कड़क छवि ...... अनुशासन .... कायदे कानून ..... केयरिंग ..... हम छोटे भाई बहन को ..... बड़े भैया में देखने को मिले ..... यानि पिता का जो रोल हम सुनते पढ़ते आये वो रोल तो बड़े भैया निभाये ..... इसलिए शायद पिता की कमी हमें आज भी महसूस नहीं होती ......
हमारे पिता (मेरे पिता + मेरे पति के पिता) बेहद सरल इंसा थे ..... दोनों घरों में मुझे माँ की भूमिका मुख्य दिखी .....
एक बार मेरे पति बोले कि .... * राहुल का बाहर जाना , मुझे शायद इसलिए नहीं खला कि ...... या तो मैं उसे सोया नजर आया या वो मुझे सोया नजर आया * ..... या कभी जगे में भेंट हो गई तो जितनी बात होती थी , उतनी बात आज भी फोन पर हो जाती है ...... कैसे हो ..... पढ़ाई कैसी चल रही है .... कोई जरूरत हो तो बताना .....
शायद इसलिए मेरे विचार ये बने कि बच्चों का भविष्य माँ के हाथों से सुघड़ होता है ..... पिता बस प्यार प्यार प्यार प्यार .................. बाँटते हैं ......
नीम बरगद पहाड़ नारियल ..... पिता को क्या परिभाषित किया जा सकता है .....
:) शुभ दोपहरी दी .. ज्यादातर परिवार में यही स्थिति होती है पिता अपनी व्यस्तता में ज्यादा समय नही दे पाते बच्चो को या यूँ कहे की माँ सब कुछ इस कदर सम्हाल लेती है की पिता निश्चिन्त होते है पर जो बात मैंने नोटिस की पिता का मन माँ से कमजोर होता है बच्चो के मामले में | मेरी पतिदेव तो बिटिया के बहार जाने के नाम से बीमार पड़ जाते है उसके जाने के कई दिन बाद तक भी बहुत उखड़े अनमने बीमार से रहते है | पिता अपना प्यार जाहिर नही कर पाते पर उनका दिल माँ से कोमल होता है :)
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