Saturday, 17 December 2016

विपदा खेल


"क्या बहू तुम्हें यही जगह मिला !
हमारी उम्र मन्दिर में हरे राम हरे कृष्ण जपने का है । तुम हमें कलियुगी रास लीला दिखलाने विक्टोरिया मेमोरियल ,काली घाट घूमा रही हो । झाड़ियों के ओट में ,अंधेरों को साया बनाये ,आँखों में बेहयाई की लाली लगाये ये युवा साबित क्या करना चाहते हैं ?" इंजीनियर्स नेशनल कॉंग्रेस में शामिल होने आये बेटा गुप्ता जी के साथ आई उनकी माँ अपनी बहु पर गुस्सा कर बैठीं
सह दे बैठीं श्रीमति सिन्हा। "अभी समय है ,कठिन संघर्ष का । मेहनत कर अपने को एक मुकाम पर ला खड़े करने का । जो समय घर पहुंच कर अध्ययन करने का है ,उस समय को यूँ चुम्मा चाटी करते हुए नष्ट करते हुए जग को नजरें चुराने में विवश कर रहा सब ।"
तभी सबकी नजर पड़ी ,एक लड़का एक लड़की को बलजोरी कलाई पकड़ घसीटने का प्रयास कर रहा था । लड़की अपने सामर्थ्य भर छुड़ाने का प्रयास कर रही थी । एक अन्य जोड़ी काफी तेजी से आकर उनदोनो को समझाने का प्रयास करने लगी ।
देखो देखो क्या फ़िल्मी अंदाज है गुप्ता जी की माँ फिर अपनी बहू पर दांत पीसने लगी



ना स्त्री है ना पुरुष
तो उसे का कहें
मांग रहा था
या
मांग रही थी
जब दोनों नहीं है
तो
दोनों कैसे लगे
खैर
हर जोड़े से वसूली हो रहा था
मानों जोड़े में बैठे होने का
 टैक्स भर रहे थे जुगल जोड़ी
बच्चे दस या बीस का नोट
देने के क्यों मजबूर थे
अपने जोड़े में बैठे को
जुर्म समझ रहे थे जो जुर्माना दे रहे थे
मुझे वो जुर्म ही लग रहा था
क्या उस स्थिति में बैठे होना
क्या कहलाता होगा
प्यार इश्क तो कतई नहीं
कहला सकता है
प्रिंसेप घाट (कलकत्ता)में
बेटिकट कई शो
देखने को मिल सकता है

1 comment:

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