Monday 2 September 2019

"विधा : पत्र"


प्रियांशी माया
सस्नेहाशीष संग अक्षय शुभकामनाएं

आज माता-पिता-पुत्र एक साथ भूमिलोक में विराज रहे हैं यानी हरतालिका तीज और गणेश चतुर्थी पूजन एक साथ भूलोकवासी कर रहे हैं... हरतालिका तीज जहाँ बिहार और उत्तर प्रदेश के स्त्रियों का पर्व है तो गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र कर्नाटक... यह तब की बातें हैं जब सोशल मीडिया का ज़माना नहीं था... अभी तो देश के किसी कोने में जाओ प्रत्येक पर्व की खुशियाँ मिलेगी ही मिलेगी...
 तुम्हें पता ही है हम अभी अपने सगे परिजनों के बीच नहीं हैं... इस कॉलनी में हम अभी जम गए हैं रम नहीं पाये हैं... अगल-बगल के पड़ोसी से बातें हो जाती है.. उनसे ही पता चला कि गणेश-चतुर्थी एक जगह मनाई जाएगी... सभी सहयोग राशि जमा करेंगे परन्तु तुम्हारे पापा किसी कन्या के शादी में पच्चीस-पचास हजार दान कर देंगे लेकिन पूजा-पंडित को तो पाँच रूपया ना दें.. (बिहार का अनुभव या यहाँ भी गाँव का अनुभव -चंदा वसूलकर शोर शराबा दारू नाच लाउडस्पीकर पर भद्दे गाने...) आदतन नहीं देना था और ना दिए...
देश हित के लिए छोटा परिवार सुखी परिवार... बुजुर्ग रहे नहीं और बच्चे विदेश बस जाए.. बुढ़ापे में घर आने की किसी की प्रतीक्षा ना हो.. पर्व के नाम पर रंग रोशन ना हो.. नीरसता किस कदर हावी होता है यह बस अनुभव से समझा जा सकता है।
सामने बच्चे-बड़े उत्सव मना रहे हैं और हम शीशमहल के अंदर से झाँक रहे हैं... आधुनिकता के नाम पर भगवान नहीं मानते.. , मंदी को देखते हुए सब चीजों पर बंदी लगा बैठे हैं.. पर्यावरण का सोच कर बहुत अच्छा कर रहे हैं पर गतिमान जीवन के लिए क्या सोच रहे हैं.....,
बाकी फिर कभी विस्तार से... अपना ख्याल रखना..



तुम्हारी
माँ


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