चाहत के बेड़े में जो खड़ी होती
हाथ-लकिरों से यूँ ना लड़ी होती
तरसते रह गए एक सालिम मिलते
न तपिश औ न असुअन झड़ी होती
....
बचना ऐसे मेहमाँ से
खुद राजा बन बैठता मेजमाँ पर रजा चलाता है
गुलाम खुद के घर में रंक टुकड़ो में बाँट बनाता है
..
क से कुबेर क से कंगाल कहो है न वश की बात
मेहमाँ न रहे बसे ज्यादा दिन जो बाहर औकात
..
जुबान नहीं होते तो जंग नहीं होते मान ली बात
घुटन से निजात कैसे मिलते सहे जो ना जाए घात
....
छोटे छोटे टांको से
दर्द की तुरपाई की
खिलखिलाहट पैच
दरके की भरपाई की
चित्ताकर्षक
ReplyDeletebahut -bahut sundar
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-08-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2066 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आभारी हूँ
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 14 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभारी हूँ
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
वाह ! बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत शानदार
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है..!! लाजवाब..!!!
ReplyDelete