Wednesday, 14 December 2016

आपदा



01.
वर्तुल चाँद
भूख की स्याह छाया
मीन की काया ।
02.
पोस के खल
जल में रह जल
सिताम्बु ढ़ल ।
03.
बूझा है चूल्हा
नोटबन्दी में पंक्ति
बैंक में खड़ी ।
04.
वरदा शूल
लहूलुहान चैने
आपदा मूल ।


*मुक्तक*

जब तक धरा धारा मिटती नहीं
लगा लो जोर स्त्रियाँ टूटती नहीं
भीड़ रिश्तों ,जीती जाती तन्हाई
तपी ऐसी भट्ठी में कि फूटती नहीं



वर्ण पिरामिड


लीले
आपदा
सनै सनै
दंड वरदा
बदहाल जीव
लहुलुहान चेन्नै
ना !
चारा
सम्पत्ति
परिवृत्ति
चले कुचाल
कर्म दिष्ट धारा
शक्ति फल विपत्ति

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.12.16 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2557 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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कंकड़ की फिरकी

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