Friday 3 April 2015

हाइकु


रोज गार्डन चंडीगढ़

आठ सौ पच्चीस तरह के गुलाबों के बीच हमारी गोष्ठी

विभिन्न विषयों के साथ हाइकु पर भी बातें हुई
कुछ लोग बहुत ही अच्छा लिखना जानते हैं।


मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था
 कि ये कनैल का वृक्ष है ....

कनेर कला
स्वर्ण हँसी बिखरे
हरे घर में।
==


1
नभ को छूते
आओ सखियाँ कूदें
रुढी को तोड़ें।
2
पद्मा बनती
लक्ष्मी आस बांटती
पैसों की पौद ।
3
नव लें साँसें
निशीथ स्त्री जीवन
तरणी आस।
4
आँगन पौधे
दुरुक्ति चटखारे
समय राग।
5
आँख मिचौली
रवि मेघ के संग
चीड बिचौली।
6
कुलाचें , चुस्की
ग्रीन टी मेघ लेता
गिरि खंगाले ।
7
पढते छौने
सुस्ती मिटाये चुस्की
पौ फटते ही। 
8
आकुल सिन्धु
उफने क्रोधी उर्मी
बेवश घन/वाणी।

=

2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर हाइकू हैं सभी ... और सभी फोटो बेमिसाल ...

    ReplyDelete
  2. खूबसूरती को बहुत सुन्दर कैद किया है

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...