रात में बाहर खुले में मत टहलना
गर्भवती बहू को सासु जी का आदेश,
उबाली गई जल में नीम की पत्तियाँ
नहाने के लिए जच्चा जरूर प्रयोग करे।
धुला कमरा, धुली चादर, साफ बिछावन पर
पूरे पत्तों वाली टहनियाँ नीम की,
अंधविश्वास मान लेते हो!
उनको कसो न वैज्ञानिक
कसौटी पर एक-एक कर।
गर्भवती बहू को सासु जी का आदेश,
उबाली गई जल में नीम की पत्तियाँ
नहाने के लिए जच्चा जरूर प्रयोग करे।
धुला कमरा, धुली चादर, साफ बिछावन पर
पूरे पत्तों वाली टहनियाँ नीम की,
अंधविश्वास मान लेते हो!
उनको कसो न वैज्ञानिक
कसौटी पर एक-एक कर।
वृक्षों का परिदान।
छठ-चौथ को निहोरा/मनुहार
वट को धागे में लपेट लेना,
कान्हा को मानो जैसे
यशोदा ने बाँधा हो ओखल
यमलार्जुन का शाप-मुक्त होना
सृजक स्त्रियाँ
बखूबी सब समझती हैं।
सागर में बूँदों की तरह,
अनेकानेक हैं जो सालों भर,
पर्यावरण पर सोच-विचार करते हैं।
हम जैसों की नींद खुलती है
जब संकट में खुद को घिरा पाते हैं।
आ जाओ ईदी में वृक्ष लगाते हैं,
सारे रिश्तेदारों को
हम सदा जीवित रखते हैं।
छाल में विष्णु ,जड़ में ब्रह्मा और
शाखाओं में शिव का वास मानने वाले कहते हैं,
सिर्फ और सिर्फ ऑक्सिजन प्रदाता
रोग निवारक वट अक्षय होते हैं।
हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/06/2019 की बुलेटिन, " 5 जून - विश्व पर्यावरण दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह..वाह दी अति सराहनीय..👌
Deleteईदी में वृक्ष लगाना....बहुत ही सुंदर एवं मौलिक विचार रखा है आपने दीदी। स्त्रियों का तो वृक्षों से खास लगाव रहा है। शायद हमारे पूर्वजों ने वृक्ष पूजन की परंपरा स्त्रियों को इसीलिए सौंपी है क्योंकि वह सृजनकर्ती और पालनकर्ती दोनों है। नीम, पीपल, आँवला,खेजड़ी,बरगद,केला, बेल जैसे वृक्षों को देवी देवताओं से जोड़कर हमारे पूर्वजों ने वृक्ष पूजन की परंपरा स्त्रियों को इसीलिए सौंपी है क्योंकि वह सृजनकर्ती और पालनकर्ती दोनों है। विभा दी, आप जब भी लिखती हैं, अपने सरल सुस्पष्ट भावों से हमें चमत्कृत कर देती हैं।
ReplyDeleteवाह !! आपकी जागरूक सक्रियता और संस्कारों को वैज्ञानिकता के दृष्टिकोण पर परखते लेख व रचनाएँ अपने आप में बेमिसाल और लाजवाब हैं ।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसागर में बूँदों की तरह,
ReplyDeleteअनेकानेक हैं जो सालों भर,
पर्यावरण पर सोच-विचार करते हैं।
जागरूक दृष्टिकोण पर्यावरण सरकारों का विषय नहीं है बल्कि यह तो सामाजिक चेतना का सार्वकालिक चिंतन का मुद्दा है।