Saturday 23 February 2013

वसंत लाया



(1)
पीली चुनर


ओढ़े हठी धरणी

मधुऋतु में

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(2)
षट रागिनी

कुहू लगे मन पे

कुसुमागम

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(3)
किंशुक छाया

वशीभूत अचला

तृप्त मानव


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(4)
देख के बौर

बौराये - मत्त जाये

वसंतव्रत


 

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(5)

पा के पलाश

बसंती है वसुधा

मदन माया


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(6)
गुलाल उड़ा

फाग ,रँग होली का

वसंत लाया
 
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(7)
झूमें औ नाचें

रसभरी रसिक

हुआ मानव

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(8)
अवसाद के

तुषार भी पिघला

टेसू ताप से

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(9)
मन मयूर

को किया  आह्लादित

वन की लाट

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Friday 8 February 2013

Ego है तो Go ....

बेटे के facebook के profile में 1500 friend हैं ....

उससे पुछी :-
 इतने को Add क्यूँ करते हो .... ?
 कैसे Manage करते हो .... ?
इतने सारे Friend हैं .... ?

तो वो बोला .... :-
जो मुझे जानते हैं ....
या
जानना चाहते हैं ....
मैं जिसे जानता हूँ ....
या
जानना चाहता हूँ ....
सब से जुड़ता जाता हूँ ....
घर - परिवार - रिश्तेदार हैं ....
School - College था ....
Office - Institution है ....
देश - विदेश है ....
Train - Aeroplane में मिलना हो जाता है ....
वे जुड़ जाते हैं ....
कभी-कभी तो ऐसा होता है , कि दो आपस के दुश्मन मेरे Profile में भी होगें ....
दोनों मेरे अच्छे दोस्त भी हैं ....

Q.तुम्हें फर्क नहीं पड़ता .... ?

Ans.क्यूँ ....?
मुझे फर्क पड़ना चाहिए .... ?

Q.कभी कभी  उलझन नहीं होती .... ?

Ans.एक , दूसरे के प्रति क्या सोचते हैं ....
वो दोनों अपने निजी जिंदगी क्या करते हैं , उससे मुझे क्या मतलब ....
दोनों मेरे अपने हैं .... दोनों अगर मुझे ये कहें उसका साथ छोड़ दो तो मुझे तो दोनों को अपनी दोस्ती से बाहर का रास्ता दिखलाना होगा .... और जहां तक सही और गलत का सवाल है , तो ..... वे दोनों एक दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं ये उनका निजी मामला है  .... मैं तो ये देखता हूँ कि वे दोनों मेरे साथ कैसा व्यवहार करते हैं  .... मेरे जिंदगी में कौन रहेगा या कौन नहीं रहेगा या किसकि कितनी महत्व हैं या रहनी चाहिये ये तो मेरा निजी मामला है .... किसी के साथ काम करने से वो दोस्त नहीं हो जाता और कोई विदेश में है , तो उसका महत्व कम नहीं हो जाता .... किसी को profile में Add करता हूँ और कोई ऐसा मेरा बहुत करीबी जो मुझे पहले से जानता है , उस आने वाले के कारण मुझे Unfriend कर देता भी है , तो I Do't care .... वो  उसकी मर्ज़ी होगी ....
उसे मेरी दोस्ती ज्यादा महत्वपूर्ण है या उसका Ego ....
Ego है तो Go ....
Ego आंख की किरकिरी की तरह है .... बिना उसे साफ किये आप साफ साफ नहीं देख सकते ....
( दो ही चीजें अनन्त हैं – ब्रह्माण्ड और मनुष्य की मूर्खता ....
 पहले के बारे में मैं पक्की तरह से नहीं कह सकता .... ~ अलबर्ट आइन्स्टीन ~ )

अधिकतर लोगों को एहसास ही नहीं होता है कि जब वे किसी दुसरे को दोषी ठहराते हैं , तो वे खुद को कितनी बड़ी  गलफहमी में जकड़ते हुये अपनी शक्तियों को खो देते हैं ..... !!


 

Saturday 2 February 2013

दूर नहीं हुई आशंका ....। अब सोच में हूँ ....।




दुखित था मन ,व्यथित था हृदय ,जब था आक्रोश .... 
हम ऐसे हो जाएँ , खुश हों , मौत के सुन आदेश .... ??
लो आ गया , जारी भी होगा अध्यादेश ....
बदल गया कानून , बदल भी जायेगा देश .... ??
क्या बीतेगी उनपर , जब माँ पत्नी सुनेंगी सन्देश ....

हो तो वही रहा है ,सुनने की थी जिसकी आस ....
मन व्यथित और हृदय क्यूँ है , फिर उदास ....

मिलेगी तो उन्हें भी सज़ा ,जबकि नहीं उनका कोई दोष .... 

मैं फेशबूक और ब्लॉग की दुनिया में ,
समय गुजारने के ध्येय से आई थी ....
अकेलापन , जिसे मैं अपने स्वभाव से चुन ली थी
उसे दूर करने का साधन मिला था ....,
जो मन को भा रहा  था ....
बहुत कुछ सीखने को मिला ....
बहुत अपने मिले ....
पढ़ने के लिए बहुत कुछ मिला ....
पढ़ना शुरू की ....
एक ब्लॉग से दुसरे ब्लॉग तक ....
यहाँ भी बहुत उलझने हैं ....
कहीं लगता है , रास्ता साफ नज़र आ रहा है ....
कहीं लगता है ,एक ,दुसरे का रास्ता काट रहा है ....
कोई कहता नज़र आ रहा है ....
काश ....
लौटा पाते , दिन  वो तो ,
जीवन facebook , Google , Blog की
बातें 18 वीं सदी के शास्त्रार्थ की ....
पढ़ते-पढ़ते अपनी ,एक नई सोच बन रही है ....
दूर नहीं हुई आशंका  .... अब सोच में हूँ ....

जब हालात समझने में एक राय नहीं ....
जब हालात सुधारने में एक राह नहीं ....
तब लगे हैं बदलने में सोच की दिशा .... 
 तब लगे हैं बदलने में समाज की दशा ....
उलझन है कि सुलझती नहीं .... 
बेकरारी को करार आती नहीं ....
नाम की इच्छा तो ना कभी थी ....
और आगे कभी हो भी गई तो वो बेबकूफी होगी ना ....
लिखना तो आज भी नहीं आता ....
कभी कुछ  लिख ली तो बस ....


दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...