ब्लॉग पर श्राद्ध के बारे में लिख ही रही थी
कि अम्मा (रश्मि जी की अम्मा ) की देहांत की खबर मिली
और मेरी लेखनी रुक गई ....
जो लिखना चाहती थी वो लिख नहीं सकी
पूरा दिन लिखने का मन ही नहीं किया
माँ की मौत के बाद जो जगह खाली होती है
वो तो कोई नहीं भर सकता है ये मुझ से बेहतर कौन जान सकता है
आज चौतीस साल से तड़प में जी रही हूँ ...
इसलिए आज फिर वही से बात शुरू करती हूँ ....
कुछ भी राय-विचार देने के लिए
खुद उस अनुभव से गुजरना जरूरी होता है ....
कुछ वर्ष पहले (2006) मेरे सास-ससुर की भी इच्छा हुई कि
अपने पुर्वजो का पिंड दान कर दिया जाये क्यूँ कि वे धीरे-धीरे अस्वस्थ्य हो रहे थे
गया में इस समय बहुत भीड़ होती है ,देश के अलावे विदेश से भी लोग आते हैं
उनकी इच्छा जान कर ,
मैं और मेरे पति के साथ सास-ससुर गया गए
वहाँ की भीड़ देख कर सब घबडा गए
लेकिन मेरे पति मुझे गेस्ट हाउस में पहुंचा कर ,
अपने माता - पिता को लेकर पिंड-दान कराने ले गए
पूरा कार्य अपने हाथो से सम्पूर्ण करवा दिए
पंडा बोले ,मेरे ससुर से :- आपको श्रवण -पुत्र मिला है
मेरे ससुर बोले :- मेरी आत्मा आज ही मुक्त हो गई
मेरे मरने के बाद मेरा बेटा पिंडदान नहीं भी करेगा तो
क्यूँ कि आज मेरे सारे दायित्व को मेरा बेटा पूरा किया है
जिससे हमलोग तृप्त हैं
पूरी जिंदगी मेरे सास-ससुर मेरे पति से तृप्त रहे
मेरे पति अपने माता - पिता के प्रति
अपने सारे दायित्व को अच्छी तरह निभाए
आज मेरे पति के मन में न तो पिंड-दान की इच्छा है
और न मेरे सास-ससुर की आत्मा को कोई उम्मीद होगी
और न समाज उन्हें कुछ कहने का अधिकार पा सका
पितृ, पुत्र, पंडा .. और पिंडदान .....
श्रापित फल्गु के तट पर सभी का मिलन .....
यह मिलन श्रद्धा के साथ श्राद्ध का है , जिसके तार पितृलोक से जुडे हुए हैं ....
आश्रि्वन कृष्णपक्ष को पितृपक्ष कहा गया है .....
इस पक्ष के समय पितर समीप आ जाते हैं
और अपने-अपने बच्चों से जल और पिंड की आशा करते हैं ....
कालांतर से चली आ रही यह परंपरा गया (बिहार) में आज भी जीवंत है ....
प्रत्येक वर्ष अनंत चतुर्दशी की तिथि से
17 दिवसीय पिंडदान का आरंभ पुनपुन नदी में तर्पण से होता है ....
इसी दिन गया में पितृपक्ष मेला शुरू होता है ....
सुनती हूँ
गया में पिंड-दान कर देने के बाद आत्मा मुक्त हो जाती है
उसे फिर कभी तर्पण की आवश्यकता नहीं होती …
श्रापित फल्गु
वाल्मिकी रामायण में सीता द्वारा पिंडदान देकर
दशरथ की आत्मा को मोक्ष दिलाने का संदर्भ आता है ....
वनवास के दौरान भगवान राम , लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे , वहां श्राद्ध कर्म के लिए ,आवश्यक सामग्री जुटाने के लिये , राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल गए ,जब दोपहर हो गई , पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढती जा रही थी , तभी दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी .... गया के फल्गू नदी पर अकेली सीता जी असमंजस में पड गई .... उन्होंने फल्गू नदी के साथ , वटवृक्ष , केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया .... थोडी देर में राम और लक्ष्मण लौटे तो सीता जी ने कहा कि समय निकल जाने के कारण , मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया है , बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है, इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा तब सीता जी ने कहा कि यह फल्गू नदी की रेत , केतकी के फूल , गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं .... लेकिन सीता जी के अनुरोध करने पर भी फल्गू नदी , गाय और केतकी के फूल ,तीनों उस बात से मुकर गए .... सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही .... तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके ,उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की .... दशरथ जी ने सीता जी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि सही समय पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया है ....
इस पर राम आश्वस्त हुए ....
लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दिया कि फल्गू नदी ... जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी , तुझमें पानी नहीं रहेगा .... इस कारण फल्गू नदी ,आज भी गया में सूखी रहती है .... गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी ...और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढाया जाएगा .... वटवृक्ष को सीता जी का आर्शीवाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी .... यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पडता है, केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है ....
पिंडदान के बारे में इस तरह की जानकारी बहुत कम लोगों के पास है ,मुझे भी बहुत सी चीजे नहीं मालूम थी ,इस ब्लॉग से मालूम चली । मैं तो घर में मझला निकला चाची जी जो किसी अर्थ का नहीं । मेरी नानी हंसी में एक कहावत कहा करती थी कि "बडके का घर दुआर और छोटके के माई बाप ,गईले पुत माझिल "। आज वही सही लगती है |
ReplyDeleteसीता के बारे में जब भी पढता हूँ बहुत क्लेश होता है. राम ने जिस तरह बात पर शक किया, बात-बात पर गवाही ली.........
ReplyDeleteवाकई पिंडदान के बारे में इस तरह की जानकारी शायद बहुत ही कम लोगों को है है मुझे तो बहुत ही कम जानकारी है पर आज आपकी पोस्ट पढ़कर कुछ जानकारी मिली !
ReplyDeleteगया श्राद्ध से सम्बंधित कथा पहली बार पढ़ी।
ReplyDeleteआभार !
बहुत अच्छी जानकारी शेयर करी है दी |
ReplyDeleteमेरे पति से भी अपने माता -पिता की बहुत सेवा की और बहुत संतुष्ट रहे मेरे सास ससुर उम्र भर ...इस पक्ष में बहुत से मिथ हैं यह न करे यह करे ......पितृ दोष लगता हैं .....तब मन को बड़ा क्लेश होता हैं .क्या करे और क्या न करे का असमंजस बना रहता हैं
ReplyDeleteगया(बिहार)में निर्भया और केदारनाथ में मृत्यु को प्राप्त सभी लोगो के लिए मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान किया जाएगा 28 सितंबर को
Deleteआत्मा और जमीर सबमें होता है वो जो बोले वही सही होता है बाकी दुनिया क्या बोल रही ये मायने नहीं रखता दुनिया तो हर हाल में बोलती है ....
पितृ मोक्ष के लिए पिंड दान जरूरी,अच्छी जानकारी !
ReplyDeleteRECENT POST : हल निकलेगा
ईश्वर रश्मि जी की अम्मा की आत्मा को शान्ति दें और इस दुःख की घड़ी में परिवारजनों को संबल प्रदान करें!
ReplyDeleteयह जीवन मृत्यु की आँख मिचौनी आँखों से अविरल आंसू बन कर बह रही है...
आपकी पोस्ट से इतनी जानकारी मिली...उसका शुक्रिया
ReplyDelete,अच्छी जानकारी !
ReplyDeletesadar pranaam,
ReplyDeletepind-daan ke vishaya me bahut gyaan-vardhak lekh,aksar apne allahabad me sanagm pr yah aayojan dekhta tha ,pr sabse sarthak jaankaari is post se prapt huyi ...
bhagwan ammaji ki aatma ko shanti den,aur rashmi ji ko yah dukh sahne ki takat-
“अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
बहुत अच्छी जानकारी . रश्मि जी की अम्मा की आत्मा को शान्ति दें और इस दुःख की घड़ी में परिवारजनों को संबल प्रदान करें!
ReplyDeleteनई पोस्ट : अद्भुत कला है : बातिक
विनम्र श्रद्धांजलि ...नमन
ReplyDeleteपंच तंत्र मे भी ऐसा ही कुछ लिखा है आंटी-
ReplyDelete"जियत पिता से दंगम दंगा
मरत पिता पहुंचाए गंगा
जियत पिता को घूंसे लात
मरत पिता को खीर और भात
जियत पिता को डंडा लठिया
मरत पिता को तोसक तकिया
जियत पिता की न पूछी बात
मरत पिता को श्राद्ध करात। "
इन पंक्तियों से भी आपकी ही बात सिद्ध होती है।
सादर
बहुत अछि जानकारी ....
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