स्व के खोल में सिमट केवल आदर्श की बात की जा सकती है...
वक़्त के अवलम्बन हैं बेटे जीवन की दिन-रात हैं बेटियाँ,
भंवर के पतवार हैं बेटे आँखों की होती सौगात हैं बेटियाँ,
गर्भनाल का सम्मान तो क्या धाय पन्ना यशोदा की पहचान-सोचना पल के कुशलात हैं बेटे तो शब-ए-बरात हैं बेटियाँ।
22 सितम्बर 20191
22 सितम्बर 20191
सुबह-सुबह दो फोन आया
–आप एक पुस्तक लोकार्पण में आएं और पुस्तक पर बोलें
–मिक्की की मौत हो गई
स्तब्ध रह गई मैं
बी के सिन्हा और मेरे पति एक साथ एक अपार्टमेंट में 104 (हमारा) और 304(उनका) शिफ्ट हुए
बी के सिन्हा को दो बेटा दो बेटी
दोनों बेटा इंजीनियर दोनों दामाद बहुत ही साधारण सबसे बड़ी बेटी अपने पति दोनों बच्चों के साथ माता पिता के साथ रहती उसके बाद का बेटा अमेरिका में छोटा बेटा पहले दिल्ली में जॉब करता था फिर पटना में ही रेडीमेट कपड़ों का दुकान बड़े बहनोई के साधारण किराने की दुकान के पास कर लिया गाहे बगाहे बहनोई साले का दुकान भी देख लेता था छोटा वाला दामाद साधारण कर्मचारी था किसी गाँव में
304 वाला फ्लैट बी के सिन्हा खरीदे अपने पैसे से लेकिन बड़े वाले बेटे के नाम से हो सकता है कुछ पैसे से मदद किया हो अमेरिका का पैसा
पटना में ही जमीन पर भी घर बनाया... नीचे का पूरा हिस्सा छोटे बेटे को उसके ऊपर को दो हिस्सा कर दोनों बेटियों के नाम
लेकिन शहर के पूरा बाहर बड़ी बेटी दोनों बच्चे शहर के बीचोबीच के विद्यालयों में पढ़ते दामाद का दुकान अपार्टमेंट के करीब क्यों माता पिता के सेवा के लिए साथ रहती बेटी
अमेरिका से जब बड़ा वाला बेटा आता अपनी बहन बहनोई को माता पिता से अलग होने के लिए कहता
जब भी कोई हंगामा होता बड़ी वाली बेटी मेरे पास आती रोती कहती अपने को हल्का कर लेती
इसबार फिर बड़ा वाला बेटा आया और हंगामा किया तो इसबार बहनोई अलग जाने की तैयारी कर रहा था कल रात दस बजे मर गई बड़ी बेटी डॉक्टर हार्ट अटैक बताया
पिता बेड पर हैं कई सालों से पार्किन्सन हो गया है कौन करेगा...!
मिक्की की अल्पायु मौत की जिम्मेदारी केवल मिक्की की है..
–पिता अभियंता के पद पर नियुक्त थे.. भाई उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे वह क्यों नहीं अर्थोपार्जन लायक बनी..
–क्यों एक ऐसे इंसान से शादी के लिए तैयार हुई जो पिता के पदानुसार नहीं था... स्वभाव तो शादी के बाद पता चलता है... जान-ए ली चिलम जिनका पर चढ़े अंगारी।
–पिता अभियंता के पद पर नियुक्त थे.. भाई उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे वह क्यों नहीं अर्थोपार्जन लायक बनी..
–क्यों एक ऐसे इंसान से शादी के लिए तैयार हुई जो पिता के पदानुसार नहीं था... स्वभाव तो शादी के बाद पता चलता है... जान-ए ली चिलम जिनका पर चढ़े अंगारी।
–क्यों सुबह से शाम अपने पति , माता-पिता, अपने बच्चों के लिए , भाइयों (शादी के बाद ना बेटे रहे और ना भाई) के लिए चौके से बाजार तक चक्करघिन्नी बनी रही.. खरीद कर लाना पकाना तब खिलाना... कोई सहयोगी नहीं था क्यों कि उसकी आर्थिक स्थिति सही नहीं था...
उसके माँ-बाप से अक्सर मैं सवाल करती थी... क्यों हुआ ऐसा... चिंतन का सवाल जरूर था...
जब सारी बेटियाँ इतनी अच्छी हैं तो वो दोनों भाभियाँ और उनकी माताएं किस ज़माने की हैं जो मेरी पड़ोसन के घर में आकर उनकी बेटी को घर से निकाल देने के लिए आये दिन गरज जाती थीं ... उन्हें यह समझ में नहीं आता था कि यही एक घर नहीं है जहाँ वे पसर सकती हैं...
मेरा मन करता था सबको चिल्ला-चिल्ला कर कहूँ , मिक्की हर्ट अटैक से नहीं मरी है उसकी हत्या उसके माँ-बाप ने किया है... सब सुनकर सहकर मौन रहकर.. अपना अपमान अपनी बेटी का अपमान... बहू साथ में रहे पोता संग खेल सकें यह लालच... विष था जिसके कारण मिक्की का अपमान नहीं दिखता था उसका सेवा नहीं दिखता था... मुझे फोन कर किसी से बात करने की इच्छा नहीं हुई... लेकिन रहा भी नहीं गया... मैं एकता बिटिया को उनके घर भेजी (एकता को ना कहने नहीं आता... चाहे किसी समय किसी काम के लिए उसे कह दूँ)
उसके माँ-बाप से अक्सर मैं सवाल करती थी... क्यों हुआ ऐसा... चिंतन का सवाल जरूर था...
जब सारी बेटियाँ इतनी अच्छी हैं तो वो दोनों भाभियाँ और उनकी माताएं किस ज़माने की हैं जो मेरी पड़ोसन के घर में आकर उनकी बेटी को घर से निकाल देने के लिए आये दिन गरज जाती थीं ... उन्हें यह समझ में नहीं आता था कि यही एक घर नहीं है जहाँ वे पसर सकती हैं...
मेरा मन करता था सबको चिल्ला-चिल्ला कर कहूँ , मिक्की हर्ट अटैक से नहीं मरी है उसकी हत्या उसके माँ-बाप ने किया है... सब सुनकर सहकर मौन रहकर.. अपना अपमान अपनी बेटी का अपमान... बहू साथ में रहे पोता संग खेल सकें यह लालच... विष था जिसके कारण मिक्की का अपमान नहीं दिखता था उसका सेवा नहीं दिखता था... मुझे फोन कर किसी से बात करने की इच्छा नहीं हुई... लेकिन रहा भी नहीं गया... मैं एकता बिटिया को उनके घर भेजी (एकता को ना कहने नहीं आता... चाहे किसी समय किसी काम के लिए उसे कह दूँ)
यही तो विडंबना है बेटियों की दुर्गति की जिम्मेदारी कौन ले यह भी ज्वलंत प्रश्न है।
ReplyDeleteसभी अपने पक्ष में सही कुतर्क करते दिखते है।
सत्य को स्पर्श करती संदेशात्मक लघुकथा
सिक्के का नकारात्मक पहलू जिसे समझ कर भी नासमझ बना रहता है इन्सान । अपना जीवन खुद संवारना होता है। माता-पिता एक समय तक ही साथ दे पाते है । हृदयस्पर्शी लघुकथा ।
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