स्पर्श में भी शब्द सी शक्ति होती होगी पीड़ा सोख लेने की🤔 संग हैं! जब भी कोई ऐसा मौका आएगा जिसमें जरूरत हो, यह जता दे!
16 जून 2019
आँख कुछ जल्दी खुल गई... चौके में काम जरा जल्दी निपटाने थे.. दिल्ली से पम्मी सिंह जी, हजारीबाग से अनिता मिश्रा जी आयी थीं, विशेष उनके लिए काव्य गोष्ठी तय था। जून का तीसरा रविवार पितृ दिवस को समर्पित, बब्लू के जन्मोत्सव पर काव्योत्सव की तैयारी थी। मैं अति उत्साहित शयन-कक्ष से ज्यों बाहर आई भयंकर गर्मी का एहसास हुआ। पूरब दिशा में चौका होना, कैसे हानिकारक हो सकता है उसका प्रभाव दिखा। कुछ पलों में लगा सारा शरीर भट्टी में है , सर में अजीब बैचेनी, खड़ा होने में असमर्थता.. बहुत मुश्किल से एक कप चाय बना पाई... फिर जो लेटी तो शरीर काबू से बाहर... लेकिन दिमाग तैयारी में था किसी तरह शरीर को खड़ा करना है... समय गुजरता जा रहा था तथा मुख्य समस्या भोजन बनाने का था... अपार्टमेन्ट में होने का फायदा, पलंग-कुर्सी-अलमीरा पास-पास होने से खड़ा होने का जोखिम उठा दवा-पानी लिया जा सकता है... ढ़ाई बजे तक किसी तरह से गाड़ी में शरीर को डाली और कार्यक्रम स्थल तक गई पम्मी सिंह
और घर वापस आकर बिस्तर पर गिरी तो
17 जून 2019
दूसरे दिन दोपहर में कुछ देर के लिए फिर अपने शरीर को सम्भालना पड़ा... कर्कश आवाज अपनी पहचान खो रही थी ... स्टेशन आने के पहले ट्रेन की गति के सामान... "तुम्हारी आवाज सदा ऐसी क्यों नहीं रहती..." आईने से सवाल करते फिर धराशाई बिस्तर पकड़ी... पेट साथ छोड़ रहा था तथा हल्का-हल्का दर्द भी.. शरीर पर लाल दाने अपने स्थान बनाने शुरू कर दिए संग खुजलाहट
18 जून 2019
सुबह से पेट पूरी तरह साथ छोड़ चुका था.. पेट-दर्द पूरी गति से तेज रफ्तार में... तथा इशारे से बात समझाने में चूक हो रही थी ... स्टेशन पर गाड़ी ठहर चुकी हो उसी तरह आवाज बिलकुल बंद... रात होते-होते अस्पताल जाने से शरीर बचा.. दाने-खुजलाहट अपने चरम सीमा पर...
19 जून 2019
सुबह शरीर खड़ा करने के जद्दोजहद में उलझे ही थे कि खबर मिली कि आदरणीया दीदी डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह जी 17 जून 2019 से पति विछोह सह रही हैं... उनसे मिलने जाना अति आवश्यक था.. सबको खबर की ... पति महोदय पूछे भी "कैसे जाओगी... जाना जरूरी भी है!"
"जब जाना जरूरी है तो अवश्य जाऊँगी!" मिलकर आ गयी हूँ..... तुझे तो सदा हराती आई हूँ ये जिन्दगी...
16 जून 2019
आँख कुछ जल्दी खुल गई... चौके में काम जरा जल्दी निपटाने थे.. दिल्ली से पम्मी सिंह जी, हजारीबाग से अनिता मिश्रा जी आयी थीं, विशेष उनके लिए काव्य गोष्ठी तय था। जून का तीसरा रविवार पितृ दिवस को समर्पित, बब्लू के जन्मोत्सव पर काव्योत्सव की तैयारी थी। मैं अति उत्साहित शयन-कक्ष से ज्यों बाहर आई भयंकर गर्मी का एहसास हुआ। पूरब दिशा में चौका होना, कैसे हानिकारक हो सकता है उसका प्रभाव दिखा। कुछ पलों में लगा सारा शरीर भट्टी में है , सर में अजीब बैचेनी, खड़ा होने में असमर्थता.. बहुत मुश्किल से एक कप चाय बना पाई... फिर जो लेटी तो शरीर काबू से बाहर... लेकिन दिमाग तैयारी में था किसी तरह शरीर को खड़ा करना है... समय गुजरता जा रहा था तथा मुख्य समस्या भोजन बनाने का था... अपार्टमेन्ट में होने का फायदा, पलंग-कुर्सी-अलमीरा पास-पास होने से खड़ा होने का जोखिम उठा दवा-पानी लिया जा सकता है... ढ़ाई बजे तक किसी तरह से गाड़ी में शरीर को डाली और कार्यक्रम स्थल तक गई पम्मी सिंह
17 जून 2019
दूसरे दिन दोपहर में कुछ देर के लिए फिर अपने शरीर को सम्भालना पड़ा... कर्कश आवाज अपनी पहचान खो रही थी ... स्टेशन आने के पहले ट्रेन की गति के सामान... "तुम्हारी आवाज सदा ऐसी क्यों नहीं रहती..." आईने से सवाल करते फिर धराशाई बिस्तर पकड़ी... पेट साथ छोड़ रहा था तथा हल्का-हल्का दर्द भी.. शरीर पर लाल दाने अपने स्थान बनाने शुरू कर दिए संग खुजलाहट
18 जून 2019
सुबह से पेट पूरी तरह साथ छोड़ चुका था.. पेट-दर्द पूरी गति से तेज रफ्तार में... तथा इशारे से बात समझाने में चूक हो रही थी ... स्टेशन पर गाड़ी ठहर चुकी हो उसी तरह आवाज बिलकुल बंद... रात होते-होते अस्पताल जाने से शरीर बचा.. दाने-खुजलाहट अपने चरम सीमा पर...
19 जून 2019
सुबह शरीर खड़ा करने के जद्दोजहद में उलझे ही थे कि खबर मिली कि आदरणीया दीदी डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह जी 17 जून 2019 से पति विछोह सह रही हैं... उनसे मिलने जाना अति आवश्यक था.. सबको खबर की ... पति महोदय पूछे भी "कैसे जाओगी... जाना जरूरी भी है!"
"जब जाना जरूरी है तो अवश्य जाऊँगी!" मिलकर आ गयी हूँ..... तुझे तो सदा हराती आई हूँ ये जिन्दगी...
अब आपका स्वास्थ्य कैसा है ...,आप स्वस्थ हैं ना ?
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteचिंताजनक स्थिति से उभर गई हूँ... धीरे-धीरे सब ठीक होने के कगार पर