कुछ हिसाब एक जन्म में चुकता नहीं हो सकता है .... समय रहते या तो बुद्धि काम नहीं करती या हौसला में कमी हो जाती है .... समय रहते बुद्धि काम करती या समाज से लड़ने का हौसला होता तो ..... आज समाज से बहुत सी कुरितीयों का समूल नाश हो गया होता .... जिन कुरितीयों को सहना स्त्री भाग्य का लिखा मान लेती है .....
बेटी के बाप की गलती ना भी हो तो वो दामाद के पैर पकड़ माफ़ी मांगता है ताकि बेटी खुशहाल जिंदगी जिए ..... वैसी परिस्थितियों में बेटी तब क्या सोचती होगी ?
बेटी होना एक कर्ज है जो इक जन्म में अदा नहीं होता .......
बेटी के बाप की गलती ना भी हो तो वो दामाद के पैर पकड़ माफ़ी मांगता है ताकि बेटी खुशहाल जिंदगी जिए ..... वैसी परिस्थितियों में बेटी तब क्या सोचती होगी ?
बेटी होना एक कर्ज है जो इक जन्म में अदा नहीं होता .......
No comments:
Post a Comment
आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!