Tuesday, 9 August 2016

अनुभूति



सारे रिश्ते
स्वार्थी मतलबी
झूठे होते हैं
चाहे जन्म से मिले
चाहे जग में बने
अकेला जन्म
अकेला मृत्यु
सत्य यही
कल भी था
कल भी होगा

Sunita Pushpraj Pandey :- माना जन्म और मृत्यु अकेले पर जीवन मे अपनो का साथ
सबकुछ सहज बना देता है

विभा रानी श्रीवास्तव :- कौन अपना ? किसी अपने को कभी आंक कर देखना सखी

Sunita Pushpraj Pandey :- बाकी का नही पता पर पति मेरा अपना है मेरा कष्ट उनके चेहरे पर नजर आता है जबकि वो कहते हैं मै सिर्फ अपने कर्तव्य निभाता हूँ

विभा रानी श्रीवास्तव :- आप खुशकिस्मत हैं कि पत्नी का दर्द महसूस करने वाला आपको आपके पति मिले
जरा उनसे पूछ कर बताइयेगा कि क्या आपके चिता के संग सती/सता होंगे न वे / अगर आप पहले मुक्त हुई इस जीवन से तो .... या रह भी जायेंगे तो .... सन्यासी हो जायेंगे न ...?

Sunita Pushpraj Pandey :- हाँ प्रैक्टिकल तो है वो पर परिवार से प्यार करते हैं किसी के विषय में सोच तो सकते हैं पर अपना नही सकते मेरे साथ भी मेरे बाद भी

विभा रानी श्रीवास्तव :- चिता के संग जायेंगे सवाल का जबाब ढुंढियेगा सखी

Sushma Singh :- सहमत पर कूछ अच्छे अौर सच्चे भी होते है

विभा रानी श्रीवास्तव :- पति के साथ सती होती थी स्त्रियां उसे भी रूढ़ी मान बदल दिया गया
उसके आगे पीछे किसी रिश्तेदार को किसी रिश्तेदार के साथ मरते नहीं पाई हूँ  अब तक .....

माता भू शैय्या
लॉकर खंगालते
बेटा बहुयें।

अंकिता कुलश्रेष्ठ :- जीजी ये तो सही है.. हर कोई निज स्वार्थ से रिश्ते बनाता है
चाहे जैसा स्वार्थ हो.. जैसे आप के साथ रिश्ता ... मुझे ऊर्जा प्रेरणा और खुशी देता है..
हुआ न मेरा स्वार्थ

विभा रानी श्रीवास्तव ;- हमारा क्या रिश्ता है इसकी कोई परिभाषा ही नहीं गढ़ सकता है
लेकिन एक दूसरे के वियोग में हम प्राण नहीं त्याग सकते हैं
पैरों में कई बन्धन हो सकते हैं न लिटिल Sis

अंकिता कुलश्रेष्ठ :- पर आप मेरे लिए अनमोल हो ... प्राण तो जिसने दिइए उसका अधिकार

विभा रानी श्रीवास्तव :- बिलकुल सही बात लिटिल Sis ..... जो सहमत नहीं उनकी अनुभूति उनके विचार
जैसे किसी का लेखन उसकी अनुभूति की अभिव्यक्ति होती है वैसे ही उस लेखन से दूसरे की सहमति या असहमति उसके खुद की अनुभूति होती है ... मैं अपनी अनुभूति में अपने कानों को शामिल नहीं करती हूँ

प्रश्न :- किसी के अनुभूति का दायरा कितना होता है ?

उत्तर :- श्री उमेश मौर्य जी :- व्यक्ति की परिस्थिति, पर्यावरण, चिंतन, और उसके पूर्व (अच्छे व बुरे) अनुभव ही उसकी अनभूति का माध्यम बनते है |
एक ही बात अलग अलग परिस्थिति में अलग अनुभव की हो सकती है |
हम किस तरह के परिवेश, माहौल में रहते है जिससे हमारी मनः स्थित प्रभावित होती है |
और हमारे पूर्व अनुभव हमारे सामने आने वाले सभी विचारों का मूल्याकंन कर एक आधार बनाते है |


2 comments:

  1. जब ईश के साथ तक रिश्ता स्वार्थ से भरा है तो इन्सान के साथ होना ही है :)

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