प्रीत की रीत की होती नहीं जीत यहाँ
ह्रीत के नीत के होते नहीं मीत यहाँ
शीत यहाँ आगृहीत तड़ीत रूह बसा
क्रीत की गीत की होती नहीं भीत यहाँ
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ली
पाली
रश्मियाँ
'हरियल'
जौ गेंहूँ बाली
भू स्वर्ण नगरी
स्वेद कलमकारी
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पी
प्रधि
शै चोर
स्वप्न संधि
बैरी है बौर
कंचन नरंधि
स्व लगी गप्पियाने
खूबसूरत हरा कबूतर 'हरियल' जिसके पैर पीले होते हैं
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बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशब्दो को थोड़ा बड़ा लिखा करें पढ़ने परेशानी होती हैं
http://savanxxx.blogspot.in
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.1.17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2582 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह!!!
ReplyDeleteवाह जी ... बहुत ख़ूब है मुक्तक ...
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