स्त्री है तो सृजन है
सृजन है तो संसार है
स्त्री से ही संसार है
संसार है तो व्याप्त श्री है
स्त्री है तो श्री है
फिर भी
लेकिन
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एकाकीपन चुभन से बुरी लगती जिन्दगी
तलाश कंधे चार नारकीय सहती जिन्दगी
मिलते क्या जो दर्द समझते बेदर्द न होते
चुनिंदा सुनंदा को स्वनंदा करती जिन्दगी
तुला-तंतु में वामा यादों-वादों गमों उलझी
रहमत-ए-खुदा को जुदा करती जिन्दगी
शुभ प्रभात
ReplyDeleteआदरणीय दीदी
सादर नमन
स्त्री
परिभाषित करना दुरूह है
जब ठण्डी रहती है तो सब सुखी रहते हैं
और रहीं वो गरम हो गई तो
तबाही मचा देती है
सादर