Thursday, 12 January 2017

स्त्री


स्त्री है तो सृजन है
सृजन है तो संसार है
स्त्री से ही संसार है
संसार है तो व्याप्त श्री है
स्त्री है तो श्री है
फिर भी
लेकिन
.
एकाकीपन चुभन से बुरी लगती जिन्दगी
तलाश कंधे चार नारकीय सहती जिन्दगी
मिलते क्या जो दर्द समझते बेदर्द न होते
चुनिंदा सुनंदा को स्वनंदा करती जिन्दगी
तुला-तंतु में वामा यादों-वादों गमों उलझी
रहमत-ए-खुदा को जुदा करती जिन्दगी

1 comment:

  1. शुभ प्रभात
    आदरणीय दीदी
    सादर नमन
    स्त्री
    परिभाषित करना दुरूह है
    जब ठण्डी रहती है तो सब सुखी रहते हैं
    और रहीं वो गरम हो गई तो
    तबाही मचा देती है
    सादर

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