ReplyDeleteसार्थक संदेश बहुत अच्छी कहानी है दी।
ReplyDeleteविचारोत्तेजक
ReplyDeleteअद्भुत गहरी विडम्बना।
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